Skip to main content

मेरे महबूब क़यामत होगी....दर्द और वहशत में डूबी किशोर की आवाज़

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 79

गीतकार - संगीतकार जोड़ियों की जब बात चलती है तो आनंद बक्शी और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल की जोड़ी उसमें एक ख़ास जगह रखती है। आनंद बक्शी साहब ने सब से ज़्यादा गाने इसी लक्ष्मी-प्यारे की जोड़ी के लिए लिखे। लेकिन क्या आप जानते हैं कि इस सुरीले संगम की शुरुआत कहाँ से हुई थी? मेरा मतलब है वह कौन सा पहला गीत था बक्शी साहब का जिसमें संगीत दिया था एल-पी ने? वह गीत था 'मिस्टर एक्स इन बाम्बे' फ़िल्म का "मेरे महबूब क़यामत होगी, आज रुसवा तेरी गलियों में मोहब्बत होगी"। और यही गीत आज पेश है 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में। 'मिस्टर एक्स इन बाम्बे' सन् १९६४ की फ़िल्म थी जिसका निर्देशन किया था शांतिलाल सोनी ने। किशोर कुमार और कुमकुम अभिनीत यह फ़िल्म आज याद किया जाता है तो बस इसके ख़ूबसूरत गीत संगीत की वजह से। यूँ तो लता मंगेशकर और किशोर कुमार ने ४० के दशक मे ही अपना पहला युगल गीत साथ में गा लिया था, लेकिन सही माईने में उनका गाया पहला सब से ज़्यादा 'हिट' होनेवाला युगलगीत इसी फ़िल्म में था - "ख़ूबसूरत हसीना जान-ए-जान जान-ए-मन"। इस गीत को हम आपको फिर किसी रोज़ सुनवाएंगे, आज इस महफ़िल में ज़िक्र है किशोर कुमार के गाए "मेरे महबूब क़यामत होगी" की।

जब आनंद बक्शी साहब ने यह गीत लिखा और लक्ष्मीकांत-प्यारेलाल ने उसकी धुन बनाकर किशोर कुमार के घर पहुँचे तो वहाँ पर क्या हुआ, पढ़िए ख़ुद प्यारेलाल के शब्दों में जो उन्होने बताया था विविध भारती के 'उजाले उनकी यादों के' कार्यक्रम के दौरान - "जब हम गाना लेकर गये किशोर-जी के पास और गाना सुनाया उनको, तो वो इतना ख़ुश हुए, वो जा कर घर के सारे नौकरों को बुलाया, बाहर से 'वाचमैन' को भी बुलाया, मैं बता रहा हूँ आपको, यह कोई फ़िल्मी बात नहीं कर रहा हूँ मैं, 'वाचमैन' को बुलाया बाहर से, सब को बुलाया और बोले कि 'देखो, ये लड़के लोग कितना अच्छा 'म्युज़िक' किया है, कितना अच्छा 'म्युज़िक' किया है, गायो, गायो, गायो!' किशोरजी जो हैं ना, मैं बताऊँ आपको, दरसल वो सब से मज़ाक करते थे, लेकिन वो बहुत ही संजीदे किस्म के इन्सान भी थे। बहुत गम्भीर आदमी थे, उन्होने कभी हमारा मज़ाक नहीं किया, बात करते वक़्त, और हमेशा मुझसे बात करते थे तो 'सॊफ़्ट', संगीत के बारे में बात करते थे और ख़ास कर उनको 'वेस्टर्न म्युज़िक' का बहुत शौक था।" तो पढ़ा दोस्तों आपने प्यारेलाल ने क्या कहा है किशोर कुमार के बारे में और ख़ास कर इस गीत के बारे में! तो लीजिए, प्रस्तुत है किशोर कुमार के दर्दभरे अंदाज़ की मिसाल आज 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. शंकर -जयकिशन के संगीत में लता के अद्भुत गायन से सजा एक उत्कृष्ट गीत.
२. शैलेन्द्र के लिखे ढेरों बेहतरीन गीतों में से एक.
३. मुखड़े में शब्द है -"नगरी".

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम -
मनु जी अब क्या कहें आपके तो तुक्के भी सही बैठने लगे हैं. बधाई, पराग जी सही कहा आपने वाकई ऐसे बहुत से नाम हैं जिन्हें दुनिया आज भूल चुकी है...

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.


Comments

neelam said…
नगरी ,नगरी ,द्वारे ,द्वारे ढूंढूं रे सांवरिया ,
complete guess
अभी गाना सुन रहे हैं ,क्या गाना है !!!!!!!आज भी और शायद हमेशा ही लोगों को पसंद आएगा ही यह गीत ,सदाबहार गाने शायद इन्ही गानों को
कहते हैं |
rachana said…
जाओ रे जोगी तुम जाओ रे ये है प्रेमियों की नगरी
मुझे तो ये लगरहा है

रुक जा रात ठहर जा रे चंदा बीते न मिलन की बेला
आज चांदनी की नगरी में अरमानो का मेला
ये भी होसकता है पर इस में नगरी शब्द थोडी देर से आरहा है


सादर
रचना
Harshad Jangla said…
Neelamji

The song u have mentioned is from Mother India with Naushad.

-Harshad Jangla
Atlanta, USA
neelam said…
humne to pahle hi kah diya tha guess maane tukka ,aur humaara tukka kambakhat aaj tak kabhi laga hi nahi ,to aaj kahaan se lagta par gaana to bataayiye harshad mehta ji no no i mean "jangla" ji
manu said…
रुक जा रात वाला गीत तो लग रहा है शंकर जयकिशन का,,,,,,,

पर ये है प्रेमियों की नगरी वाला गीत शायद किसी और का है,,,,
शंकर का भी हो सकता है,,,और रोशन का भी,,,बड़ा कन्फ्यूजन है,,,
असल में मेरा दुर्भाग्य है के ये सब गीत मैंने बचपन में ही सुने थे,,,,,
जब से आकाशवाणी पर प्रायोजित गीत आने लगे हमने बंद ही कर दिया सुनना,,,,,
और आज ये हालत है के हमें ना चाहते हुए भी उन के बारे में तो पता है जिन्हें हम एकदम पसंद नहीं करते,,,,,,
और जिन के संगीत को सुनकर बड़े हुए हैं,,,जो बहुत गहरे बसा हुआ है ,,,,,,
उनके बारे में सही अंदाजा तक नहीं लगा पा रहे हैं,,,,
पराग जी ही आकर सुलझाएं,,,,
Parag said…
मेरे ख्याल से तो रचना जी का जवाब सही है

रुक जा रात ठहर जा रे चंदा बीते न मिलन की बेला
आज चांदनी की नगरी में अरमानो का मेला

आभारी
पराग
manu said…
संसार से भागे फिरते हो,,,और मन रे तू काहे न धीर धरे,,,,(रोशन के ही लग रहे हैं,,,)

तो रचना जी का पहले वाला जवाब ही सही होगा,,,,,पराग जी का भी मानना है,,,

रुक जा रात ठहर जा रे चन्दा ही है .....ये शंकर जयकिशन का ही लग रहा है,,,,,
मुझे भी आम्रपाली फिल्म का गीत ’जाओ रे जोगी ’ ही सही लग रहा है
shanno said…
इस तरह के अच्छे गाने सुनाकर तो आप क़यामत ढा रहे हैं. अपने ही समय में सालों पीछे उड़ कर पहुँच जाती हूँ. शुक्रिया.

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट