ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 72
'लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल' एक ऐसा नाम है जिनकी शोहरत वक़्त के ग्रामोफोन पर बरसों से घूम रही है। इस जोड़ी की पारस प्रतिभा ने जिस गीत को भी हाथ लगा दिया वह सोना बन गया। ऐसी पारस प्रतिभा के धनी लक्ष्मी-प्यारे की जोड़ी की पहली मशहूर फ़िल्म थी 'पारसमणि'। तो क्या आप जानना नहीं चाहेंगे कि यह जो जोड़ी थी गीतों को सोना बनानेवाली, यह जोड़ी कैसे बनी, वह कौन सा दिन था जब इन दोनो ने एक दूसरे के साथ में गठबंधन किया और कैसे बना 'पारसमणि' का सदाबहार संगीत? अगर हाँ तो ज़रा पढ़िए तो सही कि विविध भारती के 'उजाले उनकी यादों के' कार्यक्रम में प्यारेलालजी ने क्या कहा था - "देखिए, जब हम दोस्त थे, साथ में काम करते थे, बजाते थे, तब अपनी दोस्ती शुरु हुई, लेकिन 1957 के अंदर यह हमारी बात हुई कि भई हम बैठ के साथ काम करेंगे। यह अपना शिवाजी पार्क में शिवसेना भवन है, उसके पास एक होटल था जिसमें 'कटलेट्स' बहुत अच्छे मिलते थे, हम वहाँ बैठ के खाते थे। उस समय वहाँ सी. रामचन्द्रजी का हॉल हुआ करता था; हम वहाँ जाते थे। तो वहाँ लंच करके हम निकल गए। तो जब यह बात निकली तो मैने कहा कि "मैं निकल जाऊँगा दो-तीन महीनों में", तो वो बोले कि "क्यूँ ना हम साथ में मिलकर काम करें", और बाहर भी क्या करते, इसलिए हमने "हाँ" कर दी और हमने शुरू किया 'काम्पोज़' करना। जब 'पारसमणि' पिक्चर के कास्ट छपवाये, तो उसमें संगीतकार का नाम लिखा गया था 'प्यारेलाल - लक्ष्मीकांत'। यह लिखा था बाबा मिस्त्री ने। लक्ष्मीजी ने कुछ नहीं कहा, मैनें बोला कि "नहीं, मैं उनकी बहुत इज़्ज़त करता हूँ, और वो तीन साल बड़े भी हैं, इसलिए इसे आप 'लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल' कर दीजिए।" तो इस तरह से बनी 'लक्ष्मी-प्यारे' की जोड़ी। अब ज़रा प्यारेलालजी से यह भी सुन लीजिए कि 'पारसमणि' कैसे इनके हाथ लगी - "तो हम जहाँ काम करते थे, कल्याणजी-आनंदजी के यहाँ, वहाँ हमें मिले बाबा मिस्त्री। उन्होने देखा कि ये लड़के होशियार हैं, तो उन्होने हमको चान्स दिया 'पारसमणि' में। कल्याणजी-आनंदजी को जो पहला ब्रेक दिया था इन्होने ही दिया था फ़िल्म सम्राट चन्द्रगुप्त में, और हमको उन्होंने दिया 'पारसमणि' में। लक्ष्मीजी ने तो अपने बंगले का नाम भी 'पारसमणि' रखा था।"
तो देखा दोस्तों कि किस तरह से हँसता हुआ नूरानी चेहरा लेकर लक्ष्मी-प्यारे फ़िल्म संगीत संसार में आये और उसके बाद बिल्कुल छा गये! आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में फ़िल्म 'पारसमणि' का एक बहुत ही प्यारा सा युगल गीत पेश है लता और मुकेश की आवाज़ों में। गीतकार फ़ारूक़ क़ैसर के बोल हैं और 1963 में प्रदर्शित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार महिपाल और गीतांजलि पर फ़िल्माया हुआ यह गीत है "चोरी-चोरी जो तुमसे मिली तो लोग क्या कहेंगे"। पिछले कई दशकों में 'चोरी-चोरी' से शुरू होनेवाले आपने बहुत सारे गाने सुने होंगे और ज़्यादातर यह देखा गया है कि ये गाने कामयाब भी रहे हैं। 'चोरी-चोरी' से शुरू होनेवाले गाने 50 के दशक के शुरू से प्रचलित होने लगे थे। 1951 की फ़िल्म 'ढोलक' में सुलोचना कदम की आवाज़ में "चोरी चोरी आग सी दिल में लगाके चल दिये" बहुत ही मशहूर गीत है। 