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प्लेबैक इंडिया वाणी (6) कॉकटेल, अहा ज़िंदगी और आपकी बात

संगीत समीक्षा - कॉकटेल



संगीतकार प्रीतम और गीतकार इरशाद कामिल की जोड़ी आज के दौर की एक कामयाब जोड़ी मानी जा सकती है. इस जोड़ी की नयी पेशकश है कॉकटेल. जैसा कि नाम से ही विदित है कि संगीत का एक मिश्रित रूप यहाँ श्रोताओं को मिलेगा, इस उम्मीद पर अल्बम निश्चित ही खरी उतरती है. 
इरशाद ने तुम्ही हो माता पिता तुम्हीं हो में से माता पिता का नाम हटा कर खुदा को बस बंधू और सखा का नाम देकर और भी आत्मीय बना दिया है और इस तेज रिदम के गीत में भी उनके बोल दिल को गहराईयों से छू जाते हैं,
जग मुझे पे लगाये पाबंदी, मैं हूँ ही नहीं इस दुनिया की...वाह...और उस पर कविता सेठ की आवाज़ एक अलग ही मुकाम दे देती है गीत को, नीरज श्रीधर ने अच्छा साथ निभाया है, तुम्हीं हो बंधू से अल्बम की शानदार शुरुआत होती है और  इसी सिलसिले को आगे बढ़ाता है अगला गीत दारु देसी, इश्कजादे में परेशान गाकर अपनी शानदार उपस्थिती दर्ज कराने वाली शामली खोलगादे हैं बेन्नी दयाल के साथ जिनकी मदभरी आवाजों में ये गीत भी खूब जमा है.

बेस गिटार और रिदम का शानदार प्रयोग यारियाँ गीत को गजब की ऊंचाईयां प्रदान कर देता है, ये प्रीतम के बहतरीन गीतों में से एक है, गायक मोहन कानन और शिल्पा राव की आवाजें और इरशाद के शब्द मिलकर इस गीत में जान भर देते हैं, बार बार सुनने लायक है यारियाँ.

नेहा कक्कड ने बहुत जोशीले अंदाज़ में सेकेण्ड हैंड जवानी गया है, यहाँ बोल है अमिताभ भट्टाचार्य के जिनका ये अल्बम में इकलौता गीत है. 
पैप्पी गीत है मजेदार अंदाज़ का. तेरा नाम जापदी फिरां और लुटना प्रीतम इरशाद के सिग्नेचर गीतों की तरह असरकारक हैं.

इनके अलावा एक गीत ऐसा है, जिसके सदके में पूरी कि पूरी अल्बम वारी जा सकती है. ये है आरिफ लोहार और हर्षदीप कौर की युगल आवाजों में जुगनी, इस गीत की खूबसूरती को केवल और केवल सुनकर महसूस ही किया जा सकता है. दरअसल ये गीत पाकिस्तान के कोक स्टूडियो के लिए रिकॉर्ड हुआ था. जो यू ट्यूब पर ख़ासा लोकप्रिय भी हुआ. इस अल्बम में इसे शामिल कर फिल्म के निर्माता ने संगीत प्रेमियों को एक मधुर सौगात दी है. 
अल्बम को रेडियो प्लेबैक की और से मिलते हैं ४.२ की रेटिंग.   

 


पुस्तक चर्चा - अहा जिंदगी – सिनेमा विशेष  


वैसे तो हम पुस्तकों की समीक्षा करते हैं. पर अहा जिंदगी पत्रिका का ताज़ा संस्करण हमारे फिल्म और संगीत प्रेमियों के लिए बेहद जरूरी है संग्रहनीय है. तो हमने सोचा कि क्यों न इस बार इस साप्ताहिक स्तंभ में अहा जिंदगी के सिनेमा विशेषांक की चर्चा की जाए,  जैसा कि हम सब जानते हैं कि भारतीय फिल्में अपने उदगम के १०० शानदार वर्ष पूरे करने की कगार पर है. इसी बात को ध्यान में रखकर कर इस अंक को आकार दिया गया है.  स्वप्न, सौन्दर्य और सिनेमा के इस दर्शन में जहाँ युनुस खान फिल्म संगीत में आये परिवर्तनों का जिक्र कर रहे हैं तो वहीँ निधि सक्सेना ने सिनेमा में काव्यात्मक अभिव्यक्ति को तरजीह दी है. गीता यादव ने कुछ यादगार प्रसगों की चर्चा की है तो पारुल की कलम ने सिनेमा के बदलते आयामों पर नज़र दौडाई है.  इस अंक में फ़िल्मी फैशन, ताम झाम, ग्लैमर और रंग बदलती इस मायावी दुनिया की बेहद दिलचस्प जानकारियों के साथ है वहीदा रहमान की जीवनी भी. परत दर परत उनके फ़िल्मी सफर को देखना हिंदी सिनेमा के एक पूरे दौर को देखने जैसा है. रेडियो प्लेबैक इस प्रयास के के लिए अहा जिंदगी और पूरे भास्कर ग्रुप को बधाईयाँ प्रेषित करता है...आप भी इसे अवश्य पढ़ें और सहेजें.     
 
 


और अंत में आपकी बात- अमित तिवारी के साथ

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