अब तक आपने पढ़ा -
आनंद आश्रम से शुरू हुआ सफ़र...., हावड़ाब्रिज से कश्मीर की कली तक... ,रोमांटिक फिल्मों के दौर में आराधना की धूम..., और अमर प्रेम, अजनबी और अनुराग जैसी कामियाब फिल्मों का सफ़र अब पढें आगे....
शक्ति सामंत को समर्पित 'आवाज़' की यह प्रस्तुति "सफल हुई तेरी आराधना" एक प्रयास है शक्तिदा के 'फ़िल्मोग्राफी' को बारीक़ी से जानने का और उनके फ़िल्मों के सदाबहार 'हिट' गीतों को एक बार फिर से सुनने का। पिछले अंक में हमने ज़िक्र किया था १९७४ की फ़िल्म 'अजनबी' का। आइए अब आगे बढ़ते हैं और क़दम रखते हैं सन १९७५ में। यह साल भी शक्तिदा के लिए एक महत्वपूर्ण साल रहा, इसी साल आयी फ़िल्म 'अमानुष' जिसका निर्माण व निर्देशन दोनो ही उन्होने किया। पहली बार बंगला के सर्वोत्तम नायक उत्तम कुमार को लेकर उन्होने यह फ़िल्म बनायी, साथ में थीं उनकी प्रिय अभिनेत्री शर्मिला। इसी फ़िल्म के बारे में बता रहे हैं ख़ुद शक्तिदा - "१९७२ में कलकत्ता में 'नक्सालाइट' का बहुत ज़्यादा 'प्राबलेम' शुरु हो गया था। कलकत्ता फ़िल्म इंडस्ट्री का बुरा हाल था। उससे पहले उत्तमदा ने एक 'पिक्चर' यहाँ बनाई थी 'छोटी सी मुलाक़ात' जो शायद अच्छी नहीं चली थी, या जो भी थी, 'He couldn't establish himself yet'। तो एक दिन रात को उन्होने ऐसे ही कह दिया कि 'क्या मैं दोबारा यहाँ पे आ नहीं सकता हूँ?' मैने कहा 'ज़रूर, मैं आपको लेकर एक 'पिक्चर' बनाउँगा'। तो मैने सोचा कि यह बंगला 'पिक्चर' है तो ज़्यादातर 'आर्टिस्ट्स' वहीं के ले लूँ। कुछ यहाँ के 'आर्टिस्ट्स' को छोड़कर सब वहाँ के 'आर्टिस्ट्स' को मैने लिया। और भगवान की दया से वह पिक्चर भी चल पड़ी।"
'अमानुष' फ़िल्म की 'शूटिंग भी रोमांच से भरा हुआ था। इस फ़िल्म को 'शूट' करने के लिए शक्तिदा अपनी पूरी टीम को लेकर बंगाल के सामुद्रिक इलाके 'सुंदरबन' गए जो 'रायल बेंगाल टाइगर' के लिए प्रसिद्ध है। पूरी टीम के लिए वह एक अविस्मरणीय यात्रा रही। वहाँ पर सिर्फ़ एक ऐसी जगह थी जहाँ शेर नहीं आ सकते थे। एक छोटा सा द्वीप जिसके चारों तरफ़ सिर्फ़ पानी ही पानी। वहाँ पर १५० लोगों के रहने लायक तंबू लगाये गये थे और 'मोटर बोट्स' की सहायता से सामानों का आवाजाही हो रहा था। उन लोगों ने साफ़ देखा की पानी में छोटी छोटी 'शार्क' मछलियाँ तैर रही हैं। इसलिए उन्हे यह निर्देश था कि कोई भी पानी में ना उतरें। साथ ही यह भी बताया गया था कि रात में कोई तंबू से बाहर ना निकले, यहाँ तक कि हाथ भी तंबू से बाहर ना निकालें क्युंकि एक ताज़े माँस के टुकड़े के लिए ख़ूंखार शेर पानी में डुबकी लगाए छुपे होते हैं। 'अमानुष' के शुरुआती दिनों में शक्तिदा उत्तम कुमार के घर ख़ूब जाया करते थे। उन्ही के घर पर वो गायक संगीतकार श्यामल मित्रा से मिले, और वहीं पर उन्होने श्यामलदा से निवेदन किया कि वो इस फ़िल्म के गीतों को स्वरबद्ध करें। श्यामल मित्रा इस बात पर राज़ी हुए कि गीतों के बोल अच्छे स्तर के होने चाहिए।
