ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 82
कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आप ने सुना हेमन्त कुमार के संगीत और आवाज़ से सजी फ़िल्म 'बीस साल बाद' का एक गीत। आज भी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में हेमन्तदा छाये रहेंगे क्यूंकि आज भी हम उन्ही का स्वरबद्ध गीत सुनवाने जा रहे हैं आपको। लेकिन यह बात ज़रूर है कि आज का गीत उनकी आवाज़ में नहीं बल्कि सुर कोकीला लता मंगेशकर की आवाज़ में है। जहाँ हेमन्तदा का मधुर संगीत और लताजी की मधुर आवाज़ एक साथ घुलमिल जाये तो इस संगम से कैसा मीठा रस उत्पन्न होगा इसका शायद आप ख़ुद ही अंदाज़ा लगा सकते हैं। आज हम आपको सुनवाने के लिए लाये हैं १९५४ की फ़िल्म 'नागिन' का एक गीत। यूँ तो फ़िल्म 'नागिन' का नाम आते ही लताजी का गाया "मन डोले मेरा तन डोले" गीत याद आता है और साथ ही याद आती है रवि और कल्याणजी द्वारा बजाये गये हारमोनियम और क्लेवियोलिन पर बीन की ध्वनि। लेकिन इसी फ़िल्म में लताजी ने बहुत सारे एक से एक मधुर एकल गीत गाये हैं जिनकी चर्चा इस गीत से थोडी कम होती है। तो इसलिए हमने सोचा कि क्यों ना इन्ही में से एक गीत आज चुना जाए। अब देखना यह है कि क्या हमारी पसंद आपकी भी पसंद है या नहीं। ज़रूर बताइएगा!
'नागिन' के निर्देशक थे आइ. एस. जोहर और फ़िल्म में मुख्य भूमिकाएँ निभाई प्रदीप कुमार और वैजयन्तिमाला ने। लताजी ने इस फ़िल्म में जितने भी गाने गाये उन सबकी खासियत यह थी कि गाने बड़े सीधे सरल शब्दों में लिखे हुए थे जिन्हे लिखा था गीतकार राजेन्द्र कृष्ण ने, और उनका हेमन्तदा ने शास्त्रीय रागों का सहारा लेकर हल्के फुल्के धुनों में पिरोकर ऐसे प्रस्तुत किया कि सुननेवालों के कानों से होते हुए सीधे दिल में उतर गए। इस फ़िल्म के मधुर संगीत के लिए हेमन्त कुमार को उस साल के सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फ़िल्म-फ़ेयर पुरस्कार भी मिला था। उन दिनो संगीतकार रवि उनके सहायक हुआ करते थे। हेमन्तदा पुरस्कार लेकर मंच से नीचे आये और रवि के पास आकर उन्हे वह ट्राफ़ी सौंप दी। कहने की ज़रूरत नहीं कि रवि का 'नागिन' के संगीत में बहुत बड़ा हाथ था। आज हम आपको सुनवा रहे हैं "मेरा दिल ये पुकारे आजा"। इस गीत में भी अपको बीन की आवाज़ सुनाई देगी जिसे रवि और कल्याणजी ने बजाया था। और आपको यह भी बता दें कि यह गीत राग किरवाणी पर आधारित है। तो सुनिए यह गीत और खो जाइए इसकी मधुरता में।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. निर्देशक रमेश सहगल की इस फिल्म में थे राज कपूर और माला सिन्हा.
२. साहिर के सशक्त बोलों पर खय्याम का संगीत.
