ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 635/2010/335
सितारों की सरगम', 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला में इन दिनों आप सुन रहे हैं फ़िल्म अभिनेता-अभिनेत्रियों द्वारा गाये गये फ़िल्मी गीत। राज कपूर, दिलीप कुमार, मीना कुमारी और नूतन के बाद आज बारी हम सब के चहेते अभिनेता दादामुनि अशोक कुमार की। दोस्तों, आपको शायद याद होगा कि इस शृंखला की पहली कड़ी में हमनें यह कहा था कि इस शंखला में हम 'सिंगिंग् स्टार्स' को शामिल नहीं कर रहे हैं। इसलिए दादामुनि का नाम सुन कर शायद आप यह सवाल करें कि दादामुनि तो फ़िल्मों के पहले दशक में अभिनय के साथ साथ गायन भी किया करते थे, तो फिर उनका नाम कैसे इस शृंखला में शामिल हो रहा है? दरअसल बात ऐसी है दोस्तों कि भले ही अशोक कुमार नें उस दौर में अपने पर फ़िल्माये गानें ख़ुद ही गाया करते थे, लेकिन उनका नाम 'सिंगिंग् स्टार्स' की श्रेणी में दर्ज करवाना शायद सही नहीं होगा। दादामुनि की ही तरह उस दौर में बहुत से ऐसे अभिनेता थे जिन्हें प्लेबैक की तकनीक के न होने की वजह से अपने गानें ख़ुद ही गाने पड़ते थे, जिनमें मोतीलाल, पहाड़ी सान्याल जैसे नाम उल्लेखनीय है। यानी कि गायन उस ज़माने के अभिनेताओं की मजबूरी थी। और फिर दादामुनि नें स्वयं ही इस बात को स्वीकारा था विविध भारती के एक इंटरव्यु में, जिसमें उन्होंने कहा था, "जब मैं फ़िल्मों में आया था सन् १९३४-३५ के आसपास, उस समय गायक-अभिनेता सहगल ज़िंदा थे। उन्होंने फ़िल्मी गानों को एक शक्ल दी और मेरा ख़याल है उन्हीं की वजह से फ़िल्मों में गानों को एक महत्वपूर्ण जगह मिली। आज उन्हीं की बुनियाद पर यहाँ की फ़िल्में बनाई जाती हैं, यानि बॊक्स ऒफ़िस सक्सेस के लिए गानों को सब से ऊँची जगह दी जाती है। मेरे वक़्त में प्लेबैक के तकनीक की तैयारियां हो रही थी। तलत, रफ़ी, मुकेश फ़िल्मी दुनिया में आये नहीं थे, लता तो पैदा भी नहीं हुई होगी। अभिनेताओं को गाना पड़ता था चाहे उनके गले में सुर हो या नहीं। इसलिए ज़्यादातर गानें सीधे सीधे और सरल बंदिश में बनाये जाते थे ताकि हम जैसे गाने वाले आसानी से गा सके। मेरा अपना गाया हुआ एक गाना था "पीर पीर क्या करता रे तेरी पीर न जाने कोई"। मुझे याद है इस गाने को रेकॊर्ड में भरना मुश्किल पड़ गया था क्योंकि यह गाना था आधे मिनट का और इस आधे मिनट को तीन मिनट का बनाने के मुझे धीरे धीरे गाना पड़ा था। और उस रेकॊर्ड को सुन कर मैं रो दिया था। उसी वक़्त मैंने तय कर लिया था कि अगर मुझे फ़िल्मों में रहना है तो गाना सीखना ही पड़ेगा। मैं आठ महीनों तक राग यमन सीखता रहा।" दोस्तों, पार्श्वगायन की प्रथा लोकप्रिय होने के बाद अशोक कुमार को फ़िल्मों में गाने की ज़रूरत नहीं पड़ी और उनके गीत रफ़ी, मन्ना डे जैसे गायकों नें गाये, और वो एक अभिनेता के रूप में ही मशहूर हुए, न कि 'गायक-अभिनेता' के रूप में। इसलिए 'सितारों की सरगम' शृंखला में दादामुनि अशोक कुमार को शामिल करने में कोई वादा-ख़िलाफ़ी नहीं होगी।
