Skip to main content

पंखों को हवा जरा सी लगने दो....जयदीप सहानी जगाते हैं एक उम्मीद अपनी हर फिल्म, हर रचना से

ताजा सुर ताल TST (39)

दोस्तो, ताजा सुर ताल यानी TST पर आपके लिए है एक ख़ास मौका और एक नयी चुनौती भी. TST के हर एपिसोड में आपके लिए होंगें तीन नए गीत. और हर गीत के बाद हम आपको देंगें एक ट्रिविया यानी हर एपिसोड में होंगें ३ ट्रिविया, हर ट्रिविया के सही जवाब देने वाले हर पहले श्रोता की मिलेंगें २ अंक. ये प्रतियोगिता दिसम्बर माह के दूसरे सप्ताह तक चलेगी, यानी 5 अक्टूबर से १४ दिसम्बर तक, यानी TST के ४० वें एपिसोड तक. जिसके समापन पर जिस श्रोता के होंगें सबसे अधिक अंक, वो चुनेगा आवाज़ की वार्षिक गीतमाला के 60 गीतों में से पहली 10 पायदानों पर बजने वाले गीत. इसके अलावा आवाज़ पर उस विजेता का एक ख़ास इंटरव्यू भी होगा जिसमें उनके संगीत और उनकी पसंद आदि पर विस्तार से चर्चा होगी. तो दोस्तों कमर कस लीजिये खेलने के लिए ये नया खेल- "कौन बनेगा TST ट्रिविया का सिकंदर"

TST ट्रिविया प्रतियोगिता में अब तक-

पिछले एपिसोड में,वैसे तो आज की कड़ी में भी ३ सवाल हैं आपके जेहन की कसरत के लिए. पर फैसला तो आ ही चुका है. सीमा जी अपने सबसे नजदीकी प्रतिद्वंदी से भी कोसों आगे हैं, बहुत बहुत बधाई आपको...आपके सर है TST ट्रिविया के सिकंदर का ताज. सीमा जी अपनी पसंद के १० गीत लेकर आपके लिए हाज़िर होंगी, इस वर्ष यानी २००९ की सबसे अंतिम पेशकश के रूप में....श्रोताओं तैयार रहिये....

सजीव - आज 'ताज़ा सुर ताल' में हम पाँच के बदले सिर्फ़ तीन गीत सुनेंगे।

सुजॉय - वह क्यों भला? ऐसी ज्यादती क्यों?

सजीव - दरअसल बात ऐसी है कि आज हम जिस फ़िल्म की बातें करने जा रहे हैं उस फ़िल्म में हैं ही केवल तीन गीत।

सुजॉय - मैं समझ गया, आप Rocket Singh - Salesman of the Year फ़िल्म की बात कर रहे हैं ना?

सजीव - बिल्कुल ठीक समझे। आज हम इसी फ़िल्म के तीनों गानें सुनेंगे।

सुजॉय - लेकिन सजीव, इस फ़िल्म में भले ही तीन गानें हों, लेकिन इस फ़िल्म के साउड ट्रैक में यश राज बैनर की पुरानी फ़िल्मों के कुछ गीतों को भी शामिल किया गया है। तो क्यों ना हम उनमें से दो गानें सुन लें।

सजीव - आइडिया तो अच्छा है, इससे पाँच के पाँच गानें भी हो जाएँगे और दो हिट गानें भी अपने श्रोताओं को एक बार फिर से सुनने का मौका मिल जाएगा! उन दो गीतों की बात हम बाद में करेंगे, चलो जल्दी से सुनते हैं इस फ़िल्म का पहला गीत, उसके बाद बातचीत आगे बढ़ाएँगे।

गीत - पॉकेट में रॉकेट...pocket men rocket


सुजॉय - फ़िल्म का शीर्षक गीत हमने सुना, बेनी दयाल और साथियों की आवाज़ें थीं। इन दिनों इसी गीत के ज़रिए इस फ़िल्म के प्रोमोज़ चलाए जा रहे हैं हर टीवी चैनल पर। सजीव, क्या ख़याल है इस गीत के बारे में आपका?

