सुजॉय चटर्जी एक ऐसा नाम जिससे आवाज़ के सभी नियमित श्रोता अब तक पूरी तरह से परिचित हो चुके हैं. रोज शाम वो ओल्ड इस गोल्ड पर लेकर आते हैं एक सोने सा चमकता नगमा हम सब के लिए, और खोल देते हैं बातों का एक ऐसा झरोखा जहाँ से आती खुशबू घोल देती है सांसों में ढेरों खट्टी मीठी गुजरे दिनों की यादें. ओल्ड इस गोल्ड ने पूरे किये अपने १०० एपिसोड और इस एतिहासिक अवसर पर हमने सोचा कि क्यों न आपके रूबरू लेकर आया जाए आपके इतने प्यारे ओल्ड इस गोल्ड के होस्ट सुजॉय चटर्जी को, तो मिलिए आज सुजॉय से -
हिंद युग्म - सुजॉय स्वागत है आपका, हमारे श्रोता ओल्ड इस गोल्ड के माध्यम से आपको जानते हैं. इतने सारे पुराने गीतों के बारे में आपकी जानकारी देखकर कुछ लोग अंदाजा लगते हैं कि आपकी उम्र कोई ४०-५० साल की होगी. तो सबसे पहले तो श्रोताओं को अपनी उम्र ही बताईये. ?
सुजॉय - वैसे अविवाहित लड़कों से उनकी उम्र पूछनी तो नहीं चाहिए, चलिए फिर भी बता देता हूँ कि मैं ३१ साल का हूँ।
हिंद युग्म - अच्छा अब अपना परिचय भी दीजिये...
सुजॉय - हम लोग बंगाल के रहनेवाले हैं, लेकिन मेरी पिताजी की नौकरी गुवाहाटी, असम में होने की वजह से मेरा जन्म और पूरी पढाई वहीं हुई। इसलिए मैं अपने आप को असम का ही रहनेवाला मानता हूँ। फ़िल्हाल मैं चण्डीगढ़ में नौकरी कर रहा हूँ। पेशे से मैं 'टेलीकाम इंजिनीयर' हूँ, और मेरी दिलचस्पी है हिंदी फ़िल्म संगीत में, फ़ोटोग्राफ़ी में, और खाना बनाने में।
हिंद युग्म - सुजॉय, ये ओल्ड इस गोल्ड का कॉन्सेप्ट कैसे बना ?
सुजॉय - सच पूछिए तो यह कॉन्सेप्ट सजीवजी का है, मैने तो बस उनके इस कॉन्सेप्ट को अंजाम दिया है। एक बात जो 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के श्रोताओं को शायद ही मालूम हो कि जितने भी गाने आप इसमें सुनते हैं वे सभी सजीवजी के ही चुने हुए होते हैं। एक बार गीतों की लिस्ट मेरे हाथ लगी कि मैं अपना काम शुरु कर देता हूँ उनके बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानकारियाँ इकट्ठा करने में। कभी कभी बहुत अच्छी बातें हाथ लगती हैं, और कभी कभी थोड़े में ही गुज़ारा करना पड़ता है। लेकिन जो भी है, मुझे बड़ा आनंद आता है इस सीरीज़ के लिए आलेख लिखने में। शायद इसी तरह का कुछ दबा हुआ था मेरे अंदर जो मैं हमेशा से करना चाहता था। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का मंच पाकर ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरी उस पराधीन चाहत को आज़ाद कर दिया हो!
हिंद युग्म - ओल्ड इस गोल्ड को बहुत पसंद किया जा रहा है. एक श्रोता ने हिंद युग्म को लिखा कि ओल्ड इस गोल्ड पर आकर वो अपने बीते दिनों को जैसे फिर से जी रहे हैं. कैसा लगता है जब इस तरह के फीडबैक मिलते हैं ?
