ओल्ड इज़ गोल्ड - शनिवार विशेष - 38
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! आज शनिवार की इस विशेष प्रस्तुति के लिए हम लेकर आये हैं फ़िल्म जगत के जाने-माने पार्श्वगायक शब्बीर कुमार से एक छोटी सी मुलाक़ात। छोटी इसलिए क्योंकि शब्बीर साहब का हाल ही में विविध भारती ने भी एक साक्षात्कार लिया था, जिसमें बहुत ही विस्तार से शब्बीर साहब नें अपने जीवन के बारे में और अपने संगीत करीयर के बारे में बताया था। बचपन की बातें, किस तरह से संगीत में उनकी दिलचस्पी हुई, रफ़ी साहब के वे कैसे फ़ैन बने, रफ़ी साहब से उनकी पहली मुलाक़ात कब और किस तरह से हुई, रफ़ी साहब के अंतिम सफ़र में वो किस तरीके से शरीक हुए, वो ख़ुद एक पार्श्वगायक कैसे बने, ये सब कुछ विविध भारती के उस साक्षात्कार में आ चुका है। आप में से जो श्रोता-पाठक उस कार्यक्रम को सुनने से चूक गये थे, उनके लिए इस साक्षात्कार का लिखित रूप हमनें 'विविध भारती लिस्नर्स क्लब' में पोस्ट किया था। ये रहे उसके लिंक्स:
'आज के महमान - शब्बीर कुमार - भाग-१-१'
'आज के महमान - शब्बीर कुमार - भाग-१-२'
'आज के महमान - शब्बीर कुमार - भाग-२-१'
'आज के महमान - शब्बीर कुमार - भाग-२-२'
दोस्तों, युं तो उपर्युक्त साक्षात्कार में शब्बीर कुमार से सभी अहम विषयों पर बातचीत हो चुकी थी, लेकिन पिछले दिनों जब शब्बीर साहब को मैंने अपने फ़ेसबूक में ऐड किया और उन्होंने उसकी मंज़ूरी दी, तो मेरे मन में दो चार सवाल जगे जो मैं उनसे जानना चाहता था, और मेरे ख़याल से जो सवाल विविध भारती के उस साक्षात्कार में शामिल नहीं हुए थे। मैंने शब्बीर साहब से मेरे सवाल भेजने की अनुमति माँगी जिसकी उन्होंने तुरंत स्वीकृति दे दी। तो ये रहे मेरे सवाल और शब्बीर कुमार के जवाब।
सुजॉय - शब्बीर जी, सबसे पहले आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने मुझे फ़ेसबूक में ऐड किया। मैंने विविध भारती पर आप्का इंटरव्यु सुना है और बहुत ही विस्तार से आपनें उसमें अपने बारे में बताया है। फिर भी मेरे मन में कुछ सवाल है जो मैं आपको पूछना चाहता हूँ अगर आपको कोई आपत्ति न हो तो?
शब्बीर जी - ज़रूर पूछिये!
सुजॉय - शुक्रिया! शब्बीर जी, आपनें हाल ही में फ़िल्म 'हाउसफ़ुल' में एक गीत गाया है सुनिधि चौहान के साथ। यह बताइए कि इतने साल आप कहाँ थे? मुझे जितना याद है मैंने पिछली बार आपकी आवाज़ कपूर परिवार की फ़िल्म 'आ अब लौट चलें' में सुना था और गीत था "ओ यारों माफ़ करना"।
शब्बीर जी - वैसे मैं कभी भी इस इंडस्ट्री से बाहर नहीं हुआ था। ईश्वर की कृपा से मैं नियमित रूप से गा भी रहा था। 'आ अब लौट चलें' के बाद भी मैंने कई फ़िल्मों में गीत गाया है जैसे कि 'आवारा पागल दीवाना', 'आन', 'दिल ढूंढता है' वगेरह। और मैं प्रादेशिक फ़िल्मों में भी लगातार गाता रहा हूँ। लेकिन ये सभी गानें लोगों की नज़र में ज़्यादा नहीं आ सके।
सुजॉय - अच्छा, 'हाउसफ़ुल' में गाने का ऒफ़र आपको कैसे मिला?