३. मुखड़े में शब्द है -"आजकल".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
पहली बार नीलम जी ने बाजी मारी है। बधाइयाँ..... हालाँकि शरद तैलंग ने इनसे पहले ही उत्तर बता दिया था, लेकिन वे गलती से अपना उत्तर शक्ति सामंत वाली पोस्ट पर दे गये थे...... रचना जी और मनु जी को भी बधाई। पवन जी, आपका स्वागत है..... ज़रूर सुनवायेंगे.... रोज़ सुनते रहिए.... आपको यह गाना मिलेगा।
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में आप ने सुना हेमन्त कुमार के संगीत और आवाज़ से सजी फ़िल्म 'बीस साल बाद' का एक गीत। आज भी 'ओल्ड इज़ गोल्ड' में हेमन्तदा छाये रहेंगे क्यूंकि आज भी हम उन्ही का स्वरबद्ध गीत सुनवाने जा रहे हैं आपको। लेकिन यह बात ज़रूर है कि आज का गीत उनकी आवाज़ में नहीं बल्कि सुर कोकीला लता मंगेशकर की आवाज़ में है। जहाँ हेमन्तदा का मधुर संगीत और लताजी की मधुर आवाज़ एक साथ घुलमिल जाये तो इस संगम से कैसा मीठा रस उत्पन्न होगा इसका शायद आप ख़ुद ही अंदाज़ा लगा सकते हैं। आज हम आपको सुनवाने के लिए लाये हैं १९५४ की फ़िल्म 'नागिन' का एक गीत। यूँ तो फ़िल्म 'नागिन' का नाम आते ही लताजी का गाया "मन डोले मेरा तन डोले" गीत याद आता है और साथ ही याद आती है रवि और कल्याणजी द्वारा बजाये गये हारमोनियम और क्लेवियोलिन पर बीन की ध्वनि। लेकिन इसी फ़िल्म में लताजी ने बहुत सारे एक से एक मधुर एकल गीत गाये हैं जिनकी चर्चा इस गीत से थोडी कम होती है। तो इसलिए हमने सोचा कि क्यों ना इन्ही में से एक गीत आज चुना जाए। अब देखना यह है कि क्या हमारी पसंद आपकी भी पसंद है या नहीं। ज़रूर बताइएगा!
'नागिन' के निर्देशक थे आइ. एस. जोहर और फ़िल्म में मुख्य भूमिकाएँ निभाई प्रदीप कुमार और वैजयन्तिमाला ने। लताजी ने इस फ़िल्म में जितने भी गाने गाये उन सबकी खासियत यह थी कि गाने बड़े सीधे सरल शब्दों में लिखे हुए थे जिन्हे लिखा था गीतकार राजेन्द्र कृष्ण ने, और उनका हेमन्तदा ने शास्त्रीय रागों का सहारा लेकर हल्के फुल्के धुनों में पिरोकर ऐसे प्रस्तुत किया कि सुननेवालों के कानों से होते हुए सीधे दिल में उतर गए। इस फ़िल्म के मधुर संगीत के लिए हेमन्त कुमार को उस साल के सर्वश्रेष्ठ संगीतकार का फ़िल्म-फ़ेयर पुरस्कार भी मिला था। उन दिनो संगीतकार रवि उनके सहायक हुआ करते थे। हेमन्तदा पुरस्कार लेकर मंच से नीचे आये और रवि के पास आकर उन्हे वह ट्राफ़ी सौंप दी। कहने की ज़रूरत नहीं कि रवि का 'नागिन' के संगीत में बहुत बड़ा हाथ था। आज हम आपको सुनवा रहे हैं "मेरा दिल ये पुकारे आजा"। इस गीत में भी अपको बीन की आवाज़ सुनाई देगी जिसे रवि और कल्याणजी ने बजाया था। और आपको यह भी बता दें कि यह गीत राग किरवाणी पर आधारित है। तो सुनिए यह गीत और खो जाइए इसकी मधुरता में।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -
१. निर्देशक रमेश सहगल की इस फिल्म में थे राज कपूर और माला सिन्हा.
२. साहिर के सशक्त बोलों पर खय्याम का संगीत.
३. मुखड़े में शब्द है -"आजकल".
कुछ याद आया...?
पिछली पहेली का परिणाम -
पहली बार नीलम जी ने बाजी मारी है। बधाइयाँ..... हालाँकि शरद तैलंग ने इनसे पहले ही उत्तर बता दिया था, लेकिन वे गलती से अपना उत्तर शक्ति सामंत वाली पोस्ट पर दे गये थे...... रचना जी और मनु जी को भी बधाई। पवन जी, आपका स्वागत है..... ज़रूर सुनवायेंगे.... रोज़ सुनते रहिए.... आपको यह गाना मिलेगा।
खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
आज कल इस तरफ वो देखता है कम,,,,,,
फिर सुबह होगी,,,,,(फिल्म)
जब अम्बर झूम के नाचेगा और धरती नगमे जायेगी,,,,,,
वो सुबह कभी तो आयेगी,,,,,,,,
वो सुभा कभी तो आयेगी,,,,,(मेरा फेवरिट)