स्वरगोष्ठी – ८१ में आज
बाहर पावस की रिमझिम फुहार और आपकी ‘स्वरगोष्ठी’ में मल्हार अंग के रागों की स्वर-वर्षा जारी है। ऐसे ही सुहाने परिवेश में ‘वर्षा ऋतु के रंग : मल्हार अंग के रागों का संग’ श्रृंखला की चौथी कड़ी में, मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का स्वागत करते हुए, आज प्रस्तुत कर रहा हूँ- मल्हार अंग के दो रागों- रामदासी और सूरदासी अथवा सूर मल्हार के स्वरों से अनुगूँजित कुछ चुनी हुई संगीत-रचनाएँ। दोनों रागों के नाम से ही स्पष्ट हो जाता है कि इनका नामकरण संगीत के मनीषियों के नामों पर हुआ है। पहले हम राग रामदासी मल्हार के बारे में आपसे चर्चा करेंगे।
काफी ठाट के अन्तर्गत माना जाने वाला राग रामदासी मल्हार, दोनों गान्धार (शुद्ध और कोमल) तथा दोनों निषाद से युक्त होता है। इसकी जाति वक्र रूप से सम्पूर्ण होती है। अवरोह में दोनों गान्धार का प्रयोग वक्र रूप से करने पर राग का सौन्दर्य निखरता है। इसका वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। यह राग वर्षा ऋतु के परिवेश का सजीव चित्रण करने में समर्थ होता है, इसलिए इस ऋतु में रामदासी मल्हार का गायन-वादन किसी भी समय किया जा सकता है। आइए, अब हम आपको किराना घराने के सुविख्यात गायक उस्ताद अमीर खाँ के स्वर में राग रामदासी मल्हार का तीनताल में निबद्ध एक खयाल सुनवाते हैं।
राग रामदासी मल्हार के बारे में हमें विशेष जानकारी देते हुए लखनऊ स्थित भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय के गायन-शिक्षक श्री विकास तैलंग ने बताया कि इस राग की रचना ग्वालियर के विद्वान नायक रामदास ने की थी। इस तथ्य का समर्थन विख्यात संगीतज्ञ मल्लिकार्जुन मंसूर भी करते हैं। उनके मतानुसार नायक रामदास मुगल बादशाह अकबर से भी पूर्व काल में थे। श्री तैलंग के अनुसार राग रामदासी मल्हार में शुद्ध गान्धार के उपयोग से उसका स्वरूप मल्हार अंग से अलग व्यक्त होता है। राग का प्रस्तार वक्र गति से किया जाता है, जैसे- सा रे प ग म, प ध नि ध प, म प ग म, प ग(कोमल) म रे सा...। आजकल यह राग अधिक प्रचलन में नहीं है। इस राग का स्वरूप अत्यन्त मधुर होता है। मल्हार के म रे और रे प का स्वरविन्यास इस राग में बहुत लिया जाता है। इस राग के गायन-वादन में राग शहाना और गौड़ का आभास भी होता है। अब हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे है, राग रामदासी मल्हार का गमक से परिपूर्ण वाद्य सरोद पर वादन। वादक हैं, विश्वविख्यात सरोद-वादक उस्ताद अली अकबर खाँ।
रामदासी मल्हार : सरोद पर आलाप और गत : उस्ताद अली अकबर खाँ
मल्हार अंग के रागों की श्रृंखला का एक और उल्लेखनीय राग है- सूर मल्हार। ऐसी मान्यता है कि इस राग की रचना हिन्दी के भक्त कवि सूरदास ने की थी। इस ऋतु प्रधान राग में निबद्ध रचनाओं में पावस के सजीव चित्रण का गुण तो होता ही है, नायिका के विरह के भाव को सम्प्रेषित करने की क्षमता भी होती है। राग सूर मल्हार काफी थाट का राग माना जाता है। इसकी जाति औडव-षाडव होती है, अर्थात आरोह में पाँच और अवरोह में छः स्वरों का प्रयोग किया जाता है। इसका वादी मध्यम और संवादी षडज होता है। यह उत्तरांग प्रधान राग है।
इस राग की कुछ अन्य विशेषताओं को रेखांकित करते हुए जाने-माने इसराज और मयूर वीणा वादक श्री श्रीकुमार मिश्र ने बताया कि सूर मल्हार का मुख्य अंग है- सा [म]रे प म, नी(कोमल) म प, नी(कोमल)ध प, म रे सा होता है। राग के गायन-वादन में यदि सारंग झलकने लगे तो नी(कोमल) ध s म प नी(कोमल) ध s प स्वरों का प्रयोग करने से सारंग तिरोहित हो जाता है। श्री मिश्र के अनुसार सारंग के भाव में मेघ मल्हारांश उद्वेग के चपल और गम्भीर ओज से युक्त भाव में देसान्श के विरह भाव के मिश्रण से कसक-युक्त उल्लास में वेदना के मिश्रण से नये रस-भाव का सृजन होता है। अब आप पण्डित भीमसेन जोशी से सुनिए, राग सूर मल्हार में दो मनमोहक रचनाएँ। मध्यलय का खयाल- ‘बादरवा गरजत आए...’ एकताल में और द्रुतलय की रचना- ‘बादरवा बरसन लागे...’ तीनताल में निबद्ध है।
