Skip to main content

सफल "हुई" तेरी आराधना (भाग ४), शक्ति सामंता का मुक्कमल फ़िल्मी सफ़र

अब तक आपने पढ़ा -

आनंद आश्रम से शुरू हुआ सफ़र....

हावड़ाब्रिज से कश्मीर की कली तक...

रोमांटिक फिल्मों के दौर में आराधना की धूम...

अब आगे...

दोस्तों, शक्ति सामंत की सुरीली फ़िल्म यात्रा की एक और कड़ी के साथ हम हाज़िर हुए हैं आज। शक्तिदा के इस सुरीले सफ़र के हमसफ़र बनकर पिछली कड़ी तक हम पाँव रख चुके थे ७० के दशक में। इससे पहले कि हम शक्तिदा और राजेश खन्ना की दूसरी फ़िल्म का ज़िक्र शुरु करें, 'आराधना' के एक और गाने की शूटिंग से संबधित बात हम आपको बताना चाहेंगे। यह बात शक्तिदा ने विविध भारती के जयमाला कार्यक्रम में फ़ौजी भाइयों को बताया था - "मुझे याद है कि कुल्लू मनाली में राजेश खन्ना और शर्मीला टैगोर के साथ मुझे एक गाना फ़िल्माना था। वो लोग तैयार होके १० बजे के करीब लोकेशन पर पहुँचते थे और ११ बजे पूरी वादी पर अंधेरा छा जाता था। बहुत कोशिशों के बाद भी जब वो लोग ७ बजे लोकेशन पर नहीं पहुँचे तो एक दिन मैनें दोनो को सोने ही नहीं दिया और ५ बजे 'मेक-अप' कराके ७ बजे लोकेशन पर ले गया। और उसके बाद ११ - ११:३० बजे तक हम लोग शूटिंग करते रहे। उसके बाद 'पैक-अप' करके उनको छोड़ दिया। उस दिन तो वो लोग मुझसे बहुत नाराज़ हुए, दो दिन तक मुझसे बात तक नहीं की, लेकिन जब उसका रेज़ल्ट उन्होने स्क्रीन पर देखा तो दोनो ही ख़ुशी से झूम उठे। वह गीत मैं आप लोगों के सामने पेश करता हूँ।"

गीत: कोरा क़ाग़ज़ था यह मन मेरा (आराधना)


१९७० में शक्तिदा के निर्माण व निर्देशन में राजेश खन्ना एक बार फिर नज़र आये' फ़िल्म 'कटी पतंग' में। 'आराधना' की व्यापक सफलता के बाद राजेश खन्ना एक 'स्टार' बन चुके थे। 'कटी पतंग' में राजेश खन्ना की नायिका बनीं आशा पारिख। इस फ़िल्म के ज़रिए एक बार फिर शक्तिदा और राजेश खन्ना ने सफलता की ऊँचाइयों को छूआ। आनंद बक्शी और राहूल देव बर्मन की नयी नयी जोड़ी ने जैसे चारों ओर तहलका मचा दिया इस फ़िल्म के गीतों के ज़रिये। किशोर कुमार की आवाज़ भी शक्तिदा के फ़िल्मों के संपर्क में आकर एक नयी ताज़गी और जवानी के साथ सामने आयी। "प्यार दीवाना होता है मस्ताना होता है", "यह जो मोहब्बत है यह उनका है काम" और "आज न छोड़ेंगे बस हमझोली" जैसे गाने किशोरदा के सदाबहार गीतों के एल्बम मे अक्सर जगह पाते हैं। इसी फ़िल्म में एक अनोखा गीत था जो फ़िल्म की खलनायिका बिंदु पर फ़िल्माया गया था। आशा भोंसले की आवाज़ में "मेरा नाम है शबनम, प्यार से लोग मुझे शब्बो कहते हैं" अपने आप में अनूठा है, अपने जैसा एकमात्र गीत है। गीत संवाद की शक्ल में है, जिसमें बिंदु आशा पारिख को 'ब्लैक-मेल' करते हुए डराती है। सुनिए यह गीत आज बहुत दिनो के बाद!

गीत: मेरा नाम है शबनम (कटी पतंग)


'कटी पतंग' की सफलता के जश्न अभी खत्म भी नहीं हुआ था कि शक्तिदा की अगली फ़िल्म 'अमर प्रेम' आ गयी १९७१ में और एक बार फिर से वही कामयाबी की कहानी दोहरायी गई। इस बार 'आराधना' की जोड़ी यानी राजेश और शर्मीला साथ आये। 'अमर प्रेम' की कहानी आधारित थी विभुति भुशण बंदोपाध्याय की उपन्यास पर। यह फ़िल्म १९७० की अरबिंदो मुखर्जी की बंगला फ़िल्म 'निशिपद्म' का हिंदी रीमेक था। एक अच्छे घर के नौजवान लड़के की एक वेश्या के प्रति पवित्र प्रेम की कहानी है 'अमर प्रेम' जो मानवीय मूल्यों और संबंधों का एक बार फिर से मूल्यांकन करने पर हमें मजबूर कर देता है। आनंद बक्शी, राहूल देव बर्मन और किशोर कुमार की अच्छी-ख़ासी तिकड़ी बन चुकी थी और इस फ़िल्म के गाने भी ऐसे गूंजे कि अब तक उनकी गूंज सुनाई देती है। तो यहाँ पर भी वही गुंजन पेश-ए-ख़िदमत है।

गीत: चिंगारी कोई भड़के तो सावन उसे बुझाये (अमर प्रेम)


