बहुत दिया देने वाले ने तुझको, आँचल ही न समाये तो क्या कीजै...कह तो दिया सब कुछ शैलेन्द्र ने और हम क्या कहें...
ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 284
फ़िल्म संगीत के ख़ज़ाने में ऐसे अनगिनत लोकप्रिय गानें हैं जिन्होने बहुत जल्द लोकप्रियता तो हासिल कर ली, लेकिन एक समय के पश्चात कहीं अंधेरे में खो से गए। लेकिन समय समय पर कुछ ऐसे भी गानें बनें हैं जो जीवन की मह्त्वपूर्ण पहलुओं से हमें अवगत करवाते है। जीवन दर्शन और हमारे अस्तित्व के पीछे जो छुपे राज़ और फ़लसफ़ा हैं, उन्हे उजागर किया गया है ऐसे गीतों के माध्यम से। और इस तरह के गीत कभी भी अंधेरे में गुम नहीं हो सकते, बल्कि ये तो हमेशा हमारे साथ चलते हैं हमारे मार्गदर्शक बनकर। ये गीत किसी स्थान काल या पात्र के लिए नहीं होते, बल्कि हर युग में हर इंसान के लिए उतने ही सार्थक और लाभदायक होते हैं। गीतकार शैलेन्द्र एक ऐसे गीतकार रहे हैं जिन्होने इस तरह के दार्शनिक गीतों में जैसे जान डाल दी है। उनके लिखे सीधे सरल और हल्के फुल्के गीतों में भी ग़ौर करें तो कोई ना कोई दर्शन सामने आ ही जाता है। और कुछ गानें तो हैं ही पूरी तरह से दार्शनिक। आज हमने एक ऐसा ही गाना चुना है जिसे सुनकर हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि हमारे पास जो कुछ भी है उनसे हम क्यों नहीं संतुष्ट रहते? क्यों हमेशा एक असंतुष्टी हमें घेरे रहती है? शैलेन्द्र की कलम से निकली यह बेशकीमती मोती है "बहुत दिया देने वाले ने तुझको, आँचल ही ना समाए तो क्या कीजे, बीत गए जैसे ये दिन रैना, बाकी भी कट जाए दुआ कीजे"। मुकेश की आवाज़ में, रोशन के संगीत में यह है फ़िल्म 'सूरत और सीरत' की रचना। "सजन रे झूठ मत बोलो" गीत की तरह शैलेन्द्र ने इस गीत को भी उपदेशों की मोतियों से जड़े हैं।
'सूरत और सीरत' सन् १९६२ की फ़िल्म थी जिसका निर्देशन किया था रजनीश बहल ने। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे धर्मेन्द्र और नूतन। इस प्रस्तुत गीत को सुनते हुए आपको याद आ गई होगी 'करण अर्जुन' फ़िल्म का गीत "ये बंधन तो प्यार का बंधन है, ये जनमों का संगम है"। और क्यों ना आए, राजेश रोशन ने अपने पिता की बनाई धुन पर ही तो इस गीत को बनाया था! आज के प्रस्तुत गीत के इंटर्ल्युड में बांसुरी पर बजाया गया जो पीस है, वही तो है 'करण अर्जुन' फ़िल्म के उस गीत के मुखड़े की धुन। है ना? जहाँ तक शैलेन्द्र जी के लिखे इस गीत का सवाल है, जैसा कि हमने पहले कहा है किस इस गीत से यही शिक्षा मिलती है कि संतुष्टी ही जीवन में सुखी होने का मंत्र है, एक अंतरे में वो लिखते हैं, "जो भी दे दे मालिक तू कर ले क़बूल, कभी कभी काँटों में भी खिलते हैं फूल, वहाँ देर भले है अंधेर नहीं, घबरा के युं गिला मत कीजे, बहुत दिया देने वाले ने तुझको, आँचल ही ना समाए तो क्या कीजे"। दोस्तों, विविध भारती पर १९६६ में रोशन जी तशरीफ़ लाए थे फ़ौजी भाइयों के लिए जयमाला कार्यक्रम पेश करने हेतु। उस कार्यक्रम में उन्होने 'सूरत और सीरत' फ़िल्म के इस प्रस्तुत गीत को बजाया तो नहीं था, लेकिन इस गीत का और शैलेन्द्र जी का ज़िक्र उन्होने कुछ इस तरह से किया था - "ज़िंदगी से संगीत प्रभावित होता है और संगीत से ज़िंदगी। बदलते वक़्त के साथ साथ संगीत भी बदल रहा है। अब एक घटना याद आ रही है। फ़िल्म 'सूरत और सीरत' में मैं म्युज़िक दे रहा था। उस समय मैं अपनी उल्झनों में परेशान सा रहता था। तो शैलेन्द्र ने मेरी परेशानी देख कर कहा कि भगवान आदमी को कितना कुछ देता है पर इंसान कभी उसका शुक्रगुज़ार नहीं होता। यह कहकर वो गुमसुम से हो गए और फिर कुछ देर बाद कहा कि भगवान ने इंसान को कितना कुछ दिया, पर आँचल ही में ना समाए तो क्या किया जाए। 'सूरत और सीरत' में भी ऐसा ही एक गाने का सिचुयशन बना था।" दोस्तों, और ज़्यादा कुछ ना कहते हुए आपको सुनवा रहे हैं शैलेन्द्र-रोशन की यह अमर रचना।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. शैलन्द्र ने इस गीत में बच्चे के बहलाने के बहाने भी कुछ गूढ़ बातें कही हैं.