1952 में तलत महमूद और गीता राय का गाया फ़िल्म 'काफ़िला' का गीत "चोरी-चोरी दिल में समाया सजन" और इसी साल फ़िल्म 'जाल' में लता मंगेशकर और साथियों का गाया "चोरी-चोरी मेरी गली आना है बुरा" भी अपने ज़माने के मशहूर गीत रहे हैं। दो और सदाबहार गीत जो शुरू तो 'चोरी-चोरी' से नहीं होते लेकिन मुखड़े में ज़रूर ये शब्द आते हैं, वो हैं फ़िल्म 'चोरी-चोरी' का शीर्षक गीत "जहाँ मैं जाती हूँ वहीं चले आते हो, चोरी चोरी मेरे दिल में समाते हो", और दूसरा गीत है "बाप रे बाप' फ़िल्म का "पिया पिया पिया मेरा जिया पुकारे.... चोरी चोरी चोरी काहे हमें पुकारे, तुम तो बसी हो गोरी दिल में हमारे"। 1957 की फ़िल्म 'एक गाँव की कहानी' में लता और तलत का गाया और शैलेंद्र का लिखा एक गीत था "ओ हाये कोई देख लेगा, देखो सुनो पिया घबराये मोरा जिया रे, ओ कोई क्या देख लेगा, प्रीत की यह डोरी दुनिया से नहीं चोरी रे"। कुछ इसी तरह का भाव 'पारसमणि' के प्रस्तुत युगल-गीत में भी व्यक्त किया गया है। तो बातें तो बहुत सी हो गयी दोस्तों, अब गीत आप सुनिये लता और मुकेश की आवाज़ों में।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. नय्यर साहब का एक और मचलता दोगाना.
२. मजरूह के बोल है इस रूठने मनाने के गीत में.
३. मुखड़े में शब्द आता है - "हाथ".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी एकदम सही जवाब.... शन्नो जी यही तो ख़ास बात थी इन गीतों, हम सभी का अनुभव आप जैसा ही है। भरत जी आपके दोनों जवाब गलत हैं। हाँ आप संगीतकार ठीक पहचाना है।
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
'लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल' एक ऐसा नाम है जिनकी शोहरत वक़्त के ग्रामोफोन पर बरसों से घूम रही है। इस जोड़ी की पारस प्रतिभा ने जिस गीत को भी हाथ लगा दिया वह सोना बन गया। ऐसी पारस प्रतिभा के धनी लक्ष्मी-प्यारे की जोड़ी की पहली मशहूर फ़िल्म थी 'पारसमणि'। तो क्या आप जानना नहीं चाहेंगे कि यह जो जोड़ी थी गीतों को सोना बनानेवाली, यह जोड़ी कैसे बनी, वह कौन सा दिन था जब इन दोनो ने एक दूसरे के साथ में गठबंधन किया और कैसे बना 'पारसमणि' का सदाबहार संगीत? अगर हाँ तो ज़रा पढ़िए तो सही कि विविध भारती के 'उजाले उनकी यादों के' कार्यक्रम में प्यारेलालजी ने क्या कहा था - "देखिए, जब हम दोस्त थे, साथ में काम करते थे, बजाते थे, तब अपनी दोस्ती शुरु हुई, लेकिन 1957 के अंदर यह हमारी बात हुई कि भई हम बैठ के साथ काम करेंगे। यह अपना शिवाजी पार्क में शिवसेना भवन है, उसके पास एक होटल था जिसमें 'कटलेट्स' बहुत अच्छे मिलते थे, हम वहाँ बैठ के खाते थे। उस समय वहाँ सी. रामचन्द्रजी का हॉल हुआ करता था; हम वहाँ जाते थे। तो वहाँ लंच करके हम निकल गए। तो जब यह बात निकली तो मैने कहा कि "मैं निकल जाऊँगा दो-तीन महीनों में", तो वो बोले कि "क्यूँ ना हम साथ में मिलकर काम करें", और बाहर भी क्या करते, इसलिए हमने "हाँ" कर दी और हमने शुरू किया 'काम्पोज़' करना। जब 'पारसमणि' पिक्चर के कास्ट छपवाये, तो उसमें संगीतकार का नाम लिखा गया था 'प्यारेलाल - लक्ष्मीकांत'। यह लिखा था बाबा मिस्त्री ने। लक्ष्मीजी ने कुछ नहीं कहा, मैनें बोला कि "नहीं, मैं उनकी बहुत इज़्ज़त करता हूँ, और वो तीन साल बड़े भी हैं, इसलिए इसे आप 'लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल' कर दीजिए।" तो इस तरह से बनी 'लक्ष्मी-प्यारे' की जोड़ी। अब ज़रा प्यारेलालजी से यह भी सुन लीजिए कि 'पारसमणि' कैसे इनके हाथ लगी - "तो हम जहाँ काम करते थे, कल्याणजी-आनंदजी के यहाँ, वहाँ हमें मिले बाबा मिस्त्री। उन्होने देखा कि ये लड़के होशियार हैं, तो उन्होने हमको चान्स दिया 'पारसमणि' में। कल्याणजी-आनंदजी को जो पहला ब्रेक दिया था इन्होने ही दिया था फ़िल्म सम्राट चन्द्रगुप्त में, और हमको उन्होंने दिया 'पारसमणि' में। लक्ष्मीजी ने तो अपने बंगले का नाम भी 'पारसमणि' रखा था।"
तो देखा दोस्तों कि किस तरह से हँसता हुआ नूरानी चेहरा लेकर लक्ष्मी-प्यारे फ़िल्म संगीत संसार में आये और उसके बाद बिल्कुल छा गये! आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में फ़िल्म 'पारसमणि' का एक बहुत ही प्यारा सा युगल गीत पेश है लता और मुकेश की आवाज़ों में। गीतकार फ़ारूक़ क़ैसर के बोल हैं और 1963 में प्रदर्शित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार महिपाल और गीतांजलि पर फ़िल्माया हुआ यह गीत है "चोरी-चोरी जो तुमसे मिली तो लोग क्या कहेंगे"। पिछले कई दशकों में 'चोरी-चोरी' से शुरू होनेवाले आपने बहुत सारे गाने सुने होंगे और ज़्यादातर यह देखा गया है कि ये गाने कामयाब भी रहे हैं। 'चोरी-चोरी' से शुरू होनेवाले गाने 50 के दशक के शुरू से प्रचलित होने लगे थे। 1951 की फ़िल्म 'ढोलक' में सुलोचना कदम की आवाज़ में "चोरी चोरी आग सी दिल में लगाके चल दिये" बहुत ही मशहूर गीत है। 1952 में तलत महमूद और गीता राय का गाया फ़िल्म 'काफ़िला' का गीत "चोरी-चोरी दिल में समाया सजन" और इसी साल फ़िल्म 'जाल' में लता मंगेशकर और साथियों का गाया "चोरी-चोरी मेरी गली आना है बुरा" भी अपने ज़माने के मशहूर गीत रहे हैं। दो और सदाबहार गीत जो शुरू तो 'चोरी-चोरी' से नहीं होते लेकिन मुखड़े में ज़रूर ये शब्द आते हैं, वो हैं फ़िल्म 'चोरी-चोरी' का शीर्षक गीत "जहाँ मैं जाती हूँ वहीं चले आते हो, चोरी चोरी मेरे दिल में समाते हो", और दूसरा गीत है "बाप रे बाप' फ़िल्म का "पिया पिया पिया मेरा जिया पुकारे.... चोरी चोरी चोरी काहे हमें पुकारे, तुम तो बसी हो गोरी दिल में हमारे"। 1957 की फ़िल्म 'एक गाँव की कहानी' में लता और तलत का गाया और शैलेंद्र का लिखा एक गीत था "ओ हाये कोई देख लेगा, देखो सुनो पिया घबराये मोरा जिया रे, ओ कोई क्या देख लेगा, प्रीत की यह डोरी दुनिया से नहीं चोरी रे"। कुछ इसी तरह का भाव 'पारसमणि' के प्रस्तुत युगल-गीत में भी व्यक्त किया गया है। तो बातें तो बहुत सी हो गयी दोस्तों, अब गीत आप सुनिये लता और मुकेश की आवाज़ों में।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. नय्यर साहब का एक और मचलता दोगाना.
२. मजरूह के बोल है इस रूठने मनाने के गीत में.
३. मुखड़े में शब्द आता है - "हाथ".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
शरद जी एकदम सही जवाब.... शन्नो जी यही तो ख़ास बात थी इन गीतों, हम सभी का अनुभव आप जैसा ही है। भरत जी आपके दोनों जवाब गलत हैं। हाँ आप संगीतकार ठीक पहचाना है।
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
देख कसम से देख कसम से कहते हैं तुमसे हां
तुम भी जलोगे हाथ मलोगे रूठ के हमसे हाँ
इस सुमधुर गीत का इंतज़ार रहेगा.
आभारी
पराग