मैंने देखी पहली फिल्म
भारतीय सिनेमा के शताब्दी वर्ष में ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ द्वारा आयोजित विशेष अनुष्ठान- ‘स्मृतियों के झरोखे से’ में आप सभी सिनेमा प्रेमियों का हार्दिक स्वागत है। आज माह का दूसरा गुरुवार है और आज बारी है- ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ की। इस द्विसाप्ताहिक स्तम्भ के पहले दो अंकों में हमने गैरप्रतियोगी संस्मरण प्रस्तुत किये थे। आज से हम प्रतियोगी वर्ग के संस्मरणों की शुरुआत कर रहे हैं। ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ प्रतियोगिता की पहली प्रविष्टि सुनीता शानू की है। आप भी उनकी देखी पहली फिल्म ‘अर्पण’ के संस्मरण का आनन्द लीजिए।
पहली फिल्म जो यादगार बन गई
स्कूल में दोस्तों से नई-नई फ़िल्मों की कहानी सुनती। हम सहेलियाँ चुपके-चुपके मायापुरी, फ़िल्मी दुनिया मैगज़ीन देखा करते। सारे हीरो हिरोइनो के चेहरे याद हो गये। बस एक फ़िल्म देखना नसीब नही हो पा रहा था। बहरहाल वो दिन भी आया जब मै कुछ बड़ी हुई। बड़ी यानि कि फ़िल्म देखने के लिए बड़ी। पहले आपको बता दूँ कि घर के सभी लोग ‘अर्पण’ फ़िल्म देखने जा रहे थे। जो बनी ही 1983 में थी यानि की मेरा बड़ा होना भी ‘अर्पण’ फ़िल्म के साथ पक्का हो गया। पहली बार माँ ने कहा अच्छा ठीक है तू भी चल, लेकिन कोई शैतानी नही करना। मेरी खुशी का तो ठिकाना ही नही था। ‘अर्पण’ की स्टोरी मेरी सहेली पहले ही सुना चुकी थी। लेकिन स्टोरी की हिरोइन को पर्दे पर देखना। वाह! सोच कर ही मजा आ रहा था। जितेंद्र, रीना रॉय, परवीन बॉबी, राज बब्बर सारे ही उच्चकोटि के कलाकार थे। वैसे भी बचपन में सारे हीरो-हिरोइन अच्छे ही लगते थे। मुझे ज्यादा पसंद मनोज कुमार अंकल थे। अब जितेंद्र या रीना हो तो भी कोई बात नही। ‘अर्पण’ फ़िल्म की स्टोरी, उसके गाने, बालमन पर ऎसा असर दिखा गये की आज भी याद आते हैं। सबसे अच्छा लगता था वो गाना- ‘लिखने वाले ने लिख डाले मिलन के साथ बिछोड़े, असा हुण टुर जाणा ए दिन रह गये थोडे...’। गाना तो वह भी पसंद था जब जितेंद्र रीना को बेवफ़ा जान कर गाता है- ‘मुहब्बत अब तिज़ारत बन गई है, तिज़ारत अब मुहब्बत बन गई है...’।
हमें जो अच्छा लग रहा था, वह थी जितेंद्र और रीना की लव स्टोरी। लेकिन बहुत बुरा लगा था जब जितेंद्र के अचानक बाहर जाते ही रीना और जितेंद्र के रिश्ते के बीच विलेन के रूप में राज बब्बर का आगमन हुआ। रीना का मजबूरी में राज बब्बर से शादी करना। अंत में राज बब्बर को कैंसर होना। पूरी की पूरी इमोशनल मूवी। और हम सब ऎसे रो रहे थे जैसे की सबके सब इमोशनल फ़ूल्स हैं। सबसे ज्यादा हँसी तो तब आ रही थी जब हमारे साथ-साथ लड़के भी रो रहे थे। किसी फ़िल्म को देख कर लड़कों का रोना, यह मेरा पहला और आखिरी अनुभव रहा है। यह थी मेरी पहली फ़िल्म और उससे जुड़ी यादें जो चाह कर भी भूली नही जाती।
सुनीता शानू जी ने अपने संस्मरण में फिल्म ‘अर्पण’ के जिस सर्वप्रिय गीत- ‘लिखने वाले ने लिख डाले…’ का उल्लेख किया है, अब हम आपको वही गीत सुनवाते हैं। फिल्म ‘अर्पण’ के इस गीत के गीतकार आनन्द बक्शी, संगीतकार लक्ष्मीकान्त प्यारेलाल हैं और इसे गाया है- लता मंगेशकर व सुरेश वाडकर ने।
फिल्म अर्पण : ‘लिखने वाले ने लिख डाले...’ : लता मंगेशकर व सुरेश वाडकर
आपको सुनीता जी की देखी पहली फिल्म का संस्मरण कैसा लगा? हमें अवश्य लिखिएगा। आप अपनी प्रतिक्रिया radioplaybackindia@live.com पर भेज सकते हैं। आप भी हमारे इस आयोजन- ‘मैंने देखी पहली फिल्म’ में भाग ले सकते हैं। आपका संस्मरण हम रेडियो प्लेबैक इण्डिया के इस अनुष्ठान में सम्मिलित तो करेंगे ही, यदि हमारे निर्णायकों को पसन्द आया तो हम आपको पुरस्कृत भी करेंगे। आज ही अपना आलेख और एक चित्र हमे swargoshthi@gmail.com पर मेल करें। जिन्होने आलेख पहले भेजा है, उन सबसे अनुरोध है कि अपना एक चित्र भी भेज दें।
प्रस्तुति : कृष्णमोहन मिश्र
Comments
is mein school bunk karke dekhi film bhi likh sakte hain...???
hahahahahahahaha
Sujoy Chatterjee