Skip to main content

जाओ रे जोगी तुम जाओ रे....आम्रपाली के स्वर में लता की सदा...

ओल्ड इस गोल्ड शृंखला # 80

ह कहानी है भारत के इतिहास के पन्नो से। इस कहानी की शुरुआत होती है वैशाली शहर में जहाँ एक रोज़ एक नारी का आविर्भाव होता है वहाँ के एक आम के बगीचे से। किसी को नहीं पता कि वह कौन है और कहाँ से आयी है। वह बहुत सुंदर थी और नृत्यकला में उसका कोई सानी नहीं था वहाँ पर। शहर में हर पुरुष उसका प्यार जीतना चाहता था। इसलिए उस लड़की ने यह ऐलान किया कि वह कभी किसी से शादी नहीं करेगी और वह पूरे शहर के लिए नृत्य करती रहेगी। दिन गुज़रने लगे, लोग उसे 'आम्रपाली' के नाम से पुकारने लगे क्योंकि वो आम के बगीचे से निकल कर पहली बार शहर में आयी थी। एक दिन अचानक मगध के राजा अजातशत्रु ने वैशाली पर आक्रमण कर दिया। शहर के सारे लोग, जो आम्रपाली के नृत्य में डूबे हुए थे, अब युद्ध के लिए तैयार हो रहे थे। यह देख आम्रपाली का हृदय दर्द से भर उठा। अजातशत्रु के सिपाही मगध की सेना से युद्ध में हारने लगते हैं, तो अजातशत्रु युद्धभूमी से भागकर मगध के सैनिक का भेस धारण कर वैशाली शहर में घुस जाते हैं और इत्तेफ़ाक से आ पहुँचते हैं नर्तकी आम्रपाली के घर। दोनो को एक दूसरे से प्यार हो जाता है, लेकिन अजातशत्रु फिर से वैशाली पर आक्रमण करने की साज़िश रचने लगता है। जब मगध के राजा को इस बात का पता चलता है कि उनकी राज नर्तकी आम्रपाली अजातशत्रु को अपने घर में पनाह दे रखी है तो आम्रपाली को क़ैद कर लिया जाता है और काल-कोठरी में डाल दिया जाता है ता-उम्र के लिए। इस बात पर अजातशत्रु भड़क उठता है और वैशाली पर बुरी तरह से फिर एक बार आक्रमण कर देता है। इस बार वैशाली हार जाता है और चारों तरफ़ मौत ही मौत नज़र आती है। अजातशत्रु आम्रपाली को मुक्त तो करवा देता है लेकिन आम्रपाली अब वो पहलीवाली आम्रपाली नहीं रही। वह संसार की मोह-माया को छोड़ कर भगवान बुद्ध के शरण में चली जाती है अपने पापों का प्रायश्चित करने के लिए। तो दोस्तों, यह थी आम्रपाली की कहानी। इस कहानी को आधार बना कर सन १९६६ में लेख टंडन ने एक फ़िल्म बनाई थी 'आम्रपाली' जिसमें आम्रपाली की भूमिका अदा की थी वैजयंतिमाला ने जो एक अच्छी नृत्यांगना भी थीं और इस चरित्र के लिए जिसकी बहुत ज़रूरत भी थी। और सुनिल दत्त नज़र आये अजातशत्रु के चरित्र में।

ऐतिहासिक और पौराणिक फ़िल्मों के लिए हमारी फ़िल्म इंडस्ट्री ने जैसे कुछ संगीतकारों को अलग से नियुक्त कर रखा था। एक बार इधर किसी ने पौराणिक फ़िल्मों में संगीत दिया और उधर सामाजिक फ़िल्मों में उनके लिए दरवाज़ा लगभग हमेशा के लिए बंद सा हो गया। यही रीत चली आ रही थी दशकों से हमारे फ़िल्म जगत में। 'आम्रपाली' एक ऐतिहासिक फ़िल्म होते हुए भी इस फ़िल्म के संगीत के लिए किसी पौराणिक फ़िल्म के संगीतकार को नहीं बल्कि शंकर जयकिशन को ही लिया गया था। और इस बेजोड़ संगीतकार जोड़ी ने यह साबित भी किया कि ऐसे फ़िल्मों के लिए भी वो उतना ही असरदार संगीत तैयार कर सकते हैं जितना की किसी दूसरे सामान्य सामाजिक फ़िल्म के लिए। इस फ़िल्म में कुल ५ गीत थे, जिनमें ४ लताजी की एकल आवाज़ में थे और एक गीत समूह स्वरों में था। लताजी के गाए ये चारों गीत अपने आप में 'मास्टरपीसेस' हैं जिन्हे सुनकर दिल को एक अजीब सुकून और शांति मिलती है। इन्ही चार गीतों में से एक गीत आज आप को सुनवा रहे हैं - "जाओ रे जोगी तुम जाओ रे", जिसे लिखा है गीतकार शैलेन्द्र ने। इस गीत से मिलता-जुलता रोशन का स्वरबद्ध किया हुआ एक गीत है 'चित्रलेखा' फ़िल्म में "संसार से भागे फिरते हो भगवान को तुम क्या पायोगे", याद आया न? इस गीत को हम फिर कभी सुनेंगे, आज अब यहाँ पेश है आम्रपाली का गीत, सुनिए और याद कीजिए वैशाली के उस पुरातन युग को जहाँ राज दरबार में राज नर्तकी आम्रपाली नृत्य कर रही है इस गीत पर...