सजीव - देखो इस फ़िल्म के तीनों गीतों की अच्छी बात यह है कि बहुत ही अलग हट के है और ताज़े सुनाई देते हैं। इन दिनों सलीम सुलेमान अपना एक स्टाइल डेवलोप करने की कोशिश कर रहे हैं। क़ुर्बान के गानें भी पसंद किए गए और इस फ़िल्म के गानें भी अच्छे हैं।

सुजॉय - इस फ़िल्म में गानें लिखे हैं जयदीप साहनी ने और जयदीप ने इस फ़िल्म की कहानी भी लिखी है। पिछले साल अक्षय कुमार 'सिंह इज़ किंग्' में तथा सलमान ख़ान 'हीरोज़' फ़िल्म में सरदार की भूमिका निभाने के बाद बॊलीवुड में सरदार हीरो की एक ट्रेंड चल पड़ी है, और इस बार रणबीर कपूर बने हैं सरदार रॊकेट सिंह। और उनकी नायिका बनी हैं शज़ान पदमसी।

सजीव - इस फ़िल्म का दूसरा गीत अब सुना जाए विशाल दादलानी की आवाज़ में, जिसके बोल हैं "गड़बड़ी हड़बड़ी"। विशाल दादलानी जहाँ एक तरफ़ विशाल-शेखर की जोड़ी में हिट म्युज़िक देते है, वहीं वो दूसरे संगीतकारों के लिए बहुत से गानें भी गाते हैं। यह एक बहुत ही हेल्दी ऐप्रोच है आज के कलाकारों में, वर्ना एक समय ऐसा भी था कि अगर कोई संगीतकार बन जाए तो फिर दूसरे संगीतकार उससे अपने गानें नहीं गवाया करते थे।

सुजॉय - सही कहा आप ने कुछ हद तक। चलिए अब गीत सुनते हैं।

गीत - गड़बड़ी हड़बड़ी...hadbadi gadbadi


सजीव - तीसरा गीत इन दोनों गीतों से बिल्कुल अलग है, बड़ा ही नर्मोनाज़ुक है और जयदीप साहनी ने अच्छे गीतकारी का मिसाल पेश किया है। यह गीत है "पंखों को हवा ज़रा सी लगने दो"।

सुजॉय - हाँ, सलीम मर्चैंट की आवाज़ है इस गीत में और सलीम भी आजकल कई गानों में अपनी आवाज़ मिला रहे हैं। 'कुर्बान' के मशहूर गीत "अली मौला" में भी उन्ही की आवाज़ थी।

गीत - पंखों को हवा ज़रा सी...pankhon ko


सजीव - यश चोपड़ा और आदित्य चोपड़ा ने इस फ़िल्म को प्रोड्युस किया है और निर्देशक हैं शिमित अमीन। शिमित ने बहुत ज़्यादा फ़िल्में तो नहीं की हैं लेकिन उनका निर्देशन ज़रा हट के होता है। 'चक दे इडिया' उन्होंने हीं निर्देशित की थी और वह क्या फ़िल्म थी!’अब तक छप्पन’ उनकी पहली फिल्म थी और उसमें भी उनके काम को काफी सराहा गया था। 'भूत' और 'अब तक छप्पन' में उन्होने एडिटर की भूमिका निभाई।

सुजॉय - और सजीव, जैसा कि हमने शुरु में कहा था कि इस फ़िल्म के तीन ऒरिजिनल गीतों के बाद हम यश राज की पुरानी फ़िल्मों के दो ऐसे गानें सुनवाएँगे जिन्हे 'रॊकेट सिह' के साउंड ट्रैक में शामिल किया गया है, तो सब से पहले तो मैं उन सभी गीतों के नाम बताना चाहूँगा जिन्हे फ़िल्म में शामिल किया गया है। ये गानें हैं "चक दे चक दे इंडिया" (चक दे इंडिया), "छलिया छलिया" और "दिल हारा" (टशन), "डैन्स पे चांस मार ले" और "हौले हौले से" (रब ने बना दी जोड़ी), "ख़ुदा जाने के", "जोगी माही" और "लकी बॊय" (बचना ऐ हसीनों)।

सजीव - तो इनमें से कौन से दो गीत सुनवाना चाहोगे?

