Skip to main content

ओल्ड इस गोल्ड -शनिवार विशेष - 'वन्देमातरम' गीत का एक और नवीन प्रयोग

नमस्कार! 'ओल्ड इज़ गोल्ड शनिवार विशेष' में मैं, कृष्णमोहन मिश्र आप सभी का हार्दित स्वागत करता हूँ।

मध्य प्रदेश संस्कृति विभाग एवं उस्ताद अलाउद्दीन खां कला अकादमी के संयुक्त प्रयासों से चन्देल राजाओं की संस्कृति-समृद्ध भूमि, खजुराहो में महत्वाकांक्षी "खजुराहो नृत्य समारोह" प्रतिवर्ष आयोजित होता है| इस वर्ष समारोह की तीसरी संध्या में 'भरतनाट्यम' नृत्य शैली की विदुषी नृत्यांगना डाक्टर ज्योत्सना जगन्नाथन ने अपने नर्तन को 'भारतमाता की अर्चना' से विराम दिया| उन्होंने बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय की कालजयी कृति -'वन्देमातरम ....' का चयन किया| इस गीत में भारतमाता के जिस स्निग्ध स्वरुप का वर्णन कवि ने शब्दों के माध्यम से किया है, विदुषी नृत्यांगना ने उसी स्वरुप को अपनी भंगिमाओं, हस्तकों, पद्संचालन आदि के माध्यम से मंच पर साक्षात् साकार कर दिया|

आमतौर पर शास्त्रीय नर्तक/नृत्यांगना, नृत्य का प्रारम्भ 'मंगलाचरण' से तथा समापन द्रुत या अतिद्रुत लय की किसी नृत्य-संरचना से करते हैं| सुश्री ज्योत्सना ने 'वन्देमातरम' से अपने नर्तन को विराम देकर एक सुखद प्रयोग किया है| दक्षिण भारतीय संगीत संरचना में निबद्ध 'वन्देमातरम' सुन कर इस अलौकिक गीत के कुछ पुराने पृष्ठ अनायास खुल गए|

भारतीय स्वतंत्रता संग्राम में इस गीत की भूमिका पर अनगिनत पृष्ठ लिखे जा चुके हैं और लिखे जाते रहेंगे| 1896 में गुरुदेव रवीन्द्रनाथ ठाकुर से लेकर ए.आर. रहमान तक सैकड़ों गायकों ने 'वन्देमातरम' गीत को अपनी-अपनी धुनों और स्वरों में गाया है| इस विषय पर विस्तार से चर्चा फिर किसी विशेष अवसर पर होगी| आज इस गीत के बहुप्रचलित रूप पर कुछ चर्चा कर ली जाए|

15 अगस्त, 1947 को प्रातः 6:30 बजे आकाशवाणी से सुप्रसिद्ध शास्त्रीय गायक पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर का राग- देश में निबद्ध 'वन्देमातरम' के गायन का सजीव प्रसारण हुआ था| आजादी की सुहानी सुबह में देशवासियों के कानों में राष्ट्रभक्ति का मंत्र फूँकने में 'वन्देमातरम' की भूमिका अविस्मरणीय थी| ओंकारनाथ जी ने पूरा गीत स्टूडियो में खड़े होकर गाया था; अर्थात उन्होंने इसे राष्ट्रगीत के तौर पर पूरा सम्मान दिया| इस प्रसारण का पूरा श्रेय सरदार बल्लभ भाई पटेल को जाता है| (पण्डित ओंकारनाथ ठाकुर का यह गीत दि ग्रामोफोन कम्पनी ऑफ़ इंडिया के रिकॉर्ड संख्या STC 048 7102 में मौजूद है|)

24 जनवरी, 1950 को संविधान सभा ने निर्णय लिया कि स्वतंत्रता संग्राम में 'वन्देमातरम' गीत की उल्लेखनीय भूमिका को देखते हुए इस गीत के प्रथम दो अन्तरों को 'जन गण मन..' के समकक्ष मान्यता दी जाय| डाक्टर राजेन्द्र प्रसाद ने संविधान सभा का यह निर्णय सुनाया| "वन्देमातरम' को राष्ट्रगान के समकक्ष मान्यता मिल जाने पर अनेक महत्वपूर्ण राष्ट्रीय अवसरों पर 'वन्देमातरम' गीत को स्थान मिला| आज भी 'आकाशवाणी' के सभी केन्द्रों का प्रसारण 'वन्देमातरम' से ही होता है| (इसकी रेकॉर्डिंग Government of India website पर उपलब्ध है|)

आज भी कई सांस्कृतिक और साहित्यिक संस्थाओं में 'वन्देमातरम' गीत का पूरा-पूरा गायन किया जाता है| 1952 में बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय के उपन्यास- "आनन्दमठ" पर इसी नाम से एक फिल्म बनी थी, जिसमें 'वन्देमातरम' गीत भी शामिल था| हेमेन गुप्ता निर्देशित इस फिल्म में हेमन्त कुमार का संगीत है| फिल्म में उस समय के चर्चित कलाकारों- पृथ्वीराज कपूर, भारतभूषण, गीता बाली, प्रदीप कुमार आदि ने अभिनय किया था| फिल्म में हेमंत दा' ने 'वन्देमातरम' को एक 'मार्चिंग सांग' के रूप में संगीतबद्ध किया| गीत के दो संस्करण हैं- पहले संस्करण में लता मंगेशकर की और दूसरे में हेमन्त कुमार की आवाज है| "आनन्दमठ" के अलावा 'लीडर', 'अमर आशा' आदि कुछ अन्य फिल्मों में भी गीत के अंश अथवा इसकी धुन का प्रयोग किया गाया है| कुछ वर्ष पहले संगीतकार ए.आर. रहमान ने महबूब द्वारा किये हिन्दी/उर्दू अनुवाद को गाकर युवा वर्ग में खूब लोकप्रिय हुए थे|

और आइए अब 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की रवायत को बरकरार रखते हुए सुनें और देखें बंकिमचंद्र के उसी उपन्यास 'आनंदमठ' पर बनी हिंदी फ़िल्म से यह गीत सुनें लता मंगेशकर और हेमन्त कुमार की आवाज़ो में। फ़िल्म में संगीत हेमन्त दा का ही था। और विडियो भी देखें।

हेमन्त कुमार


लता मंगेशकर


और अब आज के इस प्रस्तुति को विराम देने की दीजिये मुझे इजाज़त, नमस्कार!

Comments

बहुत सुन्दर!
वंदे मातरम्!
sujoy chatterjee said…
Bahut achchhi jaankaari dee kridhnamohan ji aapne.

Sujoy
Archana said…
बहुत बढिया जानकारी...आभार
वन्देमातरम गीत नहीं स्वतंत्रता के धधकते शोले हैं
आज भी धधक रहें हैं
Anjaana said…
This post has been removed by the author.

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...