गीत: दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा (अमानुष)
'अमानुष' फ़िल्म में गीत लिखे थे इंदीवर साहब ने। कितनी अजीब बात है कि 'अमानुष' के इस 'हिट' गीत के लिए गीतकार इंदीवर और गायक किशोर कुमार को 'फ़िल्म-फ़ेयर अवार्ड' से सम्मानित किया गया, लेकिन संगीतकार श्यामल मित्रा वंचित रह गये। ख़ुशी फिर भी इस बात की रही कि हिंदी फ़िल्मों के पहली ब्रेक में ही उन्होने अपार सफलता हासिल की। हिंदी फ़िल्मों में आने से पहले वे बंगाल के जानेमाने गायक और संगीतकार बन चुके थे। फ़िल्म 'अमानुष' में इस तरह के असाधारण गाने लिखने के बाद शक्तिदा इंदीवर साहब के 'फ़ैन' बन गए। लेकिन क्या आपको पता है कि इंदीवर का लिखा कौन सा गाना शक्तिदा को सबसे ज़्यादा पसंद था? वह गीत था १९५४ की फ़िल्म 'बादबान' का। यह गीत सुनने से पहले आपको यह भी बता दें कि इस फ़िल्म के संवाद और स्क्रीनप्ले शक्तिदा ने ख़ुद लिखे थे जो उन दिनो निर्देशक फणी मजुमदार के सहायक के रूप में काम कर रहे थे बौम्बे टाकीज़ में। बौम्बे टाकीज़ की आर्थिक अवस्था बहुत ख़राब हो चुकी थी। यह फ़िल्म इस कंपनी में काम करने वाले मज़दूरों के लिए बनाई गयी थी, जिसके लिए किसी भी कलाकार ने कोई पैसे नहीं लिए। अशोक कुमार, देव आनंद, लीला चिटनिस, उषा किरन जैसे कलाकारों ने इस फ़िल्म में काम किया था। संगीतकार थे तिमिर बरन और एस. के पाल। अभी उपर इंदीवर के लिखे जिस गीत का ज़िक्र हम कर रहे थे, उसे गाया था गीता दत्त ने, और एक वर्ज़न हेमन्त कुमार की आवाज़ में भी था। सुनिए गीताजी की वेदना भरी आवाज़ में "कैसे कोई जीये ज़हर है ज़िंदगी"।
गीत: कैसे कोई जियें ज़हर है ज़िंदगी (बादबान)
अमानुष के बाद ७० के दशक के आख़िर के चंद सालों में भी शक्तिदा के फ़िल्मों का जादू वैसा ही बरक़रार रहा। निर्माता-निर्देशक के रूप मे १९७७ मे उनकी फ़िल्म आयी 'आनंद आश्रम' जो 'अमानुष' की ही तरह बंगाल के पार्श्वभूमि पर बनाया गया था। इस फ़िल्म का निर्माण बंगला में भी किया गया था, और इस फ़िल्म मे भी उत्तम कुमार और शर्मिला टैगोर ने अभिनय किया था। बतौर निर्माता, शक्तिदा ने १९७६ मे फ़िल्म 'बालिका बधु' का निर्माण किया, जिसका एक बार फिर बंगाल की धरती से ताल्लुख़ था। शरतचंद्र की बंगला उपन्यास पर आधारित इस फ़िल्म को निर्देशित किया था तरु मजुम्दार ने और फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे सचिन और रजनी शर्मा। गाने लिखे आनंद बक्शी ने और संगीत दिया राहुल देव बर्मन ने। इस फ़िल्म मे आशा भोसले, मोह्द रफ़ी, किशोर कुमार, अमित कुमार और चंद्राणी मुखर्जी ने तो गीत गाये ही थे, ख़ास बात यह है कि इस फ़िल्म मे आनद बक्शी, आर.