संगीत समीक्षा - क्या सुपर कूल हैं हम
अल्बम का अंतिम गीत “वोल्यूम हाई करले” बहुत मजेदार नहीं बन पाया है, और अल्बम के अन्य गीतों के मुकाबले कम इन्नोवेटिव भी है...पर फिर भी “दिल गार्डन” “शर्ट का बट्टन” और “केपेचिनो” गीत काफी है इस अल्बम को ४.१ की रेटिंग देने के लिए. एक बार “शर्ट का बट्टन” के लिए बधाई जो शायद इस फिल्म का सबसे बड़ा आकर्षण होने वाला है.
छोटे परदे की बेहद सफल निर्मात्री एकता कपूर ने जब फ़िल्मी दुनिया में कदम रखा तो वहाँ भी सफलता के नए कीर्तिमान स्थापित किये, बहुत ही अलग अलग अंदाज़ की फ़िल्में वो दर्शकों के लिए लेकर आयीं हैं, जिनमें हास्य, सस्पेंस, ड्रामा सभी तरह के जोनर शामिल हैं.
अपने भाई तुषार कपूर को लेकर उन्होंने “क्या कूल हैं हम” बनायीं थी जिसने दर्शकों को भरपूर हँसाया, इसी कड़ी को आगे बढ़ाते हुए वो लायीं है अब “क्या सुपर कूल हैं हम” जिसमें तुषार कपूर के साथ है रितेश देशमुख. फिल्म हंसी का पिटारा है या नहीं ये तो दर्शकों को फिल्म देखने के बाद ही पता लग पायेगा, पर आईये हम जान लेते हैं कि फिल्म का संगीत कैसा है.
उभरते हुए संगीतकार जोड़ी सचिन जिगर के टेक्नो रिदम से लहराके उठता है “दिल गार्डन गार्डन” गीत. मयूर पूरी के बे सर पैर सरीखे शब्द गीत को एक अलग ही तडका देते हैं. जहाँ रिदम गीत की जान है वहीँ विशाल ददलानी की उर्जात्मक आवाज़ जोश से भरपूर है. गीत को सुनते हुए न सिर्फ आपके कदम थिरकेंगें बल्कि शब्दों की उटपटांग हरकतें आपके चेहरे पर एक मुस्कान भी ले आएगी...अगर आपने गीत का फिल्मांकन देखा होगा तो गौर किया होगा, सेट से लेकर पहनावे तक हर चीज को एक रेट्रो लुक से सराबोर किया हुआ है जो बेहद लुभावना लगता है, यक़ीनन ये गीत आप आने वाले समय में बहुत बहुत बार सुनने वाले हैं
इस तरह की फिल्म जिसमें कोमेडी का होना पागलपन की हद तक सुनिश्चित हो वहाँ कोई मेलोडिअस गीत की उम्मीद शायद ही कोई करेगा. पर इस अलबम में श्रोताओं के लिए एक बेहद ही मीठा सरप्रयिस है. गीत “शर्ट का बट्टन” दो अलग अलग संस्करणों में है, जहाँ सोनू की सुरीली आवाज़ में ये एक आउट एंड आउट रोमांटिक गीत बनकर उभरता है वहीँ कैलाश खेर और साथियों वाला संस्करण सूफी रोमंसिसिम को हलके फुल्के अंदाज़ में समेटता है. दोनों गीतों के बोल और धुन एक होने के बावजूद भी संगीत संयोजन और आवाजों के मुक्तलिफ़ अंदाजों के चलते दो अलग अलग गीत से सुनाई पड़ते हैं, और दोनों ही आपके दिल को छू जाते हैं, काफी समय से एक अच्छे ब्रेक की तलाश में चल रहे गीतकार कुमार के लिए इससे बेहतर प्लेटफोर्म नहीं हो सकता था और उन्होंने चालू शायरी के पुट में यक़ीनन अच्छी खासी गरिमा भरी है, दोस्तों यकीन मानिये इस तरफ के गीत लिखने में एक गीतकार को खासी मेहनत करनी पड़ती है. आधुनिक नारी के श्रृंगार प्रसाधनों को एक तार में पिरोता ये गीत बेहद ही खूबसूरत है. और साल के बेहतरीन गीतों में एक है. संगीतकार मीत ब्रोस अनजान और गीतकार कुमार को खासी बधाई. कहने की जरुरत नहीं कि सोनू की ठहराव से भरी गायिकी और कैलाश का लोक अंदाज़ गीत का बोनस है.
कई साल पहले आई फिल्म शूल के लिए शंकर एहसान लॉय ने एक आइटम गीत रचा ‘यु पी बिहार लूटने’ जो शिल्प शेट्टी पर फिल्माया गया था, उसी धमाकेदार गीत को मीत ब्रोस ने एक बार फिर एक नए अंदाज़ में उभारा है और इसे किसी अभिनेत्री पर नहीं बल्कि फिल्म के दो नायकों पर फिल्माया गया है. जहाँ सुखविंदर और दलेर प्राजी की दमदार आवाज़ के साथ महरास्त्रियन लावनी का फ्लेवर जमाया खुद रितेश देशमुख ने अपनी आवाज़ के जरिये. ये मस्त मस्त गीत खुल कर नाचने के लिए है बस.
और अंत में आपकी बात- अमित तिवारी के साथ
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