फिल्मी संगीतकारों ने वर्षा ऋतु के इन दोनों रागों- रामदासी और सूर मल्हार, पर आधारित एकाध गीत ही रचे हैं। रामदासी मल्हार पर आधारित एक भी ऐसा गीत नहीं मिला, जिसमें वर्षा ऋतु के अनुकूल भावों की अभिव्यक्ति हो। हाँ, सूर मल्हार पर आधारित, बसन्त देसाई का संगीतबद्ध किया एक कर्णप्रिय गीत अवश्य उपलब्ध हुआ। अब हम आपको वही गीत सुनवा रहे है। १९६७ में प्रदर्शित फिल्म रामराज्य का यह गीत भरत व्यास ने लिखा, बसन्त देसाई ने संगीतबद्ध किया और लता मंगेशकर ने स्वर दिया है। आप यह गीत सुनिए और मुझे इस अंक से यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिए।
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ में जारी संगीत-पहेली का आज से आरम्भ हो रहा है चौथा और एक नया सेगमेंट। आप जानते ही हैं कि ५१वें अंक से हमने संगीत पहेली को दस-दस अंकों की श्रृंखलाओं (सेगमेंट) में बाँटा था। पाँचवें सेगमेंट अर्थात १००वें अंक तक जो प्रतियोगी सर्वाधिक सेगमेंट का विजेता होगा, वही ‘महाविजेता’ के रूप में पुरस्कृत किया जाएगा। ७९वें अंक तक की पहेली के उत्तर हमें प्राप्त हो चुके हैं और ८०वें अंक की पहेली के उत्तर भेजने की अवधि अभी बीती नही है, अतः आज के अंक में हम सभी प्रतियोगियों के ७९वें अंक तक के कुल प्राप्तांक की घोषणा कर रहे हैं। अगले अंक में तीसरे सेगमेंट के विजेता के नाम की घोषणा, ८०वें अंक की पहेली के प्राप्तांक जोड़ कर करेंगे।
आज की संगीत-पहेली में हम आपको सुनवा रहे हैं, कण्ठ-संगीत का एक अंश। इसे सुन कर आपको हमारे दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ९०वें अंक तक सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाले पाठक/श्रोता हमारी चौथी पहेली श्रृंखला के ‘विजेता’ होंगे।
१ - संगीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि उत्तर भारतीय संगीत की यह परम्परागत शैली किस नाम से जानी जाती है?
२ – इस गीत के गायक कौन हैं?
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com पर ही भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के ८३वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अथवा radioplaybackindia@live.com पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ के ७९वें अंक में हमने आपको द्रुत तीनताल में निबद्ध खयाल का एक अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग गौड़ मल्हार और दूसरे का उत्तर है- गायिका विदुषी मालिनी राजुरकर। दोनों प्रश्नों के सही उत्तर मीरजापुर (उ.प्र.) के डॉ. पी.के. त्रिपाठी, जबलपुर की क्षिति तिवारी, लखनऊ के प्रकाश गोविन्द और पटना की अर्चना टण्डन ने दिया है। वाराणसी के अभिषेक मिश्रा ने राग का नाम तो सही पहचाना किन्तु गायिका को पहचानने में भूल की। उन्हें एक अंक से ही सन्तोष करना होगा। सभी विजेताओं को रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर से हार्दिक बधाई। ७९वें अंक तक पहेली के सभी प्रतिभागियों के अंकों का योग इस प्रकार है-
झरोखा अगले अंक का
रामदासी मल्हार
