स्वरगोष्ठी – ७९ में आज
मियाँ की मल्हार : ‘बोले रे पपीहरा...’
मियाँ की मल्हार : ‘बोले रे पपीहरा...’
‘स्वरगोष्ठी’ के अन्तर्गत जारी लघु श्रृंखला ‘वर्षा ऋतु के रंग : मल्हार अंग के रागों का संग’ के दूसरे अंक में, मैं कृष्णमोहन मिश्र आप सब संगीत-प्रेमियों का स्वागत, आज राग ‘मियाँ की मल्हार’ की स्वर-वर्षा के साथ करता हूँ। मल्हार अंग के रागों में राग मेघ मल्हार, मेघों का आह्वान करने, मेघाच्छन्न आकाश का चित्रण करने और वर्षा ऋतु की आहट देने में सक्षम राग माना जाता है। वहीं दूसरी ओर राग मियाँ की मल्हार, वर्षा ऋतु की चरम अवस्था के सौन्दर्य की अनुभूति कराने पूर्ण समर्थ है। यह राग वर्तमान में वर्षा ऋतु के रागों में सर्वाधिक प्रचलित और लोकप्रिय है। सुप्रसिद्ध इसराज और मयूरी वीणा वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र के अनुसार- राग मियाँ की मल्हार की सशक्त स्वरात्मक परमाणु शक्ति, बादलों के परमाणुओं को झकझोरने में समर्थ है।
राग मियाँ की मल्हार तानसेन के प्रिय रागों में से एक है। कुछ विद्वानों का मत है कि तानसेन ने कोमल गान्धार तथा शुद्ध और कोमल निषाद का प्रयोग कर इस राग का सृजन किया था। अकबर के दरबार में तानसेन को सम्मान देने के लिए उन्हें ‘मियाँ तानसेन’ नाम से सम्बोधित किया जाता था। इस राग से उनके जुड़ाव के कारण ही मल्हार के इस प्रकार को ‘मियाँ की मल्हार’ कहा जाने लगा। इस राग के बारे में चर्चा को आगे बढ़ाने से पहले आइए सुनते हैं, राग मियाँ की मल्हार में एक भावपूर्ण रचना। आपके लिए हम प्रस्तुत कर रहे हैं, विदुषी किशोरी अमोनकर के स्वर में द्रुत एक ताल में निबद्ध, मियाँ की मल्हार की एक रचना-
राग मियाँ की मल्हार के बारे में हमें जानकारी देते हुए जाने-माने इसराज और मयूरी वीणा वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र ने हमें बताया कि यह राग काफी थाट के अन्तर्गत माना जाता है। आरोह और अवरोह में दोनों निषाद का प्रयोग किया जाता है। राग मियाँ की मल्हार के स्वरों का ढाँचा कुछ इस प्रकार बनता है कि कोमल निषाद एक श्रुति ऊपर लगने लगता है। इसी प्रकार कोमल गान्धार, ऋषभ से लगभग ढाई श्रुति ऊपर की अनुभूति कराता है। इस राग में गान्धार स्वर का प्रयोग अत्यन्त सावधानी से करना पड़ता है। राग की कुछ अन्य विशेषताओं पर हम चर्चा जारी रखेंगे, परन्तु आइए, पहले सुनते हैं, सारंगी पर उस्ताद अब्दुल लतीफ़ खाँ का बजाया राग मियाँ की मल्हार का एक अंश।
मियाँ की मल्हार : सारंगी वादन : उस्ताद अब्दुल लतीफ़ खाँ
