Skip to main content

मेरा सुंदर सपना बीत गया....दर्द की पराकाष्ठा है गीता दत्त के इस गीत में

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 67

ज का 'ओल्ड इज़ गोल्ड' सुनकर आपका मन विकल हो उठेगा ऐसा हमारा ख्याल है, क्योंकि आज का गीत गीता राय की वेदना भरी आवाज़ में है और जब जब गीताजी ऐसे दर्दभरे गीत गाती थी तब जैसे अपने कलेजे को ग़म के समन्दर में डूबोकर रख देती थी। उनके गले से दर्द कुछ इस तरह से बाहर निकलकर आता था कि सुननेवाले को उसमें अपने दर्द की झलक मिलती थी। गीताजी के गाये इस तरह के बहुत सारे गानें हैं, लेकिन आज हमने जिस गीत को चुना है वह है फ़िल्म 'दो भाई' से "मेरा सुंदर सपना बीत गया"। यह गीताजी की पहली लोकप्रिय फ़िल्मी रचना थी। इससे पहले उन्होने संगीतकार हनुमान प्रसाद के लिये कुछ गीत गाये ज़रूर थे लेकिन उन्हे उतनी कामयाबी नहीं मिली। सचिन देव बर्मन के धुनो को पाकर जैसे गीताजी की आवाज़ खुलकर सामने आयी फ़िल्म 'दो भाई' में। यह फ़िल्म आयी थी सन् १९४७ में फ़िल्मिस्तान के बैनर तले और उस वक़्त गीताजी की उम्र थी केवल १६ वर्ष। और इसी फ़िल्म से गीतकार राजा मेहेन्दी अली ख़ान का भी फ़िल्म जगत में पदार्पण हुआ। इसी फ़िल्म में गीता राय का गाया एक और मशहूर गीत था "याद करोगे याद करोगे इक दिन हमको याद करोगे, तड़पोगे फ़रियाद करोगे"। ये दोनो ही गीत गीताजी के जीवन की दास्ताँ को बयाँ करते हैं। १६ वर्ष की आयु में जब उन्होने ये गीत गाये थे तब शायद ही उन्हे इस बात का अंदाज़ा रहा होगा कि आगे चलकर उन्हे अपनी निजी ज़िन्दगी में भी यही गीत गाना पड़ेगा कि "मैं प्रेम में सब कुछ हार गयी, बेदर्द ज़माना जीत गया".

जब भी मैं गीताजी के बारे में कुछ कहने या लिखने की कोशिश करता हूँ तो दिल बहुत उदास सा हो जाता है। इसलिए मैं यहाँ पर वो पंक्तियाँ पेश कर रहा हूँ जिन्हे हर मन्दिर सिंह 'हमराज़' ने अपनी पत्रिका 'रेडियो न्यूज़' में गीताजी के निधन पर श्रद्धांजली स्वरूप लिखा था सन् १९७२ में - "हृदय की पूरी गहराई तक को छू लेने वाले गीतों को 'गीता' ने इतने दर्द में डूब कर गाये हैं कि सुनते समय लगता है सचमुच कोई फ़रियाद कर रहा हो। कई बार गीत सुनते समय यूँ एहसास होता है कि जैसे दर्दीले गीतों को स्वर प्रदान करनेवाले शायद स्वयं भी न जान पाते हों कि उनके स्वरों का लोगों पर कितना गहरा असर होता होगा! यही स्वर, जो समय की रफ़्तार के साथ पीछे धकेल दिये जाते हैं, दूसरे लोगों की ज़िन्दगी में इस क़दर समा जाते हैं कि जीवन पर्यान्त पीछा नहीं छोड़ते। स्वप्न लोक में ले जाने वाली एक और नशीली आवाज़ दिव्यलोक में गुम हो गयी। नशीली आवाज़ की मल्लिका गीता दत्त नहीं रहीं - एक ऐसी आवाज़ जो लोगों को दीवाना कर देती थी। एक सुहानी सर्द सुबह में 'रेडियो सीलोन' से यह गीत मानो सदा देता है - "याद करोगे याद करोगे इक दिन हमको याद करोगे, तड़पोगे फ़रियाद करोगे", और फिर मानो स्वयं ही कह रही हो - "मेरा सुंदर सपना बीत गया, मैं प्रेम में सब कुछ हार गयी, बेदर्द ज़माना जीत गया"।



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. सी रामचंद्र और भारत व्यास की जोड़ी का एक अमर गीत.
२. मन्ना डे और आशा की आवाजें. गीत के बीट्स कमाल के हैं, साउंड का थ्रो और अद्भुत है शहनाई का स्वर.
३. "ये नज़रें दीवानी थी खोयी हुई...." दूसरे अंतरे की पहली पंक्ति है...

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम -
एक और नए विजेता मिले हैं पराग संकला के रूप में. नीलम जी आपको भी बधाई...संगीता जी आपका भी आभार...
देर से ही सही भरत पंडया भी सही उत्तर के साथ पधारे। शायद भरत जी के यहाँ समय का अंतर है...

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.


Comments

Parag said…
हरमिंदर सिंह हमराज़ की गीता जी को अर्पित श्रद्धांजलि प्रस्तुत करने के लिए बहुत धन्यवाद. साठ साल के बाद भी यह गीत सुननेवाले के दिल को छू लेता हैं. गौर करने के बात यह भी हैं की जब यह गीत जब रिकॉर्ड हुआ था तब १६ साल की गीता रॉय को अपनी मातृभाषा बंगाली के अलावा कोई भी अन्य भाषा आती नहीं थी.

मन्ना डे साहब को जनम दिन की लाख शुभकामनाएं. आज की पहेली का जवाब हैं उनका और आशा जी गाया गीत "तू छुपी हैं कहाँ" जो फिल्म नवरंग के लिए बनाया गया था.

पराग सांकला
manu said…
तू छुपी है कहाँ,,,,
मैं तडपता यहाँ,,,,

बेहद ...बेहद शानदार गीत,,,,
संध्या और महिपाल की खूबसूरत अदाकारी ,,
shanno said…
बहुत ही सुंदर दर्दीला गीत. लाजबाब!
भाई! डर की पराकाष्ठा लिखें...परीकाष्ठा तो मैंने कभी नहीं सुना.
गीता जी की आवाज़ मर्मस्पर्शी है.
मन्नाडे जी को नमन.
नवरंग तो देखी है पर गीत को समझ नहीं सका.
Bharat Pandya said…
paheli ka jawab..Thus time I am just guessing
kari kari andhayari thi rat /////Navrang

as soon as I receive email I post answar.

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...