काफी ठाट के अन्तर्गत माना जाने वाला राग रामदासी मल्हार, दोनों गान्धार (शुद्ध और कोमल) तथा दोनों निषाद से युक्त होता है। इसकी जाति वक्र रूप से सम्पूर्ण होती है। अवरोह में दोनों गान्धार का प्रयोग वक्र रूप से करने पर राग का सौन्दर्य निखरता है। इसका वादी स्वर मध्यम और संवादी स्वर षडज होता है। यह राग वर्षा ऋतु के परिवेश का सजीव चित्रण करने में समर्थ होता है, इसलिए इस ऋतु में रामदासी मल्हार का गायन-वादन किसी भी समय किया जा सकता है। आइए, अब हम आपको किराना घराने के सुविख्यात गायक उस्ताद अमीर खाँ के स्वर में राग रामदासी मल्हार का तीनताल में निबद्ध एक खयाल सुनवाते हैं।
रामदासी मल्हार : ‘छाए बदरा कारे कारे...’ : उस्ताद अमीर खाँ
राग रामदासी मल्हार के बारे में हमें विशेष जानकारी देते हुए लखनऊ स्थित भातखण्डे संगीत विश्वविद्यालय के गायन-शिक्षक श्री विकास तैलंग ने बताया कि इस राग की रचना ग्वालियर के विद्वान नायक रामदास ने की थी। इस तथ्य का समर्थन विख्यात संगीतज्ञ मल्लिकार्जुन मंसूर भी करते हैं। उनके मतानुसार नायक रामदास मुगल बादशाह अकबर से भी पूर्व काल में थे। श्री तैलंग के अनुसार राग रामदासी मल्हार में शुद्ध गान्धार के उपयोग से उसका स्वरूप मल्हार अंग से अलग व्यक्त होता है। राग का प्रस्तार वक्र गति से किया जाता है, जैसे- सा रे प ग म, प ध नि ध प, म प ग म, प ग(कोमल) म रे सा...। आजकल यह राग अधिक प्रचलन में नहीं है। इस राग का स्वरूप अत्यन्त मधुर होता है। मल्हार के म रे और रे प का स्वरविन्यास इस राग में बहुत लिया जाता है। इस राग के गायन-वादन में राग शहाना और गौड़ का आभास भी होता है। अब हम आपके लिए प्रस्तुत कर रहे है, राग रामदासी मल्हार का गमक से परिपूर्ण वाद्य सरोद पर वादन। वादक हैं, विश्वविख्यात सरोद-वादक उस्ताद अली अकबर खाँ।
रामदासी मल्हार : सरोद पर आलाप और गत : उस्ताद अली अकबर खाँ
सूरदासी अथवा सूर मल्हार
मल्हार अंग के रागों की श्रृंखला का एक और उल्लेखनीय राग है- सूर मल्हार। ऐसी मान्यता है कि इस राग की रचना हिन्दी के भक्त कवि सूरदास ने की थी। इस ऋतु प्रधान राग में निबद्ध रचनाओं में पावस के सजीव चित्रण का गुण तो होता ही है, नायिका के विरह के भाव को सम्प्रेषित करने की क्षमता भी होती है। राग सूर मल्हार काफी थाट का राग माना जाता है। इसकी जाति औडव-षाडव होती है, अर्थात आरोह में पाँच और अवरोह में छः स्वरों का प्रयोग किया जाता है। इसका वादी मध्यम और संवादी षडज होता है। यह उत्तरांग प्रधान राग है।
इस राग की कुछ अन्य विशेषताओं को रेखांकित करते हुए जाने-माने इसराज और मयूर वीणा वादक श्री श्रीकुमार मिश्र ने बताया कि सूर मल्हार का मुख्य अंग है- सा [म]रे प म, नी(कोमल) म प, नी(कोमल)ध प, म रे सा होता है। राग के गायन-वादन में यदि सारंग झलकने लगे तो नी(कोमल) ध s म प नी(कोमल) ध s प स्वरों का प्रयोग करने से सारंग तिरोहित हो जाता है। श्री मिश्र के अनुसार सारंग के भाव में मेघ मल्हारांश उद्वेग के चपल और गम्भीर ओज से युक्त भाव में देसान्श के विरह भाव के मिश्रण से कसक-युक्त उल्लास में वेदना के मिश्रण से नये रस-भाव का सृजन होता है। अब आप पण्डित भीमसेन जोशी से सुनिए, राग सूर मल्हार में दो मनमोहक रचनाएँ। मध्यलय का खयाल- ‘बादरवा गरजत आए...’ एकताल में और द्रुतलय की रचना- ‘बादरवा बरसन लागे...’ तीनताल में निबद्ध है।
सूर मल्हार : ‘बादरवा गरजत आए...’ और ‘बादरवा बरसन लागे...’ : पण्डित भीमसेन जोशी
फिल्मी संगीतकारों ने वर्षा ऋतु के इन दोनों रागों- रामदासी और सूर मल्हार, पर आधारित एकाध गीत ही रचे हैं। रामदासी मल्हार पर आधारित एक भी ऐसा गीत नहीं मिला, जिसमें वर्षा ऋतु के अनुकूल भावों की अभिव्यक्ति हो। हाँ, सूर मल्हार पर आधारित, बसन्त देसाई का संगीतबद्ध किया एक कर्णप्रिय गीत अवश्य उपलब्ध हुआ। अब हम आपको वही गीत सुनवा रहे है। १९६७ में प्रदर्शित फिल्म रामराज्य का यह गीत भरत व्यास ने लिखा, बसन्त देसाई ने संगीतबद्ध किया और लता मंगेशकर ने स्वर दिया है। आप यह गीत सुनिए और मुझे इस अंक से यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिए।
