स्वरगोष्ठी – ७८ में आज
‘घन छाए गगन अति घोर घोर...’
‘घन छाए गगन अति घोर घोर...’
‘स्वरगोष्ठी’ के एक नये अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब रसिकजनों का, स्वरों की रिमझिम फुहारों के बीच स्वागत करता हूँ। इन दिनों आप प्रकृति-चक्र के अनुपम वरदान, वर्षा ऋतु का आनन्द ले रहे हैं। तप्त, शुष्क और प्यासी धरती पर वर्षा की फुहारें पड़ने पर जो सुगन्ध फैलती है वह अवर्णनीय है। ऐसे ही मनभावन परिवेश में आपके उल्लास और उमंग को द्विगुणित करने के लिए हम लेकर आए हैं यह नई श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के रंग : मल्हार अंग के रागों का संग’। इस श्रृंखला में वर्षा ऋतु में गाये-बजाये जाने वाले रागों पर आपसे चर्चा करेंगे और इन रागों में निबद्ध वर्षा ऋतु के रस-गन्ध में पगे गीतों को प्रस्तुत भी करेंगे।
भारतीय साहित्य और संगीत को सबसे अधिक प्रभावित करने वाली दो ऋतुएँ हैं; बसंत और पावस। संगीत शास्त्र के अनुसार मल्हार के सभी प्रकार पावस ऋतु की अनुभूति कराने में समर्थ हैं। इसके साथ ही कुछ सार्वकालिक राग; वृन्दावनी सारंग, देस और जैजैवन्ती भी वर्षा ऋतु के अनुकूल परिवेश रचने में सक्षम होते हैं। वर्षाकालीन रागों में सबसे प्राचीन राग मेघ मल्हार माना जाता है। आज के अंक में हम राग मेघ अथवा मेघ मल्हार की ही चर्चा करेंगे। इस राग पर चर्चा आरम्भ करने से पहले आइए सुनते हैं, राग मेघ में निबद्ध दो मोहक रचनाएँ। पटियाला (कसूर) गायकी में सिद्ध गायक पण्डित अजय चक्रवर्ती के स्वर में पहले मध्यलय झपताल की रचना- ‘गरजे घटा घन कारे कारे पावस रुत आई...’ और उसके बाद द्रुत लय तीनताल में निबद्ध पण्डित ज्ञानप्रकाश घोष की रचना- ‘घन छाए गगन अति घोर घोर...’ की रसानुभूति आप भी कीजिए।
राग मेघ काफी थाट के अन्तर्गत माना जाता है। इस राग का सर्वाधिक प्रचलित रूप औड़व-औड़व जाति का होता है। अर्थात आरोह-अवरोह में ५-५ स्वरों का प्रयोग होता है। गान्धार और धैवत स्वरों का प्रयोग नहीं होता। भातखण्डे जी ने अपने ‘संगीत-शास्त्र’ ग्रन्थ में यह उल्लेख किया है कि कोई-कोई कोमल गान्धार का प्रयोग भी करते हैं। लखनऊ के वरिष्ठ संगीत-शिक्षक और शास्त्र-अध्येता पण्डित मिलन देवनाथ के अनुसार लगभग एक शताब्दी पूर्व राग मेघ में कोमल गान्धार का प्रयोग होता था। आज भी कुछ घरानों की गायकी में यह प्रयोग मिलता है। रामपुर, सहसवान घराने के जाने-माने गायक उस्ताद राशिद खाँ जब राग मेघ गाते हैं तो कोमल गान्धार का प्रयोग करते हैं। श्री देवनाथ के अनुसार उस्ताद सलामत और नज़ाकत अली खाँ मेघ मल्हार गाते समय गांघार और धैवत का अनूठा प्रयोग करते थे। ऋषभ का आन्दोलन राग मेघ का प्रमुख गुण होता है। यह पूर्वांग प्रधान राग है।
इस राग के माध्यम से मेघों की प्रतीक्षा, काले मेघों से आच्छादित आकाश और उमड़-घुमड़ कर वर्षा के आरम्भ होने के परिवेश की सार्थक अनुभूति होती है। आइए, अब हम आपको सितार पर राग मेघ सुनवाते है। सितार वाद्ययंत्र पर राग मेघ मल्हार की अवतारणा एक अलग ही इन्द्रधनुषी रंग बिखेरता है। सुविख्यात सितार-वादक पण्डित निखिल बनर्जी ने अपने तंत्र-वाद्य पर राग मेघ की अत्यन्त आकर्षक अवतारणा की है। आरम्भ में थोड़ा आलाप और उसके बाद झपताल में निबद्ध गत आप सुनेंगे। इस आकर्षक सितार-वादन को सुनते समय आप थोड़ा ध्यान दीजिएगा, तबला-संगत आरम्भ होने से ठीक पहले एक स्थान पर पण्डित जी ने धैवत स्वर का प्रयोग किया है। परन्तु केवल एक ही बार, रचना के शेष भाग में कहीं भी इस स्वर का दोबारा प्रयोग नहीं किया है। लीजिए, सुनिए सितार पर राग मेघ मल्हार-
