स्वरगोष्ठी – ७७ में आज
बाँस की बाँसुरी और पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया
आज ‘स्वरगोष्ठी’ का यह ७७ वाँ अंक है और आज की इस बैठक में मैं कृष्णमोहन मिश्र अपने सभी संगीत-प्रेमी पाठकों/श्रोताओं का हार्दिक स्वागत करते हुए बाँसुरी के अनन्य साधक पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया का ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ की ओर से, अपनी ओर से और आप सब संगीत-प्रेमियों की ओर से अभिनन्दन करता हूँ। मित्रों, आज जुलाई की पहली तारीख है। आज ही के दिन १९३८ में इस महान संगीतज्ञ का जन्म हुआ था। एक साधारण सी दिखने वाली बाँस की बाँसुरी लेकर पूरे विश्व में भारतीय संगीत की विजय-पताका फहराने वाले पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया का आज ७५वाँ जन्म-दिवस अर्थात अमृत महोत्सव मनाने का दिवस है। आज ही वे अपने जीवन के सुरीले ७४ वर्ष पूर्ण कर ७५वें वर्ष में प्रवेश कर रहे हैं। आइए, ‘स्वरगोष्ठी’ में आज हम सब उन्हीं की कुछ रचनाओं से उनका अभिनन्दन करते हैं।
बाँस से बनी बाँसुरी सम्भवतः सबसे प्राचीन स्वर-वाद्य है। महाभारत काल से पहले भी बाँसुरी का उल्लेख मिलता है। विष्णु के कृष्णावतार को तो ‘मुरलीधर’, ‘बंशीधर’, ‘वेणु के बजइया’ आदि नामों से सम्बोधित किया गया है। श्रीकृष्ण से जुड़ी तमाम पौराणिक कथाएँ बाँसुरी के गुणगान से भरी पड़ी हैं। यह एक ऐसा सुषिर वाद्य है जो लोक, सुगम से लेकर शास्त्रीय मंचों पर भी सुशोभित है। भारतीय संगीत के क्षेत्र में बाँसुरी के अनेक साधक हुए हैं, जिन्होने इस साधारण से दिखने वाले सुषिर वाद्य को असाधारन गरिमा प्रदान की है। वर्तमान में पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया बाँसुरी के ऐसे साधक हैं जिन्होने देश-विदेश में इस वाद्य को प्रतिष्ठित किया है। उनके व्यक्तित्व और कृतित्व पर चर्चा को आगे बढ़ाने से पहले आइए, बाँसुरी पर उनके बजाये राग जैजैवन्ती का आनन्द लेते हैं। सुविख्यात तबला वादक पण्डित समर साहा संगति की है।
राग – जैजैवन्ती : पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया
हरिप्रसाद चौरसिया का जन्म १ जुलाई, १९३८ को इलाहाबाद के एक ऐसे परिवार में हुआ जहाँ सभी सदस्यों को कुश्ती का शौक था। उनके पिता भी जाने-माने पहलवान थे और चाहते थे कि उनका पुत्र भी कुश्ती के दाँव-पेंच सीखे। बालक हरिप्रसाद पिता के साथ अखाड़ा जाते तो थे किन्तु उनका मन इस कार्य में कभी नहीं लगा। उनका बाल-मन तो सुरीली ध्वनियों की ओर आकर्षित होता था। किशोरावस्था में हरिप्रसाद की भेंट बनारस (अब वाराणसी) के पण्डित राजाराम से हुई। उन्होने इस किशोर की छिपी प्रतिभा को पहचाना और संगीत की प्रारम्भिक शिक्षा उन्होने ही दी। एक बार हरिप्रसाद ने पण्डित भोलानाथ प्रसन्ना का बाँसुरी-वादन सुना और इसी वाद्य को अपनाने का निश्चय कर लिया। १५ वर्ष की आयु में वे प्रसन्ना जी के शिष्य हुए और १९ की आयु के होने तक बाँसुरी-वादन में इतने कुशल हो गए कि उनकी नियुक्ति आकाशवाणी में हो गई। उनकी पहली तैनाती ओडिसा स्थित कटक केन्द्र पर बाँसुरी-वादक के रूप में हुई। यहाँ वे लगभग पाँच वर्ष तक रहे। इस दौरान उन्होने अनेक संगीतज्ञों को सुना और क्षेत्रीय सगीत का अध्ययन भी किया।