शब्बीर जी - 'हाउसफ़ुल' साजिद ख़ान की फ़िल्म थी और साजिद मेरा बहुत बड़ा फ़ैन है। मुझे उनका ही कॉल आया था 'हाउसफ़ुल' में गाने के लिए।
सुजॉय - शब्बीर जी, आपनें जब गाना शुरु किया था, उस समय से लेकर आज तक, पूरा का पूरा युग बीत गया है, फ़िल्म संगीत का भी चेहरा पूरी तरह बदल चुका है। इस परिवर्तन को आप किस रूप में देखते हैं? मेरा मतलब है कि लता जी, आशा जी, अनुराधा जी, इन सब के साथ लाइव रेकॉडिंग् करने के बाद आज ट्रैक पर गाना कैसा लगता है?
शब्बीर जी - ८० के दशक तक मैंने ६०-पीस ऒर्केस्ट्रा के साथ और म्युज़िक ऐरेंजर्स के साथ रेकॉर्ड किया है। लेकिन अब तकनीक इतना आगे बढ़ चुका है कि एक एक शब्द को अलग से डब किया जा सकता है। कोई भी ग़लती को सुधारा जा सकता है। इससे गायक के लिए काम बहुत आसान हो गया है, जो अच्छी बात है। लेकिन मैं समझता हूँ कि आज के दौर में गीत की आत्मा चली गई है। उस ज़माने में गायक जो मेहनत या ईफ़ोर्ट लगाता था, वह अब ज़रा सी कहीं पे कम हो गई है।
सुजॉय - क्या आपको याद है कि वह कौन सा गीत था जिसे आपने पहली बार ट्रैक पे गाया था?
शब्बीर जी - जी नहीं, यह तो मुझे अब याद नहीं कि मेरा पहला ट्रैक पे गाया हुआ गीत कौन सा था, लेकिन मैं यह ज़रूर बताना चाहूँगा कि किसी रेकॉर्डिंग् स्टुडियो में रेकॉर्ड किया गया मेरा पहला गीत फ़िल्म 'तजुर्बा' में था।
सुजॉय - लता जी के साथ पहली बार गाने का अनुभव कैसा था? नर्वस थे आप?
शब्बीर जी - लता जी के साथ डुएट गाना मेरे सपने से परे था। लेकिन यह आशातीत स्वप्न सच साबित हुई फ़िल्म 'बेताब' में, जिसके लिए मैं पंचम दा को शत शत धन्यवाद देता हूँ। और मेरा पहला गीत लता जी के साथ "बादल युं गरजता है" रेकॉर्ड हुआ। और रही बात नर्वसनेस की, वह तो मैं यकीनन था ही।
सुजॉय - हा हा हा, कितने गीत गाये होंगे लता जी के साथ अब तक?
शब्बीर जी - अब तक मैंने लता दीदी के साथ ४८ गीत गा चुका हूँ, जो मैं समझता हूँ मेरे जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि है।
सुजॉय - बहुत सही बात है! कौन नहीं चाहता लता जी के साथ गाना या काम करना! अच्छा शब्बीर जी, आपके गाये गीतों की बात करें तो वह एक कौन सा गीत है जो आपका सब से पसंदीदा गीत रहा है, जो सब से ज़्यादा आपके दिल के क़रीब है? या कि वह गीत अभी आना बाक़ी है?
शब्बीर जी - मैंने अब तक ४५०० से ज़्यादा गीत गाया है, और इनमें से बहुत से गीत हैं जो मेरे दिल के बहुत ही करीब है। लेकिन एक गीत जो मेरे दिल के सब से ज़्यादा करीब है, वह है "ज़ीहाल-ए-मुस्क़ीन", फ़िल्म 'ग़ुलामी' का।
सुजॉय - वाह! यह गीत मुझे भी बेहद पसंद है और मुझे याद है बचपन में जब मैं इस गीत को सुनता था तो इसके बोल समझ में नहीं आते थे, लेकिन फिर भी गीत बहुत भाता था। शब्बीर जी, अब एक आख़िरी सवाल और यह सवाल है रफ़ी साहब से जुड़ा हुआ। रफ़ी साहब की मृत्यु के बाद कई गायक आये जिनकी आवाज़ में रफ़ी साहब जैसी आवाज़ की छाया थी। इनमें आप शामिल तो हैं ही, आपके अलावा मोहम्मद अज़ीज़, अनवर, देबाशीष दासगुप्ता, और यहाँ तक कि सोनू निगम भी रफ़ी साहब को अपना गुरु माना। मेरी व्यक्तिगत राय यह है कि इनमें आपकी आवाज़ सब से ज़्यादा रफ़ी साहब की आवाज़ के क़रीब है। इस पर आपका क्या कहना है?
