सुर संगम- 50 : यादें
कृष्णमोहन मिश्र
‘सुर संगम’ के सभी पाठकों/श्रोताओं का इस स्वर्ण जयन्ती अंक में हार्दिक स्वागत है। दोस्तों, २ जनवरी २०११ को हमने शास्त्रीय और लोक संगीत से अनुराग रखने वाले रसिकों के लिए इस श्रृंखला का शुभारम्भ किया था। हमारे दल के सर्वाधिक कर्मठ साथी सुजोय चटर्जी ने इस स्तम्भ की नीव रखी थी। उद्देश्य था- शास्त्रीय और उपशास्त्रीय संगीत-प्रेमियों को एक ऐसा मंच देना जहाँ किसी कलासाधक अथवा किसी संगीत-विधा पर हम आपसे संवाद कायम कर सकें और आपसे विचारों का आदान-प्रदान कर सकें। आज के इस स्वर्ण जयन्ती अंक के माध्यम से हम पिछले एक वर्ष के अंकों का स्वतः मूल्यांकन करेंगे और आपकी सहभागिता का उल्लेख भी करेंगे।
जैसा कि पहले ही उल्लेख किया गया कि इस स्तम्भ की बुनियाद सुजॉय चटर्जी ने रखी और आठवें अंक तक अपने आलेखों के माध्यम से अनेक संगीतज्ञों की कृतियों से हमें रससिक्त किया। नौवें अंक से हमारे एक नये साथी सुमित चक्रवर्ती हमसे जुड़े और आपके अनुरोध पर उन्होने शास्त्रीय-उपशास्त्रीय संगीत के साथ लोक संगीत को भी ‘सुर संगम’ से जोड़ा। सुमित जी ने इस स्तम्भ के ३०वें अंक तक आपके लिए बहुविध सामग्री प्रस्तुत की, जिसे आप सब पाठकों-श्रोताओं ने सराहा। इसी बीच मुझ अकिंचन को भी कई विशेष अवसरों पर कुछ अंक प्रस्तुत करने का अवसर मिला। सुमित जी की पारिवारिक और व्यावसायिक व्यस्तता के कारण ३१ वें अंक से ‘सुर संगम’ का पूर्ण दायित्व मेरे मित्रों ने मुझे सौंपा। मुझ पर विश्वास करने के लिए अपने लेखक साथियों का मैं आभारी हूँ। साथ ही अपने पाठकों-श्रोताओं का अनमोल प्रोत्साहन भी मुझे मिला।
आइए, अब ‘सुर संगम’ स्तम्भ के कुछ नियमित पाठकों और श्रोताओं की कुछ टिप्पणियों को रेखांकित करते हैं। चित्तौड़गढ़ राजस्थान की हमारी एक नियमित पाठक-श्रोता हैं- इन्दु पुरी गोस्वामी, जिन्होने सुजॉय चटर्जी द्वारा प्रस्तुत ‘सुर संगम’ के पहले अंक (उस्ताद बड़े ग़ुलाम अली) में हमसे एक वादा करते हुए लिखा था- रागों की मुझे पहचान नहीं, लगता है आप लोग मुझे रागों के बारे पढ़ने और सुनने के लिए मजबूर कर देंगे। निःसन्देह कुछ ले के ही जाऊँगी यहाँ से....। इन्हीं इन्दु जी ने विख्यात सरोद वादक उस्ताद अमजद अली खाँ के जन्मदिन के अवसर पर प्रस्तुत किये गए ३८ वें अंक में खाँ साहब को बधाई दी और स्वीकार किया- खाँ साहब का वादन सुन कर ही इस वाद्ययंत्र का नाम जाना और सुनना जारी रखा, अब तो बिना देखे मैं बता देती हूँ कि कौन सरोद बजा रहा है.....। धन्यवाद इन्दु जी, ‘सुर संगम’ के माध्यम से आपकी शास्त्रीय संगीत के प्रति अभिरुचि बढ़ी है, यह इस स्तम्भ के लेखकों के लिए सबसे बड़ा पुरस्कार है।
