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संगीत २००९- एक मिला जुला अनुभव- वार्षिक संगीत चर्चा सजीव सारथी द्वारा

वर्ष २००९ संगीत के लिहाज से बहुत अधिक समृद्ध तो नहीं रहा फिर भी काफी सारे नए प्रयोग हुए, और श्रोताओं को रिझाने के लिए इंडस्ट्री के संगीतकारों, गीतकारों और गायक -गायिकाओं ने अपने तरफ से पूरी कोशिश की, कि संगीत में विविधता बनी रहे. बहरहाल मैं जिक्र करना चाहूँगा सबसे पहले उन अल्बम्स की जिन्होंने मुझे प्रभावित किया. वर्ष के शुरुआत में आई एक बहुत सुरीली अल्बम "दिल्ली ६".इस अल्बम के अधिकतर गीत ऐसे थे जो आपकी सुर-प्यास को संतुष्ट करते हैं. मसकली में मोहित चौहान एक अलग अंदाज़ में दिखे, इस गीत का फिल्मांकन भी बहुत बढ़िया रहा, ये एक ऐसा गीत है जिसे यदि साल दो साल बाद भी सुनेंगें तो ताज़ा लगेगा, गीत में एक कबूतर को संबोधित कर नायक नायिका को अपने सपनों की खातिर पंख खोलने के लिए प्रेरित कर रहा है और प्रसून ने कमाल के शब्दों से इस भाव को गढ़ा है, "तड़ी से मुड, अदा से मुड..." जैसी पंक्तियाँ गुदगुदा जाती हैं, संगीतकार रहमान ने इस फिल्म में और भी बहुत से खूबसूरत गीत जड़े हैं, "जय हो" की जबरदस्त कमियाबी की बाद ये रहमान की पहली प्रदर्शित फिल्म थी और उन्होंने निराश नहीं किया, अर्जियां सारी, रहना तू, और तुमरे भवन में जैसे गीत मधुर रहे पर जिस गीत ने दिल के तार झनझना दिए वो था "गेंदा फूल". यूं तो ये गीत उत्तर भारत के लोक संगीत पर आधारित था पर इसे दुनिया भर में श्रोताओं तक पहुँचाने के लिए निश्चित ही रहमान बधाई के पात्र हैं.

संगीतकार प्रीतम अपने लोकप्रिय गीतों से अधिक धुनें चुराने को लेकर अधिक चर्चित रहे हैं अब तक, पर इस साल उन्होंने अपने को शायद साबित करने की ठानी, और "अजब प्रेम की गजब कहानी" और "लव आजकल" के माध्यम से अपने स्वाभाविक हुनर को प्रदर्शित किया. जहाँ "अजब प्रेम में..." तेरा होने लगा हूँ, प्रेम की नैय्या, आ जाओ मेरी तमन्ना और तू जाने न जैसे लाजवाब गीत थे वहीँ "लव आजकल" में ट्विस्ट, चोर बाजारी, ये दूरियां, और आहूँ आहूँ का पंजाबी तड़का भी लोगों को खूब भाया, दोनों ही फिल्मों में उनके गीत लिखे इरशद कामिल ने, जिनके लिए ये उनका अब तक का सर्वश्रेष्ठ साल रहा कमियाबी के लिहाज से, वैसे प्रीतम ने इस साल एक के बाद एक करीब १० फिल्मों में संगीत दिया, जिनमें से अधिकतर व्यवसायिक लिहाज से सफल भी रहीं. एक और एल्बम जिसने कम से कम मुझे बहुत प्रभावित किया वो रही पियूष मिश्रा की "गुलाल", पियूष के बारे में और इस एल्बम के बारे में मैं पहले ही बहुत कुछ लिख चुका हूँ, तो बस इतना ही कहूँगा कि इस ऑल राउंड प्रदर्शन के लिए मैं पियूष भाई को सलाम देना चाहता हूँ, आरम्भ है प्रचंड, बीड़ा, शहर, दुनिया, राणा जी, किस किस की तारीफ करूँ, एक के गीत दिल चीर कर निकला हो जैसे...