शब्बीर जी - इस ख़ूबसूरत कॉम्प्लिमेण्ट के लिए मुझे आपका शुक्रिया अदा करना चाहिए :-) वैसे विविध भारती के उस इंटरव्यु में मैं यह बता चुका हूँ कि अगर लोग यह कहते हैं कि मेरी आवाज़ रफ़ी साहब से मिलती है तो यह उनकी हसीन ग़लतफ़हमी है और कुछ नहीं।
सुजॉय - बहुत बहुत शुक्रिया शब्बीर जी, आपनें अपनी व्यस्तता के बावजूद हमारे सवालों के जवाब देने के लिए वक़्त निकाला। चलते चलते आपका पसंदीदा गीत फ़िल्म 'ग़ुलामी' का, हम अपने श्रोता-पाठकों को सुनवा रहे हैं।
शब्बीर जी - गॉड ब्लेस यू!
सुजॉय - सुनते हैं गुलज़ार के बोल, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का संगीत, लता मंगेशकर और शब्बीर कुमार की आवाज़ें। फ़िल्म 'ग़ुलामी' का यह गीत फ़िल्माया गया था अनीता राज और मिथुन चक्रवर्ती पर।
गीत - ज़ीहाल-ए-मुस्क़ीन (ग़ुलामी)
तो ये था आज का 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष'। आशा है आपको अच्छा लगा होगा। आप से अनुरोध है कि 'ईमेल के बहाने यादों के बहाने' के लिए हमें oig@hindyugm.com पर ईमेल लिखें, जिसमें आप अपने जीवन की कोई यादगार घटना या संस्मरण लिख सकते हैं। अगले हफ़्ते एक और ख़ास प्रस्तुति के साथ हाज़िर होंगे। लेकिन 'ओल्ड इज़ गोल्ड' नियमीत अंक लेकर हम कल शाम ६:३० बजे फिर उपस्थित होंगे, तब तक के लिए मुझे अनुमति दीजिये, और आप सुमित के साथ कल सुबह 'सुर-संगम' में ज़रूर तशरीफ़ लाइएगा, नमस्कार!
'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों नमस्कार! आज शनिवार की इस विशेष प्रस्तुति के लिए हम लेकर आये हैं फ़िल्म जगत के जाने-माने पार्श्वगायक शब्बीर कुमार से एक छोटी सी मुलाक़ात। छोटी इसलिए क्योंकि शब्बीर साहब का हाल ही में विविध भारती ने भी एक साक्षात्कार लिया था, जिसमें बहुत ही विस्तार से शब्बीर साहब नें अपने जीवन के बारे में और अपने संगीत करीयर के बारे में बताया था। बचपन की बातें, किस तरह से संगीत में उनकी दिलचस्पी हुई, रफ़ी साहब के वे कैसे फ़ैन बने, रफ़ी साहब से उनकी पहली मुलाक़ात कब और किस तरह से हुई, रफ़ी साहब के अंतिम सफ़र में वो किस तरीके से शरीक हुए, वो ख़ुद एक पार्श्वगायक कैसे बने, ये सब कुछ विविध भारती के उस साक्षात्कार में आ चुका है। आप में से जो श्रोता-पाठक उस कार्यक्रम को सुनने से चूक गये थे, उनके लिए इस साक्षात्कार का लिखित रूप हमनें 'विविध भारती लिस्नर्स क्लब' में पोस्ट किया था। ये रहे उसके लिंक्स:
'आज के महमान - शब्बीर कुमार - भाग-१-१'
'आज के महमान - शब्बीर कुमार - भाग-१-२'
'आज के महमान - शब्बीर कुमार - भाग-२-१'
'आज के महमान - शब्बीर कुमार - भाग-२-२'
दोस्तों, युं तो उपर्युक्त साक्षात्कार में शब्बीर कुमार से सभी अहम विषयों पर बातचीत हो चुकी थी, लेकिन पिछले दिनों जब शब्बीर साहब को मैंने अपने फ़ेसबूक में ऐड किया और उन्होंने उसकी मंज़ूरी दी, तो मेरे मन में दो चार सवाल जगे जो मैं उनसे जानना चाहता था, और मेरे ख़याल से जो सवाल विविध भारती के उस साक्षात्कार में शामिल नहीं हुए थे। मैंने शब्बीर साहब से मेरे सवाल भेजने की अनुमति माँगी जिसकी उन्होंने तुरंत स्वीकृति दे दी। तो ये रहे मेरे सवाल और शब्बीर कुमार के जवाब।
सुजॉय - शब्बीर जी, सबसे पहले आपका बहुत बहुत शुक्रिया जो आपने मुझे फ़ेसबूक में ऐड किया। मैंने विविध भारती पर आप्का इंटरव्यु सुना है और बहुत ही विस्तार से आपनें उसमें अपने बारे में बताया है। फिर भी मेरे मन में कुछ सवाल है जो मैं आपको पूछना चाहता हूँ अगर आपको कोई आपत्ति न हो तो?