आज की कड़ी के लिए अशोक कुमार के गाये गीतों में कौन सा गीत सुनवायें? जी नहीं, हम ३० के दशक का कोई गीत नहीं सुनवायेंगे। इसके चार दशक बाद दादामुनि की एक बेहद चर्चित फ़िल्म आयी थी 'आशीर्वाद', जिसमें उनका मुख्य चरित्र था फ़िल्म में। एक मानसिक रोगी की भूमिका में बच्चों के लिए उनके गाये "रेल गाड़ी" और "नानी की नाव चली" गीत बेहद लोकप्रिय हुए थे। लेकिन ये दोनों ही गीतों में गीत की विशेषता कम और नर्सरी राइम की महक ज़्यादा थी। कल्याणजी-आनंदजी के संगीत निर्देशन में दादामुनि नें फ़िल्म 'कंगन' में एक गीत गाया था "प्रभुजी मेरे अवगुण चित ना धरो"। साल १९८२ में बासु चटर्जी की एक हास्य फ़िल्म आयी थी 'शौकीन', जिसके मुख्य चरित्रों में थे तीन वृद्ध, जिन्हें पर्दे पर साकार किया था हिंदी सिनेमा के तीन स्तंभ अभिनेता - ए. के. हंगल, उत्पल दत्त और दादामुनि अशोक कुमार नें। साथ में थे मिथुन चक्रवर्ती और रति अग्निहोत्री। इस फ़िल्म में दादामुनि की आवाज़ में एक बड़ा ही अनूठा गीत था जिसे उन्होंने गायिका चिरश्री भट्टाचार्य के साथ मिल कर गाया था। राहुल देव बर्मन का संगीत था और गीतकार थे योगेश। मारुति राव और मनोहारी सिंह संगीत सहायक के रूप में काम किया था इस फ़िल्म में। हाँ तो दादामुनि और चिरश्री की युगल आवाज़ों में यह गीत था "चलो हसीन गीत एक बनाये, वह गीत फिर बनाके गुनगुनायें, ख़यालों को चलो ज़रा सजायें, नशे में क्यों न झूम झूम जायें"। फ़िल्मांकन में दादामुनि और रति अग्निहोत्री पियानो पे बैठ कर एक गीत बनाने की कोशिश कर रहे हैं। बड़ा ही गुदगुदाने वाला गीत है और दादामुनि का अंदाज़-ए-बयाँ भी क्या ख़ूब है। ३० के दशक में जो यमन उन्होंने सीखा था, शायद उसी का नतीजा था कि इस उम्र में भी उन्होंने इस गीत को इतने अच्छे तरीके से निभाया। और गीत तो गीत, वो इसके फ़िल्मांकन में रति को नृत्य भी सिखाते हुए नज़र आते हैं। लाल कोट पहनें दादामुनि पर फ़िल्माया यह गीत निस्संदेह एक अनोखा गीत है और यही गीत है आज के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की कड़ी की शान। दादामुनि के अभिनय के साथ साथ उनकी गायन प्रतिभा को भी सलाम करते हुए आइए सुनें 'सितारों की सरगम' लघु शृंखला की पाँचवीं कड़ी का यह गीत।
क्या आप जानते हैं...
कि दादामुनि अशोक कुमार का असली नाम था कुमुद लाल गंगोपाध्याय। फ़िल्मों के पहले दौर में उनके अभिनय व गायन से सजी कुछ महत्वपूर्ण फ़िल्मों के नाम हैं - जीवन नैया, अछूत कन्या, झूला, बंधन, कंगन, किस्मत।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 6/शृंखला 14
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान है, चलिए आज इसी अभिनेता के बारे में कुछ सवाल हो जाए
सवाल १ - ये अपनी धरम पत्नी की पहली में फिल्म में हीरो चुने जाने वाले थे, पर नहीं चुने गए, किस एक्टर की झोली में गया ये रोल - ३ अंक
सवाल २ - किस अभिनेता के साथ दो बार काम करते हुए इन्हें फिल्म फेयर सह अभिनेता का पुरस्कार मिला - 2 अंक
सवाल ३ - इस कलाकार ने सबसे पहली बार किस फिल्म में पार्श्वगायन किया था और वो गीत कौन सा था - 2 अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
वाह कल तो अमित जी बाज़ी मार गए, वैसे आधे पड़ाव तक अभी भी अनजाना जी खासी बढ़त बनाये हुए हैं, पर इस बार प्रतीक जी भी अच्छा मुकाबला पेश कर रहे हैं
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
