पंडित डी वी पलुस्कर |
हिन्दी फिल्मों का इतिहास १९५३ में प्रदर्शित संगीतमय फिल्म ‘बैजू बावरा’ के उल्लेख के बिना अधूरा ही रहेगा। संगीतकार नौशाद को भारतीय संगीत के रागों के प्रति कितनी श्रद्धा थी, इस फिल्म के गीतों को सुन कर स्पष्ट हो जाता है। अपने समय के जाने-माने संगीतज्ञों को फिल्म संगीत के मंच पर लाने में नौशाद अग्रणी रहे हैं। आज की गोष्ठी में हम फिल्म ‘बैजू बावरा’ के एक गीत के माधम से प्रकृति के रंगों को बिखेरने में सक्षम राग ‘देसी’ अथवा ‘देसी तोड़ी’ पर चर्चा करेंगे।
स्वरगोष्ठी – 51 उस्ताद अमीर खान और डी वी पलुस्कर
नये वर्ष के एक नये अंक और एक नये शीर्षक के साथ मैं कृष्णमोहन मिश्र आपकी इस सुरीली गोष्ठी में उपस्थित हूँ। विगत एक वर्ष तक आपका प्रिय स्तम्भ ‘सुर संगम’, अब आपके सुझावों के अनुरूप न केवल नये शीर्षक, बल्कि नये कलेवर के साथ आपके सम्मुख प्रस्तुत है। मित्रों, इस बदले हुए स्वरूप में अब आपकी सहभागिता भी रहेगी। आज की ‘स्वरगोष्ठी’ में हमारी चर्चा के विषय हैं- राग देसी, उस्ताद अमीर खान, पण्डित दत्तात्रेय विष्णु पलुस्कर (डी.वी. पलुस्कर),संगीतकार नौशाद और फिल्म बैजू बावरा।
मित्रों, १९५३ में एक फिल्म- ‘बैजू बावरा’ प्रदर्शित हुई थी। अपने समय की सफल फिल्मों में यह एक सफलतम फिल्म थी। अकबर के समकालीन कुछ ऐतिहासिक तथ्यों के साथ कुछ दन्तकथाओं के मिश्रण से बुने हुए कथानक पर बनी इस फिल्म को आज भी केवल इसलिए याद किया जाता है कि इसका गीत-संगीत भारतीय संगीत के रागों पर केन्द्रित था। फिल्म के कथानक के अनुसार अकबर के समकालीन सन्त-संगीतज्ञ स्वामी हरिदास के शिष्य तानसेन सर्वश्रेष्ठ थे। श्रेष्ठता के कारण ही तानसेन की गणना अकबर के नवरत्नों में की गई थी। स्वामी हरिदास के ही एक अन्य शिष्य थे- बैजू अथवा बैजनाथ, जिसका संगीत मानवीय संवेदनाओं से परिपूर्ण था। फिल्म के कथानक का निष्कर्ष यह था कि संगीत जब राज दरबार की दीवारों से घिर जाता है, तो उसका लक्ष्य अपने स्वामी की प्रशस्ति तक सीमित हो जाता है, जबकि मुक्त प्राकृतिक परिवेश में पनपने वाला संगीत ईश्वरीय शक्ति से परिपूर्ण होता है। राग देसी के स्वरों से पगा जो गीत आज हमारी चर्चा में है, उसका फिल्मांकन बादशाह अकबर के दरबार में किया गया था। तानसेन और बैजू बावरा के बीच एक सांगीतिक प्रतियोगिता बादशाह के सम्मुख, उन्हीं के आदेश से, भरे दरबार में आयोजित की गई और कहने की आवश्यकता नहीं कि इस प्रतियोगिता में तानसेन की तुलना में बैजू बावरा की श्रेष्ठता सिद्ध हुई थी। आज का गीत फिल्म के इसी प्रसंग में प्रस्तुत किया गया था। इस गीत में अपने समय के दो दिग्गज गायक उस्ताद अमीर खाँ और पण्डित डी.वी. पलुस्कर ने स्वर दिया था। आइए पहले इस गीत को सुनते हैं, फिर इस चर्चा को आगे बढ़ाएँगे।
फिल्म – बैजू बावरा : ‘आज गावत मन मेरो झूम के...’: स्वर – उस्ताद अमीर खाँ और पं. डी.वी. पलुस्कर
उस्ताद अमीर खाँ |
विलम्बित खयाल : राग – देसी : स्वर – उस्ताद उम्मेद अली खाँ
आइए, अब थोड़ी चर्चा राग देसी के बारे में करते है। इस राग को देसी के अलावा देसी तोड़ी अथवा देस तोड़ी भी कहते हैं। यह आसावरी थाट का राग है। इसमे शुद्ध धैवत के स्थान पर कोमल धैवत का प्रयोग किया जाता है। शेष सभी स्वर राग देस के समान होते हैं। फिल्म ‘बैजू बावरा’ में इस राग का संक्षिप्त किन्तु अत्यन्त मुखर प्रयोग किया गया था। आइए, अब हम आपको सारंगी पर राग देसी की एक आकर्षक अवतारणा सुनवाते है। वादक हैं, १८८८ में जन्में, बीसवीं शताब्दी के आरम्भिक दशकों के जाने-माने सारंगीनवाज़ उस्ताद मसीत खाँ, जिन्होने अपने समय के लगभग सभी दिग्गज गायक कलाकारों के साथ संगति कर यश पाया था।
सारंगी वादन : राग – देसी : वादक – उस्ताद मसीत खाँ
अब हम आज के अंक को यहीं विराम देते हैं और आपको इस सुरीली संगोष्ठी में सादर आमंत्रित करते हैं। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सब के बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। हम आपके सुझाव, समालोचना, प्रतिक्रिया और फरमाइश की प्रतीक्षा करेंगे और उन्हें पूरा सम्मान देंगे। आप इस पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अथवा सीधे admin@radioplaybackindia.com पर अपना सन्देश भेज कर हमारी गोष्ठी में शामिल हो सकते हैं। आज हम आपसे यहीं विदा लेते हैं, अगले अंक में हमारी-आपकी पुनः सांगीतिक बैठक आयोजित होगी।
झरोखा अगले अंक का
आपको स्मरण ही होगा कि ४४वें अंक से हमने लोकगीतों के अन्तर्गत आने वाले संस्कार गीतों की श्रृंखला का शुभारम्भ किया था। इस श्रृंखला की अगली कड़ी में हम यज्ञोपवीत संस्कार के गीत के साथ-साथ विवाह संस्कार के गीतों की भी शुरुआत करेंगे। भविष्य में हम प्रयास करेंगे कि प्रत्येक मास कम से कम एक अंक लोक-संगीत पर अवश्य हो। अगले सप्ताह हम लोक-संगीत की सोंधी महक लिये हुए गीतों के साथ उपस्थित होंगे। हमारी इस सुरीली महफिल में अवश्य पधारिएगा।
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