हिमेश यूं तो बतौर संगीतकार मुझे हमेशा ही पसंद रहे हैं, और इस बात की तारीफ़ भी करनी पड़ेगी कि उन्होंने समय रहते अपने आप को सीमित काम करने के लिए वचन बद्ध भी कर लिया, शायद प्रीतम भी इससे कुछ सबक सीखे, बहरहाल हिमेश की एक ही फिल्म आई तो जाहिर है सबको उम्मीदें भी बहुत थी, हिमेश ने भी निराश नहीं किया, "रेडियो" में उनका संगीत ताजगी से भरा हुआ था, अपनी नयी आवाज़ में उन्होंने गाया मन का रेडियो, जो बेहद दिल को छूता है, जाने मन, पिया जैसे लाडू, रफा दफा और जिंदगी जैसे एक रेडियो जैसे गीत भीड़ से अलग हैं और मिठास से भरे हुए भी. बहुत बढ़िया हिमेश साहब....एक संगीतकार तिकड़ी जिन्होंने इस साल बहुत सफलता तो नहीं पायी मगर नए गायकों को मौका देकर एक अच्छा उदाहरण जरूर पेश किया, वो रहे शंकर एहसान लॉय. हालाँकि "लन्दन ड्रीम्स" एक संगीतमयी फिल्म थी, पर कहीं न कहीं वो इस संगीत में श्रोताओं से जुड़ने में असफल रहे. "वेक अप सिद" में कुछ भी नया नहीं था, हाँ पर "लक बाई चांस" में उनका संगीत उनकी पुरानी फिल्म "अरमान" के सदाबहार गीतों की याद ताज़ा कर गया. विशाल भारद्वाज अपने फिल्म "कमीने" से अपनी जमीन बरकरार रखने में सफल रहे. शीर्षक गीत के अलावा रात के ढाई बजे, फटाक, पहली बार मोहब्बत जैसे गीत सफल रहे. गुलज़ार साहब ने अपने शब्दों के जाल से इन्हें ख़ास बना डाला. आज के दौर के गीतकारों में मेरे सबसे पसंदीदा गीतकार स्वानंद किरकिरे ने "३ इडियट्स" और "पा" दोनों ही फिल्मों में बहुत बढ़िया काम किया. "पा" में हिचकी(इस गीत को बेहतर समझने के लिए आपको फिल्म देखनी पड़ेगी)और मेरे पा जैसे गीत लिखने आसान नहीं रहे होंगें, "३ इडियट्स" में उनकी जोड़ी बनी उनके सबसे सफल जोड़ीदार शांतनु मोइत्रा के साथ, और दोनों ने मिलकर खूब रंग जमाया. ऑल इज्ज़ वेल, जुबी डूबी इसके शानदार नमूने हैं. पूरे वर्ष गायिकी में कम सुनाई दिए सोनू निगम ने ऑल इज वेल और जाने नहीं देंगें गाकर फिर से साबित किया कि इस समय तो कम से कम इंडस्ट्री में उनके टक्कर का कोई नहीं. एक और संगीतकार जिन्होंने इस वर्ष सबसे अधिक प्रभावित किया वो रहे अमित त्रिवेदी. "देव डी" का संगीत अनूठा था, अगर कहूँ तो आउट ऑफ दिस वर्ल्ड, एक दम तारो ताज़ा एक दम नया....वहीँ उनका एकतारा "वेक अप सिद" के अन्य तमाम गीतों पर भारी पड़ा.

अब कुछ ऐसे गीतों की बात करें जिनकी अल्बम तो कुछ ख़ास चर्चा में नहीं रही पर ये अपने आप में बेहद सराहे गए. जय हो का जयकारा देश विदेश में गूंजा, पर हिंदी गीतों के शौकीनों के लिए इस अल्बम में इस गीत के अलावा कुछ अधिक नहीं था, जावेद अख्तर का रचा 'सपनों से भरे नैना' दिल को बेहद करीब से छूता है. धूप के सिक्के में प्रसून ने भी बहुत बढ़िया शब्द बिछाये हैं और इन दोनों गीतों को शंकर ने अपनी आवाज़ से बुलंदियां तक पहुँचाया है. "ब्लू" में हालाँकि रहमान कुछ अलग नहीं दे पाए पर आज दिल गुस्ताख में श्रेया घोषाल ने एक अलग अंदाज़ की गायिकी दिखा कर श्रोताओं को चौंका दिया. मधुर भंडारकर की "जेल" में लता जी की दिव्य आवाज़ गूंजी. क्या इतना काफी नहीं कि गीत दाता सुन ले को हम ख़ास दर्जा दें. विशाल ददलानी ने इस साल संगीतकारी कम की गायिकी ज्यादा. सलीम सुलेमान ने "कुर्बान" में शुक्रान अल्लाह और रोकेट सिंह में पंखों को उड़ने दो जैसे गीत दिए. इस जोड़ी से भी संगीत की दुनिया उम्मीदें रख सकती है. इनके अलावा बिखरी बिखरी, सू छे (व्हाट्स यूर राशि), नदी में ये चंदा (मोहनदास), आ आजा साए मेरे (न्यू योर्क), और उम्मीद कोई (फ़िराक) के माध्यम से गीत/संगीत की दुनिया में कुछ नए नाम जुड़े, जिनकी चर्चा हम ताज सुर ताल में पहले ही कर चुके हैं. चलिए अब बढ़ते हैं उन नामों की तरफ जो मेरे हिसाब से इस वर्ष सर्वश्रेष्ठ रहे अपने अपने विभागों में.

