ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 641/2010/341
'ओल्ड इस गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! मैं, सुजॉय चटर्जी, आप सभी का इस स्तंभ में फिर एक बार स्वागत करता हूँ। युं तो इस शृंखला का वाहक मैं और सजीव जी हैं, लेकिन समय समय पर आप में से कई श्रोता-पाठक इस स्तंभ के लिए उल्लेखनीय योगदान करते आये हैं, चाहे किसी भी रूप में क्यों न हो! यह हमारा सौभाग्य है कि हाल में हमारी जान-पहचान एक ऐसे वरिष्ठ कला संवाददाता व समीक्षक से हुई, जो अपने लम्बे करीयर के बेशकीमती अनुभवों से हमारा न केवल ज्ञानवर्धन कर रहे हैं, बल्कि 'सुर-संगम' स्तंभ में भी अपना अमूल्य योगदान समय समय पर दे रहे हैं। और अब 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के लिए एक पूरी की पूरी शृंखला के साथ हाज़िर हैं। आप हैं लखनऊ के श्री कृष्णमोहन मिश्र। मिश्र जी का परिचय कुछ शब्दों में संभव नहीं, इसलिए आप यहाँ क्लिक कर उनके बारे में विस्तृत रूप से जान सकते हैं। तो दोस्तों, आइए अगले दस अंकों के लिए 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का आनंद लें श्री कृष्णमोहन मिश्र जी के साथ। एक और बात, कृष्णमोहन जी नें इस शृंखला के हर अंक में इतने सारे तथ्य भरे हैं कि अलग से "क्या आप जानते हैं?" की ज़रूरत ही महसूस नहीं हुई। इसलिए इस शृंखला में यह सह-स्तंभ पेश नहीं होगा।
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'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोता-पाठकों का मैं, कृष्णमोहन मिश्र स्वागत करता हूँ। भारतीय फिल्मों ने जब से बोलना सीखा, तब से ही गीत-संगीत उसकी आवश्यकता भी थी और विशेषता भी। पहले दशक (1931-1941) के संगीतकारों नें फिल्म संगीत में शास्त्रीय और लोक तत्वों का जो बीजारोपण किया, उसका प्रतिफल दूसरे और तीसरे दशक (1941-1961) की अवधि में खूब मुखर होकर सामने आया। दूसरे दशक में पुरुष गायक- मन्ना डे, मोहम्मद रफ़ी, मुकेश, किशोर कुमार और तलत महमूद जैसे समर्पित गायकों का आगमन हुआ, जिन्होंने अगले कई दशकों तक फिल्म संगीत जगत पर एकछत्र शासन किया। इसी दशक की कोकिलकंठी लता मंगेशकर और वैविध्यपूर्ण गायन शैली के धनी मन्ना डे आज भी हमारे बीच फिल्म संगीत के सजीव इतिहास के रूप में उपस्थित हैं। ऐसे ही बहुआयामी प्रतिभा के धनी मन्ना डे के व्यक्तित्व और कृतित्व पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की यह लघु श्रृंखला "अपने सुरों में मेरे सुरों को मिला लो" आज से शुरू हो रही है। रविवार 1 मई को मन्ना डे 92 वर्ष के हो जाएँगे। यह श्रृंखला हम उनके स्वस्थ रहने और दीर्घायु होने की कामना करते हुए प्रस्तुत कर रहे हैं |
1 मई 1919 को कलकत्ता (अब कोलकाता) के एक सामान्य मध्यवर्गीय संयुक्त परिवार में जन्में मन्ना डे का वास्तविक नाम प्रबोधचन्द्र डे था। 'मन्ना' उनका घरेलू नाम था। आगे चलकर वो इसी नाम से प्रसिद्ध हुए। मन्ना डे के पिता का नाम पूर्णचंद्र डे, माता का नाम महामाया डे तथा चाचा का नाम कृष्णचंद्र डे (के.सी. डे) था जो एक संगीत शिक्षक के रूप में विख्यात थे। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा इंदु बाबूर पाठशाला (इंदु बाबू की पाठशाला) से, माध्यमिक शिक्षा स्कोटिश चर्च कालेज से तथा स्नातक की पढ़ाई विद्यासागर कालेज से हुई। बचपन में मन्ना डे को खेलकूद में काफी रूचि थी। उनका प्रिय खेल फुटबाल, कुश्ती और मुक्केबाजी रहा। अपनी इस रूचि के कारण वो अपने साथियों के बीच काफी लोकप्रिय थे। मन्ना डे को संगीत के प्रति अनुराग चाचा के.