और अब बूझिये ये पहेली. अंदाजा लगाइये कि हमारा अगला "ओल्ड इस गोल्ड" गीत कौन सा है. हम आपको देंगे तीन सूत्र उस गीत से जुड़े. ये परीक्षा है आपके फ़िल्म संगीत ज्ञान की. अगले गीत के लिए आपके तीन सूत्र ये हैं -

१. हेमंत दा का सदाबहार गीत.
२. इस सस्पेंस थ्रिलर फिल्म का नाम एक अंक से शुरू होता है.
३. पहला अंतरा इन शब्दों पर खत्म होता है -"खुद को बचाईये".

कुछ याद आया...?

पिछली पहेली का परिणाम -
ओल्ड इस गोल्ड की पहेलियों में पहली बार ऐसा हुआ कि दो गीत जिनके मुखड़ों में सूत्र का शब्द आता है और उनके रचनाकार भी एक ही निकले, कल की पहेली के जवाब में ये दोनों ही गीत हमें रचना जी ने सुझाए...उनमें से कौन सा जवाब सही था ये तो अब आप जान ही चुके हैं....पर रचना जी दाद देनी पड़ेगी आपकी....बहुत बहुत बधाई..नीलम जी कोशिश करते रहिये कभी तो तुक्का भी फिट होगा. हर्षद जी, पराग जी और मनु जी "रुक जा रात..." गीत भी किसी दिन जरूर सुनेंगे हम और आप इस महफिल में.

खोज और आलेख- सुजॉय चटर्जी



ओल्ड इस गोल्ड यानी जो पुराना है वो सोना है, ये कहावत किसी अन्य सन्दर्भ में सही हो या न हो, हिन्दी फ़िल्म संगीत के विषय में एकदम सटीक है. ये शृंखला एक कोशिश है उन अनमोल मोतियों को एक माला में पिरोने की. रोज शाम ६-७ के बीच आवाज़ पर हम आपको सुनवाते हैं, गुज़रे दिनों का एक चुनिंदा गीत और थोडी बहुत चर्चा भी करेंगे उस ख़ास गीत से जुड़ी हुई कुछ बातों की. यहाँ आपके होस्ट होंगे आवाज़ के बहुत पुराने साथी और संगीत सफर के हमसफ़र सुजॉय चटर्जी. तो रोज शाम अवश्य पधारें आवाज़ की इस महफिल में और सुनें कुछ बेमिसाल सदाबहार नग्में.


Comments

बेकरार करके हमें यूं न जाइए
आपको हमारी क़सम लौट आइए ।
rachana said…
मूवी का नाम है २० साल बाद
गाना है बेकरार कर के हमें यूँ न जाइये

पर मेरे ख्याल से दूसरा अन्तरा ख़त्म होता है खुद को बचाइए
देखिये गुलाब की वो डालियाँ
बढ़के चूम ले ना आप के क़दम
खोये खोये भँवरे भी हैं बाग़ में
कोई आप को बना ना ले सनम
बहकी बहकी नज़रों से खुद को बचाइये
manu said…
बरोबर,,,,
यही गीत है,,,,,
कल तो बड़ी कन्फ्यूजन की हालत थी,,,,,
गलती से आम्रपाली के बजाय चित्रलेखा के गीतों से अंदाजा लगा बैठा,,,,,
::::::::::))))))))))))

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की