सुर संगम - 14 - चैत्र मास की चैती
सुर-संगम के इस साप्ताहिक स्तंभ मे सभी श्रोता-पाठकों का स्वागत है। परंपरागत भारतीय संगीत शैलियों को आज़ादी के बाद सुप्रसिद्ध संगीतविद व सांस्कृतज्ञ ठाकुर जयदेव सिंह ने 'आकाशवाणी' के लिए चार वर्गों- शास्त्रीय, उपशास्त्रीय, सुगम और लोक संगीत में वर्गीकृत किया था| इन शैलियो के अलग-अलग रंग हैं और इन्हें पसंद करने वालों के अलग-अलग वर्ग भी हैं| लोक संगीत, वह चाहे किसी भी क्षेत्र का हो, उसमें ऋतुओं के अनुकूल गीतों का समृद्ध खज़ाना होता है| लोक संगीत की एक ऐसी ही शैली है- 'चैती'| उत्तर भारत के पूरे अवधी-भोजपुरी क्षेत्र तथा बिहार के भोजपुरी-मिथिला क्षेत्र की सर्वाधिक लोकप्रिय शैली 'चैती' है| हिन्दू कैलेण्डर के चैत्र मास में गाँव के चौपाल में महफिल सजती है और एक विशेष परंपरागत धुन में श्रृंगार और भक्ति रस में रचे 'चैती' गीतों का देर रात तक गायन किया जाता है।| जब महिला या पुरुष इसे एकल रूप में गाते हैं तो इसे 'चैती' कहा जाता है परन्तु जब समूह या दल बना कर गाया जाता है तो इसे 'चैता' कहा जाता है| इस गायकी का एक और प्रकार है जिसे 'घाटो' कहते हैं | 'घाटो' की धुन 'चैती' से थोड़ी बदल जाती है| इसकी उठान बहुत ऊँची होती है और केवल पुरुष वर्ग ही इसे समूह में गाते हैं| कभी-कभी दो दलों में बँट कर सवाल-जवाब या प्रतियोगिता के रूप में भी प्रस्तुत किया जाता है, इसे 'चैता दंगल' कहा जाता है।
'चैती' गीतों का विषय मुख्यतः भक्ति और श्रृंगार रस होते हैं। भारतीय पञ्चांग के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा(पहली तिथि) से नया वर्ष शुरू होता है| नई फसल के घर आने का भी यही समय होता है जिसका उल्लास 'चैती' में प्रकट होता है| चैत्र नवरात्र प्रतिपदा के दिन से शुरू होता है और नवमी के दिन राम-जन्मोत्सव का पर्व मनाया जाता है| 'चैती' में राम-जन्म का प्रसंग लौकिक रूप में प्रस्तुत किया जाता है| इसके अलावा अपने भर्ता के लिए नायिका की विरह-व्यथा का चित्रण भी इन गीतों में होता है| कुछ चैती गीतों का साहित्य पक्ष इतना सबल होता है कि श्रोता संगीत और साहित्य के सम्मोहन में बँध कर रह जाता है| पटना की लोक संगीत विदुषी विंध्यवासिनी देवी की एक चैती में अलंकारों का प्रयोग देखें - 'चाँदनी चितवा चुरावे हो रामा, चईत के रतिया ....' इस गीत की अगली पंक्ति का श्रृंगार पक्ष तो अनूठा है - 'मधु ऋतु मधुर-मधुर रस घोले, मधुर पवन अलसावे हो रामा...'| चैती गीत गायन के मोहक परिवेश और इसकी आकर्षक धुन के कारण कबीर दास ने अपने कुछ निर्गुण भी चैती के स्वरों में पिरो दिए| कबीर की एक ऐसी ही निर्गुण चैती हम आपको सुनवा रहे हैं, वाराणसी के सुप्रसिद्ध शास्त्रीय-उप शास्त्रीय गायक पण्डित छन्नूलाल मिश्र के स्वर में| उन्होंने इस चैती को ठुमरी अंग में गाया है| पहले आप ठुमरी अंग में यह चैती सुनिए, उसके बाद हम चैती के शास्त्रीय पक्ष पर चर्चा करेंगे|
