ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 632/2010/332
नमस्कार! 'ओल्ड इज़ ओल्ड' पर कल से हमनें शुरु की है लघु शृंखला 'सितारों की सरगम'। पहली कड़ी में कल आपने सुना राज कपूर का गाया गीत। 'शोमैन ऒफ़ दि मिलेनियम' के बाद आज बारी 'अभिनय सम्राट' की, जिन्हें 'ट्रेजेडी किंग्' भी कहा जाता है। जी हाँ, यूसुफ़ ख़ान यानी दिलीप कुमार। युं तो हम दिलीप साहब को एक अभिनेता के रूप में ही जानते हैं, पुराने फ़िल्म संगीत में रुचि रखने वाले रसिकों को मालूम होगा दिलीप साहब के गाये कम से कम एक गीत के बारे में, जो है फ़िल्म 'मुसाफ़िर' का, "लागी नाही छूटे रामा चाहे जिया जाये"। लता मंगेशकर के साथ गाया यह एक युगल गीत है, जिसका संगीत तैयार किया था सलिल चौधरी नें। 'फ़िल्म-ग्रूप' बैनर तले निर्मित इसी फ़िल्म से ऋषिकेश मुखर्जी नें अपनी निर्देशन की पारी शुरु की थी। १९५७ में प्रदर्शित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे दिलीप कुमार, उषा किरण और सुचित्रा सेन। पूर्णत: शास्त्रीय संगीत पर आधारित बिना ताल के इस गीत को सुन कर दिलीप साहब को सलाम करने का दिल करता है। एक तो कोई साज़ नहीं, कोई ताल वाद्य नहीं, उस पर शास्त्रीय संगीत, और उससे भी बड़ी बात कि लता जी के साथ गाना, यह हर किसी अभिनेता के बस की बात नहीं थी। वाक़ई इस गीत को सुनने के बाद मन में यह सवाल उठता है कि दिलीप साहब बेहतर अभिनेता हैं या बेहतर गायक। इस ६:३० मिनट गीत से आज रोशन हो रहा है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल। वैसे दोस्तों, यह गीत एक पारम्परिक ठुमरी है राग पीलू पर आधारित, जिसका सलिल दा ने एक अनूठा प्रयोग किया इसे लता और दिलीप कुमार से गवा कर। लता जी पर राजू भारतन की चर्चित किताब 'लता मंगेशकर - ए बायोग्राफ़ी' में इस गीत के साथ जुड़ी कुछ दिलचस्प बातों का ज़िक्र हुआ है। आपको पता है इस गीत की रेकॊर्डिंग् से पहले दिलीप साहब को एक के बाद एक तीन ब्रांडी के ग्लास पिलाये गये थे?
आज क्योंकि लता जी और दिलीप साहब की चर्चा एक साथ चल पड़ी है, तो इन दोनों से जुड़ी कुछ बातें भी हो जाए! एक मुलाक़ात में लता जी ने दिलीप साहब से कहा था, "दिलीप साहब, याद है आपको, १९४७ में, मैं, आप और मास्टर कम्पोज़र अनिल बिस्वास, हम तीनों लोकल ट्रेन में जा रहे थे। अनिल दा नें मुझे आप से मिलवाया एक महाराष्ट्रियन लड़की की हैसियत से और कहा कि ये आने वाले कल की गायिका बनेगी। आपको याद है दिलीप साहब कि आप ने उस वक़्त क्या कहा था? आप नें कहा था, "एक महाराष्ट्रियन, इसकी उर्दू ज़बान कभी साफ़ नहीं हो सकती!" इतना ही नहीं, आप नें यह भी कहा था कि "इन महाराष्ट्रियनों के साथ एक प्रॊबलेम होता है, इनके गानें में दाल-भात की बू आती है।" आपके ये शब्द मुझे चुभे थे। इतने चुभे कि अगले ही सुबह से मैंने सीरीयस्ली उर्दू सीखना शुरु कर दिया सिर्फ़ इसलिए कि मैं दिलीप कुमार को ग़लत साबित कर सकूँ।" और दिलीप साहब नें १९६७ में लता जी के गायन करीयर के सिल्वर जुबिली कॊनसर्ट में इस बात का ज़िक्र किया और अपनी हार स्वीकारी। राजू भारतन नें सलिल दा से एक बार पूछा कि फ़िल्म 'मुसाफ़िर' के इस गीत के लिए दिलीप साहब को किसनें सिलेक्ट किया था। उस पर सलिल दा का जवाब था, "दिलीप नें ख़ुद ही इस धुन को उठा ली; वो इस ठुमरी का घंटों तक सितार पर रियाज़ करते और इस गीत में मैंने कम से कम ऒर्केस्ट्रेशन रखा था। मैंने देखा कि जैसे जैसे रेकॊर्डिंग् पास आ रही थी, दिलीप कुछ नर्वस से हो रहे थे। और हालात ऐसी हुई कि दिलीप आख़िरी वक़्त पर रेकॊर्डिंग् से भाग खड़े होना भी चाहा। ऐसे में हमें उन्हें ब्रांडी के पेग पिलाने पड़े उन्हें लता के साथ खड़ा करवाने के लिए।" तो दोस्तों, इन दिलचस्प बातों को पढ़कर इस गीत को सुनने का मज़ा दुगुना हो जाएगा, आइए अब गीत सुना जाए।
क्या आप जानते हैं...
