ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 298
शरद तैलंग जी के पसंद के ज़रिए आज बहुत दिनों के बाद हम लेकर आए हैं आशा भोसले और ओ. पी. नय्यर साहब की जोड़ी का एक और सदाबहार नग़मा। फ़िल्म 'ये रात फिर ना आएगी' का यह गीत "यही वो जगह है, ये ही वो फ़िज़ाएँ" इस जोड़ी का एक बहुत ही महत्वपूर्ण गीत है। बीती पुरानी यादों को उसी जगह पे जा कर फिर से एक बार जी लेने की बातें हैं इस गीत में। एस. एच. बिहारी साहब ने ऐसे जज़्बाती बोल लिखे हैं कि सुन कर दिल भर आता है। इस गीत के साथ हर कोई अपने आप को कनेक्ट कर सकता है। ख़ास कर वो लोग तो ज़रूर महसूस कर पाएँगे जो कभी अपने घर से दूर किसी जगह पर जा कर रहे होंगे और वहाँ पर कई रिश्ते भी बनाएँ होंगे, दोस्त बनाए होंगे, प्यार पाया होगा। और फिर जब उस जगह को छोड़ कर चले जाना पड़ा तो बस यादें ही साथ में वापस गईं। और फिर कई बरस बाद जब उसी जगह पर वापस लौटे तो सब कुछ बदला हुआ सा पाया। अगर कुछ वैसे का वैसा था तो बस दिल में उन बीते दिनों की यादें। "यही पर मेरा हाथ में हाथ लेकर कभी ना बिछड़ने का वादा किया था, सदा के लिए हो गए हम तुम्हारे गले से लगा कर हमें ये कहा था, कभी कम ना होंगी हमारी वफ़ाएँ, यही पर कभी आप हमसे मिले थे"। नय्यर साहब के अनुसार किसी गीत की कामयाबी में ५०% श्रेय गीतकार का होता है, २५% संगीतकार का, और बाकी के २५% में शामिल है गायक और साज़िंदे। इस गीत के बोलों को सुन हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इस बात में कितनी सच्चाई है।
दोस्तों, इस गीत में सैक्सोफ़ोन मुख्य साज़ के तौर पर इस्तेमाल किया गया है, और आपको पता है इस साज़ को इस गीत में किन्होने बजाया था? वो हैं जानेमाने सैक्सोफ़ोन वादक मनोहारी सिंह। मनोहारी दा ने तमाम संगीतकारों के साथ काम किया है और बहुत सारे हिट गीतों में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आज बात करते है मनोहारी दा और नय्यर साहब के साथ की। प्रस्तुत गीत के अलावा नय्यर साहब के जिस गीत में उन्होने इस साज़ को मुख्य रूप से बजाया था वह गीत है "है दुनिया उसी की ज़माना उसी का", फ़िल्म 'कश्मीर की कली' में। मनोहारी दा का कहना है कि नय्यर साहब का एक यूनिक स्टाइल है और उनका संगीत बड़ा ही जोशीला हुआ करता था। अगर उन्हे लगा कि टेक ओ.के. है तो किसी की क्या मजाल जो एक और टेक लेने की बात करे! फ़िल्म 'एक बार मुस्कुरा दो' में भी "कितने अटल थे तेरे इरादे" गीत में मनोहारी दा ने सैक्सोफ़ोन बजाया था। फ़िल्म 'ये रात फिर ना आएगी' का यह गीत सैक्सोफ़ोन पर मनोहारी दा ने सन् १९६२ में दिल्ली के उस डिफ़ेन्स शो में बजाया था जिस शो में लता जी ने "ऐ मेरे वतन के लोगों" गाया था, और जिस शो में पंडित नेहरु शामिल थे। मनोहारी दा ने "ऐ मेरे वतन के लोगों" में मेटल फ़्ल्युट बजाया था। इस गीत के बाद वो पीछे बैठे हुए थे। उन्हे नहीं मालूम था कि इस शो में आशा जी 'यही वो जगह है" गाने वाली हैं। तो जब आशा जी इस गीत को गाना शुरु किया तो मनोहारी दा अपने आप को रोक नहीं सके और सैक्सोफ़ोन हाथ में लेकर स्टेज पर चले आए और सही वक्त पर बजाना शुरु किया जैसे कि गीत में बजता है। जनता ख़ुशी से पागल हो गई। वापस लौटने पर जब आशा जी ने यह क़िस्सा नय्यर साहब को बताया, तो नय्यर साहब ने एक १०० रुपय का नोट निकाल कर मनोहारी दा के हाथ में थमा दिया। दोस्तों, यह एक यादगार क़िस्सा था लेकिन मुझे इसमें कुछ संशय है। 'ये रात फिर न आएगी' रिलीज़ हुई थी १९६५ में और वह शो हुआ था १९६२ में। तो फिर यह गीत ३ साल पहले कैसे गाया गया होगा उस शो में? ख़ैर जो भी है, नय्यर साहब ने 'दास्तान-ए-नय्यर' शृंखला में इस गीत के बारे में कहा था यह धुन उन्होने मसूरी में बनाई थी। और आश्चर्य की बात देखिए, इस गीत से भी वही पहाड़ी रंग छलकता है। तो आइए, बीते दिनों की यादों में खो जाते हैं आशा भोसले के गाए हुए इस गीत के साथ।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. भारतीय शास्त्रीय संगीत के एक बड़े स्तंभ कहे जा सकते हैं ये महान संगीतकार जिन्होंने रचा इस गीत को.