सुजॉय - बहुत अच्छा लगता है जानकर कि श्रोताओं और पाठकों को यह शृंखला पसंद आ रही है। उससे भी ज़्यादा अच्छा तब लगता है जब लोग आलेख में छुपी हुई ग़लतियों को ढूंढ निकालते हैं। इतने मनयोग से लोगों को पढ़ते हुए देखकर लगता है कि जैसे मेरी मेहनत सफल हुई। यह शृंखला लोगों को अपने बीते दिनों को याद करवाने में सहायक का काम कर रही है जानकर बहुत ख़ुशी हुई। आगे भी ऐसा ही प्रयास रहेगा।
हिंद युग्म - ओल्ड इस गोल्ड से पहले से ही आप इन्टरनेट पर विविध भारती समुदाय के माध्यम से बहुत लोकप्रिय थे, कैसे कर पाते हैं इतने सारे कार्यक्रमों को आप अपने जेहन में कैद ?
सुजॉय - शुरु शुरु में 'रेडियो' सुनते हुए ही इन कार्यक्रमों में बोली जा रही ज़रूरी बातों को 'शौर्ट हैंड' की तरह नोट कर लेता था, और फिर बाद में आलेख की शक्ल में लिख लेता था। बाद में जब मेरी 'मोबाइल फ़ोन' की पदोन्नती हुई तो उसमें रिकार्ड करने की क्षमता भी उत्पन्न हुई और तब से इन कार्यक्रमों को उस पर रिकार्ड करके बाद मे लिख लेता हूँ। इसे मेरी हॉबी ही समझिये या पागलपन! शायद ही दुनिया में कोई और इस तरह से रेडियो से रिकार्ड कर कम्प्युटर पर टाइप करता होगा!
हिंद युग्म - और फिर पूरे के पूरे कार्यक्रम को टाइप करना, क्या इन सब में बहुत समय नहीं लगता. ?
सुजॉय - समय तो लगता ही है, आख़िर मेरे भी दो हाथ हैं, और फिर औफ़िस भी जाता हूँ, खाना भी पकाता हूँ। मेरा ऐसा विचार है कि अगर आप किसी काम को शौकिया तौर पर करना चाहें तो आप उसके लिए अपनी व्यस्तता के बावजूद समय निकाल सकते हैं।
हिंद युग्म - ओल्ड इस गोल्ड में गीतों की प्रस्तुति में आपका विविध भारती का अनुभव कितना काम आता है ?
सुजॉय - बहुत ज़्यादा! बचपन से ही विविध भारती के अलग अलग कार्यक्रम और आकाशवाणी गुवाहाटी से प्रसारित होनेवाली फ़िल्म संगीत पर आधारित 'सैनिक भाइयों का कार्यक्रम' सुनते हुए ही बड़ा हुआ हूँ। लेकिन मैने अपनी तरफ़ से जो अच्छा काम किया वह यह था कि इन कार्यक्रमों को सुनने के साथ साथ इनमें दी जा रही जानकारियों को भी मैं अपनी डायरी में और बाद में अपने कम्प्युटर में संग्रहित करता चला गया। और अब हाल यह है कि ६०० से ज़्यादा रेडियो कार्यक्रमों का आलेख मेरे इस ख़ज़ाने मे क़ैद हो चुका है, जिनका मैं भरपूर इस्तेमाल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में बिना कंजूसी के कर रहा हूँ। उस वक्त मुझे यह पता भी नहीं था कि एक दिन इन सब का इस्तेमाल यूँ किया जाएगा। मेहनत से किया गया कोई भी काम कभी बेकार नहीं जाता, यह अब मैं मान गया हूँ।
हिंद युग्म - हर गीत की प्रस्तुति से पहले क्या तैयारियां करते हैं ?