भारतीय साहित्य और संगीत को सबसे अधिक प्रभावित करने वाली दो ऋतुएँ हैं; बसंत और पावस। संगीत शास्त्र के अनुसार मल्हार के सभी प्रकार पावस ऋतु की अनुभूति कराने में समर्थ हैं। इसके साथ ही कुछ सार्वकालिक राग; वृन्दावनी सारंग, देस और जैजैवन्ती भी वर्षा ऋतु के अनुकूल परिवेश रचने में सक्षम होते हैं। वर्षाकालीन रागों में सबसे प्राचीन राग मेघ मल्हार माना जाता है। आज के अंक में हम राग मेघ अथवा मेघ मल्हार की ही चर्चा करेंगे। इस राग पर चर्चा आरम्भ करने से पहले आइए सुनते हैं, राग मेघ में निबद्ध दो मोहक रचनाएँ। पटियाला (कसूर) गायकी में सिद्ध गायक पण्डित अजय चक्रवर्ती के स्वर में पहले मध्यलय झपताल की रचना- ‘गरजे घटा घन कारे कारे पावस रुत आई...’ और उसके बाद द्रुत लय तीनताल में निबद्ध पण्डित ज्ञानप्रकाश घोष की रचना- ‘घन छाए गगन अति घोर घोर...’ की रसानुभूति आप भी कीजिए।
राग मेघ मल्हार : गायक - पण्डित अजय चक्रवर्ती
राग मेघ काफी थाट के अन्तर्गत माना जाता है। इस राग का सर्वाधिक प्रचलित रूप औड़व-औड़व जाति का होता है। अर्थात आरोह-अवरोह में ५-५ स्वरों का प्रयोग होता है। गान्धार और धैवत स्वरों का प्रयोग नहीं होता। भातखण्डे जी ने अपने ‘संगीत-शास्त्र’ ग्रन्थ में यह उल्लेख किया है कि कोई-कोई कोमल गान्धार का प्रयोग भी करते हैं। लखनऊ के वरिष्ठ संगीत-शिक्षक और शास्त्र-अध्येता पण्डित मिलन देवनाथ के अनुसार लगभग एक शताब्दी पूर्व राग मेघ में कोमल गान्धार का प्रयोग होता था। आज भी कुछ घरानों की गायकी में यह प्रयोग मिलता है। रामपुर, सहसवान घराने के जाने-माने गायक उस्ताद राशिद खाँ जब राग मेघ गाते हैं तो कोमल गान्धार का प्रयोग करते हैं। श्री देवनाथ के अनुसार उस्ताद सलामत और नज़ाकत अली खाँ मेघ मल्हार गाते समय गांघार और धैवत का अनूठा प्रयोग करते थे। ऋषभ का आन्दोलन राग मेघ का प्रमुख गुण होता है। यह पूर्वांग प्रधान राग है।
इस राग के माध्यम से मेघों की प्रतीक्षा, काले मेघों से आच्छादित आकाश और उमड़-घुमड़ कर वर्षा के आरम्भ होने के परिवेश की सार्थक अनुभूति होती है। आइए, अब हम आपको सितार पर राग मेघ सुनवाते है। सितार वाद्ययंत्र पर राग मेघ मल्हार की अवतारणा एक अलग ही इन्द्रधनुषी रंग बिखेरता है। सुविख्यात सितार-वादक पण्डित निखिल बनर्जी ने अपने तंत्र-वाद्य पर राग मेघ की अत्यन्त आकर्षक अवतारणा की है। आरम्भ में थोड़ा आलाप और उसके बाद झपताल में निबद्ध गत आप सुनेंगे। इस आकर्षक सितार-वादन को सुनते समय आप थोड़ा ध्यान दीजिएगा, तबला-संगत आरम्भ होने से ठीक पहले एक स्थान पर पण्डित जी ने धैवत स्वर का प्रयोग किया है। परन्तु केवल एक ही बार, रचना के शेष भाग में कहीं भी इस स्वर का दोबारा प्रयोग नहीं किया है। लीजिए, सुनिए सितार पर राग मेघ मल्हार-
सितार पर राग मेघ : वादक – पण्डित निखिल बनर्जी
