बात एक एल्बम की (10)
फीचर्ड एल्बम ऑफ़ दा मंथ - वादा
फीचर्ड आर्टिस्ट ऑफ़ दा मंथ - उस्ताद अमजद अली खान, गुलज़ार, रूप कुमार राठोड, साधना सरगम.
बात एक एल्बम की में इस माह हम चर्चा कर रहे हैं चार बड़े फनकारों से सजी एल्बम "वादा' के बारे में. गीतकार गुलज़ार और संगीतकार उस्ताद अमजद अली खान साहब के बारे में हम बात कर चुके हैं, आज जिक्र करते हैं इस एल्बम के दो गायक कलाकारों का. इनमें से एक हैं शास्त्रीय संगीत के अहम् स्तम्भ माने जाने वाले पंडित चतुर्भुज राठोड के सुपुत्र और श्रवण राठोड (नदीम श्रवण वाले) और विनोद राठोड के भाई, जी हाँ हम बात कर रहे हैं गायक और संगीतकार रूप कुमार राठोड की. अपने पिता (जिन्हें इंडस्ट्री में कल्याणजी आनंदजी और गायक अनवर के गुरु भी कहा जाता है) के पदचिन्हों पर चलते हुए रूप ने तबला वादन सीखने से अपना संगीत सफ़र शुरू किया. पंकज उधास और अनूप जलोटा के साथ उन्होंने संगत की. श्याम बेनेगल की "भारत एक खोज" में भी उन्होंने तबला वादन किया. १९८४ में अपने इस जूनून को एक तरफ रख उन्होंने गायन की दुनिया में खुद को परखने का अहम् निर्णय लिया ये एक बड़ा "यु-टर्न" था उनके जीवन का. उस्ताद नियाज़ अहमद खान से तालीम लेकर उन्होंने ग़ज़ल गायन से शुरुआत की. पार्श्व गायन में उन्हें लाने का श्रेय जाता है संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को, जिन्होंने शशि लाल नायर की फिल्म "अंगार" में उन्हें गाने का मौका दिया. पर असली सफलता उन्हें मिली फिल्म "बॉर्डर" के साथ. अनु मालिक के संगीत निर्देशन में "तो चलूँ" और "संदेसे आते हैं" गीतों ने उन्हें कमियाबी का असली स्वाद चखाया, अनु के साथ उसके बाद भी उन्होंने बहुत बढ़िया और लोकप्रिय गीतों को अपनी आवाज़ से सजाया. "ले चले डोलियों में तुम्हें", "मौला मेरे" और "तुझमें रब दिखता है" उनकी आवाज़ में ढले कुछ ऐसे गीत हैं जिन्हें सुनकर लगता है कि इन्हें इतना सुंदर कोई और गायक गा ही नहीं सकता था. प्राइवेट अल्बम्स में भी उन्होंने जम कर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है. हमारी फीचर्ड एल्बम "वादा" भी इसका अपवाद नहीं है. यकीन न हो तो सुनिए हलकी फुल्की शरारतों और छेड़ छाड़ से गुदगुदाता ये नगमा -
चोरी चोरी की वो झाँखियाँ...
और ये सुनिए मखमली एहसासों से सजे गुलज़ार साहब के "ट्रेड मार्क" शब्दों में गुंथे इस गीत को -
ये सुबह साँस लेगी....
एल्बम वादा से रूप कुमार की आवाज़ में ये नायाब गीत भी हैं -
ऐसा कोई जिंदगी से वादा तो नहीं था...
डूब रहे हो और बहते हो...
रोजे-अव्वल से ही आवारा हूँ....
बढ़ते हैं इस एल्बम के चौथे फनकार की तरफ. इससे पहले की हम उनके बारे में कुछ कहें सुनिए इसी एल्बम से उनकी आवाज़ में ये दर्द भरी ग़ज़ल -
आँखों की हिचकी रूकती नहीं है,
रोने से कब गम हल्का हुआ है...
सीने में टूटी है चीज़ कोई,
खामोश सा एक खटका हुआ है....
वाह.... सुनिए आँखों में सावन अटका हुआ है.....
