Skip to main content

परिवर्तन - एक बोझ या सहज चलन जीवन का

शब्दों की चाक पर - एपिसोड 08

शब्दों की चाक पर हमारे कवि मित्रों के लिए हर हफ्ते होती है एक नयी चुनौती, रचनात्मकता को संवारने  के लिए मौजूद होती है नयी संभावनाएँ और खुद को परखने और साबित करने के लिए तैयार मिलता है एक और रण का मैदान. यहाँ श्रोताओं के लिए भी हैं कवि मन की कोमल भावनाओं उमड़ता घुमड़ता मेघ समूह जो जब आवाज़ में ढलकर बरसता है तो ह्रदय की सूक्ष्म इन्द्रियों को ठडक से भर जाता है. तो दोस्तों, इससे पहले कि  हम पिछले हफ्ते की कविताओं को आत्मसात करें, आईये जान लें इस दिलचस्प खेल के नियम - 


1. कार्यक्रम की क्रिएटिव हेड रश्मि प्रभा के संचालन में शब्दों का एक दिलचस्प खेल खेला जायेगा. इसमें कवियों को कोई एक थीम शब्द या चित्र दिया जायेगा जिस पर उन्हें कविता रचनी होगी...ये सिलसिला सोमवार सुबह से शुरू होगा और गुरूवार शाम तक चलेगा, जो भी कवि इसमें हिस्सा लेना चाहें वो रश्मि जी से संपर्क कर उनके फेसबुक ग्रुप में जुड सकते हैं, रश्मि जी का प्रोफाईल यहाँ है.


2. सोमवार से गुरूवार तक आई कविताओं को संकलित कर हमारे पोडकास्ट टीम के हेड पिट्सबर्ग से अनुराग शर्मा जी अपने साथी पोडकास्टरों के साथ इन कविताओं में अपनी आवाज़ भरेंगें. और अपने दिलचस्प अंदाज़ में इसे पेश करेगें.

3. हमारी टीम अपने विवेक से सभी प्रतिभागी कवियों में से किसी एक कवि को उनकी किसी खास कविता के लिए सरताज कवि चुनेगें. आपने अपनी टिप्पणियों के माध्यम से ये बताना है कि क्या आपको हमारा निर्णय सटीक लगा, अगर नहीं तो वो कौन सी कविता जिसके कवि को आप सरताज कवि चुनते. 

चलिए अब लौटते हैं अभिषेक ओझा और शैफाली गुप्ता की तरफ जो आज आपके लिए लेकर आये हैं परिवर्तन और परिवर्तन के परिणामस्वरूप उपजे बोझ पर एक काव्यात्मक चर्चा जिसमें भाग ले रहे हैं १८ कवि. आज के कार्यक्रम की स्क्रिप्ट लिखी है हमारे प्लेबैक इंडिया के प्यारे सदस्य विश्व दीपक ने. तो दोस्तों सुनिए सुनाईये और छा जाईये...

(नीचे दिए गए किसी भी प्लेयेर से सुनें)





या फिर यहाँ से डाउनलोड करें 

Comments

एक शब्द शानदार ... शेफाली , अनुराग , अभिषेक जी .... आपलोगों का जवाब नहीं और अपनी रचना के साथ विश्वदीपक जी का प्रस्तुतीकरण लाजवाब
सदा said…
लाजवाब प्रस्‍तुति ... आप सभी को बहुत - बहुत बधाई
कल 25/07/2012 को आपकी इस पोस्‍ट को नयी पुरानी हलचल पर लिंक किया जा रहा हैं.

आपके सुझावों का स्वागत है .धन्यवाद!


'' हमें आप पर गर्व है कैप्टेन लक्ष्मी सहगल ''
Rajesh Kumari said…
अनुराग शर्मा ,अभिषेक ओझा जी की आवाज के साथ आज शैफाली गुप्ता जी की प्यारी आवाज से मानो चार चाँद लग गए प्रस्तुति में आप तीनो को हार्दिक बधाई |
वंदना जी और हर्षवर्धन जी को मुबारक बाद| .
रश्मि प्रभा ,सजीव सारथि और विश्वदीपक जी को इस एपिसोड की सफलता के लिए कोटि कोटि बधाइयां |
इस एपिसोड में भाग लेने वाले सभी बेहतरीन कवि कवयित्रियों को बहुत, बहुत, बहुत बधाई |
ulikebige said…
अनुराग शर्मा ,अभिषेक ओझा ,शैफाली गुप्ताजी की आवाज .BAHUT SUNDAR.DHANYAWAAD.
अनुराग जी अभिषेक .शेफाली और विश्वदीपक ..बहुत बहुत बधाई इस बेहतरीन प्रस्तुती के लिए ...
Rajesh Kumari जी के बातो ko hi doharaati hoon
अनुराग शर्मा ,अभिषेक ओझा जी की आवाज के साथ आज शैफाली गुप्ता जी की प्यारी आवाज से मानो चार चाँद लग गए प्रस्तुति में आप तीनो को हार्दिक बधाई |
वंदना जी और हर्षवर्धन जी को मुबारक बाद| .
रश्मि प्रभा ,सजीव सारथि और विश्वदीपक जी को इस एपिसोड की सफलता के लिए कोटि कोटि बधाइयां |
इस एपिसोड में भाग लेने वाले सभी बेहतरीन कवि कवयित्रियों को बहुत, बहुत, बहुत बधाई |
vandana gupta said…
अनुराग शर्मा ,अभिषेक ओझा जी की आवाज के साथ आज शैफाली गुप्ता जी की प्यारी आवाज ने तो जादू भर दिया …………इस मंच के सभी संचालकों को हार्दिक बधाई ……………मुझे या कहिये मेरी रचना को इस लायक समझने के लिये आपकी हार्दिक शुक्रगुज़ार हूँ।
Archana Chaoji said…
बहुत बढ़िया लगा सुनना सबको...
वाह.....वाह........वाह..........

सादर
अनु
anurag ji,abhishek ji evam shefali ji ko shaandaar prastuti ke liye dhanyawaad. kavita ko pasand karne ke liye bhee haardik dhanyawaad. vandana ji ko haardik badhaee evam shubhkaamnaa.
khud ki rachna sunana achchha laga:)
Nidhi said…
अभिषेक जी को पहले भी सुन चुकी हूँ आज शेफाली की आवाज़ सुनना अच्छा लगा.सभी कवि कवयित्रियों को बधाई.
वन्दना जी एवं हर्षवर्धन जी को मुबारकबाद!!

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

कल्याण थाट के राग : SWARGOSHTHI – 214 : KALYAN THAAT

स्वरगोष्ठी – 214 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 1 : कल्याण थाट राग यमन की बन्दिश- ‘ऐसो सुघर सुघरवा बालम...’  ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर आज से आरम्भ एक नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ के प्रथम अंक में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक स्वागत करता हूँ। आज से हम एक नई लघु श्रृंखला आरम्भ कर रहे हैं। भारतीय संगीत के अन्तर्गत आने वाले रागों का वर्गीकरण करने के लिए मेल अथवा थाट व्यवस्था है। भारतीय संगीत में 7 शुद्ध, 4 कोमल और 1 तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग होता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 स्वरों में से कम से कम 5 स्वरों का होना आवश्यक है। संगीत में थाट रागों के वर्गीकरण की पद्धति है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार 7 मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते हैं। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल प्रचलित हैं, जबकि उत्तर भारतीय संगीत पद्धति में 10 थाट का प्रयोग किया जाता है। इसका प्रचलन पण्डित विष्णु नारायण भातखण्डे जी ने प्रारम्भ किया

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की