२. शैलेन्द्र है गीतकार.
३. मुखड़े की पहली पंक्ति में शब्द है -"दिन".
पिछली पहेली का परिणाम -
जी बिलकुल आप सही कह रही हैं, शायद आशा जी को सम्मान इस गीत के लिए नहीं मिला था, पर जवाब आपका एकदम सही है, अब बस आप एक कदम दूर हैं मंजिल से, अवध जी ने सही कहा, हमें आपकी पसंद के गीतसुनना बहुत अच्छा लगेगा
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
शरद तैलंग जी के पसंद के ज़रिए आज बहुत दिनों के बाद हम लेकर आए हैं आशा भोसले और ओ. पी. नय्यर साहब की जोड़ी का एक और सदाबहार नग़मा। फ़िल्म 'ये रात फिर ना आएगी' का यह गीत "यही वो जगह है, ये ही वो फ़िज़ाएँ" इस जोड़ी का एक बहुत ही महत्वपूर्ण गीत है। बीती पुरानी यादों को उसी जगह पे जा कर फिर से एक बार जी लेने की बातें हैं इस गीत में। एस. एच. बिहारी साहब ने ऐसे जज़्बाती बोल लिखे हैं कि सुन कर दिल भर आता है। इस गीत के साथ हर कोई अपने आप को कनेक्ट कर सकता है। ख़ास कर वो लोग तो ज़रूर महसूस कर पाएँगे जो कभी अपने घर से दूर किसी जगह पर जा कर रहे होंगे और वहाँ पर कई रिश्ते भी बनाएँ होंगे, दोस्त बनाए होंगे, प्यार पाया होगा। और फिर जब उस जगह को छोड़ कर चले जाना पड़ा तो बस यादें ही साथ में वापस गईं। और फिर कई बरस बाद जब उसी जगह पर वापस लौटे तो सब कुछ बदला हुआ सा पाया। अगर कुछ वैसे का वैसा था तो बस दिल में उन बीते दिनों की यादें। "यही पर मेरा हाथ में हाथ लेकर कभी ना बिछड़ने का वादा किया था, सदा के लिए हो गए हम तुम्हारे गले से लगा कर हमें ये कहा था, कभी कम ना होंगी हमारी वफ़ाएँ, यही पर कभी आप हमसे मिले थे"। नय्यर साहब के अनुसार किसी गीत की कामयाबी में ५०% श्रेय गीतकार का होता है, २५% संगीतकार का, और बाकी के २५% में शामिल है गायक और साज़िंदे। इस गीत के बोलों को सुन हम अंदाज़ा लगा सकते हैं कि इस बात में कितनी सच्चाई है।
दोस्तों, इस गीत में सैक्सोफ़ोन मुख्य साज़ के तौर पर इस्तेमाल किया गया है, और आपको पता है इस साज़ को इस गीत में किन्होने बजाया था? वो हैं जानेमाने सैक्सोफ़ोन वादक मनोहारी सिंह। मनोहारी दा ने तमाम संगीतकारों के साथ काम किया है और बहुत सारे हिट गीतों में उनका महत्वपूर्ण योगदान रहा है। आज बात करते है मनोहारी दा और नय्यर साहब के साथ की। प्रस्तुत गीत के अलावा नय्यर साहब के जिस गीत में उन्होने इस साज़ को मुख्य रूप से बजाया था वह गीत है "है दुनिया उसी की ज़माना उसी का", फ़िल्म 'कश्मीर की कली' में। मनोहारी दा का कहना है कि नय्यर साहब का एक यूनिक स्टाइल है और उनका संगीत बड़ा ही जोशीला हुआ करता था। अगर उन्हे लगा कि टेक ओ.के. है तो किसी की क्या मजाल जो एक और टेक लेने की बात करे! फ़िल्म 'एक बार मुस्कुरा दो' में भी "कितने अटल थे तेरे इरादे" गीत में मनोहारी दा ने सैक्सोफ़ोन बजाया था। फ़िल्म 'ये रात फिर ना आएगी' का यह गीत सैक्सोफ़ोन पर मनोहारी दा ने सन् १९६२ में दिल्ली के उस डिफ़ेन्स शो में बजाया था जिस शो में लता जी ने "ऐ मेरे वतन के लोगों" गाया था, और जिस शो में पंडित नेहरु शामिल थे। मनोहारी दा ने "ऐ मेरे वतन के लोगों" में मेटल फ़्ल्युट बजाया था। इस गीत के बाद वो पीछे बैठे हुए थे। उन्हे नहीं मालूम था कि इस शो में आशा जी 'यही वो जगह है" गाने वाली हैं। तो जब आशा जी इस गीत को गाना शुरु किया तो मनोहारी दा अपने आप को रोक नहीं सके और सैक्सोफ़ोन हाथ में लेकर स्टेज पर चले आए और सही वक्त पर बजाना शुरु किया जैसे कि गीत में बजता है। जनता ख़ुशी से पागल हो गई। वापस लौटने पर जब आशा जी ने यह क़िस्सा नय्यर साहब को बताया, तो नय्यर साहब ने एक १०० रुपय का नोट निकाल कर मनोहारी दा के हाथ में थमा दिया। दोस्तों, यह एक यादगार क़िस्सा था लेकिन मुझे इसमें कुछ संशय है। 