फिल्म रामराज्य : ‘डर लागे गरजे बदरवा...’ : लता मंगेशकर
आज की पहेली
‘स्वरगोष्ठी’ में जारी संगीत-पहेली का आज से आरम्भ हो रहा है चौथा और एक नया सेगमेंट। आप जानते ही हैं कि ५१वें अंक से हमने संगीत पहेली को दस-दस अंकों की श्रृंखलाओं (सेगमेंट) में बाँटा था। पाँचवें सेगमेंट अर्थात १००वें अंक तक जो प्रतियोगी सर्वाधिक सेगमेंट का विजेता होगा, वही ‘महाविजेता’ के रूप में पुरस्कृत किया जाएगा। ७९वें अंक तक की पहेली के उत्तर हमें प्राप्त हो चुके हैं और ८०वें अंक की पहेली के उत्तर भेजने की अवधि अभी बीती नही है, अतः आज के अंक में हम सभी प्रतियोगियों के ७९वें अंक तक के कुल प्राप्तांक की घोषणा कर रहे हैं। अगले अंक में तीसरे सेगमेंट के विजेता के नाम की घोषणा, ८०वें अंक की पहेली के प्राप्तांक जोड़ कर करेंगे।
आज की संगीत-पहेली में हम आपको सुनवा रहे हैं, कण्ठ-संगीत का एक अंश। इसे सुन कर आपको हमारे दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ९०वें अंक तक सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाले पाठक/श्रोता हमारी चौथी पहेली श्रृंखला के ‘विजेता’ होंगे।
१ - संगीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि उत्तर भारतीय संगीत की यह परम्परागत शैली किस नाम से जानी जाती है?
२ – इस गीत के गायक कौन हैं?
आप अपने उत्तर केवल swargoshthi@gmail.com पर ही भेजें। comments में दिये गए उत्तर मान्य नहीं होंगे। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के ८३वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अथवा radioplaybackindia@live.com पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ के ७९वें अंक में हमने आपको द्रुत तीनताल में निबद्ध खयाल का एक अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग गौड़ मल्हार और दूसरे का उत्तर है- गायिका विदुषी मालिनी राजुरकर। दोनों प्रश्नों के सही उत्तर मीरजापुर (उ.प्र.) के डॉ. पी.के. त्रिपाठी, जबलपुर की क्षिति तिवारी, लखनऊ के प्रकाश गोविन्द और पटना की अर्चना टण्डन ने दिया है। वाराणसी के अभिषेक मिश्रा ने राग का नाम तो सही पहचाना किन्तु गायिका को पहचानने में भूल की। उन्हें एक अंक से ही सन्तोष करना होगा। सभी विजेताओं को रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर से हार्दिक बधाई। ७९वें अंक तक पहेली के सभी प्रतिभागियों के अंकों का योग इस प्रकार है-
१– क्षिति तिवारी, जबलपुर – १८
२- डॉ. पी.के. त्रिपाठी, मीरजापुर – १२
३– अर्चना टण्डन, पटना – ९
४– प्रकाश गोविन्द, लखनऊ – ६
५- अभिषेक मिश्रा, वाराणसी – २
५– अखिलेश दीक्षित, मुम्बई – २
५– दीपक मशाल, बेलफास्ट (यू.के.) – २
२- डॉ. पी.के. त्रिपाठी, मीरजापुर – १२
३– अर्चना टण्डन, पटना – ९
४– प्रकाश गोविन्द, लखनऊ – ६
५- अभिषेक मिश्रा, वाराणसी – २
५– अखिलेश दीक्षित, मुम्बई – २
५– दीपक मशाल, बेलफास्ट (यू.के.) – २
झरोखा अगले अंक का
‘स्वरगोष्ठी’ में इन दिनों सप्त-स्वरों की रस-वर्षा जारी है। अगले अंक में ऋतु प्रधान मल्हार अंग के रागों से थोड़ा अलग हट कर आपसे चर्चा करेंगे। परन्तु वह वर्षा ऋतु का ही संगीत होगा। इसके साथ ही अगले अंक में संगीत-पहेली के तीसरे सेगमेंट के विजेता की घोषणा भी करेंगे। अगले रविवार को प्रातः ९=३० बजे आप और हम ‘स्वरगोष्ठी’ के एक नये अंक में पुनः मिलेंगे। तब तक के लिए हमें विराम लेने की अनुमति दीजिए।
कृष्णमोहन मिश्र
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