ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 78
दोस्तों, फ़िल्म जगत में बहुत से ऐसे संगीतकार हुए हैं जिन्होने काम तो बहुत किया है लेकिन उनकी क़िस्मत ने उनका इतना साथ नहीं दिया कि वो भी शोहरत की बुलन्दियों को छू पाते। ऐसे ही एक संगीतकार रहे हैं हंसराज बहल। राजधानी, मिलन, मिस बाम्बे, चंगेज़ ख़ान, सावन, और सिकंदर-ए-आज़म उनकी कुछ चर्चित फ़िल्में रही हैं। गायिका आशा भोंसले ने अपना पहला हिन्दी फ़िल्मी गीत इन्ही के संगीत निर्देशन में १९४८ में फ़िल्म 'चुनरिया' के लिए गाया था। हंसराज बहल ने गायिका मधुबाला ज़वेरी को भी उनका पहला ब्रेक दिया था। हंसराज बहल के छोटे भाई गुलशन बहल के साथ मिलकर वो निर्माता भी बने और अपने बैनर का नाम रखा अपने पिता निहाल चन्द्र के नाम पर, एन. सी. फ़िल्म्स। इस बैनर के तले पहली फ़िल्म बनी थी 'लाल परी' और आगे चलकर कुछ २० के आसपास फ़िल्में इन दोनो भाइयों ने बनाये और इन सभी फ़िल्मों में हंसराज का संगीत था। इसी बैनर के तले बनी थी १९५६ की फ़िल्म 'राजधानी' जिसका एक बड़ा ही मशहूर गीत आज हम आपके लिए लेकर आए हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में। "भूल जा सपने सुहाने भूल जा" तलत महमूद और लता मंगेशकर के गाये युगल गीतों में एक ख़ास जगह रखता है।
फ़िल्म 'राजधानी' के मुख्य कलाकार थे सुनिल दत्त और निम्मी और इस फ़िल्म का निर्देशन किया था नरेश सहगल ने। प्रस्तुत गीत में सुनिल दत्त को जेल के बंधनों में जकड़े हुए दिखाया गया है, जो ज़िन्दगी से निराश होकर अपने सारे सपनों को भुला देने की बात करता है। उधर दूसरी तरफ़ उनकी प्रेमिका (निम्मी) भी अपने प्रेमी से मिलने को बेचैन होकर पुकार उठती है "कैसे तुझको भुलाऊं साजना"। तूफ़ानी रात का दृश्य है, नदी में उफ़ान आया हुआ है, ऐसे में निम्मी भटकती हुई अपने प्रेमी की तलाश में पहाड़ों, नदी-नालों से होते हुए अपनी जान हथेली पे लेकर भागती चली जाती है। "आयी लहरों का सीना सनम चीर के, जीतना है तुझे तक़दीर से", क़मर जलालाबादी के ऐसे बोल हैं इस गीत में सजे। दर्दभरे सदाबहार युगल गीतों की श्रेणी में इस गीत का शुमार होता है और आज भी इस गीत का वही असर क़ायम है। सुनिए लता-तलत का गाया "भूल जा सपने सुहाने भूल जा"। इस गीत के संगीत सयोजन पर भी ग़ौर कीजिएगा, स्थान, काल, पात्र और गीत के बोलों को एक साथ लेकर चलता है इस गीत का 'और्केस्ट्रेशन'।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. आनंद बख्शी और एल पी की जोड़ी का शायद सबसे पहला गीत.
२. ये सुपरहिट गीत किशोर के जबरदस्त हिट्स में से एक है.