कि आज के प्रस्तुत गीत की रेकॊर्डिंग् के बाद दिलीप कुमार और लता मंगेशकर में बातचीत १३ साल तक बंद रही। दरअसल दिलीप साहब को पता नहीं क्यों ऐसा लगा था कि इस गीत में लता जी जान बूझ कर उन्हें गायकी में नीचा दिखाने की कोशिश कर रही हैं, हालाँकि ऐसा सोचने की कोई ठोस वजह नहीं थी।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 3/शृंखला 14
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - एक शायरा भी थी ये सशक्त अभिनेत्री जिनकी आवाज़ है इस गीत में.
सवाल १ - कौन है ये गायिका - १ अंक
सवाल २ - सह गायक कौन हैं इस युगल गीत में उनके - ३ अंक
सवाल ३ - संगीतकार कौन हैं - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अनजाना जी, प्रतीक जी और रोमेंद्र जी को बधाई. अमित जी कहाँ गायब रहे कल दिन भर :), हिन्दुस्तानी जी आपके सुझाव पर अवश्य काम करेंगें
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
नमस्कार! 'ओल्ड इज़ ओल्ड' पर कल से हमनें शुरु की है लघु शृंखला 'सितारों की सरगम'। पहली कड़ी में कल आपने सुना राज कपूर का गाया गीत। 'शोमैन ऒफ़ दि मिलेनियम' के बाद आज बारी 'अभिनय सम्राट' की, जिन्हें 'ट्रेजेडी किंग्' भी कहा जाता है। जी हाँ, यूसुफ़ ख़ान यानी दिलीप कुमार। युं तो हम दिलीप साहब को एक अभिनेता के रूप में ही जानते हैं, पुराने फ़िल्म संगीत में रुचि रखने वाले रसिकों को मालूम होगा दिलीप साहब के गाये कम से कम एक गीत के बारे में, जो है फ़िल्म 'मुसाफ़िर' का, "लागी नाही छूटे रामा चाहे जिया जाये"। लता मंगेशकर के साथ गाया यह एक युगल गीत है, जिसका संगीत तैयार किया था सलिल चौधरी नें। 'फ़िल्म-ग्रूप' बैनर तले निर्मित इसी फ़िल्म से ऋषिकेश मुखर्जी नें अपनी निर्देशन की पारी शुरु की थी। १९५७ में प्रदर्शित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे दिलीप कुमार, उषा किरण और सुचित्रा सेन। पूर्णत: शास्त्रीय संगीत पर आधारित बिना ताल के इस गीत को सुन कर दिलीप साहब को सलाम करने का दिल करता है। एक तो कोई साज़ नहीं, कोई ताल वाद्य नहीं, उस पर शास्त्रीय संगीत, और उससे भी बड़ी बात कि लता जी के साथ गाना, यह हर किसी अभिनेता के बस की बात नहीं थी। वाक़ई इस गीत को सुनने के बाद मन में यह सवाल उठता है कि दिलीप साहब बेहतर अभिनेता हैं या बेहतर गायक। इस ६:३० मिनट गीत से आज रोशन हो रहा है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल। वैसे दोस्तों, यह गीत एक पारम्परिक ठुमरी है राग पीलू पर आधारित, जिसका सलिल दा ने एक अनूठा प्रयोग किया इसे लता और दिलीप कुमार से गवा कर। लता जी पर राजू भारतन की चर्चित किताब 'लता मंगेशकर - ए बायोग्राफ़ी' में इस गीत के साथ जुड़ी कुछ दिलचस्प बातों का ज़िक्र हुआ है। आपको पता है इस गीत की रेकॊर्डिंग् से पहले दिलीप साहब को एक के बाद एक तीन ब्रांडी के ग्लास पिलाये गये थे?
