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आदित्य प्रकाश की भाषा साधना, कवितांजलि तीसरे वर्ष में

हिन्दी भाषा तथा साहित्य की जितनी सेवा हिन्दी को उच्च-शिक्षा के दरम्यान विषय न रखने वाले हिन्दी-प्रेमियों ने की है, उतनी शायद हिन्दी साहित्य में शोध तक करने वाले हिन्दीविदों ने भी नहीं की। कई हिन्दी प्रेमियों के लिए उनकी भाषा ही खाना-पीना व ओढ़ना-बिछाना है। ऐसे ही एक हिन्दी प्रेमी हैं आदित्य प्रकाश

आदित्य प्रकाश से इंटरनेट पर विचरने वाले ज्यादातर हिन्दी प्रेमी परिचित हैं। डैलास, अमेरिका से और इंटरनेट से चौबीसों घंटे चलने वाले एफ एम चैनल 'रेडियो सलाम नमस्ते' पर हर रविवार स्थानीय समय अनुसार रात्रि 9 बजे उनकी आवाज़ सुनाई देती है। आदित्य प्रकाश अंतराष्ट्रीय हिन्दी समिति की ओर से संकल्पित हिन्दी कविता के विशेष कार्यक्रम 'कवितांजलि' को प्रस्तुत करते हैं। यह कार्यक्रम अपने तीसरे वर्ष में प्रवेश कर चुका है।

'कवितांजलि' की सराहना कई कारणों से ज़रूरी है। भारत में, जहाँ कि हिन्दी बहुत बड़े भूभाग पर बोली जाती है, वहाँ के रेडियो चैनलों या अन्य मीडिया माध्यमों में कवितांजलि जैसे कार्यक्रम नहीं होते। यदि होते भी हैं तो बहुत ही स्थानीय स्तर पर। राष्ट्रीय रेडियो चैनलों में 1-2 कवियों का एकल-पाठ, सुनने वालों को कोई खास आकर्षित नहीं करता, इसलिए कोई सुनता भी नहीं। लेकिन आदित्य प्रकाश ने अपने प्रयासों से हिन्दी कविता के कार्यक्रम को बहुत रोचक और सुनने लायक बना रखा है।

हिन्दी, संस्कृत, नेपाली और अंग्रेजी जैसी भाषाओं पर पकड़ रखने वाले आदित्य प्रकाश प्राणि विज्ञान में एम एस सी करने के बाद भारत और नेपाल में जीव विज्ञान पढ़ाते रहे। पटना में इन्होंने शैरोन पब्लिक स्कूल की स्थापना की और उसके प्रिसिंपल भी रहे। 1998 में ये अमेरिका आ गये और डलास शहर में बस गये। यहाँ एक डिफेन्स फम्पनी के माइक्रोवेब इंजीनियरिंग विभाग में काम करते हुए भी साहित्यिक-सांस्कृतिक गतिविधियों में सक्रिय हैं। शायद हिन्दी भाषा का कोई कर्ज था या स्व-भाषाप्रेम जो विदेश में भी इन्होंने भाषा सेवा नहीं छोड़ी।

कवितांजलि कार्यक्रम को बहुत शुरू से ही आदित्य प्रकाश प्रस्तुत कर रहे हैं और वो भी पूर्णतया बिना किसी धनार्जन के। अपने घर से रेडियो सलाम नमस्ते आने और लौटने तक की यात्रा में जो पेट्रोल उड़ता है, वो खर्च भी नहीं लेते आदित्य प्रकाश। इतना होने के बाद भी इनके समर्पण में कभी कोई कमी नहीं आई। पिछले 2 साल से अनवरत हर रविवार नियत समय पर यह कार्यक्रम होता रहा। कितना सुखद है कि यह कार्यक्रम जीवंत प्रस्तुत होता है। जिसने भी इस कार्यक्रम को सुना आदित्य प्रकाश की आवाज़ में इतना ज़रुर याद रख गया- मंगल कामनाओं का अनवरत राग- यानी कवितांजलि।

इस कार्यक्रम के लिए आदित्य केवल इतना ही नहीं करते। बल्कि अपने खर्चे से दुनिया भर से हिन्दी कवियों को खोजना और उन्हें फोन करने के साथ-साथ उनसे लगातार संपर्क बनाए रखना ताकि इन नवांकुरों लगातार लिखने और भाषा की सेवा करने का प्रोत्साहन मिलता रहे। आदित्य प्रकाश हम हिन्दी कर्मियों के लिए एक प्रेरणा हैं। इनके इस समर्पण का सम्मान अंतर्राष्ट्रीय हिन्दी समिती ने इस वर्ष 'भाषा सेवा सम्मान' देकर किया। इससे पहले भी छत्तीसगढ़ की संस्था सृजन-सम्मान द्वारा इन्हें प्रवासी सम्मान दिया जा चुका है। लेकिन ये सारे सम्मान फीके पड़ जाते हैं जब हम कभी कवितांजलि सुनते हैं और उस कार्यक्रम के श्रोताओं का प्रेम आदित्य प्रकाश के प्रति महसूस करते हैं।