सी. डे की प्रेरणा से ही विरासत में प्राप्त हुआ। इण्टरमिडिएट में पढाई के दिनों में उनके संगीत प्रतिभा की चर्चा साथियों के बीच खूब होती थी। होता यह था कि खाली समय या मध्यान्तर में मन्ना डे को उनके साथी कक्षा में घेर कर बैठ जाते थे। मन्ना डे मेज को ताल वाद्य बना लेते और फिर गाने का सिलसिला शुरू हो जाता। इसी दौरान मन्ना डे नें अन्तरविद्यालय संगीत प्रतियोगिता के तीन वर्गों में भाग लिया और तीनों वर्गों में उन्हें प्रथम स्थान मिला। पहले तो उन्हें चाचा के.सी. डे ही संगीत का पाठ पढ़ाते थे लेकिन उनकी बढ़ती रुझान देखते हुए चाचा ने उस्ताद दबीर खां से भी विधिवत संगीत शिक्षा दिलाने कि व्यवस्था कर दी। मन्ना डे पढाई में तो अच्छे थे ही, अच्छा गाने के कारण भी वो कालेज में खूब लोकप्रिय हो गए थे। स्नातक की परीक्षा में सफल होने के बाद मन्ना डे के सामने दो रास्ते खुले हुए थे। पहला यह कि कानून की पढाई कर बैरिस्टर बना जाये और दूसरा, चाचा की छत्र-छाया में संगीत क्षेत्र में भाग्य आजमाया जाये। काफी सोच-विचार के बाद मन्ना डे ने दूसरा रास्ता चुना और अपने चाचा के साथ माया नगरी मुम्बई की ओर चल पड़े |
यहाँ थोडा रुक कर हम मन्ना डे की उस समय की मनोदशा का अनुमान लगाते है- 'सौदागर' फिल्म के इस गीत के माध्यम से।
दूर है किनारा
1973 में प्रदर्शित इस फिल्म में मन्ना डे ने बंगाल की बेहद चर्चित भटियाली धुन (माँझी गीत) में इस गीत को गाया है| फिल्म के संगीतकार रवीन्द्र जैन हैं। टेलीविजन के एक चैनल पर 'इण्डियन एक्सप्रेस' के संपादक शेखर गुप्ता से अपने साक्षात्कार में मन्ना डे नें फिल्म 'सौदागर' के इस गीत के बारे में कहा था- "बचपन से ही हुगली नदी के प्रति मेरा विशेष लगाव रहा है। माँझी गीतों की लोक धुन बचपन से ही मन में बसी है। 'सौदागर' अमिताभ बच्चन की प्रारम्भिक फिल्मों मे से एक अच्छी फिल्म है। संगीतकार रवीन्द्र जैन की धुन भी बहुत अच्छी है | यह सब कुछ मेरे लिए इतना अनुकूल था कि सचमुच एक अच्छा गीत तैयार हो गया।"
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 02/शृंखला 15
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - मन्ना दा ने इस फिल्म में बेबी तारा के साथ एक युगल गीत भी गाया था.
सवाल १ - किस पौराणिक किरदार के लिए था मन्ना दा का ये गीत - २ अंक
सवाल २ - गीतकार कौन हैं - ३ अंक
सवाल ३ - संगीतकार कौन है - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी और अनजाना जी ने शानदार शुरुआत की है, प्रतीक जी और शरद जी भी खाता खोल चुके हैं, श्याम कान्त जी बहुत बहुत बधाई और स्वागत एक बार फिर हमें यकीन है अब मुकाबले में और रोचकता आ जायेगी
खोज व आलेख- कृष्णमोहन मिश्र
'ओल्ड इस गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! मैं, सुजॉय चटर्जी, आप सभी का इस स्तंभ में फिर एक बार स्वागत करता हूँ। युं तो इस शृंखला का वाहक मैं और सजीव जी हैं, लेकिन समय समय पर आप में से कई श्रोता-पाठक इस स्तंभ के लिए उल्लेखनीय योगदान करते आये हैं, चाहे किसी भी रूप में क्यों न हो! यह हमारा सौभाग्य है कि हाल में हमारी जान-पहचान एक ऐसे वरिष्ठ कला संवाददाता व समीक्षक से हुई, जो अपने लम्बे करीयर के बेशकीमती अनुभवों से हमारा न केवल ज्ञानवर्धन कर रहे हैं, बल्कि 'सुर-संगम' स्तंभ में भी अपना अमूल्य योगदान समय समय पर दे रहे हैं। और अब 