ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 93
आज के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में प्यार के इज़हार का एक बड़ा ही ख़ूबसूरत अंदाज़ पेश-ए-ख़िदमत है गीता दत्त की आवाज़ में। दोस्तों, आपने ऐसा कई कई गीतों में सुना होगा कि प्रेमी अपनी प्रेमिका से कहता है कि जब तक यह दुनिया रहेगी, तब तक मेरा प्यार रहेगा; और जब तक चाँद सितारे चमकते रहेंगे, तब तक हमारे प्यार के दीये जलते रहेंगे, वगैरह वगैरह । लेकिन आज का जो यह गीत है वह एक क़दम आगे निकल जाता है और कहता है कि भले ही चाँद तारे चमकना छोड़ दें, लेकिन उनका प्यार हमेशा एक दूसरे के साथ बना रहेगा। आप समझ गये होंगे कि हमारा इशारा किस गीत की तरफ़ है। जी हाँ, फ़िल्म 'शर्त' का सदाबहार गीत "न ये चाँद होगा न तारे रहेंगे, मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे"। इस गीत को हेमंत कुमार ने भी गाया था लेकिन आज हम गीताजी का गाया गीत आपको सुनवा रहे हैं। गीत का एक एक शब्द दिल को छू लेनेवाला है, जिनसे सच्चे प्यार की कोमलता झलकती है। 'चाँद' से याद आया कि इसी फ़िल्म में 'चाँद' से जुड़े कुछ और गानें भी थे, जैसे कि लता और हेमन्तदा का गाया "देखो वो चाँद छुपके करता है क्या इशारे" और गीताजी का ही गाया एक और गाना "चाँद घटने लगा रात ढलने लगी, तार मेरे दिल के मचलने लगे"। इन गीतों को हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आगे कभी शामिल करने की ज़रूर कोशिश करेंगे।
फ़िल्म 'शर्त' के गीतकार थे शमसुल हुदा बिहारी, यानि कि एस.एच. बिहारी। उन्होने १९५० में फ़िल्म 'दिलरुबा' से अपनी पारी शुरु करने के बाद १९५१ में 'निर्दोश' और 'बेदर्दी', १९५२ में 'ख़ूबसूरत' और 'निशान डंका', तथा १९५३ में 'रंगीला' जैसी फ़िल्मों में गाने लिखे, लेकिन इनमें से कोई भी गीत बहुत ज़्यादा लोकप्रिय नहीं हुआ। उन्हे अपनी पहली महत्वपूर्ण सफलता मिली १९५४ में जब फ़िल्मिस्तान के शशधर मुखर्जी ने उन्हे मौका दिया फ़िल्म 'शर्त' में गाने लिखने का। मुखर्जी साहब ने पहले भी कई कलाकारों को उनका पहला महत्वपूर्ण ब्रेक दे चुके हैं, जिनमें शामिल हैं एस.डी. बर्मन, हेमन्त कुमार, निर्देशक हेमेन गुप्ता और सत्येन बोस। १९५४ में इस लिस्ट में दो और नाम जुड़ गये, एक तो थे गीतकार एस. एच. बिहारी का और दूसरे निर्देशक बिभुती मित्र का। श्यामा और दीपक अभिनीत फ़िल्म 'शर्त' आधारित था अल्फ़्रेड हिचकाक की मशहूर उपन्यास 'स्ट्रेन्जर्स औन दि ट्रेन' पर। जहाँ एक ओर एस.एच. बिहारी साहब को अपनी पहली बड़ी कामयाबी हासिल हुई, वहीं दूसरी ओर संगीतकार हेमन्त कुमार के सुरीले गीतों के ख़ज़ाने में कुछ अनमोल मोती और शामिल हो गये। इससे पहले कि आप यह गीत सुने, ज़रा पहले जान लीजिए कि बिहारी साहब ने १९७० में प्रसारित विविध भारती के 'जयमाला' कार्यक्रम में इस फ़िल्म के बारे में क्या कहा था - "जिस तरह आपकी ज़िंदगी में हर क़दम पर मुश्किलात हैं, हमारी इस फ़िल्मी दुनिया में भी हमें कठिन रास्तों से होकर गुज़रना पड़ता है। मैने असरार-उल-हक़ जैसे शायर को यहाँ से नाकाम लौटते हुए देखा है, उसके बाद उन्ही की शायरी का फ़िल्मी गीतों में नाजायज़ इस्तेमाल होते हुए भी देखा है, और जिन्हे कामयाबी भी हासिल हुई। यह शायरी की कंगाली है जिसे माफ़ नहीं किया जा सकता। मेरी ज़िंदगी में भी धूप छाँव आते रहे हैं। एक बार राजा मेहंदी अली ख़ान साहब मुझे परेशान देखकर कहा कि क्या परेशानी है, मैने अपनी परेशानी बतायी तो वो मुझे एक बाबा के पास ले गये। वहाँ जाकर देखा कि बाबा के दर्शन के लिए मोटरों की क़तारें लगी हुईं हैं। अब देखिए एक ग़रीब रोटी के