३. एक अंतरे की अंतिम पंक्ति में शब्द है -"वहशत".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम-
कल की पहेली के साथ ही एक और नयी विजेता हमें मिल गयी हैं....रचना जी बहुत बहुत बधाई...एक मुश्किल गीत को सही पहचाना आपने. नीलम जी आपने तो खुद ही लिख दिया कि आपका जवाब गलत क्यों है, और मनु जी ने भी स्पष्ट कर दिया. पराग जी काफी जबर्दस्त जानकार हमें मिले हैं, आपकी जानकारियों से सभी लाभान्वित होते हैं. मनु जी और पी एन साहब आप दोनों का ही नहीं ये गीत ढेरों संगीतप्रेमियों का पसंदीदा गीत है. आपको पसंद आये और इसी बहाने कुछ बीती यादें ताज़ी हो जाए यही हमारा उद्देश्य है.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
दोस्तों, फ़िल्म जगत में बहुत से ऐसे संगीतकार हुए हैं जिन्होने काम तो बहुत किया है लेकिन उनकी क़िस्मत ने उनका इतना साथ नहीं दिया कि वो भी शोहरत की बुलन्दियों को छू पाते। ऐसे ही एक संगीतकार रहे हैं हंसराज बहल। राजधानी, मिलन, मिस बाम्बे, चंगेज़ ख़ान, सावन, और सिकंदर-ए-आज़म उनकी कुछ चर्चित फ़िल्में रही हैं। गायिका आशा भोंसले ने अपना पहला हिन्दी फ़िल्मी गीत इन्ही के संगीत निर्देशन में १९४८ में फ़िल्म 'चुनरिया' के लिए गाया था। हंसराज बहल ने गायिका मधुबाला ज़वेरी को भी उनका पहला ब्रेक दिया था। हंसराज बहल के छोटे भाई गुलशन बहल के साथ मिलकर वो निर्माता भी बने और अपने बैनर का नाम रखा अपने पिता निहाल चन्द्र के नाम पर, एन. सी. फ़िल्म्स। इस बैनर के तले पहली फ़िल्म बनी थी 'लाल परी' और आगे चलकर कुछ २० के आसपास फ़िल्में इन दोनो भाइयों ने बनाये और इन सभी फ़िल्मों में हंसराज का संगीत था। इसी बैनर के तले बनी थी १९५६ की फ़िल्म 'राजधानी' जिसका एक बड़ा ही मशहूर गीत आज हम आपके लिए लेकर आए हैं 'ओल्ड इज़ गोल्ड' की महफ़िल में। "भूल जा सपने सुहाने भूल जा" तलत महमूद और लता मंगेशकर के गाये युगल गीतों में एक ख़ास जगह रखता है।
फ़िल्म 'राजधानी' के मुख्य कलाकार थे सुनिल दत्त और निम्मी और इस फ़िल्म का निर्देशन किया था नरेश सहगल ने। प्रस्तुत गीत में सुनिल दत्त को जेल के बंधनों में जकड़े हुए दिखाया गया है, जो ज़िन्दगी से निराश होकर अपने सारे सपनों को भुला देने की बात करता है। उधर दूसरी तरफ़ उनकी प्रेमिका (निम्मी) भी अपने प्रेमी से मिलने को बेचैन होकर पुकार उठती है "कैसे तुझको भुलाऊं साजना"। तूफ़ानी रात का दृश्य है, नदी में उफ़ान आया हुआ है, ऐसे में निम्मी भटकती हुई अपने प्रेमी की तलाश में पहाड़ों, नदी-नालों से होते हुए अपनी जान हथेली पे लेकर भागती चली जाती है। "आयी लहरों का सीना सनम चीर के, जीतना है तुझे तक़दीर से", क़मर जलालाबादी के ऐसे बोल हैं इस गीत में सजे। दर्दभरे सदाबहार युगल गीतों की श्रेणी में इस गीत का शुमार होता है और आज भी इस गीत का वही असर क़ायम है। सुनिए लता-तलत का गाया "भूल जा सपने सुहाने भूल जा"। इस गीत के संगीत सयोजन पर भी ग़ौर कीजिएगा, स्थान, काल, पात्र और गीत के बोलों को एक साथ लेकर चलता है इस गीत का 'और्केस्ट्रेशन'।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. आनंद बख्शी और एल पी की जोड़ी का शायद सबसे पहला गीत.
२. ये सुपरहिट गीत किशोर के जबरदस्त हिट्स में से एक है.
३. एक अंतरे की अंतिम पंक्ति में शब्द है -"वहशत".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम-
कल की पहेली के साथ ही एक और नयी विजेता हमें मिल गयी हैं....रचना जी बहुत बहुत बधाई...एक मुश्किल गीत को सही पहचाना आपने. नीलम जी आपने तो खुद ही लिख दिया कि आपका जवाब गलत क्यों है, और मनु जी ने भी स्पष्ट कर दिया. पराग जी काफी जबर्दस्त जानकार हमें मिले हैं, आपकी जानकारियों से सभी लाभान्वित होते हैं. मनु जी और पी एन साहब आप दोनों का ही नहीं ये गीत ढेरों संगीतप्रेमियों का पसंदीदा गीत है. आपको पसंद आये और इसी बहाने कुछ बीती यादें ताज़ी हो जाए यही हमारा उद्देश्य है.
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
http://geetadutt.com/hansraj.html
धन्यवाद
पर ek तुक्का सा फिट करते हैं,,,,
उम्मीद है के हिट होगा....
मेरे महबूब क़यामत होगी ,,,,,,,,,,,,,?????????????????????
बहुत दुःख की बात है.
मनु जी, पहेली का आपका जवाब सही लगता हैं.
पराग