सितारों की सरगम', 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की इस लघु शृंखला में इन दिनों आप सुन रहे हैं फ़िल्म अभिनेता-अभिनेत्रियों द्वारा गाये गये फ़िल्मी गीत। राज कपूर, दिलीप कुमार, मीना कुमारी और नूतन के बाद आज बारी हम सब के चहेते अभिनेता दादामुनि अशोक कुमार की। दोस्तों, आपको शायद याद होगा कि इस शृंखला की पहली कड़ी में हमनें यह कहा था कि इस शंखला में हम 'सिंगिंग् स्टार्स' को शामिल नहीं कर रहे हैं। इसलिए दादामुनि का नाम सुन कर शायद आप यह सवाल करें कि दादामुनि तो फ़िल्मों के पहले दशक में अभिनय के साथ साथ गायन भी किया करते थे, तो फिर उनका नाम कैसे इस शृंखला में शामिल हो रहा है? दरअसल बात ऐसी है दोस्तों कि भले ही अशोक कुमार नें उस दौर में अपने पर फ़िल्माये गानें ख़ुद ही गाया करते थे, लेकिन उनका नाम 'सिंगिंग् स्टार्स' की श्रेणी में दर्ज करवाना शायद सही नहीं होगा। दादामुनि की ही तरह उस दौर में बहुत से ऐसे अभिनेता थे जिन्हें प्लेबैक की तकनीक के न होने की वजह से अपने गानें ख़ुद ही गाने पड़ते थे, जिनमें मोतीलाल, पहाड़ी सान्याल जैसे नाम उल्लेखनीय है। यानी कि गायन उस ज़माने के अभिनेताओं की मजबूरी थी। और फिर दादामुनि नें स्वयं ही इस बात को स्वीकारा था विविध भारती के एक इंटरव्यु में, जिसमें उन्होंने कहा था, "जब मैं फ़िल्मों में आया था सन् १९३४-३५ के आसपास, उस समय गायक-अभिनेता सहगल ज़िंदा थे। उन्होंने फ़िल्मी गानों को एक शक्ल दी और मेरा ख़याल है उन्हीं की वजह से फ़िल्मों में गानों को एक महत्वपूर्ण जगह मिली। आज उन्हीं की बुनियाद पर यहाँ की फ़िल्में बनाई जाती हैं, यानि बॊक्स ऒफ़िस सक्सेस के लिए गानों को सब से ऊँची जगह दी जाती है। मेरे वक़्त में प्लेबैक के तकनीक की तैयारियां हो रही थी। तलत, रफ़ी, मुकेश फ़िल्मी दुनिया में आये नहीं थे, लता तो पैदा भी नहीं हुई होगी। अभिनेताओं को गाना पड़ता था चाहे उनके गले में सुर हो या नहीं। इसलिए ज़्यादातर गानें सीधे सीधे और सरल बंदिश में बनाये जाते थे ताकि हम जैसे गाने वाले आसानी से गा सके। मेरा अपना गाया हुआ एक गाना था "पीर पीर क्या करता रे तेरी पीर न जाने कोई"। मुझे याद है इस गाने को रेकॊर्ड में भरना मुश्किल पड़ गया था क्योंकि यह गाना था आधे मिनट का और इस आधे मिनट को तीन मिनट का बनाने के मुझे धीरे धीरे गाना पड़ा था। और उस रेकॊर्ड को सुन कर मैं रो दिया था। उसी वक़्त मैंने तय कर लिया था कि अगर मुझे फ़िल्मों में रहना है तो गाना सीखना ही पड़ेगा। मैं आठ महीनों तक राग यमन सीखता रहा।" दोस्तों, पार्श्वगायन की प्रथा लोकप्रिय होने के बाद अशोक कुमार को फ़िल्मों में गाने की ज़रूरत नहीं पड़ी और उनके गीत रफ़ी, मन्ना डे जैसे गायकों नें गाये, और वो एक अभिनेता के रूप में ही मशहूर हुए, न कि 'गायक-अभिनेता' के रूप में। इसलिए 'सितारों की सरगम' शृंखला में दादामुनि अशोक कुमार को शामिल करने में कोई वादा-ख़िलाफ़ी नहीं होगी।