ये मधुर और चैन से भरी आवाज़ है साधना सरगम की. एक ऐसी गायिका जिनकी आवाज़ और कला का हमारी फिल्म इंडस्ट्री में कभी भी भरपूर इस्तेमाल नहीं हुआ. पंडित जसराज की इस शिष्या में गजब की प्रतिभा है और उनके कायल संगीतकार ए आर रहमान भी हैं. एक ताज़ा साक्षात्कार में रहमान में स्वीकार किया कि वही एकमात्र भारतीय गायिका हैं जो हमेशा उन्हें उम्मीद से बढ़कर परिणाम देती है अपने हर गीत में. इन पक्तियों के लेखक की राय में भी लता मंगेशकर की गायन विरासत को यदि कोई गायिका निभा पायी है तो वो साधना सरगम ही है. फिल्म "लगान" के गीत "ओ पालनहारे" एल्बम में लता की आवाज़ में है पर फिल्म के परदे पर नायिका के लिए साधना की आवाज़ का इस्तेमाल हुआ है, और देखिये लता जी गाये मुखड़े के बाद साधना की आवाज़ में अंतरा आता है और लगता है जैसे दोनों आवाजें एक दूजे में घुल-मिल ही गयी हों. रहमान ने उस साक्षात्कार में यह भी कहा कि वो हर बार अपनी गायिकी से मुझे चौका देती है. वो दिए हुए निर्देशों से भी बढ़कर हर गीत में कुछ ऐसा कर जाती है कि गीत एक स्तर और उपर हो जाता है. चलिए सुनते हैं साधना की आवाज़ में एक और गीत इसी एल्बम से -
सारा जहाँ चुप चाप है....
और अब सुनिए रूप कुमार और साधना सरगम की युगल आवाजों में ये शानदार गीत -
हर बात पे हैरान है....(उस्ताद अमजद अली खान साहब ने इस गीत में एक कश्मीरी लोक धुन का खूबसूरत सामंजस्य किया है)
एल्बम वादा के अन्य गीत यहाँ सुनें -
दिल का रसिया...
ऐसा कोई -(सरोद पर)
"बात एक एल्बम की" एक मासिक श्रृंखला है जहाँ हम बात करेंगे किसी एक ख़ास एल्बम की, एक एक कर सुनेंगे उस एल्बम के सभी गीत और जिक्र करेंगे उस एल्बम से जुड़े फनकार/फनकारों की.यदि आप भी किसी ख़ास एल्बम या कलाकार को यहाँ देखना सुनना चाहते हैं तो हमें लिखिए.
फीचर्ड एल्बम ऑफ़ दा मंथ - वादा
फीचर्ड आर्टिस्ट ऑफ़ दा मंथ - उस्ताद अमजद अली खान, गुलज़ार, रूप कुमार राठोड, साधना सरगम.
बात एक एल्बम की में इस माह हम चर्चा कर रहे हैं चार बड़े फनकारों से सजी एल्बम "वादा' के बारे में. गीतकार गुलज़ार और संगीतकार उस्ताद अमजद अली खान साहब के बारे में हम बात कर चुके हैं, आज जिक्र करते हैं इस एल्बम के दो गायक कलाकारों का. इनमें से एक हैं शास्त्रीय संगीत के अहम् स्तम्भ माने जाने वाले पंडित चतुर्भुज राठोड के सुपुत्र और श्रवण राठोड (नदीम श्रवण वाले) और विनोद राठोड के भाई, जी हाँ हम बात कर रहे हैं गायक और संगीतकार रूप कुमार राठोड की. अपने पिता (जिन्हें इंडस्ट्री में कल्याणजी आनंदजी और गायक अनवर के गुरु भी कहा जाता है) के पदचिन्हों पर चलते हुए रूप ने तबला वादन सीखने से अपना संगीत सफ़र शुरू किया. पंकज उधास और अनूप जलोटा के साथ उन्होंने संगत की. श्याम बेनेगल की "भारत एक खोज" में भी उन्होंने तबला वादन किया. १९८४ में अपने इस जूनून को एक तरफ रख उन्होंने गायन की दुनिया में खुद को परखने का अहम् निर्णय लिया ये एक बड़ा "यु-टर्न" था उनके जीवन का. उस्ताद नियाज़ अहमद खान से तालीम लेकर उन्होंने ग़ज़ल गायन से शुरुआत की. पार्श्व गायन में उन्हें लाने का श्रेय जाता है संगीतकार जोड़ी लक्ष्मीकांत प्यारेलाल को, जिन्होंने शशि लाल नायर की फिल्म "अंगार" में उन्हें गाने का मौका दिया. पर असली सफलता उन्हें मिली फिल्म "बॉर्डर" के साथ. अनु मालिक के संगीत निर्देशन में "तो चलूँ" और "संदेसे आते हैं" गीतों ने उन्हें कमियाबी का असली स्वाद चखाया, अनु के साथ उसके बाद भी उन्होंने बहुत बढ़िया और लोकप्रिय गीतों को अपनी आवाज़ से सजाया. "ले चले डोलियों में तुम्हें", "मौला मेरे" और "तुझमें रब दिखता है" उनकी आवाज़ में ढले कुछ ऐसे गीत हैं जिन्हें सुनकर लगता है कि इन्हें इतना सुंदर कोई और गायक गा ही नहीं सकता था. प्राइवेट अल्बम्स में भी उन्होंने जम कर अपनी प्रतिभा का प्रदर्शन किया है. हमारी फीचर्ड एल्बम "वादा" भी इसका अपवाद नहीं है. यकीन न हो तो सुनिए हलकी फुल्की शरारतों और छेड़ छाड़ से गुदगुदाता ये नगमा -
चोरी चोरी की वो झाँखियाँ...