लिए बाबा के पास गया है तो एक मोटरवाला भी उनके पास गया है। हर किसी को कुछ ना कुछ परेशानी है। ख़ैर, मैं बाबा से मिला, उन्होने मुझे एक चाँदी का रुपया दिया और मेरे बाज़ू पर बाँधने के लिए कहा। मैं उसे बाँधकर मुखर्जी साहब के घर जा पहुँचा। दिन भर इंतज़ार करता रहा पर वो घर पर नहीं थे। भूख से मेरा बुरा हाल था। मैने वह सिक्का अपनी बाज़ू से निकाला और सामने की दुकान में जाकर भजिया खा लिया। फिर मैं मुखर्जी साहब के गेट वापस जा पहुँचा। मुखर्जी साहब गेट पर ही खड़े थे। मैने उन्हे सलाम किया जिसका उन्होने जवाब नहीं दिया, शायद कुछ लोगों की यही अदा होती है! उन्होने मुझसे पूछा कि क्या बेचते हो? मैनें कहा कि मैं दिल के टुकडे बेचता हूँ पर वो नहीं जो फ़िल्मी गीतों में लिखा होता है कि एक दिल के सौ टुकडे हो गये, वगैरह वगैरह। मेरी बातों से वो प्रभावित हो गये। चाँदी का सिक्का तो कमाल नहीं दिखाया पर मेरी ज़ुबान कमाल कर गयी। और आज से १७ साल पहले इस गाने का जनम हुआ, न ये चाँद होगा न तारे रहेंगे, मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे।"
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. दिलीप कुमार ने इस फिल्म में उस किरदार को निभाया है जिसे सहगल और शाहरुख़ खान ने भी परदे पर अवतरित किया है.
२. लता की आवाज़ का जादू.
३. मुखड़े में शब्द है -"अदा".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी ने एक बार फिर बाज़ी मार ली, मनु जी, नीलम जी और दिलीप जी, धन्येवाद आप सब श्रोताओं का है जिन्होंने इस आयोजन को इतना सफल बनाया है. दिलीप जी थोडी बहुत प्यास अधूरी रह जाये तो ही मज़ा है वरना मयखानों पे ताले न लग जायेंगें :)
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
आज के 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में प्यार के इज़हार का एक बड़ा ही ख़ूबसूरत अंदाज़ पेश-ए-ख़िदमत है गीता दत्त की आवाज़ में। दोस्तों, आपने ऐसा कई कई गीतों में सुना होगा कि प्रेमी अपनी प्रेमिका से कहता है कि जब तक यह दुनिया रहेगी, तब तक मेरा प्यार रहेगा; और जब तक चाँद सितारे चमकते रहेंगे, तब तक हमारे प्यार के दीये जलते रहेंगे, वगैरह वगैरह । लेकिन आज का जो यह गीत है वह एक क़दम आगे निकल जाता है और कहता है कि भले ही चाँद तारे चमकना छोड़ दें, लेकिन उनका प्यार हमेशा एक दूसरे के साथ बना रहेगा। आप समझ गये होंगे कि हमारा इशारा किस गीत की तरफ़ है। जी हाँ, फ़िल्म 'शर्त' का सदाबहार गीत "न ये चाँद होगा न तारे रहेंगे, मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे"। इस गीत को हेमंत कुमार ने भी गाया था लेकिन आज हम गीताजी का गाया गीत आपको सुनवा रहे हैं। गीत का एक एक शब्द दिल को छू लेनेवाला है, जिनसे सच्चे प्यार की कोमलता झलकती है। 'चाँद' से याद आया कि इसी फ़िल्म में 'चाँद' से जुड़े कुछ और गानें भी थे, जैसे कि लता और हेमन्तदा का गाया "देखो वो चाँद छुपके करता है क्या इशारे" और गीताजी का ही गाया एक और गाना "चाँद घटने लगा रात ढलने लगी, तार मेरे दिल के मचलने लगे"। इन गीतों को हम 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आगे कभी शामिल करने की ज़रूर कोशिश करेंगे।