आज की कड़ी के लिए अशोक कुमार के गाये गीतों में कौन सा गीत सुनवायें? जी नहीं, हम ३० के दशक का कोई गीत नहीं सुनवायेंगे। इसके चार दशक बाद दादामुनि की एक बेहद चर्चित फ़िल्म आयी थी 'आशीर्वाद', जिसमें उनका मुख्य चरित्र था फ़िल्म में। एक मानसिक रोगी की भूमिका में बच्चों के लिए उनके गाये "रेल गाड़ी" और "नानी की नाव चली" गीत बेहद लोकप्रिय हुए थे। लेकिन ये दोनों ही गीतों में गीत की विशेषता कम और नर्सरी राइम की महक ज़्यादा थी। कल्याणजी-आनंदजी के संगीत निर्देशन में दादामुनि नें फ़िल्म 'कंगन' में एक गीत गाया था "प्रभुजी मेरे अवगुण चित ना धरो"। साल १९८२ में बासु चटर्जी की एक हास्य फ़िल्म आयी थी 'शौकीन', जिसके मुख्य चरित्रों में थे तीन वृद्ध, जिन्हें पर्दे पर साकार किया था हिंदी सिनेमा के तीन स्तंभ अभिनेता - ए. के. हंगल, उत्पल दत्त और दादामुनि अशोक कुमार नें। साथ में थे मिथुन चक्रवर्ती और रति अग्निहोत्री। इस फ़िल्म में दादामुनि की आवाज़ में एक बड़ा ही अनूठा गीत था जिसे उन्होंने गायिका चिरश्री भट्टाचार्य के साथ मिल कर गाया था। राहुल देव बर्मन का संगीत था और गीतकार थे योगेश। मारुति राव और मनोहारी सिंह संगीत सहायक के रूप में काम किया था इस फ़िल्म में। हाँ तो दादामुनि और चिरश्री की युगल आवाज़ों में यह गीत था "चलो हसीन गीत एक बनाये, वह गीत फिर बनाके गुनगुनायें, ख़यालों को चलो ज़रा सजायें, नशे में क्यों न झूम झूम जायें"। फ़िल्मांकन में दादामुनि और रति अग्निहोत्री पियानो पे बैठ कर एक गीत बनाने की कोशिश कर रहे हैं। बड़ा ही गुदगुदाने वाला गीत है और दादामुनि का अंदाज़-ए-बयाँ भी क्या ख़ूब है। ३० के दशक में जो यमन उन्होंने सीखा था, शायद उसी का नतीजा था कि इस उम्र में भी उन्होंने इस गीत को इतने अच्छे तरीके से निभाया। और गीत तो गीत, वो इसके फ़िल्मांकन में रति को नृत्य भी सिखाते हुए नज़र आते हैं। लाल कोट पहनें दादामुनि पर फ़िल्माया यह गीत निस्संदेह एक अनोखा गीत है और यही गीत है आज के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की कड़ी की शान। दादामुनि के अभिनय के साथ साथ उनकी गायन प्रतिभा को भी सलाम करते हुए आइए सुनें 'सितारों की सरगम' लघु शृंखला की पाँचवीं कड़ी का यह गीत।
क्या आप जानते हैं...
कि दादामुनि अशोक कुमार का असली नाम था कुमुद लाल गंगोपाध्याय। फ़िल्मों के पहले दौर में उनके अभिनय व गायन से सजी कुछ महत्वपूर्ण फ़िल्मों के नाम हैं - जीवन नैया, अछूत कन्या, झूला, बंधन, कंगन, किस्मत।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 6/शृंखला 14
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - बेहद आसान है, चलिए आज इसी अभिनेता के बारे में कुछ सवाल हो जाए
सवाल १ - ये अपनी धरम पत्नी की पहली में फिल्म में हीरो चुने जाने वाले थे, पर नहीं चुने गए, किस एक्टर की झोली में गया ये रोल - ३ अंक
सवाल २ - किस अभिनेता के साथ दो बार काम करते हुए इन्हें फिल्म फेयर सह अभिनेता का पुरस्कार मिला - 2 अंक
सवाल ३ - इस कलाकार ने सबसे पहली बार किस फिल्म में पार्श्वगायन किया था और वो गीत कौन सा था - 2 अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
वाह कल तो अमित जी बाज़ी मार गए, वैसे आधे पड़ाव तक अभी भी अनजाना जी खासी बढ़त बनाये हुए हैं, पर इस बार प्रतीक जी भी अच्छा मुकाबला पेश कर रहे हैं
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
"Mr Natwarlal" na ki 'Natwarlal'
Aur gana hai
"Mere paas Aao mere doston"
Aap logon ko Aisa nahi lagta ki ye point mujhe milna chahiye :)