आज क्योंकि लता जी और दिलीप साहब की चर्चा एक साथ चल पड़ी है, तो इन दोनों से जुड़ी कुछ बातें भी हो जाए! एक मुलाक़ात में लता जी ने दिलीप साहब से कहा था, "दिलीप साहब, याद है आपको, १९४७ में, मैं, आप और मास्टर कम्पोज़र अनिल बिस्वास, हम तीनों लोकल ट्रेन में जा रहे थे। अनिल दा नें मुझे आप से मिलवाया एक महाराष्ट्रियन लड़की की हैसियत से और कहा कि ये आने वाले कल की गायिका बनेगी। आपको याद है दिलीप साहब कि आप ने उस वक़्त क्या कहा था? आप नें कहा था, "एक महाराष्ट्रियन, इसकी उर्दू ज़बान कभी साफ़ नहीं हो सकती!" इतना ही नहीं, आप नें यह भी कहा था कि "इन महाराष्ट्रियनों के साथ एक प्रॊबलेम होता है, इनके गानें में दाल-भात की बू आती है।" आपके ये शब्द मुझे चुभे थे। इतने चुभे कि अगले ही सुबह से मैंने सीरीयस्ली उर्दू सीखना शुरु कर दिया सिर्फ़ इसलिए कि मैं दिलीप कुमार को ग़लत साबित कर सकूँ।" और दिलीप साहब नें १९६७ में लता जी के गायन करीयर के सिल्वर जुबिली कॊनसर्ट में इस बात का ज़िक्र किया और अपनी हार स्वीकारी। राजू भारतन नें सलिल दा से एक बार पूछा कि फ़िल्म 'मुसाफ़िर' के इस गीत के लिए दिलीप साहब को किसनें सिलेक्ट किया था। उस पर सलिल दा का जवाब था, "दिलीप नें ख़ुद ही इस धुन को उठा ली; वो इस ठुमरी का घंटों तक सितार पर रियाज़ करते और इस गीत में मैंने कम से कम ऒर्केस्ट्रेशन रखा था। मैंने देखा कि जैसे जैसे रेकॊर्डिंग् पास आ रही थी, दिलीप कुछ नर्वस से हो रहे थे। और हालात ऐसी हुई कि दिलीप आख़िरी वक़्त पर रेकॊर्डिंग् से भाग खड़े होना भी चाहा। ऐसे में हमें उन्हें ब्रांडी के पेग पिलाने पड़े उन्हें लता के साथ खड़ा करवाने के लिए।" तो दोस्तों, इन दिलचस्प बातों को पढ़कर इस गीत को सुनने का मज़ा दुगुना हो जाएगा, आइए अब गीत सुना जाए।
क्या आप जानते हैं...
कि आज के प्रस्तुत गीत की रेकॊर्डिंग् के बाद दिलीप कुमार और लता मंगेशकर में बातचीत १३ साल तक बंद रही। दरअसल दिलीप साहब को पता नहीं क्यों ऐसा लगा था कि इस गीत में लता जी जान बूझ कर उन्हें गायकी में नीचा दिखाने की कोशिश कर रही हैं, हालाँकि ऐसा सोचने की कोई ठोस वजह नहीं थी।
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 3/शृंखला 14
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - एक शायरा भी थी ये सशक्त अभिनेत्री जिनकी आवाज़ है इस गीत में.
सवाल १ - कौन है ये गायिका - १ अंक
सवाल २ - सह गायक कौन हैं इस युगल गीत में उनके - ३ अंक
सवाल ३ - संगीतकार कौन हैं - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अनजाना जी, प्रतीक जी और रोमेंद्र जी को बधाई. अमित जी कहाँ गायब रहे कल दिन भर :), हिन्दुस्तानी जी आपके सुझाव पर अवश्य काम करेंगें
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
सुजॉय दा! जवाब तो आपका भी कम नहीं जो आप हमेशा एक से बढ़कर एक रत्न-रूपी गीत प्रस्तुत कर मन मोह लेते हैं। :)
आपको आपके अनुज की ओर से ढेर सारा प्रेम व शुभकामनाएँ!