आदित्य प्रकाश के प्रयासों से हमारे भूगोल के अलग-अलग भाग से कवितांजलि में 60 से अधिक कवियों ने अपना राग सुनाया है। कुछ महत्वपूर्ण नामों को गिनाना भी ज़रूरी समझता हूँ-

भारत से- मनीषा कुलश्रेष्ठ (हिन्दी नेस्ट डॉट कॉम की संपादिका), कुमार विश्वास, दीपक गुप्ता, राजेश चेतन, गजेन्द्र सोलंकी, सुरेन्द्र दुबे, सुनील जोगी, पवन दीक्षित, ओम व्यास ओम, उदय भानू हंस, कविता वाचकनवी, दिनेश रघुवंशी, मनोज कुमार मनोज, नलिनी पुरोहित, जयप्रकाश मानस (सृजनगाथा डॉट कॉम के संपादक), मधुमोहिनी मिश्रा, अर्जुन सिसोदिया, सुरेन्द्र अवस्थी, गौरव सोलंकी, विपुल शुक्ला, अनुपमा चौहान, निखिल आनंद गिरि, सुनीता चोटिया, रंजना भाटिया, आलोक शंकर, अनुराग शर्मा, मनीष वंदेमातरम् इत्यादि।

भारत के बाहर से- लावण्या शाह, डॉ॰ अंजना संधीर, अभिनव शुक्ला, सुधा ओम धींगरा, रेखा मैत्रा, प्रो॰ महाकवि हरिशंकर आदेश, डॉ॰ ज्ञान प्रकाश, देवेन्द्र सिंह, अर्चना पाण्डा, शशि पाधा, रेनुका भटनागर, राहुल उपाध्याय, डॉ॰ चमन लाल रैना, दॉ॰ सुषम बेदी, डॉ॰ बिन्देश्वरी अग्रवाल, इला प्रसाद, कुसुम सिन्हा, रेनू राजवंशी, डॉ॰ सुरेन्द्र गम्भीर, प्रो॰ ओलेफन हारमन, सुरेन्द्र तिवारी, रिपुदमन पचौरी, डॉ॰ कमल सिंह, अमरेन्द्र कुमार, सौमित्र सक्सेना, रचना श्रीवास्तवा, वीणा शर्मा, शैलेश मिश्रा इत्यादि।

आज यही आदित्य प्रकाश आवाज़ के श्रोताओं के लिए अपना संदेश लेकर आये हैं। सुनें-



हिन्दी के साथ-साथ आदित्य अमेरिका में भोजपुरी के भी प्रचार-प्रसार में प्रयासरत हैं। सामुदायिक पत्रिकाओं का संपादन भी करते हैं।

हमारा सलाम!!

Comments

आदित्य जी बहुत बहुत बधाई....कवितांजलि में तो आपको अक्सर सुना है....आज आवाज़ के लिए आपके इस विशेष पॉडकास्ट को सुन कर बहुत आनंद आया.....आप युहीं भाषा और साहित्य की सेवा करते रहें.....पूरे आवाज़ परिवार की शुभकामनाएं...
दे आदित्य प्रकाश तो, पल में हो तम दूर.

जो न देख पाए उसे, आप समझिये सूर.

आप समझिये सूर, सुने कवितांजलि वह नित.

कविता का आनंद मिलेगा उसे अपरिमित.

हिंदी हो जग-व्याप्त, तोड़ 'सलिल' भव-पाश को.

पल में हो तम दूर, दे आदित्य प्रकाश तो.
rachana said…
आदित्य जी
कवितांजलि का पहला कार्यक्रम हम ने सुना था .आज इस को २ साल पूरे होने को आये .समय कितनी तेजी से भागता है .और क्यों न हो आप जैसा सारथि जो है .
आप को बहुत बहुत बधाई .ये मशाल बस यूँ ही जलती रहे यही कामना है
सादर
रचना
manu said…
ji aaditya ji,
hamne aapko bahut jyaada to nahi sunaa par shailesh waale interwiue par khoob sunaa thaa aur bahut saraahaa bhi tha,,,,,
udghoshak ki sahi sence hai aap main,,,,,
ek dam sahi tareekaa ,,,kuchh bhi pesh karne kaa,,,,
waah.........!!!!!!!
veena sharma said…
मैं तो बस इतना ही कहूँगी कि "व्यर्थ ही जन्मा जगाया भाषा को जिसने नहीं "
आदित्य प्रकाशजी आप तो "धरती के ध्रुव तारे बन गए हैं और अपने दिव्य प्रकाश से प्रकाशमय हो रहे हैं ".
रचना ! तुम तो स्वयं मैं ही एक रचना हो और सब के दिलों मैं रच बस सी गयी हो
हार्दिक शुभ कामनाओं सहित
वीणा
जैसे आकाश वाणी लोगों की आवाज़ को तरंगित कर सब के कानों मे हिलोरें प्रदान कर देती है---, ऐसे ही आदित्य प्रकाश की पल्लवित म4ुर, सुरभित वाणी श्रोताओं के मनों को लुभा कर आनन्दित कर देती है ।वाह! कितनी मधुर भाषा कितना मधुर बोल----, धन्य है, भारत जननी जिसके एक सपूत ने सुदूर सात समुद्र पार कर के भारत की राष्ट्र भाषा को कविताञ्जली के कार्यक्रम द्वारा प्रसारण करते हुये पु नः जगमगाया।
जया सिबू
मयामी फ्लोरिड --यू एस ए।
फेलो,
भगवान गोपीनाथ शोध संस्थान
neelam said…
aaditya ji ,

aapke baare me jaana achcha laga ki

door desh ke log desh ki mitti se

kitna apne aap ko jodkar rakhna

chaahte hain aap iski ek misaal

hain ek baat aur jo paasrvsangeet
hai wo bhi bahut karnpriya hai
.ek baar phir se aapka aabhar

vyakt karti hoon aap wahan rahkar
bhi hindi ko jan jan tak
pahuchaane ka jo puneet kary kar
rahe hain usme aap hamesha safal
hi hote rahen
Chanchala said…
Congratulations!!!!, Being a family member i am so very proud of you,it was nice listening to you and also about you.

With best wishes.......
कविताञ्जली का कार्यक्रम वस्तुतः हिन्दी प्रेमियों को एक सूत्र में बान्धने का रेडियोयायी प्रबंध है ओर प्रयास भी। इस के सूत्रधार बने हैं श्री आदित्य प्रकाश जी। उन्होंने "वेब--सर्च" के द्वारा "रेडियो सलाम-नमस्ते" से मुझे ही नही अपितुः मेरी ११ वर्षीया पोती विभासा को भी जोड़ लिया। हिन्दी के सेवा करना हम सभी का कर्तव्य है--,चाहे हिन्दी हमारी मातृभाष हो अथवा नहीं। क्योंकि हिन्दी भारत के वासियों की राष्ट्र भाषा तो है। मैं अहिन्दी प्रान्त से सम्बन्ध रखता हूं परन्तु हिन्दी में रुचि रखने के लिये मैंने हिन्दी में टाइप करना भी सीख लिया ओर हिन्दी में आदित्य जी से ही अणु- A 4ाक पर हिन्दी की सेवा कैसे की जाये कविताञ्जली को कैसे हिन्दी भाषियों के पास पहुंचाया जाये---, यही विषय बनता रहता है। आदित्य जी की आवाज़ अपने आप में ईश्वर का वरदान है। कविताञ्जली प्रोग्राम में इनकी आवाज़ सुन के लगता है कि हम अमेरिका में रहते हुए भी भारत के साथ ही जुडे हैं।
कविताञ्जली कहो या काव्याञ्जली
इसमें प्यार है मुहब्बत है
देश प्रेम है, साहित्य की विवेचना भी
भावी पीढ़ि के लिये वरदान भी
वस्तुतः हृदय की आवाज़ है --
कार्यक्रम कविताञ्जली !

--चमन लाल रैना
फ्लोरिडा
Chamanlal Raina
aditya said…
आप सब को धन्यवाद ,
आपने पढा,सुना और सराहा ,भाषा के प्रति अनुराग ही भाषा,साहित्य एवं संस्कृति को
जीवंत बना कर रखती है |अमेरिका में हिंदी का शिशु स्वर व्यक्तिगत प्रयासों से आने वाले दिनों में
एक मंगल निनाद बन कर गूंजे यही अपेक्षा है |
पुन: सादर धन्यवाद ,
आदित्य प्रकाश,डलास ,
अपनी माटी से दूर होते हुए भी हिन्दी के प्रचार-प्रसार और उन्नति के लिए आदित्य जी की तरह बढ़-चढ़कर काम करना कोई आसान बात नहीं है, उन्हें और कवितांजलि को मेरी और से शुभकामनाएं!
vani sharma said…
आदित्य जी ,
नमस्कार... आज पहली बार आपको कवितांजलि में सुना ...अपने देश से दूर रहकर भी अपनी राष्ट्र भाषा के प्रति आपका लगाव सराहनीय है...क्या हम भारत में रहनेवाले भारतवासी आपसे कुछ सीखेंगे ..???

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