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के लिए एक पूरी की पूरी शृंखला के साथ हाज़िर हैं। आप हैं लखनऊ के श्री कृष्णमोहन मिश्र। मिश्र जी का परिचय कुछ शब्दों में संभव नहीं, इसलिए आप यहाँ क्लिक कर उनके बारे में विस्तृत रूप से जान सकते हैं। तो दोस्तों, आइए अगले दस अंकों के लिए 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का आनंद लें श्री कृष्णमोहन मिश्र जी के साथ। एक और बात, कृष्णमोहन जी नें इस शृंखला के हर अंक में इतने सारे तथ्य भरे हैं कि अलग से "क्या आप जानते हैं?" की ज़रूरत ही महसूस नहीं हुई। इसलिए इस शृंखला में यह सह-स्तंभ पेश नहीं होगा।
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'ओल्ड इज़ गोल्ड' के सभी श्रोता-पाठकों का मैं, कृष्णमोहन मिश्र स्वागत करता हूँ। भारतीय फिल्मों ने जब से बोलना सीखा, तब से ही गीत-संगीत उसकी आवश्यकता भी थी और विशेषता भी। पहले दशक (1931-1941) के संगीतकारों नें फिल्म संगीत में शास्त्रीय और लोक तत्वों का जो बीजारोपण किया, उसका प्रतिफल दूसरे और तीसरे दशक (1941-1961) की अवधि में खूब मुखर होकर सामने आया। दूसरे दशक में पुरुष गायक- मन्ना डे, मोहम्मद रफ़ी, मुकेश, किशोर कुमार और तलत महमूद जैसे समर्पित गायकों का आगमन हुआ, जिन्होंने अगले कई दशकों तक फिल्म संगीत जगत पर एकछत्र शासन किया। इसी दशक की कोकिलकंठी लता मंगेशकर और वैविध्यपूर्ण गायन शैली के धनी मन्ना डे आज भी हमारे बीच फिल्म संगीत के सजीव इतिहास के रूप में उपस्थित हैं। ऐसे ही बहुआयामी प्रतिभा के धनी मन्ना डे के व्यक्तित्व और कृतित्व पर 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की यह लघु श्रृंखला "अपने सुरों में मेरे सुरों को मिला लो" आज से शुरू हो रही है। रविवार 1 मई को मन्ना डे 92 वर्ष के हो जाएँगे। यह श्रृंखला हम उनके स्वस्थ रहने और दीर्घायु होने की कामना करते हुए प्रस्तुत कर रहे हैं |
1 मई 1919 को कलकत्ता (अब कोलकाता) के एक सामान्य मध्यवर्गीय संयुक्त परिवार में जन्में मन्ना डे का वास्तविक नाम प्रबोधचन्द्र डे था। 'मन्ना' उनका घरेलू नाम था। आगे चलकर वो इसी नाम से प्रसिद्ध हुए। मन्ना डे के पिता का नाम पूर्णचंद्र डे, माता का नाम महामाया डे तथा चाचा का नाम कृष्णचंद्र डे (के.सी. डे) था जो एक संगीत शिक्षक के रूप में विख्यात थे। उनकी प्रारम्भिक शिक्षा इंदु बाबूर पाठशाला (इंदु बाबू की पाठशाला) से, माध्यमिक शिक्षा स्कोटिश चर्च कालेज से तथा स्नातक की पढ़ाई विद्यासागर कालेज से हुई। बचपन में मन्ना डे को खेलकूद में काफी रूचि थी। उनका प्रिय खेल फुटबाल, कुश्ती और मुक्केबाजी रहा। अपनी इस रूचि के कारण वो अपने साथियों के बीच काफी लोकप्रिय थे। मन्ना डे को संगीत के प्रति अनुराग चाचा के.सी. डे की प्रेरणा से ही विरासत में प्राप्त हुआ। इण्टरमिडिएट में पढाई के दिनों में उनके संगीत प्रतिभा की चर्चा साथियों के बीच खूब होती थी। होता यह था कि खाली समय या मध्यान्तर में मन्ना डे को उनके साथी कक्षा में घेर कर बैठ जाते थे। मन्ना डे मेज को ताल वाद्य बना लेते और फिर गाने का सिलसिला शुरू हो जाता। इसी दौरान मन्ना डे नें अन्तरविद्यालय संगीत प्रतियोगिता के तीन वर्गों में भाग लिया और तीनों वर्गों में उन्हें प्रथम स्थान मिला। पहले तो उन्हें चाचा के.सी. डे ही संगीत का पाठ पढ़ाते थे लेकिन उनकी बढ़ती रुझान देखते हुए चाचा ने उस्ताद दबीर खां से भी विधिवत संगीत शिक्षा दिलाने कि व्यवस्था कर दी। मन्ना डे पढाई में तो अच्छे थे ही, अच्छा गाने के कारण भी वो कालेज में खूब लोकप्रिय हो गए थे। स्नातक की परीक्षा में सफल होने के बाद मन्ना डे के सामने दो रास्ते खुले हुए थे। पहला यह कि कानून की पढाई कर बैरिस्टर बना जाये और दूसरा, चाचा की छत्र-छाया में संगीत क्षेत्र में भाग्य आजमाया जाये। काफी सोच-विचार के बाद मन्ना डे ने दूसरा रास्ता चुना और अपने चाचा के साथ माया नगरी मुम्बई की ओर चल पड़े |