सुजॉय - सबसे पहले तो दो चार दिन तक गीतों को मन ही मन मंथन करता हूँ, और उठते बैठते सोते जागते यह सोचता रहता हूँ कि फ़लाना गीत की क्या खासियत है। फिर उसके बाद 'रेडियो' प्रोग्रामों की लिस्ट पे नज़र दौड़ाता हूँ कि कहीं कुछ जानकारियाँ पहले से ही मेरे पास उपलब्ध है या नहीं। फिर उसके बाद इंटर्नेट पर जितना हो सके सर्च करता हूँ, और सारी बातों को आलेख की शक्ल में लिख डालता हूँ। यूँ समझ लीजिए कि १० गीतों का आलेख लिखने के लिए ७ से १० दिन लग ही जाते हैं।
हिंद युग्म - ओल्ड इस गोल्ड के शतक पूरे करने की एक बार फिर बधाई. आप यूहीं अच्छे अच्छे गीत हम सभी को सुनाते रहें. हिंद युग्म को उम्मीद ही नहीं विश्वास है कि आप इस खोज और आलेख प्रस्तुतीकरण का भरपूर आनंद ले पा रहे हैं. जारी रहे ये सफ़र...सब श्रोताओं की तरफ से शुभकामनायें स्वीकार करें.
सुजॉय - बहुत धन्यवाद! वैसे शुक्रिया मुझे हिंद युग्म का अदा करनी चाहिए मुझे यह मंच देने के लिए। जो काम मैं हमेशा से करना चाहता था और नहीं कर पा रहा था, हिंद युग्म ने मुझे वह काम करने का मौका दिया, इससे ज़्यादा और मैं हिंद युग्म से क्या माँग सकता हूँ। चलते चलते वही लाइन फिर से कहूँगा जो 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की हीरक जयंती अंक मे मैने कहा था कि "तुम अगर साथ देने का वादा करो, हम यूँही मस्त नग़में लुटाते रहें"। बहुत धन्यवाद!
ओल्ड इस गोल्ड के श्रोताओं में कुछ ऐसे नाम भी हैं जिन्होंने इस शृंखला के विषय में मीडिया के माध्यम से जानकारी देकर संगीत प्रेमियों को इससे जुड़ने के लिए प्रेरित किया है, मशहूर ब्लॉग "मोहल्ला" के संचालक अविनाश जी भी इन्हीं में से एक हैं जिन पर सुजॉय का जादू जम कर चला है. तभी तो मशहूर साहित्यिक पत्रिका "कथादेश" में उन्होंने अपने "ओल्ड इस गोल्ड" अनुभव को कुछ यूँ व्यक्त किया है. पढिये -
पूरा आलेख पढ़ने के लिए निम्न चित्र पर क्लिक करें
हिंद युग्म - सुजॉय स्वागत है आपका, हमारे श्रोता ओल्ड इस गोल्ड के माध्यम से आपको जानते हैं. इतने सारे पुराने गीतों के बारे में आपकी जानकारी देखकर कुछ लोग अंदाजा लगते हैं कि आपकी उम्र कोई ४०-५० साल की होगी. तो सबसे पहले तो श्रोताओं को अपनी उम्र ही बताईये. ?
सुजॉय - वैसे अविवाहित लड़कों से उनकी उम्र पूछनी तो नहीं चाहिए, चलिए फिर भी बता देता हूँ कि मैं ३१ साल का हूँ।
हिंद युग्म - अच्छा अब अपना परिचय भी दीजिये...
सुजॉय - हम लोग बंगाल के रहनेवाले हैं, लेकिन मेरी पिताजी की नौकरी गुवाहाटी, असम में होने की वजह से मेरा जन्म और पूरी पढाई वहीं हुई। इसलिए मैं अपने आप को असम का ही रहनेवाला मानता हूँ। फ़िल्हाल मैं चण्डीगढ़ में नौकरी कर रहा हूँ। पेशे से मैं 'टेलीकाम इंजिनीयर' हूँ, और मेरी दिलचस्पी है हिंदी फ़िल्म संगीत में, फ़ोटोग्राफ़ी में, और खाना बनाने में।
हिंद युग्म - सुजॉय, ये ओल्ड इस गोल्ड का कॉन्सेप्ट कैसे बना ?