डी. बर्मन और उनके सहायक और गायक सपन चक्रवर्ती ने भी गानें गाये, और वह भी अलग अलग एकल गीत। इस फ़िल्म का मशहूर होली गीत हमने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' मे आपको सुनवा ही चुके हैं। बतौर निर्देशक, शक्तिदा ने १९७६ मे 'महबूबा', १९७७ में 'अनुरोध' और १९७९ मे 'दि ग्रेट गैम्बलर' जैसी सफल फ़िल्मों का निर्देशन किया। ये सभी फ़िल्में अपने ज़माने की सुपरहिट फ़िल्में रहीं हैं। वह दौर ऐसा था दोस्तों कि सफल फ़िल्में कहें या शक्तिदा की फ़िल्में कहें, मतलब एक ही निकलता था।
गीत: आप के अनुरोध पे मैं यह गीत सुनाता हूँ (अनुरोध)
८० के दशक के आते आते फ़िल्मों का मिज़ाज बदलने लगा था। कोमलता फ़िल्मों से विलुप्त होती जा रही थी और उनकी जगह ले रहा था 'ऐक्शन' फ़िल्में। बावजूद इस बदलती मिज़ाज के, शक्तिदा ने अपना वही अंदाज़ बरक़रार रखा। इस दशक मे जिन हिंदी फ़िल्मों के वो निर्माता-निर्देशक बने, वो फ़िल्में थीं 'बरसात की एक रात', 'अय्याश', और 'आर-पार'। इन फ़िल्मों के अलावा उन्होने 'आमने सामने', 'मैं आवारा हूँ', 'पाले ख़ान' और 'आख़िरी बाज़ी' जैसी फ़िल्मों का निर्माण किया, तथा 'ख़्वाब', 'आवाज़', और 'अलग अलग' जैसी फ़िल्मों का निर्देशन भी किया। ९० के दशक मे 'गीतांजली' फ़िल्म के वो निर्माता-निर्देशक रहे, तथा 'आँखों में तुम हो' का निर्माण किया व 'दुश्मन' का निर्देशन किया।
शक्ति दा आज इतनी दूर चले गये हैं लेकिन जो काम वो कर गये हैं, उसकी लौ हमेशा नयी पीढ़ी को राह दिखाती रहेगी, नये फ़िल्मकारों को अच्छी फ़िल्में बनाने की प्रेरणा प्रदान करती रहेगी। दूसरे शब्दों में उनकी आराधना ज़रूर सफल होगी। चलते चलते उनकी फ़िल्म 'आनंद आश्रम' के शीर्षक गीत का मुखड़ा याद आ रहा है "सफल वही जीवन है, औरों के लिए जो अर्पण है"। शक्तिदा ने भी अपना पूरा जीवन फ़िल्म जगत को और पूरे समाज को सीख देनेवाली अच्छी अच्छी फ़िल्में देते हुए गुज़ार दिये। शक्तिदा को हिंद युग्म की तरफ़ से भावभीनी श्रद्धाजंली।
५ अंकों के इस पूरे आलेख को तैयार करने में विविध भारती के निम्नलिखित कार्यक्रमों से जानकारियाँ बटोरी गयीं:
१. युनूस ख़ान द्वारा प्रस्तुत शक्तिदा को श्रद्धांजलि - "सफल होगी तेरी आराधना"
२. कमल शर्मा से की गयी शक्तिदा की लम्बी बातचीत - "उजाले उनकी यादों के"
३. शक्तिदा द्वारा प्रस्तुत फ़ौजी भाइयों के लिए "विशेष जयमाला" कार्यक्रम
प्रस्तुति: सुजॉय चटर्जी
समाप्त
आनंद आश्रम से शुरू हुआ सफ़र...., हावड़ाब्रिज से कश्मीर की कली तक... ,रोमांटिक फिल्मों के दौर में आराधना की धूम..., और अमर प्रेम, अजनबी और अनुराग जैसी कामियाब फिल्मों का सफ़र अब पढें आगे....