सुजॉय - एक तो निस्संदेह "ख़ुदा जाने के मैं फ़िदा हूँ" और दूसरा आप बताइए अपनी पसंद का।

सजीव - चलो "चक दे इंडिया" यादें भी ताज़ा कर लिया जाए। वैसे भी भारत हॊकी में ना सही पर क्रिकेट में इन दिनों चर्चा में है ICC Ranking में नंबर-१ आने के लिए। चलो ये दोनों गानें सुनते हैं एक के बाद एक बैक टू बैक, वैसे ये गीत सुनवाने का मौका भी एकदम सटीक है. दोस्तों ये TST की अंतिम कड़ी है २००९ के लिए. जाहिर है नए गीतों की महफ़िल हम नए साल में फिर से सजायेंगें. इस साल के गीतों पर हमारा पूरा का पूरा पैनल अपनी अपनी राय लेकर उपस्थित होगा २५ दिसंबर से ३० दिसम्बर तक, और ३१ तारीख़ को हम सुनेंगें हमारी विजेता सीमा जी की पसंद के १० सुपर हिट गीत, तो एक बार फिर TST की तरफ से नव वर्ष की शुभकामनाएं, आईये २००९ को विदा कहें एक अच्छी सोच के साथ. नए साल में हम अपने देश को हर स्तर पर और अधिक समृद्ध करने में अपना योगदान दे सके, तो एक बार फिर जयदीप सहानी के साथ हम सब भी मिल कर कहें -"चक दे इंडिया..."

गीत - ख़ुदा जाने के मैं फ़िदा हूँ (बचना ऐ हसीनों)


गीत - चक दे इंडिया (चक दे इंडिया)


और अब बारी साल के अंतिम ट्रिविया की

TST ट्रिविया 39- निर्देशक शिमित अमीन का जन्म अफ़्रीका महाद्वीप के किस देश में हुआ था?

TST ट्रिविया 40- आज ज़िक्र हो रही है यश राज के फ़िल्म की। तो बताइए यश चोपड़ा के किस फ़िल्म का निर्देशन अर्जुन सबलोक ने किया था?

TST ट्रिविया 41- इस फ़िल्म के किसी एक अभिनेता/अभिनेत्री को आप किस तरह से १९८५ की फ़िल्म 'भवानी जंकशन' के गीत "आए बाहों में" से जोड़ सकते हैं?

"रॉकेट सिंह" एल्बम को आवाज़ रेटिंग ***

चूँकि फिल्म एक अच्छी सोच के साथ बनायीं गयी है और कहानी को अधिक अहमियत दी गयी है, व्यवहारिक दृष्टि से गीतों की संख्या कम रखी गयी है. पर शीर्षक गीत देखने में और "पंखों को" सुनने में बहुत अच्छा है. इस के आलावा एल्बम में यश राज बैनर के कुछ सुपर डुपर हिट गीतों को एक साथ सुनने का मौका भी है....तो ऑल इन ऑल इस अल्बम पर पैसा लगाया जा सकता है, वैसे भी नववर्ष करीब है और भारतीय क्रिकेट टीम भी पूरे जोश में है तो झूमने और नाचने के पर्याप्त मौके हैं आपकेपास.

आवाज़ की टीम ने इस अल्बम को दी है अपनी रेटिंग. अब आप बताएं आपको ये गीत कैसे लगे? यदि आप समीक्षक होते तो प्रस्तुत अल्बम को 5 में से कितने अंक देते. कृपया ज़रूर बताएं आपकी वोटिंग हमारे सालाना संगीत चार्ट के निर्माण में बेहद मददगार साबित होगी.

शुभकामनाएँ....


अक्सर हम लोगों को कहते हुए सुनते हैं कि आजकल के गीतों में वो बात नहीं. "ताजा सुर ताल" शृंखला का उद्देश्य इसी भ्रम को तोड़ना है. आज भी बहुत बढ़िया और सार्थक संगीत बन रहा है, और ढेरों युवा संगीत योद्धा तमाम दबाबों में रहकर भी अच्छा संगीत रच रहे हैं, बस ज़रुरत है उन्हें ज़रा खंगालने की. हमारा दावा है कि हमारी इस शृंखला में प्रस्तुत गीतों को सुनकर पुराने संगीत के दीवाने श्रोता भी हमसे सहमत अवश्य होंगें, क्योंकि पुराना अगर "गोल्ड" है तो नए भी किसी कोहिनूर से कम नहीं. क्या आप को भी आजकल कोई ऐसा गीत भा रहा है, जो आपको लगता है इस आयोजन का हिस्सा बनना चाहिए तो हमें लिखे.

Comments

seema gupta said…
1) Amin was born in Uganda
regards
seema gupta said…
2) Neal N Nikki (2005
regards
seema gupta said…
2) Neal N Nikki (2005
regards
3) उस गीत की गायिका: शेरोन प्रभाकर जो कि अलेक़ पदमशी से शादी के बाद शेरोन पदमशी हो गई।Rocket Singh - Salesman of the Year की अभिनेत्री शहज़ान उन्हीं की बेटी है।

धन्यवाद,
विश्व दीपक

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट