ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 77
दोस्तों, कुछ अभिनेता ऐसे होते हैं जिन्हे परदे पर देखते ही जैसे गुदगुदी सी होने लगती है। और कुछ अभिनेत्रियाँ ऐसी हैं जिनका नाम दर्द और संजीदे चरित्रों का पर्याय है। अब अगर ऐसे एक हास्य अभिनेता के साथ ऐसी कोई संजीदे और दर्दीले चरित्र निभानेवाली अभिनेत्री की जोड़ी किसी फ़िल्म में बना दी जाए तो कैसा हो? जी हाँ, किशोर कुमार और मीना कुमारी की जोड़ी भी एक ऐसी ही जोड़ी रही है और ये दोनो साथ साथ नज़र आए थे १९५६ में के. अमरनाथ की फ़िल्म 'नया अंदाज़' में। १९५६ में संगीतकार ओ. पी. नय्यर के संगीत से सजी कुल ८ फ़िल्में आयीं - भागमभाग, सी. आई. डी, छूमंतर, ढाके की मलमल, हम सब चोर हैं, मिस्टर लम्बु, श्रीमती ४२०, और नया अंदाज़। हालाँकी नय्यर साहब और किशोर कुमार का साथ बहुत ज़्यादा नहीं रहा है, बावजूद इसके इन दोनो ने एक साथ कई यादगार फ़िल्में की हैं और तीन फ़िल्में तो इसी साल यानी कि १९५६ में ही आयी थी - भागमभाग, ढाके की मलमल, और नया अंदाज़। इससे पहले इन दोनो ने साथ साथ १९५२ की फ़िल्म 'छम छमा छम' और १९५५ में 'बाप रे बाप' में काम किया था। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में ओ. पी. नय्यर और किशोर कुमार के इसी अदभुत जोड़ी को सलाम करते हुए 'नया अंदाज़' फ़िल्म का एक युगल-गीत पेश है "मेरी नींदों में तुम मेरे ख़्वाबों में तुम, हो चुके हम तुम्हारी मोहब्बत में गुम"।
अभी अभी हमने इस बात का ज़िक्र किया था कि किस तरह से किशोर कुमार और मीना कुमारी एक दूसरे से बिल्कुल विपरित शैली के अभिनेता होते हुए भी इस फ़िल्म में साथ साथ नज़र आये। ठीक इसी तरह से इस गीत को गानेवाले कलाकारों की जोड़ी भी बड़ी अनोखी है। किशोर कुमार और शमशाद बेग़म, जी हाँ, इन दोनो ने साथ साथ इतने कम गाने गाये हैं कि इन दोनो को एक साथ गाते हुए सुनना भी एक अनोखा अनुभव है। विविध भारती के 'दास्तान-ए-नय्यर' कार्यक्रम में जब नय्यर साहब से यह पूछा गया कि "यह जो 'काम्बिनेशन' है किशोर कुमार और शमशाद बेग़म का, बिल्कुल 'इम्पासिबल' सा लगता है", तो उन्होने कहा, "सुनने में फिर कैसे 'पासिबल' लगता है! साहब, यही बस 'काम्पोसर' के पैंतरें हैं, और पंजाबी में कहते हैं कि "लल्लु करे क़व्वालियाँ रब सिद्धियाँ पाये", तो हम तो भगवान के लल्लु पैदा हुए हैं, उसने जो कराया करा दिया।" तो लीजिये सुनिए गीतकार जाँ निसार अख्तर का लिखा रूमानियत से भरपूर यह नरमोनाज़ुक दोगाना। गाने में 'पियानो' का बड़ा ही ख़ूबसूरत इस्तेमाल किया है नय्यर साहब ने। 'पियानो' से याद आया कि नय्यर साहब अपने गीतों की धुनें हमेशा 'पियानो' पर बैठकर ही बनाया करते थे।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. तलत - लता का एक नायाब युगल गीत.
२. संगीतकार हैं हंसराज बहल.
३. मुखड़े में शब्द युगल है - "सपने सुहाने".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
सुमित जी इस बार आप चूक गए, आपने जिस गीत का जिक्र किया वो तो अमित कुमार ने गाया है....एक बार फिर पराग जी ने बाज़ी मारी...बहुत बहुत बधाई...विजय तिवारी जी आपका भी महफिल में स्वागत है...गजेन्द्र जी, आप ई-चिट्ठी का इंतज़ार न कर भारतीय समयानुसार शाम 6 से 7 बजे के बीच सीधे आवाज़ पहुँच जाया करें, तब आप भी पहले विजेता हो सकते हैं...
