नज़र फेरो ना हम से, हम है तुम पर मरने वालों में...जी एम् दुर्रानी साहब लौटे हैं एक बार फिर महफ़िल में
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 295
और आज बारी है पराग सांकला जी के पसंद के पाँचवे और फिलहाल अंतिम गीत को सुनने की। अब तक आप ने चार अलग अलग गायक, गीतकार और संगीतकारों के गानें सुने। पराग जी ने अपने इसी विविधता को बरक़रार रखते हुए आज के लिए चुना है दो और नई आवाजों और एक और नए गीतकार - संगीतकार जोड़ी को। सुनवा रहे हैं फ़िल्म 'दीदार' से जी. एम. दुर्रानी और शम्शाद बेग़म की आवाज़ों में शक़ील बदायूनी की गीत रचना, जिसे सुरों में ढाला है नौशाद साहब ने। और गीत है "नज़र फेरो ना हम से, हम है तुम पर मरने वालों में, हमारा नाम भी लिख लो मोहब्बत करने वालों में"। पाश्चात्य संगीत संयोजन सुनाई देती है इस गीत में। लेकिन गीत को कुछ इस तरह से लिखा गया है और बोल कुछ ऐसे हैं कि इस पर एक बढ़िया क़व्वाली भी बनाई जा सकती थी। लेकिन शायद कहानी की सिचुयशन और स्थान-काल-पात्र क़व्वाली के फ़ेवर में नहीं रहे होंगे। फ़िल्म 'दीदार' १९५१ की नितिन बोस की फ़िल्म थी जिसमें अशोक कुमार और दिलीप कुमार पहली बार आमने सामने आए थे। फ़िल्म की नायिकाएँ थीं नरगिस और निम्मी। इस फ़िल्म के युं तो सभी गानें हिट हुए थे लेकिन लता और शम्शाद की आवाज़ों में "बचपन के दिन भुला ना देना" ख़ासा लोकप्रिय हुआ था और आज भी लोग इसे चाव से सुनते हैं। इन दो गायिकाओं के गाए युगल गीतों में यह गीत एक बहुत ऊँचा मुकाम रखता है।
आज दूसरी बार हम इस महफ़िल पर दुर्रानी साहब की आवाज़ सुन रहे हैं। इससे पहले फ़िल्म 'दिलरुबा' में हमने उनकी आवाज़ सुनी थी गीता दत्त के साथ "हमने खाई है जवानी में मोहब्बत की क़सम" गीत में। आइए आज दुर्रानी साहब से जुड़ी कुछ बातें आपको बताएँ। जी. एम दुर्रानी साहब का जन्म सन् १९१९ में पेशावर में हुआ था। १६ साल की उम्र में ही वो अपनी क़िस्मत आज़माने बम्बई चले आए। दो चार फ़िल्मों में उन्होने अभिनय किया लेकिन अभिनय का काम उन्हे अच्छा नहीं लगा। वापस घर नहीं लौटना चाहते थे, इसलिए बम्बई में ही हाथ पैर मार कर रेडियो में ड्रामा आर्टिस्ट बन गए। उन्होने फ़िल्म संगीत में क़दम रखना शुरु किया जाने पहचाने निर्माता निर्देशक और अभिनेता सोहराब मोदी के मिनर्वा कंपनी में। लेकिन यह कंपनी भी बंद हो गई और वो वापस रेडियो से जुड़े रहे। क़िस्मत एक बार फिर उन्हे फ़िल्म संगीत में खींच लाई जब नौशाद साहब ने उन्हे अपनी फ़िल्म 'दर्शन' में गीत गाने का मौका दिया। 'दर्शन' की हीरोइन थीं ज्योति जिनका असली नाम था सितारा बेग़म। और सितारा जी इस मधूर आवाज़ वाले हैंडसम पठान पर मर मिटीं और दोनों की हो गई शादी। और फिर कुछ ही बरसों में शुरु हुआ जी. एम. दुर्रानी साहब के गाए गीतों का वह ज़बरदस्त कामयाब दौर जिसमें उनका नाम चमकता ही गया। उनकी आवाज़ कई फ़िल्मों में सुनाई देने लगी। मगर उनके गाए हुए गीतों की कामयाबी का यह दौर करीब ६-७ साल ही चला, यानी कि १९४३ से लेकर १९५१ तक। और फिर न जाने क्या हुआ कि फ़िल्मी दुनिया उनसे दूर होती चली गई। बरसों बरस पहले १९७८ में दुर्रानी साहब ने अमीन सायानी को एक इंटरव्यू दिया था। उसी इंटरव्यू के अंश संजो कर अमीन भाई ने 'संगीत के सितारों की महफ़िल' में दुर्रानी साहब के गीतों की महफ़िल सजाई थी। कार्यक्रम शुरु करते हुए अमीन भाई ने कुछ इस तरह से कहा था - "दुर्रानी साहब सितारे थे एक नहीं तीन तीन दायरों के थे। जी हाँ, गायन भी, ऐक्टिंग् भी और ब्रॊडकास्टिंग् भी। जी हाँ, आप ही का जो वह रेडियो है ना, उसके भी वो बादशाह हुआ करते थे किसी ज़माने में। मुझे याद है बहनों और भाइयों कि १९७८ में जब वो हमारे स्टुडियो में आए थे तब उनके शोहरत का ज़माना बीत चुका था, और दुर्रानी साहब ने एक आह सी भर के अपने बारे में यह शेर मुझे सुनाया था - "जला है जिस्म मगर दिल भी जल गया होगा, क़ुरेदते हो जब राख़ जुस्तजु क्या है?" मैने दुर्रानी साहब को यक़ीन दिलाया था कि उनके गीतों की गूँज शायद कम हो गई हो, मगर जनता के दिलों में उनकी आवाज़ अभी तक बसी हुई है।" तो दोस्तों, आइए आज का यह गीत सुनते हैं जो दुर्रानी साहब के करीयर के अंतिम गीतों में से एक है। शम्शाद बेग़म से जुड़ी बातें हम फिर किसी दिन करेंगे।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. दक्षिण के एक मशहूर संगीतकार का रचा एक अमर गीत.