'ये रात फिर न आएगी' रिलीज़ हुई थी १९६५ में और वह शो हुआ था १९६२ में। तो फिर यह गीत ३ साल पहले कैसे गाया गया होगा उस शो में? ख़ैर जो भी है, नय्यर साहब ने 'दास्तान-ए-नय्यर' शृंखला में इस गीत के बारे में कहा था यह धुन उन्होने मसूरी में बनाई थी। और आश्चर्य की बात देखिए, इस गीत से भी वही पहाड़ी रंग छलकता है। तो आइए, बीते दिनों की यादों में खो जाते हैं आशा भोसले के गाए हुए इस गीत के साथ।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. भारतीय शास्त्रीय संगीत के एक बड़े स्तंभ कहे जा सकते हैं ये महान संगीतकार जिन्होंने रचा इस गीत को.
२. शैलेन्द्र है गीतकार.
३. मुखड़े की पहली पंक्ति में शब्द है -"दिन".
पिछली पहेली का परिणाम -
जी बिलकुल आप सही कह रही हैं, शायद आशा जी को सम्मान इस गीत के लिए नहीं मिला था, पर जवाब आपका एकदम सही है, अब बस आप एक कदम दूर हैं मंजिल से, अवध जी ने सही कहा, हमें आपकी पसंद के गीतसुनना बहुत अच्छा लगेगा
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
wo hai isme koi shq nhi
geet-''din dhal jaye haay raat na jaye tu to na aaye teri yaaad sataaye
geetkaar-shilendra
kaise din beete kaise beeti ratiya piya jaane na
film -ANURADH
LEELA CHITNIS BALRAJ SAHNI KI BDI HI KHOOBSURAT FILM THI YE ISKE GEET BHI SHAILENDRA NE LIKHE THE
AAPKA PRSHN KNFUZ KARTA HAI
JIS PRSHN KE DO UTTAR APNI JGAH SAHI FIT HOTE HO WO PRASHN HM TEACHERS SAHI NHI MANTE
AUR AISE ME BCHCHON KE NUMBER NHI KATTE
इतना कन्फ्यूज़ न करो बाबा
'अनुराराधा फिल्म का एक गाना और है जिसमे 'दिन ; शब्द मुखड़े में ही आया है
'हाय रे वो दिन क्यूँ ना आये ''
शैलेन्द्रजी ने ही लिखा है
संगीतकार भी पंडित रवि शंकर जी ही है
अब तो तुम्हे उल्टा लटकाना ही पड़ेगा बाबा
हा हा हा
JINHONE YE RASTE HAIN PYAR KE ME BHI KAAM KIYA THA
यद्यपि कि पंडित रवि शंकर के संगीत में दोनों गानों में शब्द "दिन" का प्रयोग किया गया है परन्तु मेरे विचार में गाना होना चाहिए " कैसे दिन बीते..."
इंदु जी को हार्दिक बधाई.
अवध लाल
main bchpn se ganon ki behaddddddddddd shaukin hun
morning walk pr bhi mera I-pod mere sath rhta hai
hindi filmo ke best songska,ghazalon aur best bhajans(yun mujhe wajan psnd nhi ) ka shandar collection hai
aur cd ki tarh start ho jati hun nonstop asnkhya gaane poore poore gaa leti hun
realy ye mera passion hai
pr ..yahan in bchcho ko motivate karna hi mera main aim tha
pr PABLAJI JAISA BHAI MILA
AAP LOGO KA PYAR
thanx to almighty GOD n to all of u.
जिया जरत रहत दिन रैन ......
पिपरा के पतवा सरीखे डोले मन्वान ........
होरी खेलत नन्दलाल.....
वगैरह गीत . इसी फिल्म के हैं .
pr kya ye prashn men truti nhi ?
aspsht prshn ke hi uttar is prkar aate hain ,yahaan examiner pr depend karta hai ki wo apni bhool awikar karte hue student ko bonus marks,ya sahi uttar hone ke karan poore marks deta hai ya nhi ? mgr ek achchhe blog aur achchhe program ko nievivad rkhne ke liye jaruri hai ki prshno ka nirman sahi kiya jaye.
yah ek uchch star ka karykrm hai ,nihsndeh.
ise aap mera anurodh ya salaah ke roop me maan skte hain .
thanks