मोहब्बत में कभी ऐसी भी हालत पायी जाती है.....और मोहब्बत के भेद बताते बताते यूं हीं एक दिन अचानक सहगल साहब अलविदा कह गए
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 630/2010/330
सुर-सम्राट कुंदन लाल सहगल को समर्पित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'मधुकर श्याम हमारे चोर' की अंतिम कड़ी में आप सभी का स्वागत है। कल हमारी बातचीत १९४६ की यादगार फ़िल्म 'शाहजहाँ' पर आकर रुकी थी। इसी साल लाल मोहम्मद के संगीत में मुरारी पिक्चर्स की फ़िल्म आयी 'ओमर ख़ैयाम', जिसमें सहगल साहब एक बार फिर सुरैया के साथ नज़र आये। और फिर आया भारत के इतिहास का सुनहरा वर्ष १९४७। हालाँकि यह सुनहरा दिन १५ अगस्त को आया, इस साल की शुरुआत एक ऐसी क्षति से हुई जिसकी फिर कभी भरपाई नहीं हो सकी। १८ जनवरी को सहगल साहब चल बसे। पूरा देश ग़म के सागर में डूब गया। एक युग जैसे समाप्त हो गया। आपको शायद पता होगा कि उस दौरान लता मंगेशकर संघर्ष कर रही थीं और फ़िल्मों में अभिनय किया करती थीं अपने परिवार को चलाने के लिए। लता ने अपनी कमाई में से कुछ पैसे बचाकर एक रेडिओ ख़रीदा और घर लौट कर उसे 'ऒन' किया और आराम से बिस्तर पर लेट गईं। और तभी रेडियो पर सहगल साहब के इंतकाल की ख़बर आई। लता इतनी हताश हुईं कि उस रेडियो को जाकर वापस कर आईं। लता के उस वक़्त की मनोस्थिति का आप अंदाज़ा लगा सकते हैं क्योंकि लता सहगल साहब को सब से ज़्यादा मानती थीं। विविध भारती के 'जयमाला' कार्यक्रम में लता जी ने कहा था, "स्वर्गीय श्री के. एल. सहगल, वैसे तो उनसे सीखने का सौभाग्य मुझे प्राप्त नहीं हुआ, मगर उनके गानें सुन सुन कर ही मुझमें सुगम संगीत गाने की इच्छा जागी। मेरे पिताजी, श्री दीनानाथ मंगेशकर, जो अपने ज़माने के माने हुए गायक थे, उनको सहगल साहब की गायकी बहुत पसंद थी। वो अक्सर मुझ सहगल साहब का कोई गीत सुनाने को कहते।"
सहगल साहब के गुज़र जाने के बाद १९४७ में उनकी अंतिम फ़िल्म प्रदर्शित हुई - 'परवाना'। 'जीत प्रोडक्शन्स' निर्मित इस फ़िल्म में एक बार फिर सुरैया नज़र आईं सहगल साहब के साथ। डी. एन. मधोक ने फ़िल्म के गानें लिखे और संगीतकार थे ख़ुरशीद अनवर। "डूब गये सब सपने मेरे", "ये फूल हँसके बाग में कलियाँ खिलाये जा", "उस मस्त नज़र पे जो पड़ी नज़र", "कौन बुझावे हे रामा हो" और "मोहब्बत में कभी ऐसी भी हालत पायी जाती है" जैसे सहगल साहब के गीतों नें इस फ़िल्म की शोभा बढ़ाई। आइए आज इस शृंखला की अंतिम कड़ी में सुनें "मोहब्बत में कभी ऐसी भी हालत पायी जाती है, तबीयत और घबराती है जब बहलायी जाती है, झिझक के गुफ़्तगूँ करना है अपना राज़ कह देना, इसी पर्दे के पीछे तमन्ना पायी जाती है, मोहब्बत दिल में छुप सकती है आँखों में नहीं छुपती, ज़ुबाँ ख़ामोश है लेकिन नज़र शरमाई जाती है"। और इसी के साथ इस अज़ीम और अमर गायक-अभिनेता कुंदन लाल सहगल पर केन्द्रित 'मधुकर श्याम हमारे चोर' शृंखला यहीं सम्पन्न होती है। सहगल साहब के गाये बहुत से गीत छूट गये, जिन्हें हम आगे चलकर समय समय पर सुनवाएँगे। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सफ़र में आप युंही हमारा हमसफ़र बनें रहिए। इस स्तंभ के लिये अपनी राय और सुझाव oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। शनिवार की शाम विशेषांक के साथ फिर हाज़िर होंगे, तब तक के लिए दीजिए इजाज़त, नमस्कार!