और ये सुनिए मखमली एहसासों से सजे गुलज़ार साहब के "ट्रेड मार्क" शब्दों में गुंथे इस गीत को -
ये सुबह साँस लेगी....
एल्बम वादा से रूप कुमार की आवाज़ में ये नायाब गीत भी हैं -
ऐसा कोई जिंदगी से वादा तो नहीं था...
डूब रहे हो और बहते हो...
रोजे-अव्वल से ही आवारा हूँ....
बढ़ते हैं इस एल्बम के चौथे फनकार की तरफ. इससे पहले की हम उनके बारे में कुछ कहें सुनिए इसी एल्बम से उनकी आवाज़ में ये दर्द भरी ग़ज़ल -
आँखों की हिचकी रूकती नहीं है,
रोने से कब गम हल्का हुआ है...
सीने में टूटी है चीज़ कोई,
खामोश सा एक खटका हुआ है....
वाह.... सुनिए आँखों में सावन अटका हुआ है.....
ये मधुर और चैन से भरी आवाज़ है साधना सरगम की. एक ऐसी गायिका जिनकी आवाज़ और कला का हमारी फिल्म इंडस्ट्री में कभी भी भरपूर इस्तेमाल नहीं हुआ. पंडित जसराज की इस शिष्या में गजब की प्रतिभा है और उनके कायल संगीतकार ए आर रहमान भी हैं. एक ताज़ा साक्षात्कार में रहमान में स्वीकार किया कि वही एकमात्र भारतीय गायिका हैं जो हमेशा उन्हें उम्मीद से बढ़कर परिणाम देती है अपने हर गीत में. इन पक्तियों के लेखक की राय में भी लता मंगेशकर की गायन विरासत को यदि कोई गायिका निभा पायी है तो वो साधना सरगम ही है. फिल्म "लगान" के गीत "ओ पालनहारे" एल्बम में लता की आवाज़ में है पर फिल्म के परदे पर नायिका के लिए साधना की आवाज़ का इस्तेमाल हुआ है, और देखिये लता जी गाये मुखड़े के बाद साधना की आवाज़ में अंतरा आता है और लगता है जैसे दोनों आवाजें एक दूजे में घुल-मिल ही गयी हों. रहमान ने उस साक्षात्कार में यह भी कहा कि वो हर बार अपनी गायिकी से मुझे चौका देती है. वो दिए हुए निर्देशों से भी बढ़कर हर गीत में कुछ ऐसा कर जाती है कि गीत एक स्तर और उपर हो जाता है. चलिए सुनते हैं साधना की आवाज़ में एक और गीत इसी एल्बम से -
सारा जहाँ चुप चाप है....
और अब सुनिए रूप कुमार और साधना सरगम की युगल आवाजों में ये शानदार गीत -
हर बात पे हैरान है....(उस्ताद अमजद अली खान साहब ने इस गीत में एक कश्मीरी लोक धुन का खूबसूरत सामंजस्य किया है)
एल्बम वादा के अन्य गीत यहाँ सुनें -
दिल का रसिया...
ऐसा कोई -(सरोद पर)
"बात एक एल्बम की" एक मासिक श्रृंखला है जहाँ हम बात करेंगे किसी एक ख़ास एल्बम की, एक एक कर सुनेंगे उस एल्बम के सभी गीत और जिक्र करेंगे उस एल्बम से जुड़े फनकार/फनकारों की.यदि आप भी किसी ख़ास एल्बम या कलाकार को यहाँ देखना सुनना चाहते हैं तो हमें लिखिए.
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