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‘वीणा मधुर मधुर कछु बोल...’ : गीत के बहाने, चर्चा राग- भीमपलासी की


महात्मा गाँधी ने अपने जीवनकाल में एकमात्र फिल्म ‘रामराज्य’ देखी थी। १९४३ में प्रदर्शित इस फिल्म का निर्माण प्रकाश पिक्चर्स ने किया था। इस फिल्म के संगीत निर्देशक अपने समय के जाने-माने संगीतज्ञ पण्डित शंकरराव व्यास थे। बहुमुखी प्रतिभा के धनी, व्यासजी की कुशलता केवल फिल्म संगीत निर्देशन के क्षेत्र में ही नहीं, बल्कि शास्त्रीय गायन, संगीत शिक्षण और ग्रन्थकार के रूप में भी सुरभित हुई। फिल्म ‘रामराज्य’ में पण्डित जी ने राग भीमपलासी के स्वरों में एक गीत संगीतबद्ध किया था। आज हमारी गोष्ठी में यही गीत, राग और इसके रचनाकार, चर्चा के विषय होंगे।
SWARGOSHTHI – 53 – Pandit Shankar Rao Vyas

‘स्वरगोष्ठी’ के एक नए अंक के साथ, मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार फिर इस सांगीतिक बैठक में उपस्थित हूँ। आज हम लगभग सात दशक पहले की एक फिल्म ‘रामराज्य’ के एक गीत- ‘वीणा मधुर मधुर कछु बोल...’ और इस गीत के संगीतकार पण्डित शंकरराव व्यास के व्यक्तित्व-कृतित्व पर चर्चा करेंगे। कल २३ जनवरी को इस महान संगीतज्ञ की ११३वीं जयन्ती है। इस अवसर के लिए हम आज उन्हें स्वरांजलि अर्पित कर रहे हैं।

कोल्हापुर में २३ जनवरी, १८९८ में पुरोहितों के परिवार में जन्मे शंकरराव व्यास के पिता गणेश पन्त, कथा-वाचक के साथ संगीत-प्रेमी भी थे। संगीत के संस्कार उन्हें अपने पिता से ही प्राप्त हुए। दुर्भाग्यवश जब शंकरराव आठ वर्ष के थे तब उनके पिता का देहान्त हो गया। पिता के देहान्त के बाद वे अपने चाचा श्रीकृष्ण सरस्वती के आश्रित हुए। उन्हीं दिनों पण्डित विष्णु दिगम्बर पलुस्कर भारतीय संगीत की दयनीय स्थिति से उबारने के लिए पूरे महाराष्ट्र में भ्रमण कर रहे थे और उनकी अगली योजना पूरे देश में संगीत के प्रचार-प्रसार की थी। बालक शंकरराव के संगीत-ज्ञान और उत्साह देख कर पलुस्कर जी ने उन्हें अपने साथ ले लिया। पलुस्कर जी द्वारा स्थापित गान्धर्व विद्यालय में ही उन्होने ९ वर्ष तक संगीत शिक्षा प्राप्त की और अहमदाबाद के राष्ट्रीय विद्यालय में संगीत शिक्षक हो गए। इसी बीच पलुस्कर जी ने लाहौर में संगीत विद्यालय की स्थापना की और शंकरराव को वहीं प्रधानाचार्य के पद पर बुला लिया। लाहौर में संगीत विद्यालय विधिवत स्थापित हो जाने और सुचारु रूप से संचालित होने के बाद वे अहमदाबाद आए और यहाँ भी ‘गुजरात संगीत विद्यालय’ की स्थापना भी की। १९३४ में उन्होने गान्धर्व संगीत महाविद्यालय स्थापित किया। इस बीच उन्होने संगीत शिक्षण के साथ-साथ संगीत सम्मेलनों में भाग लेना भी जारी रखा।

१९३८ में ४० वर्ष की आयु में शंकरराव व्यास ने फिल्म संगीत के क्षेत्र में पदार्पण किया। १९३८ में रमणलाल बसन्तलाल के उपन्यास पर बनी फिल्म ‘पूर्णिमा’ में कई गीत गाये थे। गायन के साथ-साथ फिल्मों की संगीत रचना के क्षेत्र में भी उनका वर्चस्व कायम हो चुका था। व्यास जी के संगीतबद्ध, भक्ति प्रधान और नीति पधान गीत गली-गली गूँजने लगे थे। १९४० में ‘सरदार’, ‘नरसी भगत’ और १९४२ में ‘भरतमिलाप’ फिल्मों के गीत लोकप्रियता के शिखर पर थे। इसी समय १९४३ में प्रकाश पिक्चर्स की फिल्म ‘रामराज्य’ प्रदर्शित हुई। भारतीय स्वतन्त्रता संग्राम के दौर में प्रदर्शित फिल्म ‘रामराज्य’ में दर्शकों को गाँधीवादी रामराज्य की परिकल्पना परिलक्षित हो रही थी। इस फिल्म के राग आधारित गीत भी अत्यन्त जनप्रिय हुए थे, विशेष रूप से फिल्म में लव और कुश चरित्रों पर फिल्माया गया गीत ‘भारत की एक सन्नारी की हम कथा सुनाते हैं...’ और राजमहल में फिल्माया गया गीत ‘वीणा मधुर मधुर कछु बोल...’। पण्डित शंकरराव व्यास ने इन दोनों गीतों को क्रमशः काफी और भीमपलासी के स्वरों में बाँधा था। आज हमारी चर्चा में रमेश चन्द्र गुप्ता के लिखे, शंकरराव व्यास के संगीतबद्ध किए और राग भीमपलासी पर आधारित गीत ‘वीणा मधुर मधुर कछु बोल...’ ही है। आइए, पहले हम यह गीत सुनते हैं।

फिल्म – रामराज्य : ‘वीणा मधुर मधुर कछु बोल...’ : स्वर – सरस्वती राणे


राग ‘भीमपलासी’ भारतीय संगीत का एक ऐसा राग है, जिसमें भक्ति और श्रृंगार रस की रचनाएँ खिल उठती है। यह औड़व-सम्पूर्ण जाति का राग है, अर्थात आरोह में पाँच स्वर- सा, , म, प, नि, सां और अवरोह में सात स्वर- सां नि, ध, प, म , रे, सा प्रयोग किए जाते हैं। इस राग में गंधार और निषाद कोमल और शेष सभी स्वर शुद्ध होते हैं। यह काफी थाट का राग है और इसका वादी और संवादी स्वर मध्यम और तार सप्तक का षडज होता है। कभी-कभी वादी स्वर मध्यम के स्थान पर पंचम का प्रयोग भी किया जाता है। ‘भीमपलासी’ के गायन-वादन का समय दिन का चौथा प्रहर होता है। आइए, अब हम आपको विश्वविख्यात सितार-वादक पण्डित रविशंकर का बजाया राग ‘भीमपलासी’ सुनवाते हैं। सितार के स्वरों में आप फिल्म ‘रामराज्य’ के गीत ‘वीणा मधुर मधुर कछु बोल...’ के स्वरों को खोजने का प्रयास करें।

सितार वादन : राग – भीमपलासी : वादक – पं. रविशंकर


आपने राग ‘भीमपलासी’ की बेहद मधुर प्रस्तुति का आनन्द प्राप्त किया। इस प्रस्तुति में पण्डित रविशंकर ने आलाप, जोड़ और झाला-वादन किया है। कर्नाटक संगीत पद्यति में ‘भीमपलासी’ के समतुल्य राग है ‘आभेरी’। ‘भीमपलासी’ एक ऐसा राग है, जिसमें खयाल-तराना से लेकर भजन-ग़ज़ल की रचनाएँ संगीतबद्ध की जाती हैं। श्रृंगार और भक्ति रस की अभिव्यक्ति के लिए यह वास्तव में एक आदर्श राग है। आइए अब हम आपको इसी राग में कण्ठ संगीत का एक मोहक उदाहरण सुनवाते हैं। पण्डित जसराज वर्तमान में भारतीय संगीत के वरिष्ठ संगीतज्ञों की सूची में शिखर पर हैं। उन्हीं के स्वर में अब हम राग ‘भीमपलासी’ का द्रुत तीनताल में निबद्ध एक खयाल आपके लिए प्रस्तुत कर रहे हैं, जिसके बोल हैं- ‘जा जा रे अपने मन्दिरवा...’

खयाल गायन : राग भीमपलासी : तीनताल : स्वर – पण्डित जसराज


अब हम आज के अंक को यहीं विराम देते हैं और आपको इस सुरीली संगोष्ठी में सादर आमंत्रित करते हैं। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सब के बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। हम आपके सुझाव, समालोचना, प्रतिक्रिया और फरमाइश की प्रतीक्षा करेंगे और उन्हें पूरा सम्मान देंगे। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अथवा swargoshthi@gmail.com या admin@radioplaybackindia.com पर अपना सन्देश भेज कर हमारी गोष्ठी में शामिल हो सकते हैं। आज हम आपसे यहीं विदा लेते हैं, अगले अंक में हमारी-आपकी पुनः सांगीतिक बैठक आयोजित होगी।

झरोखा अगले अंक का

ब्रिटिश शासन के विरुद्ध चले स्वतन्त्रता संग्राम के दौरान भारतीय जनमानस में चेतना जगाने और स्वतन्त्रता सेनानियों को शक्ति प्रदान करने के उद्देश्य से अनेक कवियों और गीतकारों ने अपनी रचनाओं से क्रान्ति का अलख जगाया था। ऐसे असंख्य गीतों को तत्कालीन ब्रिटिश सरकार ने जब्त कर प्रतिबन्धित कर दिया था। गणतन्त्र दिवस पर ‘स्वरगोष्ठी’ के विशेष अंक में हम ऐसे ही कुछ दुर्लभ गीतो पर आपसे चर्चा करेंगे। ब्रिटिश काल का एक ऐसा भी प्रतिबन्धित गीत है, जिसका उच्चारण करते हुए असंख्य बलिदानी फाँसी पर झूल गए थे और जिसे स्वतंत्र भारत के संविधान ने सर्वोच्च पद पर प्रतिष्ठित किया है। क्या आप हमें उस गीत का शीर्षक बता सकते हैं? आप हमें इस गीत का शीर्षक बताइए और अगले अंक में हम विजेता के रूप में आपका नाम घोषित करेंगे।

कृष्णमोहन मिश्र

Comments

Kshiti said…
bahut sundar aalekh hai pandit jasraaj ka gaayan aur pandit ravi shankar ka sitaar vaadan bahut hi acchha hai.maine apne guruji se ek doosri bandish seekhi thi par ye bandish bhi bahut achhi hai.....
Unknown said…
Apratim Raag. Behatareen writeup. I love to listen to " Ja Ja Re Apne Mandirava" also Vidushi Dr. Ashwini Bhide Deshpande's Voice
BEAUTIFUL BUT POIGNANT (THIS TIME..)aNOTHER SONG BASED ON BHIMPALASI IS .."AERI MEITO PREM DIWANI MERA DARD NA JANE KOI..

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