स्वरगोष्ठी – ५५ में आज
जुगलबन्दी के बादशाह वायलिन वादक पण्डित जोग
भारतीय संगीत के प्रातःकालीन रागों में एक बेहद मधुर और भक्तिरस से सराबोर राग है- अहीर भैरव। हिन्दी फिल्मों में इस राग का प्रयोग बहुत अधिक तो नहीं हुआ किन्तु जिन संगीतकारो ने इस राग का उपयोग किया, उन्होने फिल्म-संगीत-जगत को अपने सदाबहार गीतों से समृद्ध कर दिया। शास्त्रीय संगीत के क्षेत्र में सुप्रसिद्ध वायलिन वादक पण्डित वी.जी. (विष्णु गोविन्द) जोग का अत्यन्त प्रिय राग अहीर भैरव ही था। ३१ जनवरी को पण्डित जी की आठवीं पुण्यतिथि है। इस अवसर पर आज के अंक में हम उनके प्रिय राग ‘अहीर भैरव’ के माध्यम से उन्हें स्वरांजलि अर्पित कर रहे हैं।
आज ‘स्वरगोष्ठी’ में एक नए अंक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सभी संगीत-प्रेमियों की बैठक में उपस्थित हुआ हूँ। दोस्तों, आज की बैठक में हम सुप्रसिद्ध वायलिन वादक पण्डित वी.जी. जोग के व्यक्तित्व और कृतित्व पर उनके प्रिय राग ‘अहीर भैरव’ के माध्यम से चर्चा करेंगे। परन्तु चर्चा की शुरुआत हम दो ऐसे फिल्मी गीत से करेंगे, जिन्हें राग ‘अहीर भैरव’ के स्वरों में पिरोया गया है। १९६३ में संगीतकार सचिनदेव बर्मन द्वारा स्वरबद्ध गीतों से सजी फिल्म ‘मेरी सूरत तेरी आँखें’ प्रदर्शित हुई थी। इस फिल्म का एक सदाबहार गीत- ‘पुछो न कैसे मैंने रैन बिताई....’, राग ‘अहीर भैरव’ पर आधारित था। फिल्मों में इस गीत के अलावा इसी राग पर आधारित कई गीत रचे गए, किन्तु जो लोकप्रियता फिल्म ‘मेरी सूरत तेरी आँखें’ के गीत को प्राप्त हुई, वह अन्य गीतों को न मिल सकी। कुछ समय पूर्व मुझे गायक येशुदास के स्वरों में एक अचर्चित गीत- ‘चलो मन जाएँ घर अपने...’ सुनने का अवसर मिला, जिसमें राग ‘अहीर भैरव’ के स्वरों का प्रयोग बड़ी शुद्धता से किया गया है। किसी फिल्मी गीत में राग के स्वरों का इतना सटीक निर्वहन बहुत कम मिलता है। पड़ताल करने पर ज्ञात हुआ कि यह गीत १९९४ में निर्मित और १९९५ में प्रदर्शित फिल्म ‘स्वामी विवेकानन्द’ का है और इसे सलिल चौधरी ने संगीतबद्ध किया था। यह सलिल चौधरी की अन्तिम फिल्म थी, जिसका प्रदर्शन उनके निधन के बाद हुआ था। आइए सुनते हैं, येशुदास के स्वरों में, राग ‘अहीर भैरव’ पर आधारित गुलज़ार लिखित यह गीत-
फिल्म – स्वामी विवेकानन्द : ‘चलो मन जाएँ घर अपने...’ : संगीत – सलिल चौधरी
राग ‘अहीर भैरव’ सुप्रसिद्ध वायलिन वादक पण्डित विष्णु गोविन्द (वी.जी.) जोग का प्रिय राग रहा है। ३१ जनवरी को इस महान संगीतज्ञ की आठवीं पुण्यतिथि है। इस अवसर पर हम उन्हें श्रद्धा से नमन करते हैं। २२ फरवरी, १९२२ को उनका जन्म मुम्बई में हुआ था। संगीत की प्रारम्भिक शिक्षा उन्हें पं. शंकरराव आठवले और गणपतराव पुरोहित से मिली। बाद में उन्होने लखनऊ आकर मैरिस म्युजिक कालेज (वर्तमान में भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय) के तत्कालीन प्रधानाचार्य डॉ. श्रीकृष्ण नारायण रातञ्जंकर से न केवल संगीत-शिक्षा प्राप्त की बल्कि १९५२ तक इसी कालेज में वायलिन शिक्षक के रूप में कार्य भी किया। वर्तमान में भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय के गिटार शिक्षक डॉ. सुनील पावगी, पण्डित जोग के न केवल शिष्य रहे हैं, बल्कि अपने गुरु के व्यक्तित्व और कृतित्व पर शोध भी किया है। श्री पावगी ने अपने गुरु पण्डित जोग के संगीत सीखने के जुनून के बारे मे एक रोचक प्रसंग सुनाया। लखनऊ में सीखने और सिखाने के दौर में ही वे एक बार जोग साहब बिना किसी को बताए, अचानक गायब हो गए। उनके गुरु डॉ. रातञ्जंकर के साथ-साथ घर के लोग चिन्तित हो गए। दो मास बाद मालूम हुआ की वे मैहर पहुँच कर बाबा अलाउद्दीन खाँ से संगीत सीख रहे हैं। जब बाबा को मालूम हुआ कि उनका यह शिष्य बिना किसी को बताए मैहर आ गया है, तो उन्होने तत्काल जोग साहब को वापस लखनऊ भेजा। आइए अब हम आपको पण्डित जोग का बजाया उनका प्रिय राग ‘अहीर भैरव’सुनवाते हैं। तबला संगति उस्ताद शेख दाऊद ने की है।
