ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 631/2010/331
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोता-पाठकों को हमारा नमस्कार और बहुत बहुत स्वागत है इस सुरीली महफ़िल में। पिछली शृंखला केन्द्रित थी हिंदी सिनेमा के प्रथम सिंगिंग् सुपरस्टार के.एल. सहगल साहब पर। सिंगिंग् स्टार्स की बात करें तो सहगल साहब के अलावा पंकज मल्लिक, के. सी. डे, कानन देवी, शांता आप्टे, नूरजहाँ, सुरैया जैसे नाम झट से ज़ुबान पर आ जाते हैं। प्लेबैक सिंगर्स के आगमन से धीरे धीरे सिंगिंग् स्टार्स का दौर समाप्त हो चला और एक से एक लाजवाब पार्श्वगायकों नें क़दम जमाया जिन्होंने फ़िल्म संगीत को नई बुलंदियों तक पहुँचाया। और स्टार्स केवल अभिनय तक ही सीमित रह गये। इस तरह से अभिनय और गायन, दोनों जगत को श्रेष्ठ फ़नकार मिले जिन्हें अपनी अपनी विधा में महारथ हासिल थी। वैसे समय समय पर हमारे फ़िल्म निर्माता-निर्देशक और संगीतकारों नें अभिनेताओं से गानें भी गवाये हैं, जो उनकी आवाज़ में बड़े ही निराले और अनोखे बन पड़े हैं। आइए आज से शुरु करें कुछ ऐसे ही अभिनेताओं द्वारा गाये फ़िल्मी गीतों पर आधारित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की नई लघु शृंखला 'सितारों की सरगम'। शुरुआत करते हैं 'शोमैन ऒफ़ दि मिलेनियम' राज कपूर साहब से। वैसे तो हमनें राज साहब पर ७ अंकों की लघु शृंखला बहुत पहले ही प्रस्तुत की है, लेकिन उसमें राज साहब का गाया कोई गीत शामिल नहीं हुआ। आइए आज राज साहब की आवाज़ का भी आनंद लिया जाए। यह है १९४७ की फ़िल्म 'दिल की रानी' का गीत "ओ दुनिया के रहने वालों, बोलो कहाँ गया चितचोर"। गीतकार यशोदानंदन जोशी का लिखा यह गीत है, और इस फ़िल्म के संगीतकार थे सचिन देव बर्मन।
सन् १९४७ में राज कपूर ने बतौर नायक फ़िल्म जगत में क़दम रखा था किदार शर्मा की फ़िल्म 'नील कमल' में, जिसमें उनकी नायिका थीं मधुबाला। वैसे राज साहब नें फ़िल्मों में अपना करीयर एक चौथे ऐसिस्टैण्ट के रूप में शुरु किया था और पहली बार पर्दे पर नज़र आये थे १९३५ की फ़िल्म 'इनकिलाब' में। और राज कपूर - मधुबाला की जोड़ी इसी वर्ष, यानी १९४७ में दो और फ़िल्मों में नज़र आई, ये फ़िल्में थीं 'चित्तौड़ विजय' और 'दिल की रानी'। दोनों ही फ़िल्में मोहन सिन्हा निर्देशित फ़िल्में थीं और दोनों में ही संगीत बर्मन दादा का था। 'दिल की रानी' के प्रस्तुत गीत को सुनकर कोई भी अनुमान लगा सकता है राज कपूर के संगीत समझ की। शुरुआती दिनों में वो मुकेश के साथ संगीत सीखा करते थे, यानी कि दोनों गुरुभाई हुआ करते थे। इस संगीत शिक्षा से न केवल वो एक अच्छा गायक बनें, बल्कि संगीत निर्देशन की भी उनकी अच्छी समझ हो गई थी। और यही कारण था कि उनके सभी फ़िल्मों का संगीत सफल होता था। फ़िल्म चाहे चले न चले, उनका संगीत ज़रूर चलता था। गीतों की सिटिंग्स में वो संगीतकार और गायक के साथ मौजूद रहते थे और अपने सुझाव भी दिया करते थे। कहा जाता है कि फ़िल्म 'बॊबी' के गीत "अखियों को रहने दे अखियों के आसपास" की धुन उन्होंने ही सुझाई थी। अच्छा अब वापस आते हैं 'दिल की रानी' पर और आपको एक दिलचस्प तथ्य देना चाहेंगे कि जहाँ एक तरफ़ सचिन दा ने राज कपूर से यह गीत गवाया, इसी फ़िल्म में उन्होंने श्याम सुंदर से भी एक एकल गीत गवाया था जिसके बोल थे "आएँगे मेरे मन के बसैया"। तो आइए राज कपूर की संगीत प्रतिभा को सलाम करते हुए सुनें उनका गाया फ़िल्म 'दिल की रानी' का यह गीत। गीत को सुनते हुए आपको पहले दौर के गायकों की ज़रूर याद आ जायेगी। फ़र्क बस इतना है कि ऒर्केस्ट्रेशन कुछ उन्नत सुनाई देती है। लीजिए सुनिए...