गीतकारों की बाते करें तो प्रसून जोशी ने दिल्ली ६, लन्दन ड्रीम्स और सिकंदर में बेहतरीन गीत लिखे, उनका लिखा मसकली, खानाबदोश. धूप के सिक्के, विशेष रूप से उल्लेखनीय हैं. जावेद अख्तर साहब का लिखा सपनों से भरे नैना अपनी पहचान खुद है, गुलज़ार साहब ने एड्स जैसी खतरनाक बिमारी पर सचेत किया "भंवरा" गीत से, तो जय हो पर ओस्कर की मोहर लगाने वाले वो पहले हिंदी गीतकार रहे. स्वानंद किरकिरे ने ३ इडियट्स और पा के लिए फिल्म की स्क्रिप्ट के मुताबिक लाजवाब गीत लिखे तो इर्षद कामिल (लव आजकल और अजब प्रेम कि गजब कहानी), सैयद कादरी (तुम मिले, राज़), जयदीप सहनी (रोकेट सिंह) और सुब्रत सिन्हा ने रेडियो के गीत लिखकर अपनी जबरदस्त उपस्तिथि दर्ज की. पर मेरी तरफ से इस वर्ष के सर्वश्रेष्ठ गीतकार रहे पियूष मिश्रा. "चल चलें" में इलायाराजा के साथ काम करने वाले पियूष ने गुलाल में ऑल राउंड पेशकश दी, गीत लिखे भी और संगीत भी दिया. मेरा नामांकन है ९ मिनट लम्बे गीत "शहर" और "दुनिया" के रचेता पियूष मिश्रा के नाम वर्ष के सर्वश्रेष्ठ गीतकार का. संगीतकारों के योगदान का जिक्र उपर हम कर ही चुके हैं. प्रीतम ने जहाँ हिट संगीत की लड़ी लगायी, वहीँ हिमेश, अमित त्रिवेदी, इल्ल्याराजा, शंकर एहसान लोय, विशाल भारद्वाज और शांतनु मोइत्रा ने अपने अपने काम से खूब मनोरंजन दिया, पर नामांकन मेरा इस वर्ष भी नाम हुआ ए आर रहमान के नाम अल्बम "दिल्ली ६" के लिए. इस अल्बम में जबरदस्त विविधता है, और हर रंग के गीत के साथ रहमान ने भरपूर न्याय किया है. सुपर हिट गीत "मसकली" और "रहना तू" के लिए रहमान को जाता है मेरा नामांकन सर्वश्रेष्ठ संगीतकार के लिए.

गायक/ गायिकाओं की बात करते हैं. ग़ज़ल और सूफी गायिकी में महारथ गायिका कविता सेठ ने कुछ अलग तेवर दिखाए "एकतारा" में तो लता जी ने "दाता सुन ले" गाकर इस सामान्य से गीत को ख़ास कर दिया. सुनिधि चौहान ने लो टोन में "हिचकी" (पा), और श्रेया घोषाल ने आज दिल गुस्ताख है (ब्लू) गाकर अपने अब तक से अलग एक रूप को सफलता पूर्वक सामने रखा. बेला शिंदे ने "सू छे" से प्रभावित किया पर मेरा नामाकन पाने में सफल रही रेखा भारद्वाज अपने गीत "गैंदा फूल" के लिए, वैसे रेखा ने इस वर्ष "उम्मीद कोई" (फ़िराक) और "रात के ढाई बजे" (कमीने) में भी अपनी आवाज़ दी, पर गैंदा फूल में वो बस कमाल साबित हुई है. अपने अब तक के करियर में शायद सबसे अच्छे साल से गुजरी रेखा भारद्वाज जी को जाता है मेरा नामांकन सर्वश्रेष्ठ गायिका के लिए. गायकों में भी जबरदस्त होड़ रही. गायक जोजो (आ जाओ मेरी तमन्ना), आतिफ असलम (तू जाने न), और जावेद अली (तू ही हकीक़त ख्वाब तू) के बीच मेरे लिए चुनाव बहुत मुश्किल रहा, सोनू निगम (जाने नहीं देंगें तुझे), सुखविंदर (जय हो), मोहित चौहान (मसकली), और शंकर महादेवन (सपनों से भरे नैना और मन को अति भाए)ने दुविधा को और बढा दिया, ये सच है कि नीरज श्रीधर कभी भी मेरे बहुत पसंदीदा गायक नहीं रहे हैं, पर मुझे लगता है जिस मस्ती के साथ उन्होंने "प्रेम की नैय्या (अजब प्रेम की गजब कहानी) को गाया है वो वाकई काबिले तारीफ़ है, तो मुझे इस वर्ष के सर्वश्रेष्ठ गायक का नामांकन नीरज श्रीधर के नाम आखिर करना ही पड़ा.