क्या आप जानते हैं...
कि कुंदन लाल सहगल के बेटे का नाम है मदन मोहन, और दो बेटियाँ हैं नीना और बीना। अफ़सोस की बात यह कि इनमें से कोई भी आज जीवित नहीं हैं।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 1/शृंखला 14
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - एस डी बर्मन का है संगीत.
सवाल १ - किस अभिनेता ने पार्श्वगायन किया है इस गीत में - 3 अंक
सवाल २ - गीतकार बताएं - 2 अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
खैर इस बार मुकाबला सख्त और पहेलियाँ भी बेहद विविदास्पद रही. मगर फिर भी अमित जी अनजाना जी से मात्र एक अंक अधिक लेकर छटी बार विजेता बन गए हैं. अब तक श्याम कान्त जी ४ बार, शरद जी २ बार और अनजाना जी एक बार विजेता बने हैं. नयी श्रृंखला के लिए सभी को शुभकामनाये
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
सुर-सम्राट कुंदन लाल सहगल को समर्पित 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की लघु शृंखला 'मधुकर श्याम हमारे चोर' की अंतिम कड़ी में आप सभी का स्वागत है। कल हमारी बातचीत १९४६ की यादगार फ़िल्म 'शाहजहाँ' पर आकर रुकी थी। इसी साल लाल मोहम्मद के संगीत में मुरारी पिक्चर्स की फ़िल्म आयी 'ओमर ख़ैयाम', जिसमें सहगल साहब एक बार फिर सुरैया के साथ नज़र आये। और फिर आया भारत के इतिहास का सुनहरा वर्ष १९४७। हालाँकि यह सुनहरा दिन १५ अगस्त को आया, इस साल की शुरुआत एक ऐसी क्षति से हुई जिसकी फिर कभी भरपाई नहीं हो सकी। १८ जनवरी को सहगल साहब चल बसे। पूरा देश ग़म के सागर में डूब गया। एक युग जैसे समाप्त हो गया। आपको शायद पता होगा कि उस दौरान लता मंगेशकर संघर्ष कर रही थीं और फ़िल्मों में अभिनय किया करती थीं अपने परिवार को चलाने के लिए। लता ने अपनी कमाई में से कुछ पैसे बचाकर एक रेडिओ ख़रीदा और घर लौट कर उसे 'ऒन' किया और आराम से बिस्तर पर लेट गईं। और तभी रेडियो पर सहगल साहब के इंतकाल की ख़बर आई। लता इतनी हताश हुईं कि उस रेडियो को जाकर वापस कर आईं। लता के उस वक़्त की मनोस्थिति का आप अंदाज़ा लगा सकते हैं क्योंकि लता सहगल साहब को सब से ज़्यादा मानती थीं। विविध भारती के 'जयमाला' कार्यक्रम में लता जी ने कहा था, "स्वर्गीय श्री के. एल. सहगल, वैसे तो उनसे सीखने का सौभाग्य मुझे प्राप्त नहीं हुआ, मगर उनके गानें सुन सुन कर ही मुझमें सुगम संगीत गाने की इच्छा जागी। मेरे पिताजी, श्री दीनानाथ मंगेशकर, जो अपने ज़माने के माने हुए गायक थे, उनको सहगल साहब की गायकी बहुत पसंद थी। वो अक्सर मुझ सहगल साहब का कोई गीत सुनाने को कहते।"