क्या आप जानते हैं...
कि राज कपूर कई साज़ बजा लेते थे जिनमें शामिल थे हारमोनियम, ऐकॊर्डियोन, पियानो, तबला, बुलबुल-तरंग आदि।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 2/शृंखला 14
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - एक और बड़े फनकार का है पार्श्वगायन.
सवाल १ - किस अभिनेता ने पार्श्वगायन किया है इस युगल गीत में - १ अंक
सवाल २ - किस निर्देशक ने अपनी फ़िल्मी पारी की शुरुआत की इस फिल्म से - ३ अंक
सवाल ३ - संगीतकार कौन हैं - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अनजाना जी ने शानदार शुरुआत की है ३ अंकों से, अमित जी भी बस पीछे ही हैं, इस बार तो लगता है शरद जी मैदान में उतर पड़े हैं, इंदु जी पसंद अपनी अपनी है क्या कहें
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोता-पाठकों को हमारा नमस्कार और बहुत बहुत स्वागत है इस सुरीली महफ़िल में। पिछली शृंखला केन्द्रित थी हिंदी सिनेमा के प्रथम सिंगिंग् सुपरस्टार के.एल. सहगल साहब पर। सिंगिंग् स्टार्स की बात करें तो सहगल साहब के अलावा पंकज मल्लिक, के. सी. डे, कानन देवी, शांता आप्टे, नूरजहाँ, सुरैया जैसे नाम झट से ज़ुबान पर आ जाते हैं। प्लेबैक सिंगर्स के आगमन से धीरे धीरे सिंगिंग् स्टार्स का दौर समाप्त हो चला और एक से एक लाजवाब पार्श्वगायकों नें क़दम जमाया जिन्होंने फ़िल्म संगीत को नई बुलंदियों तक पहुँचाया। और स्टार्स केवल अभिनय तक ही सीमित रह गये। इस तरह से अभिनय और गायन, दोनों जगत को श्रेष्ठ फ़नकार मिले जिन्हें अपनी अपनी विधा में महारथ हासिल थी। वैसे समय समय पर हमारे फ़िल्म निर्माता-निर्देशक और संगीतकारों नें अभिनेताओं से गानें भी गवाये हैं, जो उनकी आवाज़ में बड़े ही निराले और अनोखे बन पड़े हैं। आइए आज से शुरु करें कुछ ऐसे ही अभिनेताओं द्वारा गाये फ़िल्मी गीतों पर आधारित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की नई लघु शृंखला 'सितारों की सरगम'। शुरुआत करते हैं 'शोमैन ऒफ़ दि मिलेनियम' राज कपूर साहब से। वैसे तो हमनें राज साहब पर ७ अंकों की लघु शृंखला बहुत पहले ही प्रस्तुत की है, लेकिन उसमें राज साहब का गाया कोई गीत शामिल नहीं हुआ। आइए आज राज साहब की आवाज़ का भी आनंद लिया जाए। यह है १९४७ की फ़िल्म 'दिल की रानी' का गीत "ओ दुनिया के रहने वालों, बोलो कहाँ गया चितचोर"। गीतकार यशोदानंदन जोशी का लिखा यह गीत है, और इस फ़िल्म के संगीतकार थे सचिन देव बर्मन।