२. फिल्म की नायिका भी संगीतकार की पत्नी थी.
३. भारत व्यास के लिखे इस युगल गीत में चार अलग अलग रागों का अद्भुत संगम है.
पिछली पहेली का परिणाम -
वाह वाह इंदु जी आपको तो मानना पड़ेगा...सही जवाब भी देते हो और उस पर ये भोला पन :), सवाल में हमने ज़रा घुमा कर पुछा था, जो अब तक आप समझ चुकी होंगी. मात्र ५ जवाब दूर हैं अब आप.....बहुत बधाई....दिलीप जी आपका इनपुट बहुत बढ़िया लगा
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
और आज बारी है पराग सांकला जी के पसंद के पाँचवे और फिलहाल अंतिम गीत को सुनने की। अब तक आप ने चार अलग अलग गायक, गीतकार और संगीतकारों के गानें सुने। पराग जी ने अपने इसी विविधता को बरक़रार रखते हुए आज के लिए चुना है दो और नई आवाजों और एक और नए गीतकार - संगीतकार जोड़ी को। सुनवा रहे हैं फ़िल्म 'दीदार' से जी. एम. दुर्रानी और शम्शाद बेग़म की आवाज़ों में शक़ील बदायूनी की गीत रचना, जिसे सुरों में ढाला है नौशाद साहब ने। और गीत है "नज़र फेरो ना हम से, हम है तुम पर मरने वालों में, हमारा नाम भी लिख लो मोहब्बत करने वालों में"। पाश्चात्य संगीत संयोजन सुनाई देती है इस गीत में। लेकिन गीत को कुछ इस तरह से लिखा गया है और बोल कुछ ऐसे हैं कि इस पर एक बढ़िया क़व्वाली भी बनाई जा सकती थी। लेकिन शायद कहानी की सिचुयशन और स्थान-काल-पात्र क़व्वाली के फ़ेवर में नहीं रहे होंगे। फ़िल्म 'दीदार' १९५१ की नितिन बोस की फ़िल्म थी जिसमें अशोक कुमार और दिलीप कुमार पहली बार आमने सामने आए थे। फ़िल्म की नायिकाएँ थीं नरगिस और निम्मी। इस फ़िल्म के युं तो सभी गानें हिट हुए थे लेकिन लता और शम्शाद की आवाज़ों में "बचपन के दिन भुला ना देना" ख़ासा लोकप्रिय हुआ था और आज भी लोग इसे चाव से सुनते हैं। इन दो गायिकाओं के गाए युगल गीतों में यह गीत एक बहुत ऊँचा मुकाम रखता है।
आज दूसरी बार हम इस महफ़िल पर दुर्रानी साहब की आवाज़ सुन रहे हैं। इससे पहले फ़िल्म 'दिलरुबा' में हमने उनकी आवाज़ सुनी थी गीता दत्त के साथ "हमने खाई है जवानी में मोहब्बत की क़सम" गीत में। आइए आज दुर्रानी साहब से जुड़ी कुछ बातें आपको बताएँ। जी. एम दुर्रानी साहब का जन्म सन् १९१९ में पेशावर में हुआ था। १६ साल की उम्र में ही वो अपनी क़िस्मत आज़माने बम्बई चले आए। दो चार फ़िल्मों में उन्होने अभिनय किया लेकिन अभिनय का काम उन्हे अच्छा नहीं लगा। वापस घर नहीं लौटना चाहते थे, इसलिए बम्बई में ही हाथ पैर मार कर रेडियो में ड्रामा आर्टिस्ट बन गए। उन्होने फ़िल्म संगीत में क़दम रखना शुरु किया जाने पहचाने निर्माता निर्देशक और अभिनेता सोहराब मोदी के मिनर्वा कंपनी में। लेकिन यह कंपनी भी बंद हो गई और वो वापस रेडियो से जुड़े रहे। क़िस्मत एक बार फिर उन्हे फ़िल्म संगीत में खींच लाई जब नौशाद साहब ने उन्हे अपनी फ़िल्म 'दर्शन' में गीत गाने का मौका दिया। 