Skip to main content

संगीत अवलोकन २००९, वार्षिक संगीत समीक्षा में फिल्म समीक्षक प्रशेन क्वायल लाये हैं अपना मत

२००९ हिंदी फिल्म संगीत के इतिहास में प्रायोगिकता के लिए मशहूर होगा. साल के शुरुआत में ही देव डी जैसे धमाकेदार प्रायोगिक फिल्म के म्यूजिक ने तहलका मचा दिया. बधाई हो फिल्म निर्देशक अनुराग कश्यप को जिन्होंने एक नए म्यूजिक डिरेक्टर को मौका देकर उन्हें पुरी स्वतंत्रता दी कि वो कुछ नया कर पाए. अंकित त्रिवेदी, जिन्होंने ये संगीत दिया है उन्होंने भी इस मौके का फायदा उठाते हुए ऐसे चौके छक्के मारे है के शायद ही कोई और प्रस्थापित संगीतकार ये कर पाता.

फिर आई दिल्ली ६ जिसमे संगीत के महारथी ए. आर. रहमान ने अपना लोहा फिर से मनवाया. प्रसून और रहमान का ये संगीत प्रयोग बेतहाशा सफल रहा और सारा भारत झूम के गाने लगा "मसकली मसकली". पर सबसे बड़ा प्रयोग था स्त्रियों के लोकसंगीत को जो आज तक उनके बीच सीमित था उसे हीप हॉप के साथ मिक्स कर के पेश करना. रहमान ने "गेंदा फूल" में वही किया और सभी गेंदा फूल बनकर पूछने लगे "अरे ये पहले क्यों नहीं हुआ. और ये नयी गायिका कौन है भाई ?"

वह गायिका है "रेखा भारद्वाज"! विशाल भारद्वाज की धर्मपत्नी. ऐसे नहीं के रेखाजी के कोई गाने पहले नहीं आये थे. इसके पहले भी ओंकारा में "नमक इश्क का" देकर उन्होंने सफलता प्राप्त की थी. पर गेंदा फूल एक मेनस्ट्रीम हिट था और इसीलिए ये सवाल आ रहा था. वर्ष की शुरूआत में गेंदा फुल देनेवाली रेखाजी ने वर्ष के अंत में रेडियो फिल्म में "पिया जैसे लड्डू" दे कर पुरे वर्ष पर अपनी मुहर लगा दी.

इनके आलावा शारिब और तोशी के संगीत ने भी व्यवसायिक सफलता प्राप्त कर के उन्हें कम उम्र में एक सफल संगीतकार बना दिया है. जनवरी में राज २ के "माही माही" गीत के साथ वे हिट रहे.

वही लन्दन ड्रीम्स के गानों ने नाराज कर दीया. संगीत के इर्द गिर्द घुमती ये फिल्म संगीत के मामले में ही कमजोर निकली. पर यहाँ भी एक प्रयोग था जो सबको पसंद आया और वह था rock हनुमान चालीसा जो सबको पसंद आई पर वोह जिस गाने का पार्ट था वही बोरियत भरा था.

लव आजकल, अजब प्रेम की गजब कहानी, तुम मिले, All the Best: Fun Begins, दिल बोले हडिप्पा, आ देखें ज़रा, बिल्लू जैसे फिल्मों के सफल संगीत से प्रीतम चक्रबोर्ती इस साल के सब से सफल संगीतकार रहे. फिल्मों की तादाद के साथ साथ उन्होंने गुणवत्ता का भी अच्छे से ख्याल रखा. ए. आर. रहमान ने भी इस साल कुछ अच्छे गाने दिए. वही सलीम-सुलेमान को बहुत सारी फिल्मे बतौर संगीतकार मिली पर वोह कुछ खांस असर नहीं दिखा पाए.

क़र्ज़ में ठीक ठाक संगीत देने वाले हिमेश रेशमिया इस बार रेडियो के साथ सबको अपनी कला से अचंभित कर गए. बार बार सुन सके ऐसे गाने दे कर उन्होंने एक पूरा हिट एल्बम प्रस्तुत किया. फिल्म हालाँकि नहीं चली पर गाने लगातार बजते रहते है.

कमीने और स्लम डोग के साथ गुलज़ार इस साल के सबसे सफल गीतकार रहे. पर प्रसून जोशी और स्वानंद किरकिरे भी अपने हुनर का जौहर दिखाने में कम नहीं रहे.

गायक और गायिकाओं में मोहित चौहान, आतिफ अस्लम हिट गाने देते रहे पर सुनिधि और शान इस साल थोड़े कम नजर आये.

मिलजुल कर संगीत के लिए ये २००९ बहुत अच्छी तरह से गुजरा और प्रायोगिक संगीत के साथ साथ बॉलीवुड का मेलोडी और मस्ती वाला समीकरण भी जमकर चला. ऐसे ही आगे होते रहे तो हम जैसे प्रशंसकों का प्यार और दुवायें हरदम बॉलीवुड के साथ बनी रहेंगीं.

अपनी पसदं के 5 गीतों को क्रमानुसार सूची.

1. पायलिया (देव डी)
2. गेंदा फूल (दिल्ली ६)
3. कमीने (शीर्षक)
4. रफा दफा (रेडियो)
5. तेरा होने लगा हूँ (APKGK)


निम्न श्रेणियों में अपनी एक प्रविष्ठी (नामांकन)

BEST SONG- Tera hone laga hun
BEST ALBUM- Radio
BEST LYRICIST- Gulzar
BEST COMPOSER- Pritam Chaktraborty
BEST SINGER (MALE) - Mohit Chauhan
BEST SINGER (FEMALE) - Rekha Bhardwaj
BEST NON FILMI SONG - Chandan mein
BEST UPCOMING ARTIST- Amit Trivedi, Music Director, Dev D
BEST FILMED (CHOREOGRAPHED) SONG OF THE YEAR: Blue Theme
ARTIST OF THE YEAR (OVERALL PERFORMANCE WISE) : Mohit Chauhan


-प्रशेन क्वायल

Comments

2009 ke filmon ke geet sangeet ka vishleshan behad prbhavi raha..

sarthak charcha..dhanywaad aawaj!!

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...