शब्बीर जी - ज़रूर पूछिये!
सुजॉय - शुक्रिया! शब्बीर जी, आपनें हाल ही में फ़िल्म 'हाउसफ़ुल' में एक गीत गाया है सुनिधि चौहान के साथ। यह बताइए कि इतने साल आप कहाँ थे? मुझे जितना याद है मैंने पिछली बार आपकी आवाज़ कपूर परिवार की फ़िल्म 'आ अब लौट चलें' में सुना था और गीत था "ओ यारों माफ़ करना"।
शब्बीर जी - वैसे मैं कभी भी इस इंडस्ट्री से बाहर नहीं हुआ था। ईश्वर की कृपा से मैं नियमित रूप से गा भी रहा था। 'आ अब लौट चलें' के बाद भी मैंने कई फ़िल्मों में गीत गाया है जैसे कि 'आवारा पागल दीवाना', 'आन', 'दिल ढूंढता है' वगेरह। और मैं प्रादेशिक फ़िल्मों में भी लगातार गाता रहा हूँ। लेकिन ये सभी गानें लोगों की नज़र में ज़्यादा नहीं आ सके।
सुजॉय - अच्छा, 'हाउसफ़ुल' में गाने का ऒफ़र आपको कैसे मिला?
शब्बीर जी - 'हाउसफ़ुल' साजिद ख़ान की फ़िल्म थी और साजिद मेरा बहुत बड़ा फ़ैन है। मुझे उनका ही कॉल आया था 'हाउसफ़ुल' में गाने के लिए।
सुजॉय - शब्बीर जी, आपनें जब गाना शुरु किया था, उस समय से लेकर आज तक, पूरा का पूरा युग बीत गया है, फ़िल्म संगीत का भी चेहरा पूरी तरह बदल चुका है। इस परिवर्तन को आप किस रूप में देखते हैं? मेरा मतलब है कि लता जी, आशा जी, अनुराधा जी, इन सब के साथ लाइव रेकॉडिंग् करने के बाद आज ट्रैक पर गाना कैसा लगता है?
शब्बीर जी - ८० के दशक तक मैंने ६०-पीस ऒर्केस्ट्रा के साथ और म्युज़िक ऐरेंजर्स के साथ रेकॉर्ड किया है। लेकिन अब तकनीक इतना आगे बढ़ चुका है कि एक एक शब्द को अलग से डब किया जा सकता है। कोई भी ग़लती को सुधारा जा सकता है। इससे गायक के लिए काम बहुत आसान हो गया है, जो अच्छी बात है। लेकिन मैं समझता हूँ कि आज के दौर में गीत की आत्मा चली गई है। उस ज़माने में गायक जो मेहनत या ईफ़ोर्ट लगाता था, वह अब ज़रा सी कहीं पे कम हो गई है।
सुजॉय - क्या आपको याद है कि वह कौन सा गीत था जिसे आपने पहली बार ट्रैक पे गाया था?
शब्बीर जी - जी नहीं, यह तो मुझे अब याद नहीं कि मेरा पहला ट्रैक पे गाया हुआ गीत कौन सा था, लेकिन मैं यह ज़रूर बताना चाहूँगा कि किसी रेकॉर्डिंग् स्टुडियो में रेकॉर्ड किया गया मेरा पहला गीत फ़िल्म 'तजुर्बा' में था।
सुजॉय - लता जी के साथ पहली बार गाने का अनुभव कैसा था? नर्वस थे आप?
शब्बीर जी - लता जी के साथ डुएट गाना मेरे सपने से परे था। लेकिन यह आशातीत स्वप्न सच साबित हुई फ़िल्म 'बेताब' में, जिसके लिए मैं पंचम दा को शत शत धन्यवाद देता हूँ। और मेरा पहला गीत लता जी के साथ "बादल युं गरजता है" रेकॉर्ड हुआ। और रही बात नर्वसनेस की, वह तो मैं यकीनन था ही।
सुजॉय - हा हा हा, कितने गीत गाये होंगे लता जी के साथ अब तक?