सन् १९४७ में राज कपूर ने बतौर नायक फ़िल्म जगत में क़दम रखा था किदार शर्मा की फ़िल्म 'नील कमल' में, जिसमें उनकी नायिका थीं मधुबाला। वैसे राज साहब नें फ़िल्मों में अपना करीयर एक चौथे ऐसिस्टैण्ट के रूप में शुरु किया था और पहली बार पर्दे पर नज़र आये थे १९३५ की फ़िल्म 'इनकिलाब' में। और राज कपूर - मधुबाला की जोड़ी इसी वर्ष, यानी १९४७ में दो और फ़िल्मों में नज़र आई, ये फ़िल्में थीं 'चित्तौड़ विजय' और 'दिल की रानी'। दोनों ही फ़िल्में मोहन सिन्हा निर्देशित फ़िल्में थीं और दोनों में ही संगीत बर्मन दादा का था। 'दिल की रानी' के प्रस्तुत गीत को सुनकर कोई भी अनुमान लगा सकता है राज कपूर के संगीत समझ की। शुरुआती दिनों में वो मुकेश के साथ संगीत सीखा करते थे, यानी कि दोनों गुरुभाई हुआ करते थे। इस संगीत शिक्षा से न केवल वो एक अच्छा गायक बनें, बल्कि संगीत निर्देशन की भी उनकी अच्छी समझ हो गई थी। और यही कारण था कि उनके सभी फ़िल्मों का संगीत सफल होता था। फ़िल्म चाहे चले न चले, उनका संगीत ज़रूर चलता था। गीतों की सिटिंग्स में वो संगीतकार और गायक के साथ मौजूद रहते थे और अपने सुझाव भी दिया करते थे। कहा जाता है कि फ़िल्म 'बॊबी' के गीत "अखियों को रहने दे अखियों के आसपास" की धुन उन्होंने ही सुझाई थी। अच्छा अब वापस आते हैं 'दिल की रानी' पर और आपको एक दिलचस्प तथ्य देना चाहेंगे कि जहाँ एक तरफ़ सचिन दा ने राज कपूर से यह गीत गवाया, इसी फ़िल्म में उन्होंने श्याम सुंदर से भी एक एकल गीत गवाया था जिसके बोल थे "आएँगे मेरे मन के बसैया"। तो आइए राज कपूर की संगीत प्रतिभा को सलाम करते हुए सुनें उनका गाया फ़िल्म 'दिल की रानी' का यह गीत। गीत को सुनते हुए आपको पहले दौर के गायकों की ज़रूर याद आ जायेगी। फ़र्क बस इतना है कि ऒर्केस्ट्रेशन कुछ उन्नत सुनाई देती है। लीजिए सुनिए...
क्या आप जानते हैं...
कि राज कपूर कई साज़ बजा लेते थे जिनमें शामिल थे हारमोनियम, ऐकॊर्डियोन, पियानो, तबला, बुलबुल-तरंग आदि।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 2/शृंखला 14
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - एक और बड़े फनकार का है पार्श्वगायन.
सवाल १ - किस अभिनेता ने पार्श्वगायन किया है इस युगल गीत में - १ अंक
सवाल २ - किस निर्देशक ने अपनी फ़िल्मी पारी की शुरुआत की इस फिल्म से - ३ अंक
सवाल ३ - संगीतकार कौन हैं - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अनजाना जी ने शानदार शुरुआत की है ३ अंकों से, अमित जी भी बस पीछे ही हैं, इस बार तो लगता है शरद जी मैदान में उतर पड़े हैं, इंदु जी पसंद अपनी अपनी है क्या कहें
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
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