ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 120
सस्पेन्स फ़िल्मों की अगर हम बात करें तो ६० के दशक में अभिनेत्री साधना ने कम से कम तीन ऐसी मशहूर फ़िल्मों में अभिनय किया है जिनमें वो रहस्यात्मक किरदार में नज़र आती हैं। ये फ़िल्में हैं 'मेरा साया', 'वो कौन थी?' और 'अनीता'। ये फ़िल्में मक़बूल तो हुए ही, इनका संगीत भी सदाबहार रहा है। 'अनीता' में संगीत लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल' का था, जब कि बाक़ी के दो फ़िल्मों के संगीतकार थे मदन मोहन साहब। मदन साहब अपनी 'हौन्टिंग मेलडीज़' के लिये तो मशहूर थे ही। बस फिर क्या था, सस्पेन्स वाली फ़िल्मों में उनसे बेहतर और कौन संगीत दे सकता था भला! आज हम आप के लिये लेकर आये हैं फ़िल्म 'मेरा साया' से मोहम्मद रफ़ी साहब का गाया एक दर्दीला नग़मा जिसे लिखा है राजा मेहंदी अली ख़ान ने। वैसे तो इस फ़िल्म के दूसरे कई गीत बहुत ज़्यादा मशहूर हुए थे जैसे कि लताजी के गाये फ़िल्म का शीर्षक गीत "मेरा साया साथ होगा" और "नैनों में बदरा छाये", तथा आशाजी की मचलती आवाज़ में "झुमका गिरा रे बरेली के बाज़ार में"। लेकिन रफ़ी साहब की आवाज़ में प्रस्तुत गीत भी उतना ही अपना असर छोड़ती है जितना कि ये दूसरे गीत। 'मेरा साया' फ़िल्म बनी थी सन् १९६६ में जिसका निर्देशन किया था राज खोंसला ने। फ़िल्म एक मराठी फ़िल्म 'पथलग' का रीमेक था। सुनिल दत्त और साधना अभिनीत यह फ़िल्म राज खोंसला के साथ साधना की तीसरी फ़िल्म थी। इससे पहले इन दोनो ने साथ साथ 'एक मुसाफ़िर एक हसीना' (१९६३) और 'वो कौन थी?' (१९६४) में काम कर चुके थे। १९६६ का साल फ़िल्म संगीत की दृष्टि से इतना ज़्यादा प्रतियोगितामूलक साबित हुआ कि इतने बेहरतरीन गानों के बावजूद इस फ़िल्म के गीत संगीत को कोई भी 'फ़िल्म-फ़ेयर' पुरस्कार नहीं मिला, सिवाय फ़िल्म के 'साउंड एडिटिंग' के, जिसके लिए मनोहर अम्बेडकर को पुरस्कृत किया गया था।
रफ़ी साहब की आवाज़ में इस गीत की फ़िल्म में सार्थकता को समझने के लिए फ़िल्म की कहानी पर ग़ौर करना ज़रूरी है। फ़िल्म के नायक सुनिल दत्त की पत्नी साधना का लम्बी बीमारी के बाद देहांत हो जाता है। लेकिन कुछ ही दिनों के भीतर साधना की हमशक्ल एक लड़की सुनिल दत्त के घर घुस आती है और अपने आप को उनकी पत्नी कहती है। सुनिल साहब को उसकी बात का यकीन नहीं होता और बात अदालत तक जा पहुँचती है। क्योंकि सुनिल दत्त ख़ुद एक वक़ील हैं, वो ख़ुद ही अपना केस लड़ते हैं। अदालत के एक दृश्य में एक दिन वो अपनी बीवी की हमश्क्ल लड़की पर गरज उठते हैं, दोनों में बहुत बहस होती है, अदालत में और उनके भीतर एक तूफ़ान सा चलने लगता है। और इसी सीन के तुरंत बाद, ख़ामोश रात में सुनिल दत्त को दिखाया जाता है उनके शयन कक्ष में, जो अब एक बिल्कुल अलग ही इंसान हैं, अपनी स्वर्गवासी पत्नी की तस्वीर के सामने बैठकर दर्द में डूबा हुआ यह गीत गाने लगते हैं कि "शाम जब आँसू बहाती आ गयी, हर तरफ़ ग़म की उदासी छा गयी, दीप यादों के जलाते रो दिये, आप के पहलू में आकर रो दिये"। अभी पिछले ही दृश्य में जो आदमी भरी अदालत में बिजली की तरह दहाड़ रहे थे, वही अब दुख के सागर में डूबकर अपनी पत्नी की तस्वीर के पहलू में आकर रो पड़ते हैं। यह जो उनके दो अलग अलग रूपों का कौन्ट्रस्ट दिखाया गया है, यह इस गीत को और फ़िल्म की सिचुएशन को और भी ज़्यादा भावुक और असरदार बना देती है। "ज़िंदगी ने कर दिया जब भी उदास, आ गये घबरा के हम मंज़िल के पास", इस पंक्ति में स्वर्गवासी पत्नी की तस्वीर की 'मंज़िल' के साथ तुलना की गयी है। तो दोस्तों आइये, मदन मोहन, राजा मेहंदी अली ख़ान, मोहम्मद रफ़ी और सुनिल दत्त साहब की यादों के पहलू में आकर सुनते हैं आज का यह पुर-असर नग़मा।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें २ अंक और २५ सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के ५ गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. गीतकार नक्श ल्यालपुरी की कलम का जादू होगा पहली बार "OIG" पर कल.
२. लता की आवाज़ में है ये ग़ज़ल.
३. पहली पंक्ति में शब्द है -"उल्फत".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
स्वप्न जी और शरद जी फिर एक बार साथ साथ आये. दोनों ने पाए दो दो अंक. शरद जी का स्कोर आ पहुंचा २० अंकों पर, आप अपनी मंजिल से ३० अंक पीछे हैं, स्वप्न जी हैं १४ अंकों पर. मनु जी, पराग जी, नीलम जी, रचना जी, संगीता जी, आप सब बहुत दिनों बाद महफ़िल में आये अच्छा लगा.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
सस्पेन्स फ़िल्मों की अगर हम बात करें तो ६० के दशक में अभिनेत्री साधना ने कम से कम तीन ऐसी मशहूर फ़िल्मों में अभिनय किया है जिनमें वो रहस्यात्मक किरदार में नज़र आती हैं। ये फ़िल्में हैं 'मेरा साया', 'वो कौन थी?' और 'अनीता'। ये फ़िल्में मक़बूल तो हुए ही, इनका संगीत भी सदाबहार रहा है। 'अनीता' में संगीत लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल' का था, जब कि बाक़ी के दो फ़िल्मों के संगीतकार थे मदन मोहन साहब। मदन साहब अपनी 'हौन्टिंग मेलडीज़' के लिये तो मशहूर थे ही। बस फिर क्या था, सस्पेन्स वाली फ़िल्मों में उनसे बेहतर और कौन संगीत दे सकता था भला! आज हम आप के लिये लेकर आये हैं फ़िल्म 'मेरा साया' से मोहम्मद रफ़ी साहब का गाया एक दर्दीला नग़मा जिसे लिखा है राजा मेहंदी अली ख़ान ने। वैसे तो इस फ़िल्म के दूसरे कई गीत बहुत ज़्यादा मशहूर हुए थे जैसे कि लताजी के गाये फ़िल्म का शीर्षक गीत "मेरा साया साथ होगा" और "नैनों में बदरा छाये", तथा आशाजी की मचलती आवाज़ में "झुमका गिरा रे बरेली के बाज़ार में"। लेकिन रफ़ी साहब की आवाज़ में प्रस्तुत गीत भी उतना ही अपना असर छोड़ती है जितना कि ये दूसरे गीत। 'मेरा साया' फ़िल्म बनी थी सन् १९६६ में जिसका निर्देशन किया था राज खोंसला ने। फ़िल्म एक मराठी फ़िल्म 'पथलग' का रीमेक था। सुनिल दत्त और साधना अभिनीत यह फ़िल्म राज खोंसला के साथ साधना की तीसरी फ़िल्म थी। इससे पहले इन दोनो ने साथ साथ 'एक मुसाफ़िर एक हसीना' (१९६३) और 'वो कौन थी?' (१९६४) में काम कर चुके थे। १९६६ का साल फ़िल्म संगीत की दृष्टि से इतना ज़्यादा प्रतियोगितामूलक साबित हुआ कि इतने बेहरतरीन गानों के बावजूद इस फ़िल्म के गीत संगीत को कोई भी 'फ़िल्म-फ़ेयर' पुरस्कार नहीं मिला, सिवाय फ़िल्म के 'साउंड एडिटिंग' के, जिसके लिए मनोहर अम्बेडकर को पुरस्कृत किया गया था।
रफ़ी साहब की आवाज़ में इस गीत की फ़िल्म में सार्थकता को समझने के लिए फ़िल्म की कहानी पर ग़ौर करना ज़रूरी है। फ़िल्म के नायक सुनिल दत्त की पत्नी साधना का लम्बी बीमारी के बाद देहांत हो जाता है। लेकिन कुछ ही दिनों के भीतर साधना की हमशक्ल एक लड़की सुनिल दत्त के घर घुस आती है और अपने आप को उनकी पत्नी कहती है। सुनिल साहब को उसकी बात का यकीन नहीं होता और बात अदालत तक जा पहुँचती है। क्योंकि सुनिल दत्त ख़ुद एक वक़ील हैं, वो ख़ुद ही अपना केस लड़ते हैं। अदालत के एक दृश्य में एक दिन वो अपनी बीवी की हमश्क्ल लड़की पर गरज उठते हैं, दोनों में बहुत बहस होती है, अदालत में और उनके भीतर एक तूफ़ान सा चलने लगता है। और इसी सीन के तुरंत बाद, ख़ामोश रात में सुनिल दत्त को दिखाया जाता है उनके शयन कक्ष में, जो अब एक बिल्कुल अलग ही इंसान हैं, अपनी स्वर्गवासी पत्नी की तस्वीर के सामने बैठकर दर्द में डूबा हुआ यह गीत गाने लगते हैं कि "शाम जब आँसू बहाती आ गयी, हर तरफ़ ग़म की उदासी छा गयी, दीप यादों के जलाते रो दिये, आप के पहलू में आकर रो दिये"। अभी पिछले ही दृश्य में जो आदमी भरी अदालत में बिजली की तरह दहाड़ रहे थे, वही अब दुख के सागर में डूबकर अपनी पत्नी की तस्वीर के पहलू में आकर रो पड़ते हैं। यह जो उनके दो अलग अलग रूपों का कौन्ट्रस्ट दिखाया गया है, यह इस गीत को और फ़िल्म की सिचुएशन को और भी ज़्यादा भावुक और असरदार बना देती है। "ज़िंदगी ने कर दिया जब भी उदास, आ गये घबरा के हम मंज़िल के पास", इस पंक्ति में स्वर्गवासी पत्नी की तस्वीर की 'मंज़िल' के साथ तुलना की गयी है। तो दोस्तों आइये, मदन मोहन, राजा मेहंदी अली ख़ान, मोहम्मद रफ़ी और सुनिल दत्त साहब की यादों के पहलू में आकर सुनते हैं आज का यह पुर-असर नग़मा।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें २ अंक और २५ सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के ५ गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा पहला "गेस्ट होस्ट". अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. गीतकार नक्श ल्यालपुरी की कलम का जादू होगा पहली बार "OIG" पर कल.
२. लता की आवाज़ में है ये ग़ज़ल.
३. पहली पंक्ति में शब्द है -"उल्फत".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
स्वप्न जी और शरद जी फिर एक बार साथ साथ आये. दोनों ने पाए दो दो अंक. शरद जी का स्कोर आ पहुंचा २० अंकों पर, आप अपनी मंजिल से ३० अंक पीछे हैं, स्वप्न जी हैं १४ अंकों पर. मनु जी, पराग जी, नीलम जी, रचना जी, संगीता जी, आप सब बहुत दिनों बाद महफ़िल में आये अच्छा लगा.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
मदन मोहन की बेहतरीन संगीत रचना
फ़िल्म : दिल की राहॆं
दिल की राहों में उठाते हैं जो दुनिया वाले
कोई कह दे कि वो दीवार गिराएं कैसे ?
ham to yahi hain, bas kuch palon ke liye maat kha gaye hai
bojh hota to gamon ka utha bhi lete
zindagi bojh bani hain uthayein kaise
mujhe laga tha ki agar aap 25 ank paalenge to aap pratiyogita jeet jayenge, ye aap 30 ank peeche kaise hai ?
25 ank ke hisaab se to aap sirf 5 ank peeche hain
kya mujhe samajhne mein koi bhool hui hai?
सुरीले गीत सुनाने के लिए धन्यवाद.
हर रोज़ की तरह शरद जी और स्वप्न मञ्जूषा जी को बधाई. २५ सही जवाब देने पर मिलेंगे ५० अंक. और तभी आप बनेंगे गेस्ट होस्ट सुजोय जी के साथ.
पराग
Thank You Parag Sahab,
aapne jo film ke baare mein jaankari di wo anmol hai
par mujhe nahi pata tha ye lata ji ka gaana hai. waise main jyadatar rafi sabh aur mukesh ji k gaane sunta hoon lekin ye gaana bahoot accha laga, kal ki post intjaaz rahega
सही जवाब के लिए बधाई
par mujhe nahi pata tha ye lata ji ka gaana hai. waise main jyadatar rafi sabh aur mukesh ji k gaane sunta hoon lekin ye gaana bahoot accha laga, kal ki post intjaaz rahega
धन्यवाद
अरे.. सभी विजेतओ को हार्दिक बधाई
जिंदगी बोझ बनी हो तो उठाएं कैसे,,,
बहुत दर्दभरी ग़ज़ल है,,
मंजूषा जी और शरद जी आप दोनों को बधाई क्या समय है आप दोनों के आने का .
अब तो बस आप दोनों के पसंद के गाने सुनने का इंतजार है
सादर
रचना
maine bahut koshish ki lekin 'Paathlaag' ka gana nahi sun paayi bataiyega sunna kaise hoga, aap to aduiteey baatein lekar aate hain, man prasann ho jata hai, bahut bahut dhanyawaad
Main koshish karoonga ki ek-do din mein yah gaana sabhee ichhuk sangeet premi sun sake.
Bahut hee sureela geet hai.
Aur ek baat, mujhe "sahab" mat kahiyega please.
Sharad Kavthekar ji,
Mere khayal se aap sahi hain. Kaashinath Ghanekar ke saath nayi abhinetri Nivedita hi hai.
Parag
आप रफी साहब और मुकेश जी के गाने सुनते है, यह तो अच्छी बात है. साथ में दूसरे गायाकोंके भी गीत सुनेंगे तो और मज़ा आयेगा. तलत जी, हेमंतदा, गीता जी , राजकुमारी जी और मन्ना दा के भी गानोंका लुफ्त उठाईये ! और हमारी वेबसाइट को देखियेजरूर
www.geetadutt.com
पराग
itna madhur geet sunwane ke liye aapko shat-shat dhanyawaad, asha ji ki awaaz sunkar yun laga ki bas ishwar ke darshan ho gaye, bahut sundar, aisi hi dilchasp baatein hamein batate rahiyege