स्वरों के माध्यम से वर्षा ऋतु के परिवेश की सार्थक सृष्टि रच देने में समर्थ राग मेघ के आधार पर फिल्मों के कई संगीतकारों ने गीत रचे हैं। इस सन्दर्भ में संगीतकार बसन्त देसाई का स्मरण प्रासंगिक है। वे ऐसे संगीतकार थे, जिन्होने मल्हार के लगभग सभी प्रकारों में फिल्मी गीत स्वरबद्ध किये हैं। इस श्रृंखला की आगामी कड़ियों में हम आपको उनके स्वरबद्ध गीत सुनवाएँगे। आज हम आपको संगीतकार राजकमल का राग मेघ मल्हार पर आधारित स्वरबद्ध गीत सुनवा रहे हैं। उन्होने भी इस गीत में धैवत का प्रयोग किया है। यह गीत हमने १९८१ में प्रदर्शित, सईं परांजपे की फिल्म ‘चश्मेबद्दूर’ से लिया है। कहरवा ताल में निबद्ध इस गीत को येशुदास और हेमन्ती शुक्ला ने स्वर दिया है। आप यह गीत सुनिए और मुझे आज के इस अंक को यहीं विराम देने की अनुमति दीजिए।
फिल्म चश्मेबद्दूर : ‘कहाँ से आए बदरा...’ : येशुदास और हेमन्ती शुक्ला
आज की पहेली
आज की ‘संगीत-पहेली’ में हम आपको सुनवा रहे हैं, राग आधारित एक फिल्मी गीत का अंश। इसे सुन कर आपको हमारे दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ‘स्वरगोष्ठी’ के ८०वें अंक तक सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाले पाठक-श्रोता हमारी तीसरी श्रृंखला के ‘विजेता’ होंगे।
१ – यह गीत किस राग पर आधारित है?
२ – गीत की गायिका कौन है?
आप अपने उत्तर हमें तत्काल swargoshthi@gmail.com पर भेजें। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के ८०वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं। हमसे सीधे सम्पर्क के लिए swargoshthi@gmail.com पर अपना सन्देश भेज सकते हैं।
पिछली पहेली के उत्तर
‘स्वरगोष्ठी’ के ७६वें अंक की पहेली में हमने आपको पण्डित हरिप्रसाद चौरसिया के बाँसुरी वादन का एक अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग हंसध्वनि और दूसरे का सही उत्तर है- ताल सितारखानी या पंजाबी तीनतान। इस बार की पहेली में हमारे एक नए पाठक, मुम्बई से अखिलेश दीक्षित जुड़े हैं। अखिलेश जी ने दोनों प्रश्नों के सही उत्तर देने के साथ ही १६ मात्रा के सितारखानी ताल के बारे में विस्तृत जानकारी भी दी है। इनके साथ ही दोनों प्रश्नों का सही उत्तर जबलपुर की क्षिति तिवारी ने भी दिया है। दोनों प्रतियोगियों को रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर से हार्दिक बधाई।
झरोखा अगले अंक का
मित्रों, ‘स्वरगोष्ठी’ के आज के अंक से हमने मल्हार अंग के रागों का सिलसिला शुरू किया है। अगले अंक में भी हम आपसे मल्हार के एक अन्य प्रकार पर चर्चा करेंगे। वर्षा ऋतु से सम्बन्धित कोई राग अथवा रचना आपको प्रिय हो और आप उसे सुनना चाहते हों तो आज ही अपनी फरमाइश हमें swargoshthi@gmail.com पर मेल कर दें। इसके साथ ही यदि आप इनसे सम्बन्धित आडियो ‘स्वरगोष्ठी’ के माध्यम से संगीत प्रेमियों तक पहुँचाना चाहते हों तो वह क्लिप MP3 रूप में भेज दें। हम आपकी फरमाइश को और आपके भेजे आडियो क्लिप को ‘स्वरगोष्ठी’ में शामिल करने का हर-सम्भव प्रयास करेंगे। अगले रविवार को प्रातः ९-३० पर आयोजित अपनी इस गोष्ठी में आप भी हमारे सहभागी बनिए।
कृष्णमोहन मिश्र
Comments
..आभार।
1 - Mian Ki Malhar
2 - Kavita Krishnamurthy
Film - Saaz (1988)