हमारे एक और नियमित पाठक-श्रोता हैं, नई दिल्ली निवासी उज्ज्वल कुमार, जो सरोद वादन की शिक्षा ग्रहण कर रहे हैं। हमारे साथी सुमित चक्रवर्ती द्वारा प्रस्तुत २९ वें अंक में कम प्रचलित तंत्रवाद्य सुरबहार पर चर्चा की गई थी। इस अंक पर टिप्पणी करते हुए उज्ज्वल जी ने सन्तोष व्यक्त करते हुए लिखा था- सुरबहार के बारे में कहीं कुछ तो लिखा जा रहा है ! इसी प्रकार उज्ज्वल जी ने हमारे ४३वें अंक की प्रस्तुति से पूर्व पहेली में पूछे गए प्रश्न के आधार पर उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ का अनुमान लगा कर फरमाइश की थी- उस्ताद फ़ैयाज़ खाँ साहब का गाया दादरा- ‘हटो काहे को झूठी बनाओ बतियाँ....’ सुनवाएँगे तो बड़ी खुशी होगी.... और हमने खाँ साहब पर केन्द्रित ४२ वें अंक में हमने उनकी फरमाइश पूरी की। इस अंक में उज्ज्वल जी ने अपनी फरमाइश के साथ-साथ खाँ साहब के स्वरों में एक अप्रचलित राग भंखार अथवा भंकार की रचना सुन कर लिखा- भंखार भी कोई राग है, यह आज जाना....। उज्ज्वल जी की उत्सुकता को जानने के बाद हमने लखनऊ स्थित भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय के रीडर श्री विकास गंगाधर तैलंग से इस राग के बारे में कुछ जानकारी देने का आग्रह किया। श्री तैलंग के अनुसार- राग भंखार अथवा भंकार, मारवा थाट के अन्तर्गत आने वाले रागों में से एक प्राचीन राग है। इस राग की जाति वक्र सम्पूर्ण है। इसका वादी पंचम और संवादी षडज होता है। इसमें दोनों मध्यम का प्रयोग होता है, लेकिन मुक्त मध्यम का प्रयोग न होने से यह राग भटियार से भिन्न हो जाता है। पंचम-गांधार और तीव्र मध्यम-धैवत की स्वर संगतियाँ महत्त्वपूर्ण होती है। यह उत्तरांग प्रधान राग है और रात्रि के अंतिम प्रहर में गाया-बजाया जाता है।
राग के विषय में यह जानकारी देने के लिए हम श्री तैलंग के आभारी हैं। बीते वर्ष के मई मास से हम कविगुरु रवीन्द्रनाथ ठाकुर सार्द्धशती (१५०वीं जयन्ती) वर्ष मना रहे हैं। इस विशेष अवसर पर हमने २२ मई के ‘सुर संगम’ में सुमित चक्रवर्ती के आलेख के माध्यम से हमने उस महान विभूति का स्मरण किया था। इसी क्रम में हमने अपने लोकप्रिय स्तम्भ ‘सुनो कहानी’ के १८ जून के अंक में संज्ञा टण्डन के स्वर में कविगुरु की चर्चित कहानी ‘काबुली वाला’ का प्रसारण किया था। यही नहीं सितम्बर मास के लगातार तीन अंकों में बांग्ला और हिन्दी साहित्य की विदुषी श्रीमती माधवी बंद्योपाध्याय से बातचीत पर आधारित एक लंबी श्रृंखला प्रस्तुत की थी, जिसे आप सब ने खूब सराहा था। इस श्रृंखला पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त करती हुई गीतकार पण्डित नरेन्द्र शर्मा की सुपुत्री विदुषी लावण्या शाह ने लिखा- बांग्ला और हिन्दी साहित्य की विदुषी श्रीमती माधवी बंद्योपाध्याय से कृष्णमोहन मिश्र की बातचीत बेहद भावपूर्ण और जानकारी से भरपूर थी। आशा जी का गाया वर्षामंगल गीत और स्वयं कवीन्द्र रवीन्द्र का स्वर... आहा... आनन्दम् … आनन्दम् ...। हमारा उत्साहवर्द्धन करने के लिए लावण्या जी का एक बार पुनः आभार।