सर्वश्रेष्ठ गीत वो होता है जिसका नशा पूरे साल न टूटे, मेरी नज़र में इस वर्ष ऐसा एक ही गीत रहा जिसने बच्चों बूढों और जवानों, शहरों, गाँवो और विदेशों में भी एक सी धूम मचाई, वो है दिल्ली ६ का "गैंदा फूल", मैं इस गीत को सर्वश्रेष्ठ गीत में नामांकित करना चाहूँगा. वर्ष २००९ में यदि कोई अल्बम ऐसी आई है जिसने मुझे बार बार सुने जाने पर मजबूर किया है वो है "अजब प्रेम की गजब कहानी", सर्वश्रेष्ठ अल्बम की श्रेणी में मैं इस अल्बम को नामंकिंत करना चाहूँगा. इसी फिल्म का "तू जाने न" गीत है मेरी नज़र में साल का सर्वश्रेष्ठ फिल्मांकित गीत. सुंदर पृष्ठभूमि और टेक्सचर पर रणबीर और कटरीना को देखना एक अनुभव ही है. उभरते हुए कलाकार में मैं सुब्रत सिन्हा को नामांकित करूँगा. शायद "रेडियो" उनकी पहली फिल्म है पर उनका लिखा हर गीत ऐसा लगता है जैसे किसी तजुर्बेकार गीतकार ने लिखा हो, मुझे इनसे बहुत उम्मीदें हैं. वर्ष के कलाकार के रूप में एक बार फिर मैं प्रीतम को नामांकित करना चाहूँगा. प्रीतम ने (यदि चुरा कर न पेश किया हो) तो पूरे साल संगीत की दुनिया में हलचल बनाये रखी. "अजब प्रेम.." और "लव आजकल" में उनका काम बहुत बढ़िया रहा.

चलते चलते कुछ बातें गैर फ़िल्मी संगीत की दुनिया की भी. गैर फिल्म संगीत जिस तेज़ी से बढ़ना चाहिए उस तेज़ी से नहीं बढ़ रहा है ये दुखद है. गैर फ़िल्मी संगीत में कलाकार के पास मौका होता है सामान्यता प्रेम गीतों के आस पास रहते फिल्म संगीत से कुछ अलग कर दिखाने का, बस जरुरत है कि उन्हें भी भरपूर प्रचार मिले ताकि वो भी अधिक से अधिक श्रोताओं तक पहुच सके. मेरे लिए चुनाव वाकई बहुत मुश्किल रहा इसलिए मैं इस श्रेणी में दो गीतों को नामांकित कर रहा हूँ एक "भीग गया मेरा मन" (कैलाश खेर, चांदन में) और दूसरा "माये नि मेरिये"(फितूर, मोहित चौहान). दोनों ही गीतों में मिटटी की खुशबू है, एक में चेरापूंजी की महक है तो दूसरे में पहाड़ों का जादू.और ये रहे मेरी पसंद के ५ गीत क्रमानुसार-

१. गैंदाफूल(दिल्ली ६)
२. एकतारा (वेक अप सिद)
३. सपनों से भरे नैना (लक बाई चांस)
४. तू जाने न (अजब प्रेम की गजब कहानी)
५. तू ही हकीकत (तुम मिले)


चलिए ये तो हुई मेरी राय, मैं जानना चाहूँगा कि मेरे इन नामांकनों पर आपकी क्या राय है, अपने विचारों में मुझे अवश्य अवगत करें...धन्येवाद

Comments

Prashen said…
wah jee wah.. badhiya hai
Manish Kumar said…
सजीव बहुत अच्छा लगा आपका ये लेख। पीयूष मिश्रा , रेखा भारद्वाज और नीरज श्रीधर के लिए ये साल बेहतरीन रहा है। वैसे आपकी पसंद के टाप पाँच गीतों में गुलाल का गीत नहीं होना थोड़ा अजीब लगा।
जी मनीष जी, गुलाल के गीत इसलिए नहीं हैं, क्योंकि शाब्दिक और संगीत की दृष्टि से वो मेरे बहुत करीब हैं, पर शायद इतने डार्क हैं कि मैं उन्हें गुनगुना नहीं सकता, पसंदीदा ५ गानों में मैंने उन्हें लिया है जिन्हें गुनगुनाकर मुझे खुशी मिली हो....उस चुनाव में दिमाग कम दिल अधिक इस्तेमाल किया है :)प्रशेन शुक्रिया,

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