शब्बीर जी - अब तक मैंने लता दीदी के साथ ४८ गीत गा चुका हूँ, जो मैं समझता हूँ मेरे जीवन की बहुत बड़ी उपलब्धि है।
सुजॉय - बहुत सही बात है! कौन नहीं चाहता लता जी के साथ गाना या काम करना! अच्छा शब्बीर जी, आपके गाये गीतों की बात करें तो वह एक कौन सा गीत है जो आपका सब से पसंदीदा गीत रहा है, जो सब से ज़्यादा आपके दिल के क़रीब है? या कि वह गीत अभी आना बाक़ी है?
शब्बीर जी - मैंने अब तक ४५०० से ज़्यादा गीत गाया है, और इनमें से बहुत से गीत हैं जो मेरे दिल के बहुत ही करीब है। लेकिन एक गीत जो मेरे दिल के सब से ज़्यादा करीब है, वह है "ज़ीहाल-ए-मुस्क़ीन", फ़िल्म 'ग़ुलामी' का।
सुजॉय - वाह! यह गीत मुझे भी बेहद पसंद है और मुझे याद है बचपन में जब मैं इस गीत को सुनता था तो इसके बोल समझ में नहीं आते थे, लेकिन फिर भी गीत बहुत भाता था। शब्बीर जी, अब एक आख़िरी सवाल और यह सवाल है रफ़ी साहब से जुड़ा हुआ। रफ़ी साहब की मृत्यु के बाद कई गायक आये जिनकी आवाज़ में रफ़ी साहब जैसी आवाज़ की छाया थी। इनमें आप शामिल तो हैं ही, आपके अलावा मोहम्मद अज़ीज़, अनवर, देबाशीष दासगुप्ता, और यहाँ तक कि सोनू निगम भी रफ़ी साहब को अपना गुरु माना। मेरी व्यक्तिगत राय यह है कि इनमें आपकी आवाज़ सब से ज़्यादा रफ़ी साहब की आवाज़ के क़रीब है। इस पर आपका क्या कहना है?
शब्बीर जी - इस ख़ूबसूरत कॉम्प्लिमेण्ट के लिए मुझे आपका शुक्रिया अदा करना चाहिए :-) वैसे विविध भारती के उस इंटरव्यु में मैं यह बता चुका हूँ कि अगर लोग यह कहते हैं कि मेरी आवाज़ रफ़ी साहब से मिलती है तो यह उनकी हसीन ग़लतफ़हमी है और कुछ नहीं।
सुजॉय - बहुत बहुत शुक्रिया शब्बीर जी, आपनें अपनी व्यस्तता के बावजूद हमारे सवालों के जवाब देने के लिए वक़्त निकाला। चलते चलते आपका पसंदीदा गीत फ़िल्म 'ग़ुलामी' का, हम अपने श्रोता-पाठकों को सुनवा रहे हैं।
शब्बीर जी - गॉड ब्लेस यू!
सुजॉय - सुनते हैं गुलज़ार के बोल, लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल का संगीत, लता मंगेशकर और शब्बीर कुमार की आवाज़ें। फ़िल्म 'ग़ुलामी' का यह गीत फ़िल्माया गया था अनीता राज और मिथुन चक्रवर्ती पर।
गीत - ज़ीहाल-ए-मुस्क़ीन (ग़ुलामी)
तो ये था आज का 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष'। आशा है आपको अच्छा लगा होगा। आप से अनुरोध है कि 'ईमेल के बहाने यादों के बहाने' के लिए हमें oig@hindyugm.com पर ईमेल लिखें, जिसमें आप अपने जीवन की कोई यादगार घटना या संस्मरण लिख सकते हैं। अगले हफ़्ते एक और ख़ास प्रस्तुति के साथ हाज़िर होंगे। लेकिन 'ओल्ड इज़ गोल्ड' नियमीत अंक लेकर हम कल शाम ६:३० बजे फिर उपस्थित होंगे, तब तक के लिए मुझे अनुमति दीजिये, और आप सुमित के साथ कल सुबह 'सुर-संगम' में ज़रूर तशरीफ़ लाइएगा, नमस्कार!
Comments
क्या गजब की प्रतिभा है आपकी, श्रुति-लेखन में| रेडिओ से सुन कर पूरा आलेख तैयार कर लेना, एक अनूठी कला है, जिसमें आप माहिर हैं| आपको बहुत-बहुत बधाई|
कृष्णमोहन
बहुत अच्छा लगा