शक्ति सामंत को समर्पित 'आवाज़' की यह प्रस्तुति "सफल हुई तेरी आराधना" एक प्रयास है शक्तिदा के 'फ़िल्मोग्राफी' को बारीक़ी से जानने का और उनके फ़िल्मों के सदाबहार 'हिट' गीतों को एक बार फिर से सुनने का। पिछले अंक में हमने ज़िक्र किया था १९७४ की फ़िल्म 'अजनबी' का। आइए अब आगे बढ़ते हैं और क़दम रखते हैं सन १९७५ में। यह साल भी शक्तिदा के लिए एक महत्वपूर्ण साल रहा, इसी साल आयी फ़िल्म 'अमानुष' जिसका निर्माण व निर्देशन दोनो ही उन्होने किया। पहली बार बंगला के सर्वोत्तम नायक उत्तम कुमार को लेकर उन्होने यह फ़िल्म बनायी, साथ में थीं उनकी प्रिय अभिनेत्री शर्मिला। इसी फ़िल्म के बारे में बता रहे हैं ख़ुद शक्तिदा - "१९७२ में कलकत्ता में 'नक्सालाइट' का बहुत ज़्यादा 'प्राबलेम' शुरु हो गया था। कलकत्ता फ़िल्म इंडस्ट्री का बुरा हाल था। उससे पहले उत्तमदा ने एक 'पिक्चर' यहाँ बनाई थी 'छोटी सी मुलाक़ात' जो शायद अच्छी नहीं चली थी, या जो भी थी, 'He couldn't establish himself yet'। तो एक दिन रात को उन्होने ऐसे ही कह दिया कि 'क्या मैं दोबारा यहाँ पे आ नहीं सकता हूँ?' मैने कहा 'ज़रूर, मैं आपको लेकर एक 'पिक्चर' बनाउँगा'। तो मैने सोचा कि यह बंगला 'पिक्चर' है तो ज़्यादातर 'आर्टिस्ट्स' वहीं के ले लूँ। कुछ यहाँ के 'आर्टिस्ट्स' को छोड़कर सब वहाँ के 'आर्टिस्ट्स' को मैने लिया। और भगवान की दया से वह पिक्चर भी चल पड़ी।"
'अमानुष' फ़िल्म की 'शूटिंग भी रोमांच से भरा हुआ था। इस फ़िल्म को 'शूट' करने के लिए शक्तिदा अपनी पूरी टीम को लेकर बंगाल के सामुद्रिक इलाके 'सुंदरबन' गए जो 'रायल बेंगाल टाइगर' के लिए प्रसिद्ध है। पूरी टीम के लिए वह एक अविस्मरणीय यात्रा रही। वहाँ पर सिर्फ़ एक ऐसी जगह थी जहाँ शेर नहीं आ सकते थे। एक छोटा सा द्वीप जिसके चारों तरफ़ सिर्फ़ पानी ही पानी। वहाँ पर १५० लोगों के रहने लायक तंबू लगाये गये थे और 'मोटर बोट्स' की सहायता से सामानों का आवाजाही हो रहा था। उन लोगों ने साफ़ देखा की पानी में छोटी छोटी 'शार्क' मछलियाँ तैर रही हैं। इसलिए उन्हे यह निर्देश था कि कोई भी पानी में ना उतरें। साथ ही यह भी बताया गया था कि रात में कोई तंबू से बाहर ना निकले, यहाँ तक कि हाथ भी तंबू से बाहर ना निकालें क्युंकि एक ताज़े माँस के टुकड़े के लिए ख़ूंखार शेर पानी में डुबकी लगाए छुपे होते हैं। 'अमानुष' के शुरुआती दिनों में शक्तिदा उत्तम कुमार के घर ख़ूब जाया करते थे। उन्ही के घर पर वो गायक संगीतकार श्यामल मित्रा से मिले, और वहीं पर उन्होने श्यामलदा से निवेदन किया कि वो इस फ़िल्म के गीतों को स्वरबद्ध करें। श्यामल मित्रा इस बात पर राज़ी हुए कि गीतों के बोल अच्छे स्तर के होने चाहिए।