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
दोस्तों, कुछ अभिनेता ऐसे होते हैं जिन्हे परदे पर देखते ही जैसे गुदगुदी सी होने लगती है। और कुछ अभिनेत्रियाँ ऐसी हैं जिनका नाम दर्द और संजीदे चरित्रों का पर्याय है। अब अगर ऐसे एक हास्य अभिनेता के साथ ऐसी कोई संजीदे और दर्दीले चरित्र निभानेवाली अभिनेत्री की जोड़ी किसी फ़िल्म में बना दी जाए तो कैसा हो? जी हाँ, किशोर कुमार और मीना कुमारी की जोड़ी भी एक ऐसी ही जोड़ी रही है और ये दोनो साथ साथ नज़र आए थे १९५६ में के. अमरनाथ की फ़िल्म 'नया अंदाज़' में। १९५६ में संगीतकार ओ. पी. नय्यर के संगीत से सजी कुल ८ फ़िल्में आयीं - भागमभाग, सी. आई. डी, छूमंतर, ढाके की मलमल, हम सब चोर हैं, मिस्टर लम्बु, श्रीमती ४२०, और नया अंदाज़। हालाँकी नय्यर साहब और किशोर कुमार का साथ बहुत ज़्यादा नहीं रहा है, बावजूद इसके इन दोनो ने एक साथ कई यादगार फ़िल्में की हैं और तीन फ़िल्में तो इसी साल यानी कि १९५६ में ही आयी थी - भागमभाग, ढाके की मलमल, और नया अंदाज़। इससे पहले इन दोनो ने साथ साथ १९५२ की फ़िल्म 'छम छमा छम' और १९५५ में 'बाप रे बाप' में काम किया था। आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में ओ. पी. नय्यर और किशोर कुमार के इसी अदभुत जोड़ी को सलाम करते हुए 'नया अंदाज़' फ़िल्म का एक युगल-गीत पेश है "मेरी नींदों में तुम मेरे ख़्वाबों में तुम, हो चुके हम तुम्हारी मोहब्बत में गुम"।
अभी अभी हमने इस बात का ज़िक्र किया था कि किस तरह से किशोर कुमार और मीना कुमारी एक दूसरे से बिल्कुल विपरित शैली के अभिनेता होते हुए भी इस फ़िल्म में साथ साथ नज़र आये। ठीक इसी तरह से इस गीत को गानेवाले कलाकारों की जोड़ी भी बड़ी अनोखी है। किशोर कुमार और शमशाद बेग़म, जी हाँ, इन दोनो ने साथ साथ इतने कम गाने गाये हैं कि इन दोनो को एक साथ गाते हुए सुनना भी एक अनोखा अनुभव है। विविध भारती के 'दास्तान-ए-नय्यर' कार्यक्रम में जब नय्यर साहब से यह पूछा गया कि "यह जो 'काम्बिनेशन' है किशोर कुमार और शमशाद बेग़म का, बिल्कुल 'इम्पासिबल' सा लगता है", तो उन्होने कहा, "सुनने में फिर कैसे 'पासिबल' लगता है! साहब, यही बस 'काम्पोसर' के पैंतरें हैं, और पंजाबी में कहते हैं कि "लल्लु करे क़व्वालियाँ रब सिद्धियाँ पाये", तो हम तो भगवान के लल्लु पैदा हुए हैं, उसने जो कराया करा दिया।" तो लीजिये सुनिए गीतकार जाँ निसार अख्तर का लिखा रूमानियत से भरपूर यह नरमोनाज़ुक दोगाना। गाने में 'पियानो' का बड़ा ही ख़ूबसूरत इस्तेमाल किया है नय्यर साहब ने। 'पियानो' से याद आया कि नय्यर साहब अपने गीतों की धुनें हमेशा 'पियानो' पर बैठकर ही बनाया करते थे।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. तलत - लता का एक नायाब युगल गीत.
२. संगीतकार हैं हंसराज बहल.
३. मुखड़े में शब्द युगल है - "सपने सुहाने".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
सुमित जी इस बार आप चूक गए, आपने जिस गीत का जिक्र किया वो तो अमित कुमार ने गाया है....एक बार फिर पराग जी ने बाज़ी मारी...बहुत बहुत बधाई...विजय तिवारी जी आपका भी महफिल में स्वागत है...गजेन्द्र जी, आप ई-चिट्ठी का इंतज़ार न कर भारतीय समयानुसार शाम 6 से 7 बजे के बीच सीधे आवाज़ पहुँच जाया करें, तब आप भी पहले विजेता हो सकते हैं...
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
अगली पहेली का जवाब थोडी देर के बाद लिखूंगा.
आप का आभारी
पराग
सादर
रचना
आपका स्वागत है,,,,,,
फिल्म तो जाने कौन सी है,,,पर ये गीत कुछ सुना सुना सा लग रहा है,,,,,तलत और लता का ही है शायद,,,,यही होगा,,,
बाकी किशोर और शमशाद का ये गीत बेहद बेहद प्रिय है मुझे,,,,,
कितने प्यार से बोला है शमशाद ने,,,
मन की वीणा की धुन तो बलम आज सुन,
मेरी नजरों ने तुझको लिया याज चुन,,,
बहुत रसीला गीत,,,,
talat mahmood ka naam to dekha hi nahi tha .
shmshaad begum ke sadabahaar gaane
boojh mera kya naam re
ghabra ke hum sar ko takraayen to achcha ho ,etc etc behad hi pyaare gaane gaye hain unhone.
हार्दिक शुभेच्छा के साथ
पराग
"घबरा के जो हम सर को टकराए" गाया है राजकुमारी दुबे जी ने फिल्म महल के लिए.
पराग
सबसे पहले हमारे भी जेहन में यही आया था नीलम जी,,,,,पर तलत नहीं है ना इसमें,,,सो रचना जी वाला भी कुछ सुना सूना सा लगा,,,,,
एक नै जानकारी के लिए धन्यवाद पराग जी,,,
मुझे खुशी है की आप को मेरी टिप्पणियां पसंद आयी. मेरी कोशिश रहेगी की मैं ऐसी छोटी छोटी बातें लिखता रहूँ.
धन्यवाद
पराग