यहाँ थोडा रुक कर हम मन्ना डे की उस समय की मनोदशा का अनुमान लगाते है- 'सौदागर' फिल्म के इस गीत के माध्यम से।
दूर है किनारा
1973 में प्रदर्शित इस फिल्म में मन्ना डे ने बंगाल की बेहद चर्चित भटियाली धुन (माँझी गीत) में इस गीत को गाया है| फिल्म के संगीतकार रवीन्द्र जैन हैं। टेलीविजन के एक चैनल पर 'इण्डियन एक्सप्रेस' के संपादक शेखर गुप्ता से अपने साक्षात्कार में मन्ना डे नें फिल्म 'सौदागर' के इस गीत के बारे में कहा था- "बचपन से ही हुगली नदी के प्रति मेरा विशेष लगाव रहा है। माँझी गीतों की लोक धुन बचपन से ही मन में बसी है। 'सौदागर' अमिताभ बच्चन की प्रारम्भिक फिल्मों मे से एक अच्छी फिल्म है। संगीतकार रवीन्द्र जैन की धुन भी बहुत अच्छी है | यह सब कुछ मेरे लिए इतना अनुकूल था कि सचमुच एक अच्छा गीत तैयार हो गया।"
दोस्तों अब पहेली है आपके संगीत ज्ञान की कड़ी परीक्षा, आपने करना ये है कि नीचे दी गयी धुन को सुनना है और अंदाज़ा लगाना है उस अगले गीत का. गीत पहचान लेंगें तो आपके लिए नीचे दिए सवाल भी कुछ मुश्किल नहीं रहेंगें. नियम वही हैं कि एक आई डी से आप केवल एक प्रश्न का ही जवाब दे पायेंगें. हर १० अंकों की शृंखला का एक विजेता होगा, और जो १००० वें एपिसोड तक सबसे अधिक श्रृंखलाओं में विजय हासिल करेगा वो ही अंतिम महा विजेता माना जायेगा. और हाँ इस बार इस महाविजेता का पुरस्कार नकद राशि में होगा ....कितने ?....इसे रहस्य रहने दीजिए अभी के लिए :)
पहेली 02/शृंखला 15
गीत का ये हिस्सा सुनें-
अतिरिक्त सूत्र - मन्ना दा ने इस फिल्म में बेबी तारा के साथ एक युगल गीत भी गाया था.
सवाल १ - किस पौराणिक किरदार के लिए था मन्ना दा का ये गीत - २ अंक
सवाल २ - गीतकार कौन हैं - ३ अंक
सवाल ३ - संगीतकार कौन है - २ अंक
पिछली पहेली का परिणाम -
अमित जी और अनजाना जी ने शानदार शुरुआत की है, प्रतीक जी और शरद जी भी खाता खोल चुके हैं, श्याम कान्त जी बहुत बहुत बधाई और स्वागत एक बार फिर हमें यकीन है अब मुकाबले में और रोचकता आ जायेगी
खोज व आलेख- कृष्णमोहन मिश्र
इन्टरनेट पर अब तक की सबसे लंबी और सबसे सफल ये शृंखला पार कर चुकी है ५०० एपिसोडों लंबा सफर. इस सफर के कुछ यादगार पड़ावों को जानिये इस फ्लेशबैक एपिसोड में. हम ओल्ड इस गोल्ड के इस अनुभव को प्रिंट और ऑडियो फॉर्मेट में बदलकर अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुंचाना चाहते हैं. इस अभियान में आप रचनात्मक और आर्थिक सहयोग देकर हमारी मदद कर सकते हैं. पुराने, सुमधुर, गोल्ड गीतों के वो साथी जो इस मुहीम में हमारा साथ देना चाहें हमें oig@hindyugm.com पर संपर्क कर सकते हैं या कॉल करें 09871123997 (सजीव सारथी) या 09878034427 (सुजॉय चटर्जी) को
Comments
ओल्ड गोल्ड में गीत मिलते है इन गीतों के साथ बहुत सी यादें जुडी है जो दिल के धडकन हैं पहारी सान्याल ,चाचाजी कृष्णचंदर ,सहगल चाचा ,हुसनलाल भाई साहिब ,किस किस के नाम लिक्खूँ
यह तो हमारी यादों की बरात हैं जीने की
बहुत बहुत धन्यवाद .