'दर्शन' की हीरोइन थीं ज्योति जिनका असली नाम था सितारा बेग़म। और सितारा जी इस मधूर आवाज़ वाले हैंडसम पठान पर मर मिटीं और दोनों की हो गई शादी। और फिर कुछ ही बरसों में शुरु हुआ जी. एम. दुर्रानी साहब के गाए गीतों का वह ज़बरदस्त कामयाब दौर जिसमें उनका नाम चमकता ही गया। उनकी आवाज़ कई फ़िल्मों में सुनाई देने लगी। मगर उनके गाए हुए गीतों की कामयाबी का यह दौर करीब ६-७ साल ही चला, यानी कि १९४३ से लेकर १९५१ तक। और फिर न जाने क्या हुआ कि फ़िल्मी दुनिया उनसे दूर होती चली गई। बरसों बरस पहले १९७८ में दुर्रानी साहब ने अमीन सायानी को एक इंटरव्यू दिया था। उसी इंटरव्यू के अंश संजो कर अमीन भाई ने 'संगीत के सितारों की महफ़िल' में दुर्रानी साहब के गीतों की महफ़िल सजाई थी। कार्यक्रम शुरु करते हुए अमीन भाई ने कुछ इस तरह से कहा था - "दुर्रानी साहब सितारे थे एक नहीं तीन तीन दायरों के थे। जी हाँ, गायन भी, ऐक्टिंग् भी और ब्रॊडकास्टिंग् भी। जी हाँ, आप ही का जो वह रेडियो है ना, उसके भी वो बादशाह हुआ करते थे किसी ज़माने में। मुझे याद है बहनों और भाइयों कि १९७८ में जब वो हमारे स्टुडियो में आए थे तब उनके शोहरत का ज़माना बीत चुका था, और दुर्रानी साहब ने एक आह सी भर के अपने बारे में यह शेर मुझे सुनाया था - "जला है जिस्म मगर दिल भी जल गया होगा, क़ुरेदते हो जब राख़ जुस्तजु क्या है?" मैने दुर्रानी साहब को यक़ीन दिलाया था कि उनके गीतों की गूँज शायद कम हो गई हो, मगर जनता के दिलों में उनकी आवाज़ अभी तक बसी हुई है।" तो दोस्तों, आइए आज का यह गीत सुनते हैं जो दुर्रानी साहब के करीयर के अंतिम गीतों में से एक है। शम्शाद बेग़म से जुड़ी बातें हम फिर किसी दिन करेंगे।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. दक्षिण के एक मशहूर संगीतकार का रचा एक अमर गीत.
२. फिल्म की नायिका भी संगीतकार की पत्नी थी.
३. भारत व्यास के लिखे इस युगल गीत में चार अलग अलग रागों का अद्भुत संगम है.
पिछली पहेली का परिणाम -
वाह वाह इंदु जी आपको तो मानना पड़ेगा...सही जवाब भी देते हो और उस पर ये भोला पन :), सवाल में हमने ज़रा घुमा कर पुछा था, जो अब तक आप समझ चुकी होंगी. मात्र ५ जवाब दूर हैं अब आप.....बहुत बधाई....दिलीप जी आपका इनपुट बहुत बढ़िया लगा
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
mashahoor gane bahut hain pr naeeka ke pti m.d?
madhubala pr filmaya hai kya?
sandhya ke pti v.shantaram m.d. nhi the
ab isse saral kya hoga :)
film swarn sundari
m.d-adi narayan rao
sohini,bahaar,jaunpuri aur yaman
confusion matr ye hai ki actress kisi music director ki patni hai ya nhi ?mujhe nhi malum .
ittiiiiiii purani heroin me maa bhi paida nhi hui hogi tb to
pr......mja aa gaya
badaa gumaan tha mujhe hr field ke gyan ka ,jb mujhe g.k. ki.book kaha jata hai to meri chaal hi bdl jati hai
thenx wapas apni sahi jagah pr le aaye mujhe ha ha ha ha
to bhaiya SAJIV AUR TEAM KE MEMBERS 'CROWN 'APNE MATHE PR HI PAHNANA
HA HA HA HA