Skip to main content

वहां कौन है तेरा, मुसाफिर जायेगा कहाँ....और "राम राम" कहा गया वो मुसाफिर कवि शैलेन्द्र

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 289

शृंखला "शैलेन्द्र- आर.के.फ़िल्म्स के इतर भी" में आज एक बार फिर से हम रुख़ कर रहे हैं शैलेन्द्र के दार्शनिक पक्ष की ओर। हमने अक्सर यह देखा है कि फ़िल्मी गीतकार मुसाफ़िर का सहारा लेकर अक्सर कुछ ना कुछ जीवन दर्शन की बातें हमें समय समय पर सिखा गये हैं। कुछ गानें याद दिलाएँ आपको? "मंज़िलें अपनी जगह है रास्ते अपनी जगह, जब क़दम ही साथ ना दे तो मुसाफ़िर क्या करे", "कहीं तो मिलेगी मोहब्बत की मंज़िल, कि दिल का मुसाफ़िर चला जा रहा है", "आदमी मुसाफ़िर है, आता है जाता है", "मुसाफ़िर हूँ यारों, ना घर है ना ठिकाना", "मुसाफ़िर जानेवाले कभी ना आनेवाले", और इसी तरह के बहुत से दूसरे गानें हैं जिनमें मुसाफ़िर के साथ जीवन के किसी ना किसी फ़ल्सफ़े को जोड़ा गया है। इसी तरह से फ़िल्म 'गाइड' में शैलेन्द्र ने एक कालजयी गीत लिखा था जो बर्मन दा की आवाज़ पा कर ऐसा जीवित हुआ कि बस अमर हो गया। "वहाँ कौन है तेरा, मुसाफ़िर जाएगा कहाँ, दम ले ले घड़ी भर, ये छैयाँ पाएगा कहाँ"। भावार्थ यही है कि ज़िंदगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मुकाम, वो फिर नहीं आते। जी हाँ, जो ज़माना एक बार गुज़र जाता है, उसे फिर वापस पाना नामुमकिन है। कड़वी ही सही, लेकिन हक़ीक़त यही है कि किसी के होने ना होने से इस गतिशील ज़िंदगी को कुछ फ़र्क नहीं पड़ता। एक बार जो चला जाता है, उसके प्रिय जन भी धीरे धीरे उसका ग़म भूल जाते है और शायद यह ज़रूरी भी है जीवन को निरंतर आगे बढ़ाते रहने को। इस पूरे गीत में बस यही कहा गया है कि हे मुसाफ़िर, तू क्यों वापस उस संसार में जा रहा है जिसे एक बार तू छोड़ चुका है। वहाँ कोई नहीं है जिसे तेरा इंतेज़ार है। इसलिए, तू जहाँ है उसी को अपना जहान समझ और हँसी ख़ुशी जी। इस गीत को सुनते हुए हम किसी और ही जगत में खो जाते हैं। शैलेन्द्र ने इस गीत को कुछ इस तरह से लिखा है कि हर एक आदमी इस गीत से अपने आप को जोड़ सकता है, अपनी ज़िंदगी को जोड़ सकता है। न जाने क्यों, शायद बोलों का ही असर होगा, या संगीत का, या दादा की अनूठी गायकी का, या फिर इन सभी के संगम का कि इस गीत को सुनते हुए आँखें भर आती हैं। ज़िंदगी की बहुत निष्ठुर सच्चाई से अवगत कराता है यह गीत।