वायलिन वादन : वी.जी. जोग : राग – अहीर भैरव : मध्य व द्रुत तीनतालडॉ. पावगी से जब पण्डित जोग के वादन की विशेषताओं पर चर्चा हुई तो उन्होने बताया कि जोग साहब जुगलबन्दी के बादशाह थे। उन्होने देश-विदेश के अनेक ख्यातिप्राप्त कलासाधकों के साथ वायलिन की जुगलबन्दी की है, किन्तु जो प्रसिद्धि उन्हें उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ की शहनाई के साथ जुगलबन्दी करके मिली वह अन्यत्र दुर्लभ था। इन दोनों कलासाधकों ने प्रथम बार १९४६ में कोलकाता के लाला बाबू संगीत सम्मेलन में जुगलबन्दी की थी। अपने समय के प्रायः सभी संगीतज्ञों के साथ पण्डित जी की जुगलबन्दी के रिकार्ड, संगीत-प्रेमी आज भी सुनते और सराहते हैं। उस्ताद इनायत खाँ (सितार), पण्डित रामनारायण (सारंगी), पण्डित रविशंकर (सितार), पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया (बांसुरी), उस्ताद अमजद अली खाँ (सरोद), पण्डित शिवकुमार शर्मा (संतूर), पण्डित ब्रजभूषण काबरा (गिटार) और पण्डित ज्ञानप्रकाश घोष (हारमोनियम) के साथ जोग साहब की जुगलबन्दियाँ अविस्मरणीय रहीं हैं। उन्होने कई दक्षिण भारतीय वायलिन वादकों और पाश्चात्य संगीत के प्रसिद्ध पियानो वादकों के साथ भी अपनी वायलिन की जुगलबन्दी की है। आइए अब हम आपको पण्डित वी.जी. जोग और उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ की वायलिन और शहनाई जुगलबन्दी सुनवाते हैं। दोनों महान कलासाधकों ने राग पीलू – कहरवा ताल में एक पूरबी धुन का वादन किया है।
वायलिन-शहनाई जुगलबन्दी : पं. वी.जी. जोग – उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ : राग पीलू धुन
एक सवाल आपसे
मित्रों, अभी आपने पण्डित वी.जी. जोग और उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ द्वारा प्रस्तुत जुगलबन्दी के अन्तर्गत राग पीलू की एक धुन सुनी। इसे सुन कर क्या आपको एक पुराने फिल्म का गीत याद आ रहा है? यदि हाँ, तो गीत का मुखड़ा और फिल्म का नाम हमें तत्काल swargoshthi@gmail.com पर लिख भेजें। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’के ५७वें अंक में सम्मान के साथ प्रकाशित करेंगे।
इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सब के बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। हमसे सीधे सम्पर्क के लिए अथवा admin@radioplaybackindia.com पर भी अपना सन्देश भेज भेज सकते हैं। अगले रविवार को हमारी-आपकी सांगीतिक बैठक पुनः आयोजित होगी।
आपकी बात
‘स्वरगोष्ठी’ के ५३वें अंक में हमने आपसे भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के सर्वाधिक चर्चित प्रतिबन्धित गीत के बारे में आपसे प्रश्न किया था, जिसका सही उत्तर है- वन्देमातरम्, और सही उत्तर दिया है इन्दौर की क्षिति तिवारी जी ने। उन्हें रेडियो प्लेबैक इंडिया की ओर से बधाई।
झरोखा अगले अंक का
दोस्तों, आपने मौसम मे बदलाव का अनुभव किया होगा। दरअसल कल ही ऋतुराज बसन्त ने अपने आगमन की दस्तक दे दी है। अगले अंक में हम राग आधारित फिल्म संगीत के बहाने, बसन्त ऋतु के रागों से ऋतुराज का स्वागत करेंगे। अगले रविवार को प्रातः ९-३० बजे हमारी-आपकी पुनः सांगीतिक बैठक आयोजित होगी। हमें आपकी प्रतीक्षा रहेगी।
कृष्णमोहन मिश्र
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