सुजॉय - सच पूछिए तो यह कॉन्सेप्ट सजीवजी का है, मैने तो बस उनके इस कॉन्सेप्ट को अंजाम दिया है। एक बात जो 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के श्रोताओं को शायद ही मालूम हो कि जितने भी गाने आप इसमें सुनते हैं वे सभी सजीवजी के ही चुने हुए होते हैं। एक बार गीतों की लिस्ट मेरे हाथ लगी कि मैं अपना काम शुरु कर देता हूँ उनके बारे में ज़्यादा से ज़्यादा जानकारियाँ इकट्ठा करने में। कभी कभी बहुत अच्छी बातें हाथ लगती हैं, और कभी कभी थोड़े में ही गुज़ारा करना पड़ता है। लेकिन जो भी है, मुझे बड़ा आनंद आता है इस सीरीज़ के लिए आलेख लिखने में। शायद इसी तरह का कुछ दबा हुआ था मेरे अंदर जो मैं हमेशा से करना चाहता था। 'ओल्ड इज़ गोल्ड' का मंच पाकर ऐसा लगा जैसे किसी ने मेरी उस पराधीन चाहत को आज़ाद कर दिया हो!
हिंद युग्म - ओल्ड इस गोल्ड को बहुत पसंद किया जा रहा है. एक श्रोता ने हिंद युग्म को लिखा कि ओल्ड इस गोल्ड पर आकर वो अपने बीते दिनों को जैसे फिर से जी रहे हैं. कैसा लगता है जब इस तरह के फीडबैक मिलते हैं ?
सुजॉय - बहुत अच्छा लगता है जानकर कि श्रोताओं और पाठकों को यह शृंखला पसंद आ रही है। उससे भी ज़्यादा अच्छा तब लगता है जब लोग आलेख में छुपी हुई ग़लतियों को ढूंढ निकालते हैं। इतने मनयोग से लोगों को पढ़ते हुए देखकर लगता है कि जैसे मेरी मेहनत सफल हुई। यह शृंखला लोगों को अपने बीते दिनों को याद करवाने में सहायक का काम कर रही है जानकर बहुत ख़ुशी हुई। आगे भी ऐसा ही प्रयास रहेगा।
हिंद युग्म - ओल्ड इस गोल्ड से पहले से ही आप इन्टरनेट पर विविध भारती समुदाय के माध्यम से बहुत लोकप्रिय थे, कैसे कर पाते हैं इतने सारे कार्यक्रमों को आप अपने जेहन में कैद ?
सुजॉय - शुरु शुरु में 'रेडियो' सुनते हुए ही इन कार्यक्रमों में बोली जा रही ज़रूरी बातों को 'शौर्ट हैंड' की तरह नोट कर लेता था, और फिर बाद में आलेख की शक्ल में लिख लेता था। बाद में जब मेरी 'मोबाइल फ़ोन' की पदोन्नती हुई तो उसमें रिकार्ड करने की क्षमता भी उत्पन्न हुई और तब से इन कार्यक्रमों को उस पर रिकार्ड करके बाद मे लिख लेता हूँ। इसे मेरी हॉबी ही समझिये या पागलपन! शायद ही दुनिया में कोई और इस तरह से रेडियो से रिकार्ड कर कम्प्युटर पर टाइप करता होगा!
हिंद युग्म - और फिर पूरे के पूरे कार्यक्रम को टाइप करना, क्या इन सब में बहुत समय नहीं लगता. ?
सुजॉय - समय तो लगता ही है, आख़िर मेरे भी दो हाथ हैं, और फिर औफ़िस भी जाता हूँ, खाना भी पकाता हूँ। मेरा ऐसा विचार है कि अगर आप किसी काम को शौकिया तौर पर करना चाहें तो आप उसके लिए अपनी व्यस्तता के बावजूद समय निकाल सकते हैं।
हिंद युग्म - ओल्ड इस गोल्ड में गीतों की प्रस्तुति में आपका विविध भारती का अनुभव कितना काम आता है ?
सुजॉय - बहुत ज़्यादा! बचपन से ही विविध भारती के अलग अलग कार्यक्रम और आकाशवाणी गुवाहाटी से प्रसारित होनेवाली फ़िल्म संगीत पर आधारित 'सैनिक भाइयों का कार्यक्रम' सुनते हुए ही बड़ा हुआ हूँ। लेकिन मैने अपनी तरफ़ से जो अच्छा काम किया वह यह था कि इन कार्यक्रमों को सुनने के साथ साथ इनमें दी जा रही जानकारियों को भी मैं अपनी डायरी में और बाद में अपने कम्प्युटर में संग्रहित करता चला गया। और अब हाल यह है कि ६०० से ज़्यादा रेडियो कार्यक्रमों का आलेख मेरे इस ख़ज़ाने मे क़ैद हो चुका है, जिनका मैं भरपूर इस्तेमाल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में बिना कंजूसी के कर रहा हूँ। उस वक्त मुझे यह पता भी नहीं था कि एक दिन इन सब का इस्तेमाल यूँ किया जाएगा। मेहनत से किया गया कोई भी काम कभी बेकार नहीं जाता, यह अब मैं मान गया हूँ।
हिंद युग्म - हर गीत की प्रस्तुति से पहले क्या तैयारियां करते हैं ?
सुजॉय - सबसे पहले तो दो चार दिन तक गीतों को मन ही मन मंथन करता हूँ, और उठते बैठते सोते जागते यह सोचता रहता हूँ कि फ़लाना गीत की क्या खासियत है। फिर उसके बाद 'रेडियो' प्रोग्रामों की लिस्ट पे नज़र दौड़ाता हूँ कि कहीं कुछ जानकारियाँ पहले से ही मेरे पास उपलब्ध है या नहीं। फिर उसके बाद इंटर्नेट पर जितना हो सके सर्च करता हूँ, और सारी बातों को आलेख की शक्ल में लिख डालता हूँ। यूँ समझ लीजिए कि १० गीतों का आलेख लिखने के लिए ७ से १० दिन लग ही जाते हैं।
हिंद युग्म - ओल्ड इस गोल्ड के शतक पूरे करने की एक बार फिर बधाई. आप यूहीं अच्छे अच्छे गीत हम सभी को सुनाते रहें. हिंद युग्म को उम्मीद ही नहीं विश्वास है कि आप इस खोज और आलेख प्रस्तुतीकरण का भरपूर आनंद ले पा रहे हैं. जारी रहे ये सफ़र...सब श्रोताओं की तरफ से शुभकामनायें स्वीकार करें.
सुजॉय - बहुत धन्यवाद! वैसे शुक्रिया मुझे हिंद युग्म का अदा करनी चाहिए मुझे यह मंच देने के लिए। जो काम मैं हमेशा से करना चाहता था और नहीं कर पा रहा था, हिंद युग्म ने मुझे वह काम करने का मौका दिया, इससे ज़्यादा और मैं हिंद युग्म से क्या माँग सकता हूँ। चलते चलते वही लाइन फिर से कहूँगा जो 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की हीरक जयंती अंक मे मैने कहा था कि "तुम अगर साथ देने का वादा करो, हम यूँही मस्त नग़में लुटाते रहें"। बहुत धन्यवाद!
ओल्ड इस गोल्ड के श्रोताओं में कुछ ऐसे नाम भी हैं जिन्होंने इस शृंखला के विषय में मीडिया के माध्यम से जानकारी देकर संगीत प्रेमियों को इससे जुड़ने के लिए प्रेरित किया है, मशहूर ब्लॉग "मोहल्ला" के संचालक अविनाश जी भी इन्हीं में से एक हैं जिन पर सुजॉय का जादू जम कर चला है. तभी तो मशहूर साहित्यिक पत्रिका "कथादेश" में उन्होंने अपने "ओल्ड इस गोल्ड" अनुभव को कुछ यूँ व्यक्त किया है. पढिये -
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ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
Manju Gupta.
रुक के कहेंगे .
और टिप्पणी के रूप में नहीं .अगर शैलेश जी इजाजत देंगे .......हाँ इस ख़त मीठे में पहले ?
फिलहाल तो सिर्फ उनसे जो प्यारी निराशा हाथ लगी वह .
अरे सुजोय हम तो समझे थे की आप हमारे ' दिनों ' के हैं /के होगे ! कभी मिल बैठेगे दीवाने दो . चलो वो तो रहेगी ही .......बाकी जो ......कहा तो !
आप का आभारी
पराग
ओल्ड इज गोल्ड मे मै रोज़ तो नही आ पाता पर ज्यादातर आता रहता हूँ, सजीव जी और आपके गानो का selection बहुत अच्छा है, भूले बिसरे गीत याद आ जाते है, वैसे मुझे नही पता मुझे ये गाने सुनने का शौक कैसे लगा पर जब भी टाईम मिलता है रेडियो पर या आवाज पर सुन लेता हूँ,
मुकेश जी का भूलने वाले याद ना आ....गाना तो इतना अच्छा लगा मैने उसे शपने मोबाईल मे भी save कर लिया
ओल्ड इज गोल्ड मे मै रोज़ तो नही आ पाता पर ज्यादातर आता रहता हूँ, सजीव जी और आपके गानो का selection बहुत अच्छा है, भूले बिसरे गीत याद आ जाते है, वैसे मुझे नही पता मुझे ये गाने सुनने का शौक कैसे लगा पर जब भी टाईम मिलता है रेडियो पर या आवाज पर सुन लेता हूँ,
मुकेश जी का भूलने वाले याद ना आ....गाना तो इतना अच्छा लगा मैने उसे अपने मोबाईल मे भी save कर लिया
ओल्ड इज गोल्ड मे मै रोज़ तो नही आ पाता पर ज्यादातर आता रहता हूँ, सजीव जी और आपके गानो का selection बहुत अच्छा है, भूले बिसरे गीत याद आ जाते है, वैसे मुझे नही पता मुझे ये गाने सुनने का शौक कैसे लगा पर जब भी टाईम मिलता है रेडियो पर या आवाज पर सुन लेता हूँ,
मुकेश जी का भूलने वाले याद ना आ....गाना तो इतना अच्छा लगा मैने उसे शपने मोबाईल मे भी save कर लिया
ओल्ड इज गोल्ड मे मै रोज़ तो नही आ पाता पर ज्यादातर आता रहता हूँ, सजीव जी और आपके गानो का selection बहुत अच्छा है, भूले बिसरे गीत याद आ जाते है, वैसे मुझे नही पता मुझे ये गाने सुनने का शौक कैसे लगा पर जब भी टाईम मिलता है रेडियो पर या आवाज पर सुन लेता हूँ,
मुकेश जी का भूलने वाले याद ना आ....गाना तो इतना अच्छा लगा मैने उसे अपने मोबाईल मे भी save कर लिया
One of the best human being, i have ever met.
अब तो बाबा तुम्हारी उम्र जान ही गई मैं.
टीटू (मेरा बडा बेटा अभिषेक पुरी) तुमसे बडा है. तुम टेलेंटेड हो,मेहनती हो,धून के पक्के हो वो तो तुम्हारे आर्टिकल्स पढ़ कर पता चल ही गया था.
और सब कुछ पढ़ कर जान लिया.
गर्व है तुम पर मुझे, इसलिए भी कि .....कि मैं 'तुम्हारी'बुढिया दोस्त हूँ. हा हा हा
खूब उन्नति प्रगति करो.
प्यार
इंदु
रविकान्त