ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 287
शैलेन्द्र के लिखे गीतों को सुनते हुए आपने हर गीत में ज़रूर अनुभव किया होगा कि इन गीतों में बहुत गहरी और संजीदगी भरी बातें कही गई है, लेकिन या तो बहुत सीधे सरल शब्दों में, या फिर अचम्भे में डाल देने वाली उपमाओं और अन्योक्ति अलंकारों की मदद से। आज "शैलेन्द्र- आर.के.फ़िल्म्स के इतर भी" की सातवीं कड़ी के लिए हमने जिस गीत को चुना है वह भी कुछ इसी तरह के अलंकारों से सुसज्जित है। फ़िल्म 'उजाला' का यह गीत है मन्ना डे और साथियों का गाया हुआ - "सूरज ज़रा आ पास आ, आज सपनों की रोटी पकाएँगे हम, ऐ आसमाँ तू बड़ा महरबाँ आज तुझको भी दावत खिलाएँगे हम"। अब आप ही बताइए कि ऐसे बोलों की हम और क्या चर्चा करें! ये तो बस ख़ुद महसूस करने वाली बातें हैं। भूखे बच्चों को रोटियों का ख़्वाब दिखाता हुआ यह गीत भले ही ख़ुशमिज़ाज हो, लेकिन इसे ग़ौर से सुनते हुए आँखें भर आती हैं जब मन्ना दा बच्चों के साथ गा उठते हैं कि "ठंडा है चूल्हा पड़ा, और पेट में आग है, गरमागरम रोटियाँ कितना हसीं ख़्वाब है"। कॊन्ट्रस्ट और विरोधाभास देखिए इस पंक्ति में कि चूल्हा जिसे गरम होना चाहिए वह ठंडा पड़ा है और पेट जो ठंडा होना चाहिए, उसी में आग जल रही है यानी भूख लगी है। शैलेन्द्र निस्संदेह एक ऐसे गीतकार थे जो फ़िल्म संगीत को साहित्यिक दृष्टि से समृद्ध किया और उसका मान और स्तर बढ़ाया। फ़िल्म संगीत के इतिहास से अगर हम उनके लिखे गीतों को अलग निकाल कर रख दें तो फिर फ़िल्म संगीत के ख़ज़ाने का मोल आधा रह जाएगा।
आज का प्रस्तुत गीत फ़िल्म 'उजाला' से है जिसका निर्माण सन् १९५९ में एफ़. सी. मेहरा ने किया था। नरेश सहगल लिखित एवं निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे शम्मी कपूर, माला सिन्हा, राज कुमार और लीला चिटनिस। इस फ़िल्म में संगीत था शंकर जयकिशन का और फ़िल्म के सभी गानें सुपर हिट रहे। नाम गिनाएँ आपको? मन्ना दा और लता जी का गाया "झूमता मौसम मस्त महीना", लता जी का गाया "तेरा जल्वा जिसने देखा वो तेरा हो गया" और "ओ मोरा नादान बालमा", लता जी और मुकेश साहब का गाया "दुनिया वालों से दूर जलने वालों से दूर", तथा मन्ना दा के गाए "अब कहाँ जाएँ हम" और आज का प्रस्तुत गीत। दोस्तों, 'उजाला' ही वह फ़िल्म थी जिसमें पहली बार शम्मी कपूर ने शंकर जयकिशन के धुनों पर अभिनय किया था। उसके बाद शम्मी कपूर और शंकर जयकिशन जैसे शरीर और आत्मा बन गए थे। ख़ैर, शृंखला चल रही है शैलेन्द्र जी की, तो आज उनके बारे में क्या ख़ास बताया जाए आपको। चलिए आज हम रुख़ करते हैं शंकर जी द्वारा प्रस्तुत 'विशेष जयमाला' कार्यक्रम की ओर जिसमें उन्होने शैलेन्द्र जी के बारे में ये कहा था - "शैलेन्द्र सच्ची और खरी बात कहने से डरते नहीं थे। गीत के बोलों को लेकर अक्सर हम ख़ूब झगड़ते थे, पर जैसे ही गाना रिकार्ड हो गया, फिर से वही मिठास वापस आ जाती थी। वो बहुत ही सीधे और सच्चे दिल के इंसान थे, झूठ से उनको नफ़रत थी क्योंकि उनका विश्वास था कि ख़ुदा के पास जाना है।" दोस्तों, आज शैलेन्द्र और शंकर, दोनों ही ख़ुदा के पास चले गए हैं, लेकिन यहाँ हमारे पास छोड़ गए हैं उन्हे अमरत्व प्रदान करने वाले असंख्य गीतों की अनमोल धरोहर जिसकी चमक दिन ब दिन बढ़ती चली जा रही है। इसी धरोहर से निकाल कर आज हम आपको सुनवा रहे हैं फ़िल्म 'उजाला' का यह गीत, सुनिए।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. इस फिल्म में संवाद भी लिखे थे शैलेन्द्र ने.
२. फिल्म के संगीतकार ने ही फिल्म की कहानी भी लिखी.
३. मुखड़े में शब्द है -"रस".
