Skip to main content

ब्लोग्गर्स चोईस विद रश्मि प्रभा - मेहमान है सलिल वर्मा

रश्मि प्रभा 

बड़ा जोर है सात सुरों में बहते आंसू जाते हैं थम. संगीत तो वाकई जादू है. दुःख हो सुख हो डूबती कश्ती हो ख्यालों के गीत सुकून देते हैं, राह देते हैं...मैं रश्मि प्रभा अब तक ब्लौगरों की कलम से आपको मिलवाती रही हूँ, इस मंच पर मैं उनकी पसंद के कम से कम 5 गाने आपको सुनाऊंगी, आप भी तो जानिए इनकी पसंद क्या है ! आँखें बन्द कर उनकी पसंद की लहरों में खुद को बहने दीजिये, और बताइए कैसा लगा...क्रम से लोग आ रहे हैं गीतों की खुशबू लिए - ये पहला नाम है सलिल वर्मा जी का,.... रुकिए रुकिए ब्लॉग प्रसिद्द 'चला बिहारी ब्लॉगर बनने' से आप ज्यादा परिचित हैं . थी तो मैं भी , पर ध्यान गया जब मैं बुलेटिन टीम में आई तो इनकी बगिया में भी सैर कर आई. घूमकर आई तो देखा बिहारी भाई बिहारी बहन के बगीचे में घूम रहे हैं .... मैंने पूछा - कौन ? , रश्मि दी .... इस संबोधन के बाद कुछ अनजाना नहीं रहता. लिखते तो सलिल जी बहुत ही बढ़िया हैं, आप मिले होंगे इनसे http://chalaabihari.blogspot.com/ पर . सोच पैनी, कलम ज़बरदस्त... और गानों की पसंद भी ज़बरदस्त.... तो अब देर किस बात की . ये रहे गाने और उनके लिए एक ख्याल सलिल जी के, कोई बिना सुने हटेगा नहीं -


ब्लॉगर सलिल वर्मा 
१. कोई दूर से आवाज़ दे चले आओ!
मेरी प्रिय गायिका गीता दत्त का गाया यह गीत फिल्म ‘साहब बीवी और गुलाम’ से है. हेमंत कुमार का संगीत दिल को छू जाता है. जब मैं यह फिल्म देखने गया था तो फिल्म बस शुरू हो चुकी थी. और मैं जैसे ही हॉल में घुसा यह गीत शुरू हुआ. मैं गीत समाप्त होने तक सीढ़ियों पर बैठा रह गया. जब गाना समाप्त हुआ तब लगा किसी ने झकझोरकर जगाया. मीना कुमारी और गीता दत्त एक दूसरे में ऐसे समाये दिखे हैं फिल्म के सभी गानों में कि दोनों में अंतर करना मुश्किल हो जाता है. शायद एक कॉमन व्यथा थी दोनों के बीच.

२. फिर वही शाम, वही गम, वही तन्हाई है:
तलत महमूद साहब का गया यह गाना फिल्म जहाँआरा फिल्म से है. मदन मोहन का मधुर संगीत और राजिंदर किशन साहब की उम्दा शायरी, जब तलत साहब की मखमली आवाज़ में गीत बनाकर ढलती है तो बस जादू का सा असर करती है. तलत साहब के गले की मुरकियां, जो उनकी खासियत थी, इस गाने में बड़ी गहराई से महसूस की जा सकती है.

३. ये दुनिया, ये महफ़िल, मेरे काम की नहीं:
हीर-रांझा फिल्म का यह गीत रफ़ी साहब ने गाया है. एक बार फिर मदन मोहन का संगीत और कैफी आज़मी साहब की शायरी. फिल्म में राजकुमार साहब परदे पर रांझा के अलग अलग रूप में नज़र आते हैं, पागल प्रेमी, साधू, मलंग या फ़कीर... रफ़ी साहब ने आवाज़ से जो असर पैदा किया है वो बिलकुल ऐसा लगता है जैसे तस्वीर खींच दी गयी हो. सुनने वाले को सिर्फ आँख बंद करना होता है और सारा दृश्य सामने हाज़िर हो जाता है. अगर सोचें कि रांझा ने यह गीत गया होता तो आवाज़ ज़रूर रफ़ी साहब की ही होती!!

४. दिल की गिरह खोल दो, चुप न बैठो:
मन्ना दे और लता मंगेशकर का गया यह युगल गीत फिल्म “रात और दिन” से है. मेरे प्रिय संगीतकार शंकर-जयकिशन की बनाई धुन. गाने की मिठास अपनी जगह मगर “महफ़िल में अब कौन है अजनबी..” गाते समय लता जी और मन्ना दे जब सुर को नीचे से उठाकर ऊपर के सुर तक ले जाते हैं तो आवाज़ की मिठास को बनाए रखते हुए गाने में एक जादुई असर पैदा होता है. यह गाना रोमांटिक युगल गीतों में एक मील का पत्थर है और नरगिस की अदाकारी की बुलंदी का नमूना भी.

५. परबतों के पेड़ों पर, शाम का बसेरा है:
साहिर साहब के लिखे इस गाने को अगर एक पेंटिंग कहा जाए तो अतिशयोक्ति न होगी. पूरी शायरी में शाम की जो तस्वीर खींची है उन्होंने, वो किसी कनवास पर बनी पेंटिंग सी लगती है. खय्याम साहब की बनाई धुन फिल्म ‘शगुन’ से और आवाज़ मुहम्मद रफ़ी के साथ प्यारी आवाज़ की मलिका सुमन कल्यानपुर की. गीत में सुमन जी की आवाज़ इतनी भोली लगती है मानो शाम के धुंधलके में घुली जा रही हो! अगर कोई बोलती हुयी पेंटिंग देखनी सुननी हो तो बस आँखें बंद करके यह गाना सुनने से ज़्यादा कुछ भी करने की ज़रूरत नहीं.

सुनिए हमारे आज के ब्लॉगर की पसंद के ये सभी गीत, क्रमबद्ध इस प्लेयर में -



अगली पेशकश के लिए रहिये बेताब ... और सुनिए - कल की हंसीं मुलाकात के लिए....

Comments

vandana gupta said…
सलिल जी से मिलना और उनकी पसन्द के गीतो को सुनना बेहद आनन्ददायक रहा………सुन्दर आहवान्।.
बहुत बढ़िया आगाज़ .
नये स्तम्भ का स्वागत है।
सदा said…
आपकी कलम के साथ सलिल जी से मिलना तो हुआ ही उनकी पसन्‍द के गीत सुनना और भी अच्‍छा लगा ... आभार सहित बधाई
कल 25/01/2012 को आपकी यह पोस्ट नयी पुरानी हलचल पर लिंक की जा रही हैं.आपके सुझावों का स्‍वागत है, ।। वक्‍़त इनका क़ायल है ... ।।

धन्यवाद!
बहुत बढ़िया ..आभार इस को शेयर करने के लिए
KAVITA said…
ek naye andaj mein sundar prastuti...aabhar!
Sujoy Chatterjee said…
is naye stambh ke tamaam comments ke bahaane pataa chalaa ki kitne log Radio Playback India ko padhte hain :-)
सलिल जी से मिलना और उनके गीतो को सुनना बहुत अच्छा लगा.... बेहद भावपूर्ण और दिलचस्ब जानकारी ..आप के इस नये स्तम्भ का स्वागत है। आभार...

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...