फ़िल्म 'शर्त' के गीतकार थे शमसुल हुदा बिहारी, यानि कि एस.एच. बिहारी। उन्होने १९५० में फ़िल्म 'दिलरुबा' से अपनी पारी शुरु करने के बाद १९५१ में 'निर्दोश' और 'बेदर्दी', १९५२ में 'ख़ूबसूरत' और 'निशान डंका', तथा १९५३ में 'रंगीला' जैसी फ़िल्मों में गाने लिखे, लेकिन इनमें से कोई भी गीत बहुत ज़्यादा लोकप्रिय नहीं हुआ। उन्हे अपनी पहली महत्वपूर्ण सफलता मिली १९५४ में जब फ़िल्मिस्तान के शशधर मुखर्जी ने उन्हे मौका दिया फ़िल्म 'शर्त' में गाने लिखने का। मुखर्जी साहब ने पहले भी कई कलाकारों को उनका पहला महत्वपूर्ण ब्रेक दे चुके हैं, जिनमें शामिल हैं एस.डी. बर्मन, हेमन्त कुमार, निर्देशक हेमेन गुप्ता और सत्येन बोस। १९५४ में इस लिस्ट में दो और नाम जुड़ गये, एक तो थे गीतकार एस. एच. बिहारी का और दूसरे निर्देशक बिभुती मित्र का। श्यामा और दीपक अभिनीत फ़िल्म 'शर्त' आधारित था अल्फ़्रेड हिचकाक की मशहूर उपन्यास 'स्ट्रेन्जर्स औन दि ट्रेन' पर। जहाँ एक ओर एस.एच. बिहारी साहब को अपनी पहली बड़ी कामयाबी हासिल हुई, वहीं दूसरी ओर संगीतकार हेमन्त कुमार के सुरीले गीतों के ख़ज़ाने में कुछ अनमोल मोती और शामिल हो गये। इससे पहले कि आप यह गीत सुने, ज़रा पहले जान लीजिए कि बिहारी साहब ने १९७० में प्रसारित विविध भारती के 'जयमाला' कार्यक्रम में इस फ़िल्म के बारे में क्या कहा था - "जिस तरह आपकी ज़िंदगी में हर क़दम पर मुश्किलात हैं, हमारी इस फ़िल्मी दुनिया में भी हमें कठिन रास्तों से होकर गुज़रना पड़ता है। मैने असरार-उल-हक़ जैसे शायर को यहाँ से नाकाम लौटते हुए देखा है, उसके बाद उन्ही की शायरी का फ़िल्मी गीतों में नाजायज़ इस्तेमाल होते हुए भी देखा है, और जिन्हे कामयाबी भी हासिल हुई। यह शायरी की कंगाली है जिसे माफ़ नहीं किया जा सकता। मेरी ज़िंदगी में भी धूप छाँव आते रहे हैं। एक बार राजा मेहंदी अली ख़ान साहब मुझे परेशान देखकर कहा कि क्या परेशानी है, मैने अपनी परेशानी बतायी तो वो मुझे एक बाबा के पास ले गये। वहाँ जाकर देखा कि बाबा के दर्शन के लिए मोटरों की क़तारें लगी हुईं हैं। अब देखिए एक ग़रीब रोटी के लिए बाबा के पास गया है तो एक मोटरवाला भी उनके पास गया है। हर किसी को कुछ ना कुछ परेशानी है। ख़ैर, मैं बाबा से मिला, उन्होने मुझे एक चाँदी का रुपया दिया और मेरे बाज़ू पर बाँधने के लिए कहा। मैं उसे बाँधकर मुखर्जी साहब के घर जा पहुँचा। दिन भर इंतज़ार करता रहा पर वो घर पर नहीं थे। भूख से मेरा बुरा हाल था। मैने वह सिक्का अपनी बाज़ू से निकाला और सामने की दुकान में जाकर भजिया खा लिया। फिर मैं मुखर्जी साहब के गेट वापस जा पहुँचा। मुखर्जी साहब गेट पर ही खड़े थे। मैने उन्हे सलाम किया जिसका उन्होने जवाब नहीं दिया, शायद कुछ लोगों की यही अदा होती है! उन्होने मुझसे पूछा कि क्या बेचते हो? मैनें कहा कि मैं दिल के टुकडे बेचता हूँ पर वो नहीं जो फ़िल्मी गीतों में लिखा होता है कि एक दिल के सौ टुकडे हो गये, वगैरह वगैरह। मेरी बातों से वो प्रभावित हो गये। चाँदी का सिक्का तो कमाल नहीं दिखाया पर मेरी ज़ुबान कमाल कर गयी। और आज से १७ साल पहले इस गाने का जनम हुआ, न ये चाँद होगा न तारे रहेंगे, मगर हम हमेशा तुम्हारे रहेंगे।"
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. दिलीप कुमार ने इस फिल्म में उस किरदार को निभाया है जिसे सहगल और शाहरुख़ खान ने भी परदे पर अवतरित किया है.
२. लता की आवाज़ का जादू.
३. मुखड़े में शब्द है -"अदा".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी ने एक बार फिर बाज़ी मार ली, मनु जी, नीलम जी और दिलीप जी, धन्येवाद आप सब श्रोताओं का है जिन्होंने इस आयोजन को इतना सफल बनाया है. दिलीप जी थोडी बहुत प्यास अधूरी रह जाये तो ही मज़ा है वरना मयखानों पे ताले न लग जायेंगें :)
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
-Zakir Ali ‘Rajnish’
{ Secretary-TSALIIM & SBAI }
सच ..बहुत खूबसूरत गीत है....पर
तेरे दिल को जो लुभा ले,
वो सदा कहाँ से लाऊँ.....
aaki agli film kaa naam hai devdas