कैसे सजन घर जईबे हो रामा - पं० छन्नूलाल मिश्र
चैती की एक और विशेषता भी उल्लेखनीय है| यदि चैती गीत में प्रयोग किये गए स्वरों और राग 'यमनी बिलावल' के स्वरों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो आपको अद्भुत समानता मिलेगी| अनेक प्राचीन चैती में बिलावल के स्वर मिलते हैं किन्तु आजकल अधिकतर चैती में तीव्र माध्यम का प्रयोग होने से राग यमनी बिलावल का अनुभव होता है| यह उदाहरण भरतमुनि के इस कथन की पुष्टि करता है कि लोक कलाओं की बुनियाद पर ही शास्त्रीय कलाओं का भव्य महल खड़ा है| आइए सुप्रसिद्ध गायिका निर्मला देवी के स्वरों में सुनते हैं ठुमरी अंग में एक श्रृंगार प्रधान चैती| इसमें चैती का लोक स्वरुप, राग 'यमनी बिलावल' के मादक स्वर, दीपचन्दी और कहरवा ताल का जादू तथा निर्मला देवी की भावपूर्ण आवाज़ आपको परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में समर्थ होंगे| हमनें आपसे पिछली कड़ी की पहेली में इसी ठुमरी का टुकड़ा सुनाया था और पूछा था गायिका के बारे में जो आज के दौर के एक सुप्रसिद्ध अभिनेता की माँ थीं। तो आप अब समझ ही गए होंगे कि हम बात कर रहे हैं निर्मला देवी की ही जो प्रसिद्ध बॉलीवुड अभिनेता 'गोविंदा' की माँ थीं। हम चैती के शास्त्रीय पक्ष पर चर्चा जारी रखेंगे सुर-संगम की आगामी कड़ी में|
येहि थईयाँ मोतिया हिराए गैली रामा - निर्मला देवी
और अब बारी इस कड़ी की पहेली का जिसका आपको देना होगा उत्तर तीन दिनों के अंदर इसी प्रस्तुति की टिप्पणी में। प्रत्येक सही उत्तर के आपको मिलेंगे ५ अंक। 'सुर-संगम' की ५०-वीं कड़ी तक जिस श्रोता-पाठक के हो जायेंगे सब से ज़्यादा अंक, उन्हें मिलेगा एक ख़ास सम्मान हमारी ओर से।
सुनिए चैती के इस टुकड़े को जो एक हिन्दी फ़िल्म से लिया गया है। आपको पहचानना है कि यह चैती किस राग पर आधारित है?
पिछ्ली पहेली का परिणाम: अमित जी ने दोनों प्रश्नों के सही उत्तर दिये और पा गये हैं १० अंक। साथ ही अवध जी को हम ५ बोनस अंक देंगे क्योंकि उन्होंने यह भी बताया कि गायिका किस प्रसिद्ध अभिनेता की माँ थीं। बधाई!
यह थी प्रसिद्ध लोक शैली - चैती पर आधारित हमारी पहली कड़ी। आशा है आपको यह कड़ी पसन्द आई। चैती के बारे में अभी और भी रोचक बातें बाकी हैं जिन्हें हम आपसे बाँटेंगे अगले रविवार को। साथ ही हम आभार व्यक्त करेंगे लखनऊ के श्री कृष्णमोहन मिश्र का इस प्रस्तुति में योगदान के लिए। आप अपने विचार व सुझाव हमें लिख भेजिए oig@hindyugm.com के ई-मेल पते पर। आगामी रविवार की सुबह हम पुनः उपस्थित होंगे एक नई रोचक कड़ी लेकर, तब तक के लिए अपने साथी सुमित चक्रवर्ती को आज्ञा दीजिए| शाम ६:३० बजे अपने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के साथी सुजॉय चटर्जी के साथ पधारना न भूलिएगा, नमस्कार!