पिछली पहेली का परिणाम -
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
शैलेन्द्र के लिखे गीतों को सुनते हुए आपने हर गीत में ज़रूर अनुभव किया होगा कि इन गीतों में बहुत गहरी और संजीदगी भरी बातें कही गई है, लेकिन या तो बहुत सीधे सरल शब्दों में, या फिर अचम्भे में डाल देने वाली उपमाओं और अन्योक्ति अलंकारों की मदद से। आज "शैलेन्द्र- आर.के.फ़िल्म्स के इतर भी" की सातवीं कड़ी के लिए हमने जिस गीत को चुना है वह भी कुछ इसी तरह के अलंकारों से सुसज्जित है। फ़िल्म 'उजाला' का यह गीत है मन्ना डे और साथियों का गाया हुआ - "सूरज ज़रा आ पास आ, आज सपनों की रोटी पकाएँगे हम, ऐ आसमाँ तू बड़ा महरबाँ आज तुझको भी दावत खिलाएँगे हम"। अब आप ही बताइए कि ऐसे बोलों की हम और क्या चर्चा करें! ये तो बस ख़ुद महसूस करने वाली बातें हैं। भूखे बच्चों को रोटियों का ख़्वाब दिखाता हुआ यह गीत भले ही ख़ुशमिज़ाज हो, लेकिन इसे ग़ौर से सुनते हुए आँखें भर आती हैं जब मन्ना दा बच्चों के साथ गा उठते हैं कि "ठंडा है चूल्हा पड़ा, और पेट में आग है, गरमागरम रोटियाँ कितना हसीं ख़्वाब है"। कॊन्ट्रस्ट और विरोधाभास देखिए इस पंक्ति में कि चूल्हा जिसे गरम होना चाहिए वह ठंडा पड़ा है और पेट जो ठंडा होना चाहिए, उसी में आग जल रही है यानी भूख लगी है। शैलेन्द्र निस्संदेह एक ऐसे गीतकार थे जो फ़िल्म संगीत को साहित्यिक दृष्टि से समृद्ध किया और उसका मान और स्तर बढ़ाया। फ़िल्म संगीत के इतिहास से अगर हम उनके लिखे गीतों को अलग निकाल कर रख दें तो फिर फ़िल्म संगीत के ख़ज़ाने का मोल आधा रह जाएगा।
आज का प्रस्तुत गीत फ़िल्म 'उजाला' से है जिसका निर्माण सन् १९५९ में एफ़. सी. मेहरा ने किया था। नरेश सहगल लिखित एवं निर्देशित इस फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे शम्मी कपूर, माला सिन्हा, राज कुमार और लीला चिटनिस। इस फ़िल्म में संगीत था शंकर जयकिशन का और फ़िल्म के सभी गानें सुपर हिट रहे। नाम गिनाएँ आपको? मन्ना दा और लता जी का गाया "झूमता मौसम मस्त महीना", लता जी का गाया "तेरा जल्वा जिसने देखा वो तेरा हो गया" और "ओ मोरा नादान बालमा", लता जी और मुकेश साहब का गाया "दुनिया वालों से दूर जलने वालों से दूर", तथा मन्ना दा के गाए "अब कहाँ जाएँ हम" और आज का प्रस्तुत गीत। दोस्तों, 'उजाला' ही वह फ़िल्म थी जिसमें पहली बार शम्मी कपूर ने शंकर जयकिशन के धुनों पर अभिनय किया था। उसके बाद शम्मी कपूर और शंकर जयकिशन जैसे शरीर और आत्मा बन गए थे। ख़ैर, शृंखला चल रही है शैलेन्द्र जी की, तो आज उनके बारे में क्या ख़ास बताया जाए आपको। चलिए आज हम रुख़ करते हैं शंकर जी द्वारा प्रस्तुत 'विशेष जयमाला' कार्यक्रम की ओर जिसमें उन्होने शैलेन्द्र जी के बारे में ये कहा था - "शैलेन्द्र सच्ची और खरी बात कहने से डरते नहीं थे। गीत के बोलों को लेकर अक्सर हम ख़ूब झगड़ते थे, पर जैसे ही गाना रिकार्ड हो गया, फिर से वही मिठास वापस आ जाती थी। वो बहुत ही सीधे और सच्चे दिल के इंसान थे, झूठ से उनको नफ़रत थी क्योंकि उनका विश्वास था कि ख़ुदा के पास जाना है।" दोस्तों, आज शैलेन्द्र और शंकर, दोनों ही ख़ुदा के पास चले गए हैं, लेकिन यहाँ हमारे पास छोड़ गए हैं उन्हे अमरत्व प्रदान करने वाले असंख्य गीतों की अनमोल धरोहर जिसकी चमक दिन ब दिन बढ़ती चली जा रही है। इसी धरोहर से निकाल कर आज हम आपको सुनवा रहे हैं फ़िल्म 'उजाला' का यह गीत, सुनिए।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. इस फिल्म में संवाद भी लिखे थे शैलेन्द्र ने.
२. फिल्म के संगीतकार ने ही फिल्म की कहानी भी लिखी.
३. मुखड़े में शब्द है -"रस".
पिछली पहेली का परिणाम -
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
प्रीतम शांत रस जा
शायद वही है
ओ सजना ही सही है.
अवध लाल
aaj realy bahut achchha lg raha hai avdhji ko hi nhi sbko bdhai
akele laud lgana aur compitition jeet jeen uspr khush hona oooooooooye main race me first aa gai ,koi puchhe log kitne daude?