ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 296
ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी है फ़रमाइशी गीतों का कारवाँ। पराग सांकला के बाद दूसरी बार बने पहेली प्रतियोगिता के विजेयता शरद तैलंग जी के पसंद के पाँच गानें आज से आप सुनेंगे बैक टू बैक इस महफ़िल में। शुरुआत हो रही है एक बड़े ही सुरीले गीत के साथ। यह एक बहुत ही ख़ास गीत है फ़िल्म संगीत के इतिहास का। ख़ास इसलिए कि इसके संगीतकार की पहचान ही है यह गीत, और इसलिए भी कि शास्त्रीय संगीत पर आधारित बनने वाले गीतों की श्रेणी में इस गीत को बहुत ऊँचा दर्जा दिया जाता है। हम आज बात कर रहे हैं १९५८ की फ़िल्म 'सुवर्ण सुंदरी' का गीत "कुहु कुहु बोले कोयलिया" की जिसके संगीतकार हैं आदिनारायण राव। लता जी और रफ़ी साहब की जुगलबंदी का शायद यह सब से बेहतरीन उदाहरण है। लता जी और रफ़ी साहब भले ही फ़िल्मी गायक रहे हों, लेकिन शास्त्रीय संगीत में भी उनकी पकड़ उतनी ही मज़बूत थी (है)। प्रस्तुत गीत की खासियत यह है कि यह गीत चार रागों पर आधारित है। गीत सोहनी राग से शुरु होकर बहार और जौनपुरी होते हुए यमन राग पर जाकर पूर्णता को प्राप्त करता है। भरत व्यास ने इस फ़िल्म के गानें लिखे थे। बसंत ऋतु की रंगीन छटा को संगीत के माध्यम से किस तरह से ना केवल कानोँ में बल्कि आँखों के सामने प्रस्तुत किया जा सकता है, यह भरत व्यास और आदिनारायण राव इस गीत के ज़रिए हमें समझा गए हैं। जिन चार रागों का ज़िक्र हमने किया, आइए अब आपको बताएँ कि गीत का कौन सा हिस्सा किस राग पर आधारित है।
सोहनी - कुहु कुहु बोले कोयलिया......
बहार - काहे घटा में बिजुरी चमके........
जौनपुरी - चन्द्रिका देख छाई........
यमन - सरस रात मन भाए प्रीयतमा........
१९५८ में दक्षिण के जिन संगीतकारों ने हिंदी फ़िल्मों में संगीत दिया था वो हैं जी. रामनाथन (सितमगर), एम. आर. सुदर्शनम (मतवाला), एस. राजेश्वर राव (अलादिन का चिराग़), टी. जी. लिंगप्पा (सुहाग) और आदिनारायण राव (सुवर्ण सुंदरी)। कहने की ज़रूरत नहीं कि इनमें से सुवर्ण सुंदरी का संगीत ही अमर हुआ। आदिनारायण राव का जन्म काकीनाड़ा में १९१५ में हुआ था। उन्हे शास्त्रीय संगीत की तालीम पत्रायणी सिताराम शास्त्री से प्राप्त की। माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद १२ वर्ष की आयु में उन्होने एक संगीतकार और प्ले-राइटर के रूप में काम करना शुरु किया। वरिष्ठ फ़िल्मकार बी. वी. रामानंदन ने उन्हे उनका पहला फ़िल्मी ब्रेक दिया। यह फ़िल्म थी १९४६ की 'वरुधिनी'। १९४९ में आदिनारायण राव ने अक्किनेनी नागेश्वर राव और मेक-अप आर्टिस्ट के. गोपाल राव के साथ मिलकर 'अश्विनी पिक्चर्स' का गठन किया। १९५१ में उन्होने यह बैनर छोड़ दिया और अपनी निजी प्रोडक्शन कंपनी 'अंजली पिक्चर्स' की स्थापना की। उनके संगीत में अनारकली (तमिल, १९५५) और सुवर्ण सुंदरी (१९५८) ने उन्हे बेहद शोहरत दिलाई। सुवर्ण सुंदरी ही वह फ़िल्म है जिसकी वजह से आज भी लोग उन्हे याद करते हैं। इस फ़िल्म की नायिका थी आदिनारायण जी की पत्नी अंजली देवी (जिनके नाम पर उनका बैनर था), और साथ में थे नागेश्वर राव, बी. सरोजा देवी, श्यामा और कुमकुम। इन सब जानकारियों के बाद आइए अब इस मीठे सुरीले गीत का आनंद उठाया जाए। इस गीत को सुन कर आप बिल्कुल फ़्रेश हो जाएँगे ऐसा हमारा अनुमान है, सुनिए!
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. राज कपूर अभिनीत फिल्म का है ये युगल गीत.
२. इस फिल्म के शीर्षक गीत के लिए शैलेन्द्र को फिल्म फेयर प्राप्त हुआ था.
३. एक अंतरा शुरू होता है इस शब्द से -"क्यों".
पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी इस बार बहुत से क्लू देने पड़े आपको, पर जवाब आपका ही आया, तो बधाई स्वीकार करें
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इज़ गोल्ड' पर जारी है फ़रमाइशी गीतों का कारवाँ। पराग सांकला के बाद दूसरी बार बने पहेली प्रतियोगिता के विजेयता शरद तैलंग जी के पसंद के पाँच गानें आज से आप सुनेंगे बैक टू बैक इस महफ़िल में। शुरुआत हो रही है एक बड़े ही सुरीले गीत के साथ। यह एक बहुत ही ख़ास गीत है फ़िल्म संगीत के इतिहास का। ख़ास इसलिए कि इसके संगीतकार की पहचान ही है यह गीत, और इसलिए भी कि शास्त्रीय संगीत पर आधारित बनने वाले गीतों की श्रेणी में इस गीत को बहुत ऊँचा दर्जा दिया जाता है। हम आज बात कर रहे हैं १९५८ की फ़िल्म 'सुवर्ण सुंदरी' का गीत "कुहु कुहु बोले कोयलिया" की जिसके संगीतकार हैं आदिनारायण राव। लता जी और रफ़ी साहब की जुगलबंदी का शायद यह सब से बेहतरीन उदाहरण है। लता जी और रफ़ी साहब भले ही फ़िल्मी गायक रहे हों, लेकिन शास्त्रीय संगीत में भी उनकी पकड़ उतनी ही मज़बूत थी (है)। प्रस्तुत गीत की खासियत यह है कि यह गीत चार रागों पर आधारित है। गीत सोहनी राग से शुरु होकर बहार और जौनपुरी होते हुए यमन राग पर जाकर पूर्णता को प्राप्त करता है। भरत व्यास ने इस फ़िल्म के गानें लिखे थे। बसंत ऋतु की रंगीन छटा को संगीत के माध्यम से किस तरह से ना केवल कानोँ में बल्कि आँखों के सामने प्रस्तुत किया जा सकता है, यह भरत व्यास और आदिनारायण राव इस गीत के ज़रिए हमें समझा गए हैं। जिन चार रागों का ज़िक्र हमने किया, आइए अब आपको बताएँ कि गीत का कौन सा हिस्सा किस राग पर आधारित है।
सोहनी - कुहु कुहु बोले कोयलिया......
बहार - काहे घटा में बिजुरी चमके........
जौनपुरी - चन्द्रिका देख छाई........
यमन - सरस रात मन भाए प्रीयतमा........
१९५८ में दक्षिण के जिन संगीतकारों ने हिंदी फ़िल्मों में संगीत दिया था वो हैं जी. रामनाथन (सितमगर), एम. आर. सुदर्शनम (मतवाला), एस. राजेश्वर राव (अलादिन का चिराग़), टी. जी. लिंगप्पा (सुहाग) और आदिनारायण राव (सुवर्ण सुंदरी)। कहने की ज़रूरत नहीं कि इनमें से सुवर्ण सुंदरी का संगीत ही अमर हुआ। आदिनारायण राव का जन्म काकीनाड़ा में १९१५ में हुआ था। उन्हे शास्त्रीय संगीत की तालीम पत्रायणी सिताराम शास्त्री से प्राप्त की। माध्यमिक परीक्षा उत्तीर्ण करने के बाद १२ वर्ष की आयु में उन्होने एक संगीतकार और प्ले-राइटर के रूप में काम करना शुरु किया। वरिष्ठ फ़िल्मकार बी. वी. रामानंदन ने उन्हे उनका पहला फ़िल्मी ब्रेक दिया। यह फ़िल्म थी १९४६ की 'वरुधिनी'। १९४९ में आदिनारायण राव ने अक्किनेनी नागेश्वर राव और मेक-अप आर्टिस्ट के. गोपाल राव के साथ मिलकर 'अश्विनी पिक्चर्स' का गठन किया। १९५१ में उन्होने यह बैनर छोड़ दिया और अपनी निजी प्रोडक्शन कंपनी 'अंजली पिक्चर्स' की स्थापना की। उनके संगीत में अनारकली (तमिल, १९५५) और सुवर्ण सुंदरी (१९५८) ने उन्हे बेहद शोहरत दिलाई। सुवर्ण सुंदरी ही वह फ़िल्म है जिसकी वजह से आज भी लोग उन्हे याद करते हैं। इस फ़िल्म की नायिका थी आदिनारायण जी की पत्नी अंजली देवी (जिनके नाम पर उनका बैनर था), और साथ में थे नागेश्वर राव, बी. सरोजा देवी, श्यामा और कुमकुम। इन सब जानकारियों के बाद आइए अब इस मीठे सुरीले गीत का आनंद उठाया जाए। इस गीत को सुन कर आप बिल्कुल फ़्रेश हो जाएँगे ऐसा हमारा अनुमान है, सुनिए!
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. राज कपूर अभिनीत फिल्म का है ये युगल गीत.
२. इस फिल्म के शीर्षक गीत के लिए शैलेन्द्र को फिल्म फेयर प्राप्त हुआ था.
३. एक अंतरा शुरू होता है इस शब्द से -"क्यों".
पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी इस बार बहुत से क्लू देने पड़े आपको, पर जवाब आपका ही आया, तो बधाई स्वीकार करें
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
SHAILENDRA WON F,F,AWARD FOR 'sb kuchh sikha hmne na sikhi hoshiya ri
answer kyo bekhabr yun khichi ja rhi main.......dil ki nazar se
singer- lata-mukesh
shehs PABLA BHAIYA BTAYENGE
ittaaaaaaaa jhuuuuuuuth?
kewal ek klu diya tha tumne
ab paper itta kathin ho aur student 'bhaunt' buddhi ka ho to klu to dena hi padta hai na ,
schch ya jhooth ?
chlo is baat pr hans do.
o.k.