राग मियाँ की मल्हार को गाते-बजाते समय राग बहार से बचाना पड़ता है। परन्तु कोमल गान्धार का सही प्रयोग किया जाए तो इस दुविधा से मुक्त हुआ जा सकता है। इन दोनों रागों को एक के बाद दूसरे का गायन-वादन कठिन होता है, किन्तु उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ ने एक बार यह प्रयोग कर श्रोताओं को चमत्कृत कर दिया था। इस राग में गमक की तानें बहुत अच्छी लगती है। आइए यहाँ थोड़ा विराम लेकर राग मियाँ के मल्हार का एक और उदाहरण सुनते हैं। विश्वविख्यात फ़िल्मकार सत्यजीत रे ने १९५९ में भारतीय संगीत की दशा-दिशा को रेखांकित करती बांग्ला फिल्म ‘जलसाघर’ का निर्माण किया था। इस फिल्म में गायन, वादन और नर्तन के कई उत्कृष्ट कलासाधकों की प्रस्तुतियाँ शामिल की गईं थीं। इन्हीं में एक थे, उस्ताद सलामत अली खाँ, जिन्होने फिल्म में राग मियाँ की मल्हार की एक रचना तीनताल में निबद्ध कर प्रस्तुत की थी। लीजिए, आप भी सुनिए-
मियाँ की मल्हार : ‘जलरस बूँदन बरसे...’ : फिल्म – जलसाघर : उस्ताद सलामत अली खाँ
वर्षा ऋतु के प्राकृतिक सौन्दर्य को स्वरों के माध्यम से अभिव्यक्त करने की अनूठी क्षमता राग मियाँ की मल्हार में होती है। इसके साथ ही इस राग का स्वर-संयोजन, पावस के उमड़ते-घुमड़ते मेघ द्वारा विरहिणी नायिका के हृदय में मिलन की आशा जागृत होने की अनुभूति भी कराते हैं। कई फिल्म- संगीतकारों ने इस राग पर आधारित कुछ यादगार गीत तैयार किये हैं। इन्हीं में से आज हम आपके लिए दो गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। ये गीत राग मियाँ की मल्हार के स्वरों पर आधारित तो हैं ही, इन गीतों के बोल में वर्षा ऋतु का सार्थक चित्रण भी हुआ है। पहले प्रस्तुत है- १९९८ में प्रदर्शित फिल्म ‘साज’ का गीत, जिसे कविता कृष्णमूर्ति ने तीनताल में गाया है। इसके बाद सुनिए- १९७१ की फिल्म ‘गुड्डी’ का बेहद लोकप्रिय गीत, जिसे बसन्त देसाई ने स्वरबद्ध किया है और वाणी जयराम ने कहरवा ताल में गाया है। आप ये दोनों गीत सुनिए और मुझे आज के इस अंक से यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिए।
मियाँ की मल्हार : ‘बादल घुमड़ घिर आए...’ : फिल्म – साज : कविता कृष्णमूर्ति
मियाँ की मल्हार : ‘बोले रे पपीहरा...’ : फिल्म – गुड्डी : वाणी जयराम
आज की पहेली
आज की संगीत-पहेली में हम आपको सुनवा रहे हैं, कण्ठ-संगीत का एक अंश। इसे सुन कर आपको हमारे दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ८०वें अंक तक सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाले पाठक/श्रोता हमारी तीसरी पहेली श्रृंखला के ‘विजेता’ होंगे।
१ - संगीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि यह गीत किस राग पर आधारित है?
२ – इस गीत की गायिका कौन हैं?
आप अपने उत्तर हमें तत्काल swargoshthi@gmail.com पर भेजें। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के ८१वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अथवा swargoshthi@gmail.com पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ के ७७वें अंक में हमने आपको फिल्म चश्मेबद्दूर का गीत- ‘कहाँ से आए बदरा...’ का एक अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग मेघ मल्हार और दूसरे का उत्तर है- गायिका हेमन्ती शुक्ला। दोनों प्रश्नों के सही उत्तर मीरजापुर (उ.प्र.) के डॉ. पी.के. त्रिपाठी, जबलपुर की क्षिति तिवारी और लखनऊ के प्रकाश गोविन्द ने दिया है। तीनों प्रतिभागियों को रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर से हार्दिक बधाई।
झरोखा अगले अंक का
कृष्णमोहन मिश्र
राग मियाँ की मल्हार तानसेन के प्रिय रागों में से एक है। कुछ विद्वानों का मत है कि तानसेन ने कोमल गान्धार तथा शुद्ध और कोमल निषाद का प्रयोग कर इस राग का सृजन किया था। अकबर के दरबार में तानसेन को सम्मान देने के लिए उन्हें ‘मियाँ तानसेन’ नाम से सम्बोधित किया जाता था। इस राग से उनके जुड़ाव के कारण ही मल्हार के इस प्रकार को ‘मियाँ की मल्हार’ कहा जाने लगा। इस राग के बारे में चर्चा को आगे बढ़ाने से पहले आइए सुनते हैं, राग मियाँ की मल्हार में एक भावपूर्ण रचना। आपके लिए हम प्रस्तुत कर रहे हैं, विदुषी किशोरी अमोनकर के स्वर में द्रुत एक ताल में निबद्ध, मियाँ की मल्हार की एक रचना-
मियाँ की मल्हार : ‘उमड़ घुमड़ गरज गरज...’ : किशोरी अमोनकर
राग मियाँ की मल्हार के बारे में हमें जानकारी देते हुए जाने-माने इसराज और मयूरी वीणा वादक पण्डित श्रीकुमार मिश्र ने हमें बताया कि यह राग काफी थाट के अन्तर्गत माना जाता है। आरोह और अवरोह में दोनों निषाद का प्रयोग किया जाता है। राग मियाँ की मल्हार के स्वरों का ढाँचा कुछ इस प्रकार बनता है कि कोमल निषाद एक श्रुति ऊपर लगने लगता है। इसी प्रकार कोमल गान्धार, ऋषभ से लगभग ढाई श्रुति ऊपर की अनुभूति कराता है। इस राग में गान्धार स्वर का प्रयोग अत्यन्त सावधानी से करना पड़ता है। राग की कुछ अन्य विशेषताओं पर हम चर्चा जारी रखेंगे, परन्तु आइए, पहले सुनते हैं, सारंगी पर उस्ताद अब्दुल लतीफ़ खाँ का बजाया राग मियाँ की मल्हार का एक अंश।
मियाँ की मल्हार : सारंगी वादन : उस्ताद अब्दुल लतीफ़ खाँ
राग मियाँ की मल्हार को गाते-बजाते समय राग बहार से बचाना पड़ता है। परन्तु कोमल गान्धार का सही प्रयोग किया जाए तो इस दुविधा से मुक्त हुआ जा सकता है। इन दोनों रागों को एक के बाद दूसरे का गायन-वादन कठिन होता है, किन्तु उस्ताद बिस्मिल्लाह खाँ ने एक बार यह प्रयोग कर श्रोताओं को चमत्कृत कर दिया था। इस राग में गमक की तानें बहुत अच्छी लगती है। आइए यहाँ थोड़ा विराम लेकर राग मियाँ के मल्हार का एक और उदाहरण सुनते हैं। विश्वविख्यात फ़िल्मकार सत्यजीत रे ने १९५९ में भारतीय संगीत की दशा-दिशा को रेखांकित करती बांग्ला फिल्म ‘जलसाघर’ का निर्माण किया था। इस फिल्म में गायन, वादन और नर्तन के कई उत्कृष्ट कलासाधकों की प्रस्तुतियाँ शामिल की गईं थीं। इन्हीं में एक थे, उस्ताद सलामत अली खाँ, जिन्होने फिल्म में राग मियाँ की मल्हार की एक रचना तीनताल में निबद्ध कर प्रस्तुत की थी। लीजिए, आप भी सुनिए-