आइए, यहाँ थोड़ा विराम लेकर पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया का बजाया राग हंसध्वनि में दो रचनाएँ सुनवाते हैं। राग हंसध्वनि अत्यन्त मधुर राग है, जो उत्तर और दक्षिण, दोनों संगीत पद्यतियों में समान रूप से लोकप्रिय है। इस राग में पण्डित जी द्वारा प्रस्तुत पहली मध्य लय की रचना सितारखानी में और दूसरी द्रुत तीनताल में निबद्ध है।
राग – हंसध्वनि : पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया
लगभग पाँच वर्ष तक कटक केन्द्र पर कार्यरत रहने के बाद हरिप्रसाद जी का स्थानान्तरण कटक से आकाशवाणी के मुम्बई केन्द्र पर हो गया। मुम्बई आ जाने के बाद संगीत के क्षेत्र में उनकी प्रतिभा को एक नई पहचान मिली। अब उन्हें प्रतिष्ठित संगीत सभाओं में मंच-प्रदर्शन के लिए आमंत्रित किया जाने लगा था। यहीं रह कर उनका सम्पर्क मैहर घराने के संस्थापक और सन्त-संगीतज्ञ उस्ताद अलाउद्दीन खाँ की सुपुत्री विदुषी अन्नपूर्णा देवी से हुआ। उन दिनों अन्नपूर्णा जी एकान्तवास कर रहीं थी। परन्तु हरिप्रसाद जी की प्रतिभा से प्रभावित होकर इनका मार्गदर्शन करना स्वीकार किया। अन्नपूर्णा जी से मार्गदर्शन पाकर हरिप्रसाद जी के वादन में भरपूर निखार आया। उन्होने रागों के साथ-साथ विभिन्न क्षेत्रों के लोक-संगीत का भी गहन अध्ययन किया था। आज भी विभिन्न संगीत-समारोहों में अपने बाँसुरी-वादन को विराम देने से पहले वे कोई लोकधुन अवश्य प्रस्तुत करते हैं। आइए, अब हम आपको बाँसुरी पर प्रस्तुत भटियाली धुन सुनवाते हैं। पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया द्वारा प्रस्तुत इस भटियाली धुन के साथ तबला संगति पण्डित योगेश समसी ने की है।
भटियाली धुन : पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया
देश-विदेश के अनेकानेक सम्मान और पुरस्कारों से अलंकृत पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया ने सुप्रसिद्ध संतूर-वादक पण्डित शिवकुमार शर्मा के साथ जोड़ी बना कर वर्ष १९८९ से फिल्मों में भी संगीत देना आरम्भ किया। शिव-हरि के नाम से इन दिग्गज संगीतज्ञों ने चाँदनी, विजय, सिलसिला, लम्हे, डर आदि फिल्मों में अनेक लोकप्रिय गीत दिये हैं। आज के इस अंक को विराम देने से पहले आपके लिए प्रस्तुत है फिल्म ‘चाँदनी’ का एक प्यारा सा गीत।
आज की संगीत-पहेली में हम आपको सुनवा रहे हैं, फिल्मी गीत का एक अंश। इसे सुन कर आपको हमारे दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ८०वें अंक तक सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाले पाठक/श्रोता हमारी तीसरी पहेली श्रृंखला के ‘विजेता’ होंगे।
आप अपने उत्तर हमें तत्काल swargoshthi@gmail.com पर भेजें। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के ७९वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अथवा swargoshthi@gmail.com पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