खोज व आलेख - कृष्णमोहन मिश्र
प्रस्तुति- सुमित चक्रवर्ती
जब महिला या पुरुष इसे एकल रूप में गाते हैं तो इसे 'चैती' कहा जाता है परन्तु जब समूह या दल बना कर गाया जाता है तो इसे 'चैता' कहा जाता है| इस गायकी का एक और प्रकार है जिसे 'घाटो' कहते हैं | 'घाटो' की धुन 'चैती' से थोड़ी बदल जाती है| इसकी उठान बहुत ऊँची होती है और केवल पुरुष वर्ग ही इसे समूह में गाते हैं| कभी-कभी दो दलों में बँट कर सवाल-जवाब या प्रतियोगिता के रूप में भी प्रस्तुत किया जाता है, इसे 'चैता दंगल' कहा जाता है।
सुर-संगम के इस साप्ताहिक स्तंभ मे सभी श्रोता-पाठकों का स्वागत है। परंपरागत भारतीय संगीत शैलियों को आज़ादी के बाद सुप्रसिद्ध संगीतविद व सांस्कृतज्ञ ठाकुर जयदेव सिंह ने 'आकाशवाणी' के लिए चार वर्गों- शास्त्रीय, उपशास्त्रीय, सुगम और लोक संगीत में वर्गीकृत किया था| इन शैलियो के अलग-अलग रंग हैं और इन्हें पसंद करने वालों के अलग-अलग वर्ग भी हैं| लोक संगीत, वह चाहे किसी भी क्षेत्र का हो, उसमें ऋतुओं के अनुकूल गीतों का समृद्ध खज़ाना होता है| लोक संगीत की एक ऐसी ही शैली है- 'चैती'| उत्तर भारत के पूरे अवधी-भोजपुरी क्षेत्र तथा बिहार के भोजपुरी-मिथिला क्षेत्र की सर्वाधिक लोकप्रिय शैली 'चैती' है| हिन्दू कैलेण्डर के चैत्र मास में गाँव के चौपाल में महफिल सजती है और एक विशेष परंपरागत धुन में श्रृंगार और भक्ति रस में रचे 'चैती' गीतों का देर रात तक गायन किया जाता है।| जब महिला या पुरुष इसे एकल रूप में गाते हैं तो इसे 'चैती' कहा जाता है परन्तु जब समूह या दल बना कर गाया जाता है तो इसे 'चैता' कहा जाता है| इस गायकी का एक और प्रकार है जिसे 'घाटो' कहते हैं | 'घाटो' की धुन 'चैती' से थोड़ी बदल जाती है| इसकी उठान बहुत ऊँची होती है और केवल पुरुष वर्ग ही इसे समूह में गाते हैं| कभी-कभी दो दलों में बँट कर सवाल-जवाब या प्रतियोगिता के रूप में भी प्रस्तुत किया जाता है, इसे 'चैता दंगल' कहा जाता है।
'चैती' गीतों का विषय मुख्यतः भक्ति और श्रृंगार रस होते हैं। भारतीय पञ्चांग के अनुसार चैत्र शुक्ल प्रतिपदा(पहली तिथि) से नया वर्ष शुरू होता है| नई फसल के घर आने का भी यही समय होता है जिसका उल्लास 'चैती' में प्रकट होता है| चैत्र नवरात्र प्रतिपदा के दिन से शुरू होता है और नवमी के दिन राम-जन्मोत्सव का पर्व मनाया जाता है| 'चैती' में राम-जन्म का प्रसंग लौकिक रूप में प्रस्तुत किया जाता है| इसके अलावा अपने भर्ता के लिए नायिका की विरह-व्यथा का चित्रण भी इन गीतों में होता है| कुछ चैती गीतों का साहित्य पक्ष इतना सबल होता है कि श्रोता संगीत और साहित्य के सम्मोहन में बँध कर रह जाता है| पटना की लोक संगीत विदुषी विंध्यवासिनी देवी की एक चैती में अलंकारों का प्रयोग देखें - 'चाँदनी चितवा चुरावे हो रामा, चईत के रतिया ....' इस गीत की अगली पंक्ति का श्रृंगार पक्ष तो अनूठा है - 'मधु ऋतु मधुर-मधुर रस घोले, मधुर पवन अलसावे हो रामा...'| चैती गीत गायन के मोहक परिवेश और इसकी आकर्षक धुन के कारण कबीर दास ने अपने कुछ निर्गुण भी चैती के स्वरों में पिरो दिए| कबीर की एक ऐसी ही निर्गुण चैती हम आपको सुनवा रहे हैं, वाराणसी के सुप्रसिद्ध शास्त्रीय-उप शास्त्रीय गायक पण्डित छन्नूलाल मिश्र के स्वर में| उन्होंने इस चैती को ठुमरी अंग में गाया है| पहले आप ठुमरी अंग में यह चैती सुनिए, उसके बाद हम चैती के शास्त्रीय पक्ष पर चर्चा करेंगे|
कैसे सजन घर जईबे हो रामा - पं० छन्नूलाल मिश्र