सहगल साहब के गुज़र जाने के बाद १९४७ में उनकी अंतिम फ़िल्म प्रदर्शित हुई - 'परवाना'। 'जीत प्रोडक्शन्स' निर्मित इस फ़िल्म में एक बार फिर सुरैया नज़र आईं सहगल साहब के साथ। डी. एन. मधोक ने फ़िल्म के गानें लिखे और संगीतकार थे ख़ुरशीद अनवर। "डूब गये सब सपने मेरे", "ये फूल हँसके बाग में कलियाँ खिलाये जा", "उस मस्त नज़र पे जो पड़ी नज़र", "कौन बुझावे हे रामा हो" और "मोहब्बत में कभी ऐसी भी हालत पायी जाती है" जैसे सहगल साहब के गीतों नें इस फ़िल्म की शोभा बढ़ाई। आइए आज इस शृंखला की अंतिम कड़ी में सुनें "मोहब्बत में कभी ऐसी भी हालत पायी जाती है, तबीयत और घबराती है जब बहलायी जाती है, झिझक के गुफ़्तगूँ करना है अपना राज़ कह देना, इसी पर्दे के पीछे तमन्ना पायी जाती है, मोहब्बत दिल में छुप सकती है आँखों में नहीं छुपती, ज़ुबाँ ख़ामोश है लेकिन नज़र शरमाई जाती है"। और इसी के साथ इस अज़ीम और अमर गायक-अभिनेता कुंदन लाल सहगल पर केन्द्रित 'मधुकर श्याम हमारे चोर' शृंखला यहीं सम्पन्न होती है। सहगल साहब के गाये बहुत से गीत छूट गये, जिन्हें हम आगे चलकर समय समय पर सुनवाएँगे। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सफ़र में आप युंही हमारा हमसफ़र बनें रहिए। इस स्तंभ के लिये अपनी राय और सुझाव oig@hindyugm.com के पते पर लिख भेजिये। शनिवार की शाम विशेषांक के साथ फिर हाज़िर होंगे, तब तक के लिए दीजिए इजाज़त, नमस्कार!
क्या आप जानते हैं...
कि कुंदन लाल सहगल के बेटे का नाम है मदन मोहन, और दो बेटियाँ हैं नीना और बीना। अफ़सोस की बात यह कि इनमें से कोई भी आज जीवित नहीं हैं।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 1/शृंखला 14
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - एस डी बर्मन का है संगीत.
सवाल १ - किस अभिनेता ने पार्श्वगायन किया है इस गीत में - 3 अंक
सवाल २ - गीतकार बताएं - 2 अंक
सवाल ३ - फिल्म का नाम बताएं - १ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
खैर इस बार मुकाबला सख्त और पहेलियाँ भी बेहद विविदास्पद रही. मगर फिर भी अमित जी अनजाना जी से मात्र एक अंक अधिक लेकर छटी बार विजेता बन गए हैं. अब तक श्याम कान्त जी ४ बार, शरद जी २ बार और अनजाना जी एक बार विजेता बने हैं. नयी श्रृंखला के लिए सभी को शुभकामनाये
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
3 no ka uttar mazbooriwash delete karna pad raha hai. Kya karain Niyam hi kuch aisa hai
आशाजी के जो गाने सचमुच बहुत मधुर थे उनकी तो लोग या समीक्षक आम तौर पर चर्चा ही नही करते.
वैसे ही सहगल जी ....उनका गम दिए मुख्त्सिल,कितना नाजुक है दिल ये न् जाना
हाय हाय ये जालिम जमाना' (उनका ही गाया है ये ?????) मुझे पसंद है बस.
मारना मत भाई मुझे .सॉरी
चर्चाकार:Er. सत्यम शिवम (शनिवासरीय चर्चा)