गीत: दिल ऐसा किसी ने मेरा तोड़ा (अमानुष)
'अमानुष' फ़िल्म में गीत लिखे थे इंदीवर साहब ने। कितनी अजीब बात है कि 'अमानुष' के इस 'हिट' गीत के लिए गीतकार इंदीवर और गायक किशोर कुमार को 'फ़िल्म-फ़ेयर अवार्ड' से सम्मानित किया गया, लेकिन संगीतकार श्यामल मित्रा वंचित रह गये। ख़ुशी फिर भी इस बात की रही कि हिंदी फ़िल्मों के पहली ब्रेक में ही उन्होने अपार सफलता हासिल की। हिंदी फ़िल्मों में आने से पहले वे बंगाल के जानेमाने गायक और संगीतकार बन चुके थे। फ़िल्म 'अमानुष' में इस तरह के असाधारण गाने लिखने के बाद शक्तिदा इंदीवर साहब के 'फ़ैन' बन गए। लेकिन क्या आपको पता है कि इंदीवर का लिखा कौन सा गाना शक्तिदा को सबसे ज़्यादा पसंद था? वह गीत था १९५४ की फ़िल्म 'बादबान' का। यह गीत सुनने से पहले आपको यह भी बता दें कि इस फ़िल्म के संवाद और स्क्रीनप्ले शक्तिदा ने ख़ुद लिखे थे जो उन दिनो निर्देशक फणी मजुमदार के सहायक के रूप में काम कर रहे थे बौम्बे टाकीज़ में। बौम्बे टाकीज़ की आर्थिक अवस्था बहुत ख़राब हो चुकी थी। यह फ़िल्म इस कंपनी में काम करने वाले मज़दूरों के लिए बनाई गयी थी, जिसके लिए किसी भी कलाकार ने कोई पैसे नहीं लिए। अशोक कुमार, देव आनंद, लीला चिटनिस, उषा किरन जैसे कलाकारों ने इस फ़िल्म में काम किया था। संगीतकार थे तिमिर बरन और एस. के पाल। अभी उपर इंदीवर के लिखे जिस गीत का ज़िक्र हम कर रहे थे, उसे गाया था गीता दत्त ने, और एक वर्ज़न हेमन्त कुमार की आवाज़ में भी था। सुनिए गीताजी की वेदना भरी आवाज़ में "कैसे कोई जीये ज़हर है ज़िंदगी"।
गीत: कैसे कोई जियें ज़हर है ज़िंदगी (बादबान)
अमानुष के बाद ७० के दशक के आख़िर के चंद सालों में भी शक्तिदा के फ़िल्मों का जादू वैसा ही बरक़रार रहा। निर्माता-निर्देशक के रूप मे १९७७ मे उनकी फ़िल्म आयी 'आनंद आश्रम' जो 'अमानुष' की ही तरह बंगाल के पार्श्वभूमि पर बनाया गया था। इस फ़िल्म का निर्माण बंगला में भी किया गया था, और इस फ़िल्म मे भी उत्तम कुमार और शर्मिला टैगोर ने अभिनय किया था। बतौर निर्माता, शक्तिदा ने १९७६ मे फ़िल्म 'बालिका बधु' का निर्माण किया, जिसका एक बार फिर बंगाल की धरती से ताल्लुख़ था। शरतचंद्र की बंगला उपन्यास पर आधारित इस फ़िल्म को निर्देशित किया था तरु मजुम्दार ने और फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे सचिन और रजनी शर्मा। गाने लिखे आनंद बक्शी ने और संगीत दिया राहुल देव बर्मन ने। इस फ़िल्म मे आशा भोसले, मोह्द रफ़ी, किशोर कुमार, अमित कुमार और चंद्राणी मुखर्जी ने तो गीत गाये ही थे, ख़ास बात यह है कि इस फ़िल्म मे आनद बक्शी, आर.