२. आवाज़ है किशोर कुमार की.
३. एक अंतरे की तीसरी पंक्ति में शब्द है -"पेड़".
पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी, आपका भी जवाब नहीं, मुश्किल से मुश्किल सवाल का भी आसानी से जवाब लेकर हाज़िर हो जाती हैं ३२ अंक हुए आपके, हमें यकीं है कि आपको कडा मुकाबला मिलेगा हमारे ३०१ वें एपिसोड से जब हमारे धुरंधर एक बार फिर लड़ेंगें खिताब के लिए नए सिरे से....तब तक तो आप जमे रहिये निर्विवाद मैदान में.
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
फ़िल्म संगीत के ख़ज़ाने में ऐसे अनगिनत लोकप्रिय गानें हैं जिन्होने बहुत जल्द लोकप्रियता तो हासिल कर ली, लेकिन एक समय के पश्चात कहीं अंधेरे में खो से गए। लेकिन समय समय पर कुछ ऐसे भी गानें बनें हैं जो जीवन की मह्त्वपूर्ण पहलुओं से हमें अवगत करवाते है। जीवन दर्शन और हमारे अस्तित्व के पीछे जो छुपे राज़ और फ़लसफ़ा हैं, उन्हे उजागर किया गया है ऐसे गीतों के माध्यम से। और इस तरह के गीत कभी भी अंधेरे में गुम नहीं हो सकते, बल्कि ये तो हमेशा हमारे साथ चलते हैं हमारे मार्गदर्शक बनकर। ये गीत किसी स्थान काल या पात्र के लिए नहीं होते, बल्कि हर युग में हर इंसान के लिए उतने ही सार्थक और लाभदायक होते हैं। गीतकार शैलेन्द्र एक ऐसे गीतकार रहे हैं जिन्होने इस तरह के दार्शनिक गीतों में जैसे जान डाल दी है। उनके लिखे सीधे सरल और हल्के फुल्के गीतों में भी ग़ौर करें तो कोई ना कोई दर्शन सामने आ ही जाता है। और कुछ गानें तो हैं ही पूरी तरह से दार्शनिक। आज हमने एक ऐसा ही गाना चुना है जिसे सुनकर हम सोचने पर मजबूर हो जाते हैं कि हमारे पास जो कुछ भी है उनसे हम क्यों नहीं संतुष्ट रहते? क्यों हमेशा एक असंतुष्टी हमें घेरे रहती है? शैलेन्द्र की कलम से निकली यह बेशकीमती मोती है "बहुत दिया देने वाले ने तुझको, आँचल ही ना समाए तो क्या कीजे, बीत गए जैसे ये दिन रैना, बाकी भी कट जाए दुआ कीजे"। मुकेश की आवाज़ में, रोशन के संगीत में यह है फ़िल्म 'सूरत और सीरत' की रचना। "सजन रे झूठ मत बोलो" गीत की तरह शैलेन्द्र ने इस गीत को भी उपदेशों की मोतियों से जड़े हैं।
'सूरत और सीरत' सन् १९६२ की फ़िल्म थी जिसका निर्देशन किया था रजनीश बहल ने। फ़िल्म के मुख्य कलाकार थे धर्मेन्द्र और नूतन। इस प्रस्तुत गीत को सुनते हुए आपको याद आ गई होगी 'करण अर्जुन' फ़िल्म का गीत "ये बंधन तो प्यार का बंधन है, ये जनमों का संगम है"। और क्यों ना आए, राजेश रोशन ने अपने पिता की बनाई धुन पर ही तो इस गीत को बनाया था! आज के प्रस्तुत गीत के इंटर्ल्युड में बांसुरी पर बजाया गया जो पीस है, वही तो है 'करण अर्जुन' फ़िल्म के उस गीत के मुखड़े की धुन। है ना? जहाँ तक शैलेन्द्र जी के लिखे इस गीत का सवाल है, जैसा कि हमने पहले कहा है किस इस गीत से यही शिक्षा मिलती है कि संतुष्टी ही जीवन में सुखी होने का मंत्र है, एक अंतरे में वो लिखते हैं, "जो भी दे दे मालिक तू कर ले क़बूल, कभी कभी काँटों में भी खिलते हैं फूल, वहाँ देर भले है अंधेर नहीं, घबरा के युं गिला मत कीजे, बहुत दिया देने वाले ने तुझको, आँचल ही ना समाए तो क्या कीजे"। दोस्तों, विविध