फ़िल्म 'गाइड' हिंदी सिनेमा की एक बेहद महत्वपूर्ण फ़िल्म रही है। इस फ़िल्म के बारे में फ़िल्म अध्यन कोर्स मे भी पढ़ाया जाता है। आप सभी ने यह फ़िल्म देख रही है, इसलिए इस फ़िल्म से जुड़ी साधारण बातें बताकर वक़्त बरबाद नहीं करूँगा। बस इतना याद दिला दूँ कि यह फ़िल्म आर. के. नारायण की मशहूर उपन्यास 'दि गाइड' पर आधारित थी जिसे फ़िल्म के रूप में लिखा व निर्देशित किया विजय आनंद ने। देव आनंद ने प्रोड्युस किया, देव साहब और वहीदा रहमान के अभिनय से सजी यह फ़िल्म रिलीज़ हुई थी ६ फ़रवरी १९६५ के दिन। उस साल फ़िल्मफ़ेयर पुरस्कारों में यह फ़िल्म छाई रही। सर्वश्रेष्ठ फ़िल्म (देव आनंद), सर्वश्रेष्ठ निर्देशक (विजय आनंद), सर्वश्रेष्ठ अभिनेता (देव आनंद), सर्वश्रेष्ठ अभिनेत्री (वहीदा रहमान), सर्वश्रेष्ठ कहानी (आर. के. नारायण), सर्वश्रेष्ठ सिनेमाटोग्राफ़ी (फ़ाली मिस्त्री), और सर्वश्रेष्ठ संवाद (विजय आनंद)। इसके अलावा सचिन देव बर्मन और लता मंगेशकर के नाम सर्वश्रेष्ठ संगीत और सर्वश्रेष्ठ पार्श्वागायक के लिए नामांकित हुए थे। लेकिन ये दो पुरस्कार चले गए शंकर जयकिशन और मोहम्मद रफ़ी को फ़िल्म 'सूरज' के लिए। ख़ैर, 'गाइड' फ़िल्म का एक अमरीकी वर्ज़न भी तैयार किया गया था जिसका निर्माण टैड डैनियलेविस्की ने किया था। ४२ साल बाद फ़िल्म 'गाइड' को हाल ही में, सन् २००७ में कान फ़िल्म महोत्सव में शामिल किया गया था। तो चलिए सुनते हैं, फ़िल्म 'गाइड' से सचिन देव बर्मन के संगीत और आवाज़ में शैलेन्द्र की यह दार्शनिक रचना। इस गीत को सुनते हुए आप अपनी आँखें मूंद लीजिए और बह जाइए इस गीत के अमर बोलों के साथ। गीत ख़त्म होने के बाद जब आप अपनी आँखें खोलेंगे तो वे यक़ीनन नम हो गयी होंगीं!



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-

१. कल शैलेद्र की पुण्यतिथि है और ये गीत फिल्माया गया है उनके मित्र पर जिनकी जयंती भी हम कल ही के दिन मनाते हैं.
२. इस फिल्म को रुपहले परदे पर लिखी एक कविता कहा जा सकता है, खुद शैलेद्र के जीवन में इस फिल्म का बहुत बड़ा योगदान है.
३. एक अंतरे में शब्द है -"सौतन".

पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी एक और सही जवाब, बधाई....पाबला जी कहाँ जायेंगें रूठ कर, आप बेफिक्र रहें इंदु जी.

खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी


ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.

Comments

बी एस पाबला said…
यह सब इंदु बहन की डाँट का नतीज़ा है :-)

मिलते हैं ब्रेक के बाद

बी एस पाबला
बी एस पाबला said…
सजनवा बैरी हो गये हमार
चिठिया हो तो हर कोई बाँचे
भाग ना बाँचे कोय
करमवा बैरी हो गये हमार

फिल्म: तीसरी कसम
indu puri said…
o my god itna srl prshn main chuk gai .ekdm bhool hi gai thi
koi baat nhi ji
raj kapoor waheeda ji ki ek bahut khoobsurat film thi yah
jane kyo nhi chli pr mujhe aaj bhi behad psnd hai
apn nhi to kya jeeta bhi to apna hi sher bhai
badhai veerji bilkul sahi uttar hai ji
indu puri said…
jaay bse prdes sajnwa sautan ke bharmaye ,n chitti n koi sndesa rut aaye rut jaye ....aisi hi smthing something lines hai
be misal geet,avismrniy sngeet
मैं तो बस गीत सुनने के लिये ही आती हूँ मेरी पसंद का गीत है धन्यवाद्
AVADH said…
प्रिय सुजोय जी तथा संजीव जी,
क्षमा करें एक विसंगति ज्ञात होती है.
मेरी जानकारी के अनुसार 'गाइड' के अंग्रेजी रूप का निर्माण भी नवकेतन बैनर के अंतर्गत ही हुआ था. इसमें देव आनंद साहेब के साथ सह- निर्मात्री थीं मशहूर उपन्यासकार लेखिका
और नोबेल पुरस्कार विजेता श्रीमती पर्ल एस बक. लेकिन इसका निर्देशन विजय आनंद द्वारा न हो कर टेड डेनियलवस्की द्वारा किया गया था. कृपया देख लें.
अवध लाल

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...