ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 70
'ओल्ड इज़ गोल्ड' की ७०-वीं कड़ी में आप सभी का स्वागत है। सुरीले फ़िल्म संगीत का यह सफ़र पिछले ७० दिनो से चला आ रहा है और आप भी इसमें पूरी तरह से हिस्सेदारी निभा रहे हैं जिस वजह से हमें भी रोज़ नयी ऊर्जा मिल रही है बेहतर से बेहतर गाने और उनसे संबंधित जानकारियाँ खोजने में। कभी कभी जब जानकारियों में कुछ गड़बड़ हो जाती है तो आप उसका सुधार भी कर देते हैं जिसके लिए हम आप के तह-ए-दिल से आभारी हैं। आगे भी आप हमारा इसी तरह से मार्ग-दर्शन करते रहेंगे ऐसा हमारा विश्वास है। तो चलिये इसी बात पर अब हम आते हैं आज के गाने पर। दोस्तों, कुछ दिन पहले हमने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आपको एक गीत सुनवाया था लता मंगेशकर और तलत महमूद का गाया हुआ फ़िल्म 'मौसी' का - "टिम टिम टिम तारों के दीप जले नीले आकाश तले"। याद है न आपको? इस गीत को भरत व्यास ने लिखा था और संगीत था वसंत देसाई का। आज इस गीत से मिलता-जुलता एक और गीत हम लेकर आये हैं, इसे भी लताजी और तलत साहब ने गाया है और संगीत भी एक बार फिर वसंत देसाई साहब का है। बस गीतकार भरत व्यास के जगह आ गये हैं कवि प्रदीप। फ़िल्म 'स्कूल मास्टर' के इस गीत के साथ हमने 'मौसी' फ़िल्म के गाने का ज़िक्र इसलिए किया क्योंकि जब भी हम इनमें से कोई भी गीत सुनते हैं तो दूसरा गीत अपने आप ही जेहन में आ जाता है। कुछ तो है समानता इन दोनो गीतों में। गीत सुनने के बाद आप ख़ुद इस ब्लाग पर लिखियेगा अगर आपको भी इन गीतों में कोई समानता नज़र आती हो तो।
१९५९ में बनी फ़िल्म 'स्कूल मास्टर' के मुख्य कलाकार थे बी.सरोजा देवी और राजा गोस्वामी। ए. एल. एस प्रोडक्शन्स के बैनर तले बनी यह फ़िल्म एक मराठी फ़िल्म की रीमेक थी। फ़िल्म तो बहुत ज़्यादा कामयाब नहीं रही लेकिन इस फ़िल्म का कम से कम से यह गाना बेहद सुना गया और आज भी जब इस गीत को कहीं सुनने को मिलता है तो दिल के साथ साथ पाँव भी अपने आप ही जैसे थिरकने लगते हैं। कुछ ऐसी संक्रामक है इस गीत की धुन। यूँ तो कवि प्रदीप ज़्यादातर गम्भीर विषयों और काव्य को ही अपने गीतों में स्थान दिया करते थे, लेकिन यह एक ऐसा गीत है जिसमें उन्होने बड़े ही हल्के-फुल्के बोलों का प्रयोग किया है, जिस वजह से यह गीत आम जनता में इतना ज़्यादा लोकप्रिय हुआ है। तो अब आप सुनिये यह गीत और मैं चला अगले गीत की जानकारियाँ समेटने।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. संगीतकार रवि का एक बेहद शानदार गीत.
२. लता के स्वर की पवित्रता अपने चरम पर है इस गीत में
३. "मंदिर" और मंदिर के "देवता" का जिक्र है मुखड़े में.
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
एक मुश्किल गाने को पहचान लिया मनु जी ने...भाई वाह बधाई....
शरद तैलंग और भरत पंडया जी को भी बधाई। शरद जी आप ईमेल से पहेली मिलने का इंतज़ार करने की बजाय रोज़ाना भारतीय समयानुसार शाम 6 से 7 बजे के बीच http://podcast.hindyugm.com खोल लें तो आप पहले विजेता हो सकते हैं।
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
'ओल्ड इज़ गोल्ड' की ७०-वीं कड़ी में आप सभी का स्वागत है। सुरीले फ़िल्म संगीत का यह सफ़र पिछले ७० दिनो से चला आ रहा है और आप भी इसमें पूरी तरह से हिस्सेदारी निभा रहे हैं जिस वजह से हमें भी रोज़ नयी ऊर्जा मिल रही है बेहतर से बेहतर गाने और उनसे संबंधित जानकारियाँ खोजने में। कभी कभी जब जानकारियों में कुछ गड़बड़ हो जाती है तो आप उसका सुधार भी कर देते हैं जिसके लिए हम आप के तह-ए-दिल से आभारी हैं। आगे भी आप हमारा इसी तरह से मार्ग-दर्शन करते रहेंगे ऐसा हमारा विश्वास है। तो चलिये इसी बात पर अब हम आते हैं आज के गाने पर। दोस्तों, कुछ दिन पहले हमने 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आपको एक गीत सुनवाया था लता मंगेशकर और तलत महमूद का गाया हुआ फ़िल्म 'मौसी' का - "टिम टिम टिम तारों के दीप जले नीले आकाश तले"। याद है न आपको? इस गीत को भरत व्यास ने लिखा था और संगीत था वसंत देसाई का। आज इस गीत से मिलता-जुलता एक और गीत हम लेकर आये हैं, इसे भी लताजी और तलत साहब ने गाया है और संगीत भी एक बार फिर वसंत देसाई साहब का है। बस गीतकार भरत व्यास के जगह आ गये हैं कवि प्रदीप। फ़िल्म 'स्कूल मास्टर' के इस गीत के साथ हमने 'मौसी' फ़िल्म के गाने का ज़िक्र इसलिए किया क्योंकि जब भी हम इनमें से कोई भी गीत सुनते हैं तो दूसरा गीत अपने आप ही जेहन में आ जाता है। कुछ तो है समानता इन दोनो गीतों में। गीत सुनने के बाद आप ख़ुद इस ब्लाग पर लिखियेगा अगर आपको भी इन गीतों में कोई समानता नज़र आती हो तो।
१९५९ में बनी फ़िल्म 'स्कूल मास्टर' के मुख्य कलाकार थे बी.सरोजा देवी और राजा गोस्वामी। ए. एल. एस प्रोडक्शन्स के बैनर तले बनी यह फ़िल्म एक मराठी फ़िल्म की रीमेक थी। फ़िल्म तो बहुत ज़्यादा कामयाब नहीं रही लेकिन इस फ़िल्म का कम से कम से यह गाना बेहद सुना गया और आज भी जब इस गीत को कहीं सुनने को मिलता है तो दिल के साथ साथ पाँव भी अपने आप ही जैसे थिरकने लगते हैं। कुछ ऐसी संक्रामक है इस गीत की धुन। यूँ तो कवि प्रदीप ज़्यादातर गम्भीर विषयों और काव्य को ही अपने गीतों में स्थान दिया करते थे, लेकिन यह एक ऐसा गीत है जिसमें उन्होने बड़े ही हल्के-फुल्के बोलों का प्रयोग किया है, जिस वजह से यह गीत आम जनता में इतना ज़्यादा लोकप्रिय हुआ है। तो अब आप सुनिये यह गीत और मैं चला अगले गीत की जानकारियाँ समेटने।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. संगीतकार रवि का एक बेहद शानदार गीत.
२. लता के स्वर की पवित्रता अपने चरम पर है इस गीत में
३. "मंदिर" और मंदिर के "देवता" का जिक्र है मुखड़े में.
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
एक मुश्किल गाने को पहचान लिया मनु जी ने...भाई वाह बधाई....
शरद तैलंग और भरत पंडया जी को भी बधाई। शरद जी आप ईमेल से पहेली मिलने का इंतज़ार करने की बजाय रोज़ाना भारतीय समयानुसार शाम 6 से 7 बजे के बीच http://podcast.hindyugm.com खोल लें तो आप पहले विजेता हो सकते हैं।
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
rasmdaaygi to manu ji ne kar hi di hai aur unki haan me haan bhi dilip ji mila hi chuke hain ,waise gana to sunne ka man hai hi .
सुरीला गाना सुनाने के लिए आभारी.
पराग
पिछले कई दिनो से बहुत व्यस्तता के चलते चिट्ठे पढने का काम बन्द है। जल्द ही नियमित हाजिरी लगाया करूँगा।
neeraj ji padhaar rahe hain ,manu ji jagah khaali kar dijiye ,mera matlab hai ki line me doosre number par aa hi jaayiye .