संगीत समीक्षा - फ्रॉम सिडनी विद लव
कुल मिलाकर इस फिल्म का संगीत सुनने लायक है. रेडियो प्लेबैक इंडिया इसे देता है ३.५ के रेटिंग.
और अंत में आपकी बात- अमित तिवारी के साथ
आने वाले दिनों में एक नयी फिल्म आने वाली है ‘ फ्रॉम सिडनी विद लव’. बहुत सारे नवोदित कलाकार इसमें दिखाई देंगे.
इस फिल्म की स्टारकास्ट से लेकर निर्देशक तक अपनी पहली पारी की शुरुआत करने जा रहे हैं. इस फिल्म का संगीत दिया है ‘ मेरे ब्रदर की दुल्हन’ से चर्चित हुए सोहेल सेन और थोर पेट्रिज और नबीन लस्कर ने.
इस एल्बम का पहला गाना ‘फीलिंग लव इन सिडनी’, इलेक्ट्रॉनिक साउंड के साथ हिप होप फीलिंग देता है.गाने का संगीत मधुर है. कानों को सुनने में अच्छा लगता है. पार्टियों में आने वाले दिनों में बहुत बजेगा ये.
अगला गाना ‘ हो जायेगा’ , मोहित चौहान और मोनल ठाकुर की आवाज में है. आपको इस गाने में ज्यादा धूम धडाका नही मिलेगा जो आजकल के गानों में रहता है.
अगला गाना भांगडा स्टाइल का गाना है. ‘खटका खटका’ गाने को मीका सिंह ने अपने आवाज से मस्ती में झूमने वाला बना दिया है. इस गाने में इस्तेमाल हुई ढोल की बीट्स और इलेक्ट्रॉनिक साउंड आपको नाचने के लिए मजबूर कर देंगी.
बंगाली शब्दों के साथ पलक ‘ नैनो ने ‘ गाने की शुरुआत करती हैं. मोहम्मद सलामत ने उनके साथ बखूबी निभाया है. गाना बहुत मधुर है. इस एल्बम का मुझे ये सबसे मधुर गाना लगा है. एक परफेक्ट गाना है जिसे सुनकर आप अपने साथी के साथ मानसून क स्वागत कर सकते हैं.
अगला गाना ‘आइटम ये हाय फाय’ नीरज श्रीधर की आवाज में है. गाना ठीक ठाक है. ये गाना भी एक डांस सोंग है.
अंत में गाना है ‘प्यारी प्यारी’. ब्रुकलीन शांती ने इसमें केलिप्सो का टेस्ट दिया है, जो एफ्रो – केरेबियन’ स्टाइल का संगीत है जिसकी उत्पत्ति हुई त्रिनिडाड और टोबैगो में.
कुल मिलाकर इस फिल्म का संगीत सुनने लायक है. रेडियो प्लेबैक इंडिया इसे देता है ३.५ के रेटिंग.
तमस
'सुनते हैं सुअर मारना बड़ा कठिन काम है. हमारे बस का नहीं होगा हुजूर. खाल-बाल उतारने का काम तो कर दें. मारने का काम तो पिगरी वाले ही करते हैं.' पिगरी वालों से करवाना हो तो तुमसे क्यों कहते?'यह काम तुम्ही करोगे.'' और मुराद अली ने पाँच रुपए का चरमराता नोट निकाल कर जेब में से निकाल कर नत्थू के जुड़े हाथों के पीछे उसकपी जेब में ढूँस दिया था.'
'प्रकाशो की आँखें क्षण भर के लिए अल्लाह रक्खा के चेहरे पर ठिठकी रहीं, फिर उसने धीरे से मिठाई का टुकड़ा उठाया. टुकड़े को हाथ में ले लेने पर भी वह उससे उठ नहीं रहा था. प्रकाशो का चेहरा पीला पड़ गया था और हाथ काँपने लगा था मानो उसे सहसा बोध हुआ कि वह क्या कर रही है और उसका माँ-बाप को पता चले तो वे क्या कहेंगे. पर उसी वक्त आग्रह और उन्माद से भरी अल्लाह रक्खा की आँखों ने उसकी ओर देखा और प्रकाशो का हाथ अल्लाहरखा के मुँह तक जा पहुँचा.'
ये अंश हैं १९७५ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित उपन्यास तमस से. तमस भीष्म साहनी का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है. वे इस उपन्यास से साहित्य जगत में बहुत लोकप्रिय हुए थे. १९८६ में गोविंद निहलानी ने दूरदर्शन धारावाहिक तथा एक फ़िल्म भी बनाई थी.
इस उपन्यास में आजादी के ठीक पहले भारत में हुए साम्प्रदायिकता के नग्न नर्तन का अंतरंग चित्रण है. 'तमस' केवल पाँच दिनों की कहानी है. वहशत में डूबे हुए पाँच दिनों की कहानी को भीष्म साहनी ने इतनी कुशलता से बुना है कि सांप्रदायिकता का हर पहलू तार-तार उद्घाटित हो जाता है और हर पाठक एक साँस में सारा उपन्यास पढ़ने के लिए बाध्य हो जाता है. उपन्यास में जो प्रसंग संदर्भ और निष्कर्ष उभरते हैं, उससे यह पांच दिवस की कथा न होकर बीसवीं सदी के हिंदुस्तान के अब तक के लगभग सौ वर्षो की कथा हो जाती है. आजादी के ठीक पहले सांप्रदायिकता की बैसाखियाँ लगाकर पाशविकता का जो नंगा नाच इस देश में नाचा गया था, उसका अंतरग चित्रण भीष्म साहनी ने इस उपन्यास में किया है.
भारत में साम्प्रदायिकता की समस्या एक युग पुरानी है और इसके दानवी पंजों से अभी तक इस देश की मुक्ति नहीं हुई है. आजादी से पहले विदेशी शासकों ने यहाँ की जमीन पर अपने पाँव मजबूत करने के लिए इस समस्या को हथकंडा बनाया था और आजादी के बाद हमारे देश के कुछ राजनीतिक दल इसका घृणित उपयोग कर रहे हैं. और इस सारी प्रक्रिया में जो तबाही हुई है उसका शिकार बनते रहे हैं वे निर्दोष और गरीब लोग जो न हिन्दू हैं, न मुसलमान बल्कि सिर्फ इन्सान हैं, और हैं भारतीय नागरिक. भीष्म साहनी ने आजादी से पहले हुए साम्प्रदायिक दंगों को आधार बनाकर इस समस्या का सूक्ष्म विश्लेषण किया है और उन मनोवृत्तियों को उघाड़कर सामने रखा है जो अपनी विकृतियों का परिणाम जनसाधारण को भोगने के लिए विवश करती हैं
राजकमल प्रकाशन ने इस उपन्यास को प्रकाशित करा है. आपकी अपनी लायब्रेरी के लिए यह एक एतिहासिक संग्रह है.
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