‘स्वरगोष्ठी’ के ७५ वें अंक में हमने आपको संगीत-मार्तण्ड ओमकारनाथ ठाकुर के स्वर में स्वतंत्र भारत के प्रथम सूर्योदय पर रेडियो से सजीव रूप से प्रसारित ‘वन्देमातरम’ गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग देस और दूसरे का उत्तर है- बांग्ला के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय। दोनों प्रश्नों के सही उत्तर मीरजापुर (उ.प्र.) के डॉ. पी.के. त्रिपाठी, जबलपुर की क्षिति तिवारी, लखनऊ की अरुंधति चौधरी तथा पटना की अर्चना टण्डन ने दिया है। चारो प्रतिभागियों को रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर से हार्दिक बधाई।
कृष्णमोहन मिश्र
फिल्म – चाँदनी : ‘तेरे मेरे होठों पे मीठे मीठे गीत सजना...’ : लता मंगेशकर और बावला
आज की पहेली
आज की संगीत-पहेली में हम आपको सुनवा रहे हैं, फिल्मी गीत का एक अंश। इसे सुन कर आपको हमारे दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ८०वें अंक तक सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाले पाठक/श्रोता हमारी तीसरी पहेली श्रृंखला के ‘विजेता’ होंगे।
१ - संगीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि यह गीत किस राग पर आधारित है?
२ – इस गीत में दो गायक कलाकारों के स्वर हैं। एक स्वर सुप्रसिद्ध पार्श्वगायक येशुदास का हैं। गायिका की आवाज़ पहचानिए।
२ – इस गीत में दो गायक कलाकारों के स्वर हैं। एक स्वर सुप्रसिद्ध पार्श्वगायक येशुदास का हैं। गायिका की आवाज़ पहचानिए।
आप अपने उत्तर हमें तत्काल swargoshthi@gmail.com पर भेजें। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के ७९वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अथवा swargoshthi@gmail.com पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ के ७५ वें अंक में हमने आपको संगीत-मार्तण्ड ओमकारनाथ ठाकुर के स्वर में स्वतंत्र भारत के प्रथम सूर्योदय पर रेडियो से सजीव रूप से प्रसारित ‘वन्देमातरम’ गीत का एक अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग देस और दूसरे का उत्तर है- बांग्ला के सुप्रसिद्ध उपन्यासकार बंकिमचन्द्र चट्टोपाध्याय। दोनों प्रश्नों के सही उत्तर मीरजापुर (उ.प्र.) के डॉ. पी.के. त्रिपाठी, जबलपुर की क्षिति तिवारी, लखनऊ की अरुंधति चौधरी तथा पटना की अर्चना टण्डन ने दिया है। चारो प्रतिभागियों को रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर से हार्दिक बधाई।
झरोखा अगले अंक का
मित्रों, इन दिनों देश के कई भागों में वर्षा ऋतु ने दस्तक दे दी है और कुछ भागों में अभी भी कजरारे बादलों की प्रतीक्षा हो रही है। अगले अंक से हम मल्हार शीर्षक से एक लघु श्रृंखला प्रस्तुत करेंगे। इस श्रृंखला में हम आपसे वर्षा ऋतु के प्रचलित संगीत शैलियों और रागों पर चर्चा करेंगे। इस विषय पर यदि आपकी कोई फरमाइश हो तो हमें तुरन्त लिखें। रविवार को प्रातः ९-३० बजे आप और हम ‘स्वरगोष्ठी’ के अगले अंक में पुनः मिलेंगे। तब तक के लिए हमें विराम लेने की अनुमति दीजिए।
कृष्णमोहन मिश्र
Comments
2- इस गीत में सुप्रसिद्ध पार्श्वगायक येशुदास के साथ गायिका - हेमंती शुक्ला की आवाज़ है !