डी. बर्मन और उनके सहायक और गायक सपन चक्रवर्ती ने भी गानें गाये, और वह भी अलग अलग एकल गीत। इस फ़िल्म का मशहूर होली गीत हमने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' मे आपको सुनवा ही चुके हैं। बतौर निर्देशक, शक्तिदा ने १९७६ मे 'महबूबा', १९७७ में 'अनुरोध' और १९७९ मे 'दि ग्रेट गैम्बलर' जैसी सफल फ़िल्मों का निर्देशन किया। ये सभी फ़िल्में अपने ज़माने की सुपरहिट फ़िल्में रहीं हैं। वह दौर ऐसा था दोस्तों कि सफल फ़िल्में कहें या शक्तिदा की फ़िल्में कहें, मतलब एक ही निकलता था।
गीत: आप के अनुरोध पे मैं यह गीत सुनाता हूँ (अनुरोध)
८० के दशक के आते आते फ़िल्मों का मिज़ाज बदलने लगा था। कोमलता फ़िल्मों से विलुप्त होती जा रही थी और उनकी जगह ले रहा था 'ऐक्शन' फ़िल्में। बावजूद इस बदलती मिज़ाज के, शक्तिदा ने अपना वही अंदाज़ बरक़रार रखा। इस दशक मे जिन हिंदी फ़िल्मों के वो निर्माता-निर्देशक बने, वो फ़िल्में थीं 'बरसात की एक रात', 'अय्याश', और 'आर-पार'। इन फ़िल्मों के अलावा उन्होने 'आमने सामने', 'मैं आवारा हूँ', 'पाले ख़ान' और 'आख़िरी बाज़ी' जैसी फ़िल्मों का निर्माण किया, तथा 'ख़्वाब', 'आवाज़', और 'अलग अलग' जैसी फ़िल्मों का निर्देशन भी किया। ९० के दशक मे 'गीतांजली' फ़िल्म के वो निर्माता-निर्देशक रहे, तथा 'आँखों में तुम हो' का निर्माण किया व 'दुश्मन' का निर्देशन किया।
शक्ति दा आज इतनी दूर चले गये हैं लेकिन जो काम वो कर गये हैं, उसकी लौ हमेशा नयी पीढ़ी को राह दिखाती रहेगी, नये फ़िल्मकारों को अच्छी फ़िल्में बनाने की प्रेरणा प्रदान करती रहेगी। दूसरे शब्दों में उनकी आराधना ज़रूर सफल होगी। चलते चलते उनकी फ़िल्म 'आनंद आश्रम' के शीर्षक गीत का मुखड़ा याद आ रहा है "सफल वही जीवन है, औरों के लिए जो अर्पण है"। शक्तिदा ने भी अपना पूरा जीवन फ़िल्म जगत को और पूरे समाज को सीख देनेवाली अच्छी अच्छी फ़िल्में देते हुए गुज़ार दिये। शक्तिदा को हिंद युग्म की तरफ़ से भावभीनी श्रद्धाजंली।
५ अंकों के इस पूरे आलेख को तैयार करने में विविध भारती के निम्नलिखित कार्यक्रमों से जानकारियाँ बटोरी गयीं:
१. युनूस ख़ान द्वारा प्रस्तुत शक्तिदा को श्रद्धांजलि - "सफल होगी तेरी आराधना"
२. कमल शर्मा से की गयी शक्तिदा की लम्बी बातचीत - "उजाले उनकी यादों के"
३. शक्तिदा द्वारा प्रस्तुत फ़ौजी भाइयों के लिए "विशेष जयमाला" कार्यक्रम
प्रस्तुति: सुजॉय चटर्जी
समाप्त
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