Skip to main content

जीत का जूनून तारी है पूरे देश पर...जारी रहे ये हैंग ओवर...


देखा जाए तो आज के अखबार में भी वही सब है, भ्रष्टाचार, नाबालिक के साथ बलात्कार, सेक्स रैकेट का भंडाफोड, लूट पाट सब है, मगर आज के अखबार में ऐसा भी कुछ है जो इन सब नकारात्मकताओं के ऊपर भी हावी है. टीम इंडिया की वर्ल्ड कप फतह एक ऐसी खबर है जिसने करोड़ों देशवासियों को सर उठा कर अपने देश पर फक्र करने की वजह दी है एक बार फिर. १९८३ में जब एक पुछल्ली टीम रही इंडिया ने एक करिश्माई कैप्टन की अगुवाई में जब ये करिश्मा कर दिखाया था तब मेरी उम्र ९ साल थी. न तो उन दिनों घर में टेलीविजन था न ही इस बात की खबर की क्रिकेट जैसी कोई चीज़ भी दुनिया में होती है. मगर अगले ४ सालों में घर पर एक ब्लैक एंड वाईट टीवी आ चुका था और क्रिकेट की बेसिक जानकारियाँ भी समझ आने लगी थी. साल १९८७, वो सुनील गावस्कर का आखिरी कप था और मुझे याद है न्यूजीलैंड के खिलाफ उन्होंने अपना पहला और आखिरी शतक जमाया था. इसी मैच में चेतन शर्मा ने विश्व कप की पहली हैट ट्रिक भी ली थी, मगर भारत सेमी में इंग्लैंड के हाथों पिट गया. मुझे याद है अपने आखिरी कप खेल रहे पाकिस्तान के जबरदस्त कप्तान इमरान खान १९९२ में जब इस कप को उठाया था तब पकिस्तान में लोगों में कैसा जोश दिखाया था.

ये वो समय था जब हिंदुस्तान एक बड़े बदलाव से गुजर रहा था, नयी पीढ़ी नए आदर्शों को तलाश रही थी. और यहीं क्रिकेट में आदर्श बन कर उभरा एक सितारा जिसने भारतीय खिलाड़ियों के खेलने की सोच को ही बदल दिया, जी हाँ सचिन के बाद की क्रिकेट पीढ़ी में शायद ही आपको गावस्कर, वेंगसरकर, या शास्त्री जैसी मृदुलता मिलेगी. यहाँ आक्रामक होना स्वाभाविक था और विपक्षी पर अपने पूरे हुनर के साथ दबाब डालना खेल का नया नियम. लगभग इसी दौर में एक नया लीडर पैदा हो रहा था सौरव गांगुली के रूप में, जिसने वास्तव में खिलाड़ियों को विपक्षी खिलाड़ियों की आँखों में ऑंखें डाल कर खेलने के लिए तैयार किया. २००३ के वर्ल्ड कप में सचिन ने अपना सब कुछ झोंक दिया. पर अभी भी पूरी टीम सचिन के इर्द गिर्द ही चल रही थी, उनके आउट होते ही जैसे जीत की उम्मीदें भी दफ़न हो जाती थी. यही वास्तविक अंतर है २००३ की टीम में जो फाईनल तक तो पहुंची मगर खाली हाथ लौट आई और २०११ की इस खास टीम में जिसने तमाम अटकलों को दाव पर रख कर, दबाब को पार पाते हुए विश्व कप फाईनल के अब तक के सबसे बड़े चेस को अंजाम दिया और विजय हासिल की. कल के फाईनल मुकाबले में भी सचिन जल्द ही आउट हो गए मगर टीम जरा भी नहीं लडखडाई. यही है आज की इंडियन टीम जिसके ज्यादातर खिलाड़ी मानते हैं सचिन को अपनी प्रेरणा मगर जो खुद भी अपनी जिम्मेदारियों से पल्ला नहीं झाड़ते, और समय पड़ने पर अपना सब कुछ झोंकने के लिए भी तैयार मिलते हैं. २८ सालों का लंबा इंतज़ार और विश्व कप पर एक बार भारत का कब्ज़ा. वाकई ये २८ वर्ष के वर्ल्ड कप का सफर देश के लिए भी एक वृत्त के पूरे होने जैसा है.

आज मेरा बेटा करीब ८ साल का है, यही लगभग मेरी उम्र थी जब हिंदुस्तान में पहला वर्ल्ड कप आया था. कल मेरे साथ इस अंतिम मुकाबले को देख कर वो खुश तो बहुत हुआ पर इसके महत्त्व को शायद समझने लायक नहीं हुआ है. आज का अखबार मैं बहुत संभाल के रखने वाला हूँ, हो सकता है जब अगली बार भारत विश्व कप जीते तब वो जानना चाहे कि २०११ का कप जीतना कैसा था.

इस विश्व कप के स्वागत के लिए जो गीत हमने बनाया था “जीत का जूनून”, आज विश्व कप हाथ में आ जाने के बाद लगता है कि जैसे इस पूरे मुकाबले की स्क्रिप्ट जैसे पहले से ही तैयार रही हो वैसे ही इस गीत की हर पंक्ति भी उसी स्क्रिप्ट राईटर ने ही मुझसे लिखवाई हो....उदाहरण के लिए देखिये ये पंक्तियाँ ऑस्ट्रेलिया की टीम के लिखी गयी थी....

सुनो नगाड़े किला हिला दो बढ़ो चलो,
चलो दहाड़े, किला हिला दो बढ़ो चलो...


तीन बार से विश्व कप विजेता रही ऑस्ट्रेलिया की टीम का किला हिलाना आसान नहीं था, पर भारत की टीम ने इस अड़चन को भी पार किया.

हार के पंजों से जीत को छीन लो,
नाम हमारे हो फतह ठान लो...


याद कीजिए कल के मैच में यही तो हुआ था, जब भारत ने हारी हुई बाज़ी पलट दी तमाम दबाबों को दरकिनार कर.

एक से एक मिले तो हो ग्यारह, हाँ ग्यारह हो हमारा,
देश का यही है आज नारा.....


वाकई ग्यारह तो हमारा ही रहा. बधाई सभी देशवासियों को. “जीत का जूनून” यू ट्यूब पर २५०० से अधिक दर्शक देख चुके हैं. टाईम्स और मेट्रो न्यूस में इस पर आलेख लिखे गए हैं. कल अंतिम मुकाबले से पहले टाईम्स नाऊ में इसके गायक दीपेश और संगीतकार ईश्वर ने इसे लाईव परफोर्म किया अनप्लग्ड, और अभी भी जारी है जीत का जूनून और जारी ही रहे यही कामना है.

Comments

AVADH said…
बधाई हो सजीव जी,
और आपके साथ सब हिन्दयुग्म की टीम और समस्त देशवासियों को.
अवध लाल

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की