भारती पर १९६६ में रोशन जी तशरीफ़ लाए थे फ़ौजी भाइयों के लिए जयमाला कार्यक्रम पेश करने हेतु। उस कार्यक्रम में उन्होने 'सूरत और सीरत' फ़िल्म के इस प्रस्तुत गीत को बजाया तो नहीं था, लेकिन इस गीत का और शैलेन्द्र जी का ज़िक्र उन्होने कुछ इस तरह से किया था - "ज़िंदगी से संगीत प्रभावित होता है और संगीत से ज़िंदगी। बदलते वक़्त के साथ साथ संगीत भी बदल रहा है। अब एक घटना याद आ रही है। फ़िल्म 'सूरत और सीरत' में मैं म्युज़िक दे रहा था। उस समय मैं अपनी उल्झनों में परेशान सा रहता था। तो शैलेन्द्र ने मेरी परेशानी देख कर कहा कि भगवान आदमी को कितना कुछ देता है पर इंसान कभी उसका शुक्रगुज़ार नहीं होता। यह कहकर वो गुमसुम से हो गए और फिर कुछ देर बाद कहा कि भगवान ने इंसान को कितना कुछ दिया, पर आँचल ही में ना समाए तो क्या किया जाए। 'सूरत और सीरत' में भी ऐसा ही एक गाने का सिचुयशन बना था।" दोस्तों, और ज़्यादा कुछ ना कहते हुए आपको सुनवा रहे हैं शैलेन्द्र-रोशन की यह अमर रचना।
और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. याद रहे सबसे पहले सही जवाब देने वाले विजेता को मिलेंगें 2 अंक और 25 सही जवाबों के बाद आपको मिलेगा मौका अपनी पसंद के 5 गीतों को पेश करने का ओल्ड इस गोल्ड पर सुजॉय के साथ. देखते हैं कौन बनेगा हमारा अगला (अब तक के चार गेस्ट होस्ट बने हैं शरद तैलंग जी (दो बार), स्वप्न मंजूषा जी, पूर्वी एस जी और पराग सांकला जी)"गेस्ट होस्ट".अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं-
१. शैलन्द्र ने इस गीत में बच्चे के बहलाने के बहाने भी कुछ गूढ़ बातें कही हैं.
२. आवाज़ है किशोर कुमार की.
३. एक अंतरे की तीसरी पंक्ति में शब्द है -"पेड़".
पिछली पहेली का परिणाम -
इंदु जी, आपका भी जवाब नहीं, मुश्किल से मुश्किल सवाल का भी आसानी से जवाब लेकर हाज़िर हो जाती हैं ३२ अंक हुए आपके, हमें यकीं है कि आपको कडा मुकाबला मिलेगा हमारे ३०१ वें एपिसोड से जब हमारे धुरंधर एक बार फिर लड़ेंगें खिताब के लिए नए सिरे से....तब तक तो आप जमे रहिये निर्विवाद मैदान में.
खोज व आलेख- सुजॉय चटर्जी
ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम 6-7 के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.
Comments
ammi ka dulara.
कोई कहे चाँद, कोई आँख का तारा.
एक दिन वोह मान से बोला,
ह्यून फूंकती है चूल्हा,
अम्मी क्यों न रोटियों का पेड़ हम लगा लें,
आम तोड़ें रोटी तोड़ें, रोटी आम खा लें
काहे करे रोज़ रोज़ तू यह झमेला.
गीत है : " मुन्ना बड़ा प्यारा, अम्मी का दुलारा,
कोई कहे चाँद, कोई आँख का तारा.
एक दिन वोह माँ से बोला,
क्यूँ फूंकती है चूल्हा,
अम्मी क्यों न रोटियों का पेड़ हम लगा लें,
आम तोड़ें रोटी तोड़ें, रोटी आम खा लें
काहे करे रोज़ रोज़ तू यह झमेला.
hm to birthday party me dhoom mcha rahe the pr mn kahin kahin
aawaz ke aas paas bhatk rahaa tha ,
mujhe to bs ek hi film ka pata tha jisme kisho aur shailendraji sath the ,aur bhi ho skti hai pr mujhe honestly door gagan ki chhanw me ka hi pata tha
yani yun bhi haarte hi , avdhji bdhai