‘सुर संगम’ में लोक संगीत पर केन्द्रित अंकों में भी हमें अपने प्रबुद्ध पाठकों-श्रोताओं की न केवल भरपूर सराहना मिली बल्कि उनके मार्गदर्शन भी प्राप्त हुए। १जुलाई को प्रस्तुत ‘चैती’ विषयक अंक के लिए अचल जी, ‘नक्कारा’ विषयक अंक पर दिशा जी, ‘बिरहा’ अंक के लिए अभिषेक मिश्र और अवध लाल जी, तथा ‘कजरी’ अंक के लिए अमित जी, की टिप्पणियाँ हमारे लिए मार्गदर्शक बनी। हमारे एक पुराने और प्रबुद्ध पाठक राज सिंह जी ने २१ नवम्बर को अपनी टिप्पणी में लिखा- आपकी प्रस्तुतियों का हमेशा आस्वादन करता रहा हूँ। आप शास्त्रीय संगीत के साथ ही पारम्परिक लोकगीत और अन्य विधाओं का तो एक तरह से दस्तावेज ही तैयार कर रहे हैं। स्वार्थी हूँ और एहसान फरामोश भी, कि रस तो हमेशा लेता हूँ लेकिन आभार के दो शब्द भी नहीं लिख पाता। इसे गूँगे का गुड़ समझ का क्षमा करेंगे।
इस वर्ष हमने कई सिद्ध कलासाधकों को खोया। जनवरी में पण्डित भीमसेन जोशी, जून में उस्ताद असद अली खाँ और अक्तूबर में जगजीत सिंह हमसे बिछड़ गए। ‘सुर संगम’ की ओर से हमने इन सभी कलासाधकों को श्रद्धांजलि अर्पित की। आइए अब कुछ चर्चा इस वर्ष की पहेलियों पर हो जाए। सूजोय जी द्वारा आरम्भ ‘सुर संगम’ के शुरुआती तीन अंको में ‘आप बताएँ’ शीर्षक से पहेली शुरू की गई, परन्तु इसका विधिवत प्रारम्भ नौवें अंक से हुआ। बीच में अगस्त मास में तीन सप्ताह तक ‘सुर संगम’ के अंक और पहेली भी बाधित रहे। सितम्बर मास के पहले सप्ताह से यह सिलसिला फिर शुरू हुआ। पहेली के इस मुक़ाबले में कुछ पाठक नियमित रूप से तो कुछ कभी-कभी भाग लेते रहे। परन्तु मुख्य मुकाबला अमित तिवारी और श्रीमती क्षिति तिवारी के बीच ही रहा। आरम्भ में दोनों प्रतियोगियों के बीच काँटे की टक्कर रही, परन्तु अन्तिम अंकों के दौरान अमित जी स्वयं हमारे इस ब्लॉग के संस्थापक और संचालक बने। इस कारण ‘सुर संगम’ के ४९वें अंक तक क्षिति तिवारी ने १० अंकों की बढ़त लेकर यह प्रतियोगिता जीत ली है। रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर से उन्हें बधाई। आपका पुरस्कार हम शीघ्र ही आप तक पहुँचाएँगे।
हमारे-आपके इस स्तम्भ का अगला अंक नई सज-धज, नए शीर्षक- ‘स्वरगोष्ठी’ और नए कलेवर-तेवर के साथ प्रस्तुत होगा। हमें विश्वास है कि आपका सहयोग हमे प्राप्त होता रहेगा। अब आप हमें शास्त्रीय, उपशास्त्रीय और लोक संगीत की किसी विधा अथवा किसी कलासाधक के बारे में फरमाइश भी कर सकते हैं। हम आपकी अपेक्षाओं पर खरा उतरने का पूरा-पूरा प्रयास करेंगे। अब आज हमें यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिए। अगले रविवार को प्रातः ९-३० बजे हम आपसे http://radioplaybackindia.com/ पर फिर मिलेंगे। तब तक के लिए आपसे विदा लेता हूँ।
कृष्णमोहन मिश्र
Comments
क्षिति जी को प्रतियोगिता जीतने पर बहुत बहुत बधाई. पार्टी चाहिए क्षिती जी.
Sujoy