चैती की एक और विशेषता भी उल्लेखनीय है| यदि चैती गीत में प्रयोग किये गए स्वरों और राग 'यमनी बिलावल' के स्वरों का तुलनात्मक अध्ययन किया जाए तो आपको अद्भुत समानता मिलेगी| अनेक प्राचीन चैती में बिलावल के स्वर मिलते हैं किन्तु आजकल अधिकतर चैती में तीव्र माध्यम का प्रयोग होने से राग यमनी बिलावल का अनुभव होता है| यह उदाहरण भरतमुनि के इस कथन की पुष्टि करता है कि लोक कलाओं की बुनियाद पर ही शास्त्रीय कलाओं का भव्य महल खड़ा है| आइए सुप्रसिद्ध गायिका निर्मला देवी के स्वरों में सुनते हैं ठुमरी अंग में एक श्रृंगार प्रधान चैती| इसमें चैती का लोक स्वरुप, राग 'यमनी बिलावल' के मादक स्वर, दीपचन्दी और कहरवा ताल का जादू तथा निर्मला देवी की भावपूर्ण आवाज़ आपको परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में समर्थ होंगे| हमनें आपसे पिछली कड़ी की पहेली में इसी ठुमरी का टुकड़ा सुनाया था और पूछा था गायिका के बारे में जो आज के दौर के एक सुप्रसिद्ध अभिनेता की माँ थीं। तो आप अब समझ ही गए होंगे कि हम बात कर रहे हैं निर्मला देवी की ही जो प्रसिद्ध बॉलीवुड अभिनेता 'गोविंदा' की माँ थीं। हम चैती के शास्त्रीय पक्ष पर चर्चा जारी रखेंगे सुर-संगम की आगामी कड़ी में|
येहि थईयाँ मोतिया हिराए गैली रामा - निर्मला देवी
और अब बारी इस कड़ी की पहेली का जिसका आपको देना होगा उत्तर तीन दिनों के अंदर इसी प्रस्तुति की टिप्पणी में। प्रत्येक सही उत्तर के आपको मिलेंगे ५ अंक। 'सुर-संगम' की ५०-वीं कड़ी तक जिस श्रोता-पाठक के हो जायेंगे सब से ज़्यादा अंक, उन्हें मिलेगा एक ख़ास सम्मान हमारी ओर से।
सुनिए चैती के इस टुकड़े को जो एक हिन्दी फ़िल्म से लिया गया है। आपको पहचानना है कि यह चैती किस राग पर आधारित है?
पिछ्ली पहेली का परिणाम: अमित जी ने दोनों प्रश्नों के सही उत्तर दिये और पा गये हैं १० अंक। साथ ही अवध जी को हम ५ बोनस अंक देंगे क्योंकि उन्होंने यह भी बताया कि गायिका किस प्रसिद्ध अभिनेता की माँ थीं। बधाई!
यह थी प्रसिद्ध लोक शैली - चैती पर आधारित हमारी पहली कड़ी। आशा है आपको यह कड़ी पसन्द आई। चैती के बारे में अभी और भी रोचक बातें बाकी हैं जिन्हें हम आपसे बाँटेंगे अगले रविवार को। साथ ही हम आभार व्यक्त करेंगे लखनऊ के श्री कृष्णमोहन मिश्र का इस प्रस्तुति में योगदान के लिए। आप अपने विचार व सुझाव हमें लिख भेजिए oig@hindyugm.com के ई-मेल पते पर। आगामी रविवार की सुबह हम पुनः उपस्थित होंगे एक नई रोचक कड़ी लेकर, तब तक के लिए अपने साथी सुमित चक्रवर्ती को आज्ञा दीजिए| शाम ६:३० बजे अपने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के साथी सुजॉय चटर्जी के साथ पधारना न भूलिएगा, नमस्कार!
खोज व आलेख - कृष्णमोहन मिश्र
प्रस्तुति- सुमित चक्रवर्ती
आवाज़ की कोशिश है कि हम इस माध्यम से न सिर्फ नए कलाकारों को एक विश्वव्यापी मंच प्रदान करें बल्कि संगीत की हर विधा पर जानकारियों को समेटें और सहेजें ताकि आज की पीढ़ी और आने वाली पीढ़ी हमारे संगीत धरोहरों के बारे में अधिक जान पायें. "ओल्ड इस गोल्ड" के जरिये फिल्म संगीत और "महफ़िल-ए-ग़ज़ल" के माध्यम से गैर फ़िल्मी संगीत की दुनिया से जानकारियाँ बटोरने के बाद अब शास्त्रीय संगीत के कुछ सूक्ष्म पक्षों को एक तार में पिरोने की एक कोशिश है शृंखला "सुर संगम". होस्ट हैं एक बार फिर आपके प्रिय सुजॉय जी.
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Thaat: Khamaj
रविकान्त
अचल