Skip to main content

गर्मी के मौसम राहत की फुहार लेकर आया गीत -"झिर झिर झिर झिर बदरवा बरसे..."

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 69

"सावन आये या ना आये, जिया जब झूमे सावन है"। दोस्तों, अगर मै आप से बरसात पर कुछ गाने गिनवाने के लिए कहूँ तो शायद आप बिना कोई वक़्त लिए बहुत सारे गाने एक के बाद एक बताते जायेंगे। जब भी फ़िल्मों में बारिश की 'सिचुयशन' पर गीत बनाने की बात आयी है तो हमारे गीतकारों और संगीतकारों ने एक से एक बेहतरीन गाने हमें दिये हैं, और फ़िल्म के निर्देशकों ने भी बहुत ही ख़ूबसूरती से इन गानों का फ़िल्मांकन भी किया है। आज हम एक ऐसा ही रिमझिम सावन बरसाता हुआ एक बहुत ही मीठा गीत 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में लेकर आये हैं। हमने बरसात पर इतने सारे गीतों में से इसी गीत को इसलिए चुना क्योंकि यह गीत बहुत सुंदर सुरीला होते हुए भी लोगों ने इसे ज़रा कम सुना है और आज बहुत ज़्यादा किसी रेडियो चैनल पर सुनाई भी नहीं देता है। आज बहुत दिनो के बाद यह गीत सुनकर आप ख़ुश हो जायेंगे ऐसा हमारा विश्वास है। यह गीत है १९५६ की फ़िल्म परिवार से "झिर झिर झिर झिर बदरवा बरसे हो कारे कारे"।

सन १९५६ संगीतकार सलिल चौधरी के लिए एक अच्छा साल साबित हुआ क्योंकि इस साल उनके संगीत से सजी तीनों फ़िल्में नामचीन बैनर्स के तले बनी थी, जैसे कि बिमल राय प्रोडक्शन्स, आर. के. फ़िल्म्स और महबूब प्रोडक्शन्स। बिमलदा और सलिलदा की दोस्ती बहुत पुरानी थी। बिमलदा के साथ इससे पहले सलिलदा 'दो बीघा ज़मीन', 'बिराज बहू','नौकरी' और 'अमानत' जैसी फ़िल्मों में काम कर चुके थे। १९५६ में बिमलदा और सलिलदा एक बार फिर साथ में आये फ़िल्म 'परिवार' लेकर जिसमें मुख्य कलाकार थे जयराज और उषा किरण। ख़ुद एक उम्दा निर्देशक होते हुए भी इस फ़िल्म का निर्देशन बिमलदा ने नहीं बल्कि असित सेन ने किया था। इस फ़िल्म में सलिल चौधरी ने शास्त्रीय संगीत को आधार बनाकर गीतों में संगीत दिया। इस फ़िल्म का लताजी और मन्नादा का गाया "जा तोसे नहीं बोलूं कन्हैया" इस फ़िल्म का सबसे लोकप्रिय गीत रहा है जो आधारित है राग हंसध्वनि पर। एक और युगल गीत है इस फ़िल्म में जो शास्त्रीयता की दृष्टि से थोड़ा सा हल्का-फुल्का है लेकिन 'मेलडी' और शब्दों की ख़ूबसूरती में किसी से कम नहीं। लता मंगेशकर और हेमन्त कुमार की आवाज़ों में झिर झिर सावन बरसाता हुआ यह गीत आज यहाँ पेश हो रहा है। यूँ तो बारिश के गाने ज़्यादातर 'आउट-डोर' में ही फ़िल्माया जाता है और नायक नायिका को भीगते हुए दिखाया जाता है, लेकिन इस गीत का फ़िल्मांकन काफ़ी वास्तविक है क्योंकि इस गाने में नायक और नायिका को अपने घर में बैठकर बाहर हो रही बारिश का आनंद लेते हुए दिखाया गया है। तो चलिये इस गीत की सुरीली बौछारों से हम भी भीग जाते हैं आज!



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. कवी प्रदीप का लिखा गीत, वसंत देसाई का संगीत.
२. लता तलत का एक और जादूई दोगाना.
३. मुखड़े में नायिका सवाल कर रही है और नायक जवाब दे रहा है...मुखड़े में एक शब्द है -"सुकुमार".

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम -
पराग जी ने सही जवाब तो दिया पर सर्च करके इसलिए उन्हें विजेता का खिताब नहीं दे पायेंगें. हाँ भरत पाण्डेय जी एकदम सही जवाब दिया है बधाई आपको....मुश्किल था हम मानते हैं, पर बीच-बीच में मुश्किल सवाल न पूछे तो आप लोग भी सही जवाब देते देते ऊब सकते हैं न :)

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.


Comments

इस गर्मी में बरसात के गीत ने मन को ही सही रहत की अनुभूति कराई...धन्यवाद.
manu said…
ओ गोरी सुकुमार,,,
हमारी सरकार;;;
बड़ा तेरा प्यार पसंद है हमें,,,
ओ दिलदार, बोलो इक बार, क्या मेरा प्यार पसंद है तुम्हें ? हो गोरी सुकुमार, हमारी सरकार बड़ा तेरा प्यार पसंद है हमें ।
Bharat Pandya said…
"O dildaar bolo ek baar kya mera pyar pasand haimtumhe"
O nari sukumar--------"

film School Master ( ya fir School Teacher)
AVADH said…
gaana to manuji, sharadji aur bharatji ne bata hi diya hai. film ka sahi naam hai school master.
avadh lal

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट