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कालजयी देशभक्ति गीत "ऐ मेरे वतन के लोगों" के साथ केवल पंडित नेहरू की यादें ही नहीं जुड़ी हुई हैं, बल्कि इस गीत के बनने की कहानी भी बड़ी दिलचस्प है। आज गणतन्त्र दिवस की पूर्वसंध्या पर इसी गीत से जुड़ी कहानियाँ सुजॉय चटर्जी के साथ 'एक गीत सौ कहानियाँ' की चौथी कड़ी में...
एक गीत सौ कहानियाँ # 4
देशभक्ति गीतों की बात चलती है तो कुछ गीत ऐसे हैं जो सबसे पहले याद आ जाते हैं, चाहे वो फ़िल्मी हों या ग़ैर-फ़िल्मी। लता मंगेशकर की आवाज़ में एक ऐसी ही कालजयी रचना है "ऐ मेरे वतन के लोगों, ज़रा आँख में भर लो पानी, जो शहीद हुए हैं उनकी ज़रा करो क़ुर्बानी"। कवि प्रदीप के लिखे और सी. रामचन्द्र द्वारा स्वरबद्ध इस गीत को जब भी सुनें, रोंगटे खड़े हुए बिना नहीं रहते, आँखें नम हुए बिना नहीं रहतीं, हमारे वीर शहीदों के आगे नतमस्तक हुए बिना हम नहीं रह पाते। इस गीत को १९६२ के भारत-चीन युद्ध के शहीदों को समर्पित किया गया था। कहते हैं कि रेज़ांग् ला के प्रथम युद्ध में १३ - कुमाऊं रेजिमेण्ट, सी-कंपनी के आख़िरी मोर्चे में परमवीर मेजर शैतान सिंह भाटी के दुस्साहस और बलिदान से प्रभावित होकर कवि प्रदीप नें इस गीत की रचना की थी। २६ जनवरी १९६३ के दिन नई दिल्ली के रामलीला मैदान में आयोजित गणतन्त्र दिवस समारोह में गायिका लता मंगेशकर नें इस गीत को पहली बार प्रस्तुत कर मौजूद जनता को मन्त्रमुग्ध कर दिया था। गीत का ऐसा असर हुआ था कि वहाँ पर मौजूद जनता बिल्कुल शान्त, हर एक की आँखें नम, यहाँ तक कि पण्डित नेहरू गीत के समाप्त होने पर मंच में आकर अपनी आँखें पोंछते हुए लता से कहा, "बेटी, तूने मुझे रुला दिया"। उसी समारोह में इस गीत की एक प्रति (साउण्डट्रैक स्पूल) पं नेहरू को भेंट में दी गई थी। प्रसिद्ध फ़िल्म पत्रिका 'स्क्रीन' में प्रकाशित लेख में इस गीत के बारे में लिखा गया था - "The lyrics of the song not only reflected Kavi Pradeep's sentiments but his nationalistic thinking of the country at large. With singer Lata Mangeshkar and composer C Ramchandra, he brought tears to every eye including Nehru's."
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अब आते हैं इस गीत के बनने की कहानी पर जो विवादों से घिरी रही। उन दिनों किसी मनमुटाव या व्यक्तिगत कारणों से लता मंगेशकर और सी. रामचन्द्र साथ में काम नहीं कर रहे थे। ऐसे में जब कवि प्रदीप नें "ऐ मेरे वतन..." की रचना की और सी. रामचन्द्र को सुनाया, तो अन्ना नें इस गीत का रिहर्सल आशा भोसले से करवानी शुरु कर दी। प्रदीप को इस बात का पता नहीं था। अब यहाँ से इस कहानी के दो रुख़ सुनने में आते हैं। पहली धारणा यह है कि जब कवि प्रदीप को पता चला कि अन्ना गाने का रिहर्सल आशा से करवा रहे हैं, तब उन्होंने यह साफ़ कह दिया कि वो यह गाना तभी देंगे अगर लता गायेंगी तो (यह बात लता नें साक्षात्कार में भी बताया है)। और दूसरी धारणा यह कहती है कि जब लता को पता चला कि दिल्ली में पंडित नेहरू के सामने गाये जाने वाले गीत को आशा गा रही है, तो सी. रामचन्द्र से अपनी अन-बन को भुला कर प्रदीप के ज़रिये उन्हें ख़बर भिजवाया कि इस गीत को वो गाना चाहती हैं। और क्योंकि प्रदीप भी यही चाहते थे और अन्ना भी मन ही मन लता को ही पसन्द करते थे, इस तरह से लता इस गीत से जुड़ गईं। अब इन दोनों धारणाओं को एक कर दिया जाये तो निश्कर्ष यही निकलता है कि लता के लिए "ऐ मेरे वतन..." का मार्ग खुलने लगा। क्योंकि आशा को इस गीत का ऑफ़र दिया जा चुका था और वो इसका रिहर्सल भी कर रही थीं, प्रदीप और अन्ना नें यह तय किया कि इसे लता और आशा, दोनों की युगल आवाज़ों में प्रस्तुत किया जाए। लेकिन रहस्यमय तरीक़े से आशा का पत्ता साफ़ कर दिया गया और यह गीत लता का एकल गीत बन गया। आशा को दरकिनार करने के पीछे किसका हाथ था, यह जाने बिना यहाँ टिप्पणी करना सही नहीं, पर समझदारों के लिए इसका अनुमान लगाना कोई बड़ी बात नहीं। जो भी हुआ आशा के साथ, अच्छा नहीं हुआ। यह आशा भोसले की महानता ही कहेंगे कि उन्होंने इस गीत को न गा पाने का मलाल अपने दिल में दबाये तो रखा पर कभी किसी के ख़िलाफ़ उंगली भी नहीं उठाई। पारिवारिक कारणों से वो मंगेशकर परिवार से अलग-थलग तो हो ही चुकी थीं, इस घटना के बाद आशा अपनी बड़ी बहन से और भी ज़्यादा दूर चली गईं।
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चाहे इस गीत के साथ कितनी भी विवाद, कितने भी मनमुटाव जुड़े रहे हों, सच्चाई यही है कि यह भारत के सर्वश्रेष्ठ १० देशभक्ति गीतों में एक है, और आज भी इसे सुनते हैं तो कलेजा चीर के रख देता है।
"ऐ मेरे वतन के लोगों" गीत को सुनने के लिए नीचे प्लेयर में क्लिक करें...
तो दोस्तों, आज 'एक गीत सौ कहानियाँ' में बस इतना ही, अगले सप्ताह फिर किसी गीत से जुड़ी बातें लेकर मैं फिर उपस्थित होऊंगा, आपको यह स्तंभ कैसा लग रहा है, ज़रूर बताइएगा टिप्पणी में, और अगर किसी ख़ास गीत की तरफ़ हमारा ध्यान आकर्षित करना चाहते हैं तो हमें ज़रूर सूचित कीजिएगा। अब अनुमति दीजिए अपने इस दोस्त, सुजॉय चटर्जी को, फिर मुलाक़ात होगी अगले सप्ताह, नमस्कार!
Comments
Sujoy
रोंगटे खड़े कर देता है यह गाना.आज भी लेडीज़ क्लब के इन दो खास दिनों के सेलिब्रेशन मे मैं यह गाना जरूर गाती हूँ यानी साल मे कम से कम दो बार.