'अमर प्रेम' के साथ १९७१ में शक्ति सामंत के निर्माण व निर्देशन में दूसरी फ़िल्म आयी 'जाने अंजाने'। शम्मी कपूर, विनोद खन्ना और लीना चंदावरकर अभिनीत इस फ़िल्म के संगीतकार थे शंकर जयकिशन एवं गीतकार थे हसरत जयपुरी। रंजन घोष की कहानी और व्रजेन्द्र गौड़ के संवाद थे इस फ़िल्म में। हम आपको पहले बता चुके हैं कि ये दोनो शक्तिदा के अच्छे दोस्तों में से थे। फ़िल्म की एक और ख़ास बात यह है कि इस फ़िल्म में गीतकार गुलशन बावरा और संगीतकार कानु राय ने अभिनय किया था। फ़िल्म के कम से कम तीन गाने ख़ूब चर्चित हुए थे - किशोर कुमार का गाया शीर्षक गीत "जाने अंजाने लोग मिले मिला ना कोई अपना", मन्ना डे का गाया शास्त्रीय राग पर आधारित "छम छम बाजे रे पायलिया", और लता मंगेशकर और मोहम्मद रफ़ी का गाया एक लोकप्रिय युगल गीत भी था इस फ़िल्म में, क्यों ना आज यहाँ पर सुने वही युगल गीत!

गीत: तेरी नीली नीली आँखों के दिल पे तीर चल गए (जाने अंजाने)


१९७२ में शक्ति सामंत ने बनाई फ़िल्म 'अनुराग'। विनोद मेहरा, मौसमी चटर्जी, राजेश खन्ना, नूतन और अशोक कुमार के जानदार और भावुक अभिनय से यह फ़िल्म सजी थी। फ़िल्म की कहानी दिल को छू लेनेवाली थी। नेत्रदान के विषय को बहुत ही सुंदर और असरदार तरीके से प्रस्तुत किया है शक्तिदा ने इस फ़िल्म के ज़रिए। सचिन देव बर्मन के संगीत की मिठास इस फ़िल्म के गीतों में महसूस किया जा सकता है। इनमें उन्होने बंगाल की भटियाली लोक संगीत का ऐसा मधुर फ़िल्मीकरण किया है कि लोक संगीत की मिठास भी बरकरार है और हल्के फुल्के फ़िल्मी गीत का भी रंग मौजूद है इन गानों में। ऐसा ही एक गीत लताजी की आवाज़ में पेश है यहाँ। गीतकार हैं आनंद बक्शी।

गीत: नींद चुराये चैन चुराये डाका डाले तेरी बंसी (अनुराग)


शरतचंद्र चट्टोपाध्याय की एक मशहूर बंगला उपन्यास रही है 'चरित्रहीन'। १९७४ में जब निर्माता देवेश घोष ने इस कहानी पर फ़िल्म बनाने की सोची तो फ़िल्म के निर्देशक के रूप में शक्तिदा को चुना गया। संजीव कुमार, शर्मीला टैगोर एवं योगिता बाली अभिनीत इस फ़िल्म को काफ़ी सराहना मिली थी। कहानी कुछ ऐसी थी कि शर्मीला एक सीधी सादी लड़की है जो संजीव कुमार से मिलती है और दोनो को एक दूसरे से प्यार हो जाता है। लेकिन संजीव कुमार की शादी एक दूसरी लड़की योगिता बाली से हो जाती है। एक लम्बे अरसे के बाद जब संजीव शर्मीला से मिलता है तो तब तक शर्मीला एक वेश्या बन चुकी होती है। संजीव कुमार के बुरे दिनों में शर्मीला ही उसकी मदद करती है। फ़िल्म बौक्स औफ़िस पर ठीक ठाक रही। फ़िल्म के गाने लिखे आनंद बक्शी साहब ने और संगीत था राहुल देव बर्मन का। इसी साल शक्तिदा ने राजेश खन्ना और ज़ीनत अमान को लेकर अपने बैनर तले बनाई फ़िल्म 'अजनबी'। इस फ़िल्म में भी बक्शी साहब और पंचम के गीत संगीत गूंजे और बस आज तक गूंजते ही जा रहे हैं। इस फ़िल्म के एक गीत के बारे में और बक्शी-पंचम की जोड़ी के बारे में शक्तिदा ने उसी जयमाला में कहा था - "जो गीत आप लोग सुनते हैं, पसंद करते हैं, उसके पीछे कितनी मेहनत होती है वह शायद आप लोग नहीं जानते! लोग अकसर मुझसे पूछते हैं कि आप हमेशा आनंद बक्शी और आर.डी. बर्मन को ही क्यों लेते हैं? ये दोनो 'सिचुएशन' सुनने के बाद इतने घुलमिल जाते हैं कि वह गीत तैयार होकर जब हमारे सामने आता है तो सिर्फ़ गीत ही नहीं रहता, बल्कि फ़िल्म की कहानी का एक अंग बन जाता है। 'अजनबी' फ़िल्म में ज़ीनत अमान और राजेश खन्ना पर फ़िल्माये गए इस गीत में भी कुछ ऐसी ही बात है।"

गीत: हम दोनो दो प्रेमी दुनिया छोड़ चले (अजनबी)


दोस्तों, शक्ति सामंत की फ़िल्मी यात्रा इतनी लम्बी है कि हम उनके फ़िल्मों और उनके मधुर गीत संगीत में ग़ोते लगाते हुए बस बहते ही चले जा रहे हैं पिछले कुछ हफ़्तों से। शक्तिदा के फ़िल्मी सफ़र की कहानी जारी रहेगी अगले अंक में भी। बने रहिए 'हिंदयुग्म' पर 'आवाज़' के साथ!

प्रस्तुति: सुजॉय चटर्जी

Comments

फ़िल्म है ’नागिन’ गीत है ’भीगा भीगा है समां, ऐसे में है तू कहाँ, मेरा दिल ये पुकारे आजा .

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे...

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु...

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन...