Skip to main content

प्लेबैक इंडिया वाणी (8) फ्रॉम सिडनी विद लव, तमस और आपकी बात

संगीत समीक्षा - फ्रॉम सिडनी विद लव



आने वाले दिनों में एक नयी फिल्म आने वाली है फ्रॉम सिडनी विद लव. बहुत सारे नवोदित कलाकार इसमें दिखाई देंगे. 

इस फिल्म की स्टारकास्ट से लेकर निर्देशक तक अपनी पहली पारी की शुरुआत  करने जा रहे हैं. इस फिल्म का संगीत दिया है मेरे ब्रदर की दुल्हन से चर्चित हुए सोहेल सेन और  थोर पेट्रिज और नबीन लस्कर ने. 

इस एल्बम का पहला गाना फीलिंग लव इन सिडनी, इलेक्ट्रॉनिक साउंड के साथ हिप होप फीलिंग देता है.गाने का संगीत मधुर है. कानों को सुनने में अच्छा लगता है. पार्टियों में आने वाले दिनों में बहुत बजेगा ये.

अगला गाना हो जायेगा , मोहित चौहान और मोनल ठाकुर की आवाज में है. आपको इस गाने में ज्यादा धूम धडाका नही मिलेगा जो आजकल के गानों में रहता है.

अगला गाना भांगडा स्टाइल का गाना है. खटका खटका गाने को मीका सिंह ने अपने आवाज से मस्ती में झूमने वाला बना दिया है. इस गाने में इस्तेमाल हुई ढोल की बीट्स और इलेक्ट्रॉनिक साउंड आपको नाचने के लिए मजबूर कर देंगी.

बंगाली शब्दों के साथ  पलक  नैनो ने गाने की शुरुआत करती हैं. मोहम्मद सलामत ने उनके साथ बखूबी निभाया है. गाना बहुत मधुर है. इस एल्बम का मुझे ये सबसे मधुर गाना लगा है. एक परफेक्ट गाना है जिसे सुनकर आप अपने साथी के साथ मानसून क स्वागत कर सकते हैं.

अगला गाना आइटम ये हाय फाय नीरज श्रीधर  की आवाज में है. गाना ठीक ठाक है. ये गाना भी एक डांस सोंग है.

अंत में गाना है प्यारी प्यारी. ब्रुकलीन शांती ने इसमें केलिप्सो का टेस्ट दिया है, जो एफ्रो केरेबियन स्टाइल का संगीत है जिसकी उत्पत्ति हुई त्रिनिडाड और टोबैगो में.


कुल मिलाकर इस फिल्म का संगीत सुनने लायक है. रेडियो प्लेबैक इंडिया इसे देता है ३.५ के रेटिंग.   

 
तमस   
'सुनते हैं सुअर मारना बड़ा कठिन काम है. हमारे बस का नहीं होगा हुजूर. खाल-बाल उतारने का काम तो कर दें. मारने का काम तो पिगरी वाले ही करते हैं.' पिगरी वालों से करवाना हो तो तुमसे क्यों कहते?'यह काम तुम्ही करोगे.'' और मुराद अली ने पाँच रुपए का चरमराता नोट निकाल कर जेब में से निकाल कर नत्थू के जुड़े हाथों के पीछे उसकपी जेब में ढूँस दिया था.'
'प्रकाशो की आँखें क्षण भर के लिए अल्लाह रक्खा के चेहरे पर ठिठकी रहीं, फिर उसने धीरे से मिठाई का टुकड़ा उठाया. टुकड़े को हाथ में ले लेने पर भी वह उससे उठ नहीं रहा था. प्रकाशो का चेहरा पीला पड़ गया था और हाथ काँपने लगा था मानो उसे सहसा बोध हुआ कि वह क्या कर रही है और उसका माँ-बाप को पता चले तो वे क्या कहेंगे. पर उसी वक्त आग्रह और उन्माद से भरी अल्लाह रक्खा की आँखों ने उसकी ओर देखा और प्रकाशो का हाथ अल्लाहरखा के मुँह तक जा पहुँचा.'
ये अंश हैं १९७५ में साहित्य अकादमी पुरस्कार से सम्मानित उपन्यास तमस से. तमस भीष्म साहनी का सबसे प्रसिद्ध उपन्यास है. वे इस उपन्यास से साहित्य जगत में बहुत लोकप्रिय हुए थे. १९८६ में गोविंद निहलानी ने दूरदर्शन धारावाहिक तथा एक फ़िल्म भी बनाई थी.
इस उपन्यास में आजादी के ठीक पहले भारत में हुए साम्प्रदायिकता के नग्न नर्तन का अंतरंग चित्रण है. 'तमस' केवल पाँच दिनों की कहानी है. वहशत में डूबे हुए पाँच दिनों की कहानी को भीष्म साहनी ने इतनी कुशलता से बुना है कि सांप्रदायिकता का हर पहलू तार-तार उद्घाटित हो जाता है और हर पाठक एक साँस में सारा उपन्यास पढ़ने के लिए बाध्य हो जाता है. उपन्यास में जो प्रसंग संदर्भ और निष्कर्ष उभरते हैं, उससे यह पांच दिवस की कथा न होकर बीसवीं सदी के हिंदुस्तान के अब तक के लगभग सौ वर्षो की कथा हो जाती है. आजादी के ठीक पहले सांप्रदायिकता की बैसाखियाँ लगाकर पाशविकता का जो नंगा नाच इस देश में नाचा गया था, उसका अंतरग चित्रण भीष्म साहनी ने इस उपन्यास में किया है.
भारत में साम्प्रदायिकता की समस्या एक युग पुरानी है और इसके दानवी पंजों से अभी तक इस देश की मुक्ति नहीं हुई है. आजादी से पहले विदेशी शासकों ने यहाँ की जमीन पर अपने पाँव मजबूत करने के लिए इस समस्या को हथकंडा बनाया था और आजादी के बाद हमारे देश के कुछ राजनीतिक दल इसका घृणित उपयोग कर रहे हैं. और इस सारी प्रक्रिया में जो तबाही हुई है उसका शिकार बनते रहे हैं वे निर्दोष और गरीब लोग जो न हिन्दू हैं, न मुसलमान बल्कि सिर्फ इन्सान हैं, और हैं भारतीय नागरिक. भीष्म साहनी ने आजादी से पहले हुए साम्प्रदायिक दंगों को आधार बनाकर इस समस्या का सूक्ष्म विश्लेषण किया है और उन मनोवृत्तियों को उघाड़कर सामने रखा है जो अपनी विकृतियों का परिणाम जनसाधारण को भोगने के लिए विवश करती हैं
राजकमल प्रकाशन ने इस उपन्यास को प्रकाशित करा है. आपकी अपनी लायब्रेरी के लिए यह एक एतिहासिक संग्रह है.  
 
  और अंत में आपकी बात- अमित तिवारी के साथ

Comments

Popular posts from this blog

सुर संगम में आज -भारतीय संगीताकाश का एक जगमगाता नक्षत्र अस्त हुआ -पंडित भीमसेन जोशी को आवाज़ की श्रद्धांजली

सुर संगम - 05 भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चेरी बनाकर अपने कंठ में नचाते रहे। भा रतीय संगीत-नभ के जगमगाते नक्षत्र, नादब्रह्म के अनन्य उपासक पण्डित भीमसेन गुरुराज जोशी का पार्थिव शरीर पञ्चतत्त्व में विलीन हो गया. अब उन्हें प्रत्यक्ष तो सुना नहीं जा सकता, हाँ, उनके स्वर सदियों तक अन्तरिक्ष में गूँजते रहेंगे. जिन्होंने पण्डित जी को प्रत्यक्ष सुना, उन्हें नादब्रह्म के प्रभाव का दिव्य अनुभव हुआ. भारतीय संगीत की विविध विधाओं - ध्रुवपद, ख़याल, तराना, भजन, अभंग आदि प्रस्तुतियों के माध्यम से सात दशकों तक उन्होंने संगीत प्रेमियों को स्वर-सम्मोहन में बाँधे रखा. भीमसेन जोशी की खरज भरी आवाज का वैशिष्ट्य जादुई रहा है। बन्दिश को वे जिस माधुर्य के साथ बदल देते थे, वह अनुभव करने की चीज है। 'तान' को वे अपनी चे

‘बरसन लागी बदरिया रूमझूम के...’ : SWARGOSHTHI – 180 : KAJARI

स्वरगोष्ठी – 180 में आज वर्षा ऋतु के राग और रंग – 6 : कजरी गीतों का उपशास्त्रीय रूप   उपशास्त्रीय रंग में रँगी कजरी - ‘घिर आई है कारी बदरिया, राधे बिन लागे न मोरा जिया...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के राग और रंग’ की छठी कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र एक बार पुनः आप सभी संगीतानुरागियों का हार्दिक स्वागत और अभिनन्दन करता हूँ। इस श्रृंखला के अन्तर्गत हम वर्षा ऋतु के राग, रस और गन्ध से पगे गीत-संगीत का आनन्द प्राप्त कर रहे हैं। हम आपसे वर्षा ऋतु में गाये-बजाए जाने वाले गीत, संगीत, रागों और उनमें निबद्ध कुछ चुनी हुई रचनाओं का रसास्वादन कर रहे हैं। इसके साथ ही सम्बन्धित राग और धुन के आधार पर रचे गए फिल्मी गीत भी सुन रहे हैं। पावस ऋतु के परिवेश की सार्थक अनुभूति कराने में जहाँ मल्हार अंग के राग समर्थ हैं, वहीं लोक संगीत की रसपूर्ण विधा कजरी अथवा कजली भी पूर्ण समर्थ होती है। इस श्रृंखला की पिछली कड़ियों में हम आपसे मल्हार अंग के कुछ रागों पर चर्चा कर चुके हैं। आज के अंक से हम वर्षा ऋतु की

काफी थाट के राग : SWARGOSHTHI – 220 : KAFI THAAT

स्वरगोष्ठी – 220 में आज दस थाट, दस राग और दस गीत – 7 : काफी थाट राग काफी में ‘बाँवरे गम दे गयो री...’  और  बागेश्री में ‘कैसे कटे रजनी अब सजनी...’ ‘रेडियो प्लेबैक इण्डिया’ के साप्ताहिक स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ के मंच पर जारी नई लघु श्रृंखला ‘दस थाट, दस राग और दस गीत’ की सातवीं कड़ी में मैं कृष्णमोहन मिश्र, आप सब संगीत-प्रेमियों का हार्दिक अभिनन्दन करता हूँ। इस लघु श्रृंखला में हम आपसे भारतीय संगीत के रागों का वर्गीकरण करने में समर्थ मेल अथवा थाट व्यवस्था पर चर्चा कर रहे हैं। भारतीय संगीत में सात शुद्ध, चार कोमल और एक तीव्र, अर्थात कुल 12 स्वरों का प्रयोग किया जाता है। एक राग की रचना के लिए उपरोक्त 12 में से कम से कम पाँच स्वरों की उपस्थिति आवश्यक होती है। भारतीय संगीत में ‘थाट’, रागों के वर्गीकरण करने की एक व्यवस्था है। सप्तक के 12 स्वरों में से क्रमानुसार सात मुख्य स्वरों के समुदाय को थाट कहते है। थाट को मेल भी कहा जाता है। दक्षिण भारतीय संगीत पद्धति में 72 मेल का प्रचलन है, जबकि उत्तर भारतीय संगीत में दस थाट का प्रयोग किया जाता है। इन दस थाट