मियाँ की मल्हार : ‘जलरस बूँदन बरसे...’ : फिल्म – जलसाघर : उस्ताद सलामत अली खाँ
वर्षा ऋतु के प्राकृतिक सौन्दर्य को स्वरों के माध्यम से अभिव्यक्त करने की अनूठी क्षमता राग मियाँ की मल्हार में होती है। इसके साथ ही इस राग का स्वर-संयोजन, पावस के उमड़ते-घुमड़ते मेघ द्वारा विरहिणी नायिका के हृदय में मिलन की आशा जागृत होने की अनुभूति भी कराते हैं। कई फिल्म- संगीतकारों ने इस राग पर आधारित कुछ यादगार गीत तैयार किये हैं। इन्हीं में से आज हम आपके लिए दो गीत प्रस्तुत कर रहे हैं। ये गीत राग मियाँ की मल्हार के स्वरों पर आधारित तो हैं ही, इन गीतों के बोल में वर्षा ऋतु का सार्थक चित्रण भी हुआ है। पहले प्रस्तुत है- १९९८ में प्रदर्शित फिल्म ‘साज’ का गीत, जिसे कविता कृष्णमूर्ति ने तीनताल में गाया है। इसके बाद सुनिए- १९७१ की फिल्म ‘गुड्डी’ का बेहद लोकप्रिय गीत, जिसे बसन्त देसाई ने स्वरबद्ध किया है और वाणी जयराम ने कहरवा ताल में गाया है। आप ये दोनों गीत सुनिए और मुझे आज के इस अंक से यहीं विराम लेने की अनुमति दीजिए।
मियाँ की मल्हार : ‘बादल घुमड़ घिर आए...’ : फिल्म – साज : कविता कृष्णमूर्ति
मियाँ की मल्हार : ‘बोले रे पपीहरा...’ : फिल्म – गुड्डी : वाणी जयराम
आज की पहेली
आज की संगीत-पहेली में हम आपको सुनवा रहे हैं, कण्ठ-संगीत का एक अंश। इसे सुन कर आपको हमारे दो प्रश्नों के उत्तर देने हैं। ८०वें अंक तक सर्वाधिक अंक अर्जित करने वाले पाठक/श्रोता हमारी तीसरी पहेली श्रृंखला के ‘विजेता’ होंगे।
१ - संगीत के इस अंश को सुन कर पहचानिए कि यह गीत किस राग पर आधारित है?
२ – इस गीत की गायिका कौन हैं?
आप अपने उत्तर हमें तत्काल swargoshthi@gmail.com पर भेजें। विजेता का नाम हम ‘स्वरगोष्ठी’ के ८१वें अंक में प्रकाशित करेंगे। इस अंक में प्रस्तुत गीत-संगीत, राग, अथवा कलासाधक के बारे में यदि आप कोई जानकारी या अपने किसी अनुभव को हम सबके बीच बाँटना चाहते हैं तो हम आपका इस संगोष्ठी में स्वागत करते हैं। आप पृष्ठ के नीचे दिये गए comments के माध्यम से अथवा swargoshthi@gmail.com पर अपनी प्रतिक्रिया व्यक्त कर सकते हैं।
पिछली पहेली के विजेता
‘स्वरगोष्ठी’ के ७७वें अंक में हमने आपको फिल्म चश्मेबद्दूर का गीत- ‘कहाँ से आए बदरा...’ का एक अंश सुनवा कर आपसे दो प्रश्न पूछे थे। पहले प्रश्न का सही उत्तर है- राग मेघ मल्हार और दूसरे का उत्तर है- गायिका हेमन्ती शुक्ला। दोनों प्रश्नों के सही उत्तर मीरजापुर (उ.प्र.) के डॉ. पी.के. त्रिपाठी, जबलपुर की क्षिति तिवारी और लखनऊ के प्रकाश गोविन्द ने दिया है। तीनों प्रतिभागियों को रेडियो प्लेबैक इण्डिया की ओर से हार्दिक बधाई।
झरोखा अगले अंक का
मित्रों, इस वर्ष मानसून का आगमन कुछ विलम्ब से हुआ है, किन्तु देश के अधिकतर भागों में अच्छी वर्षा हो रही है। इधर आपके प्रिय स्तम्भ ‘स्वरगोष्ठी’ में भी मल्हार अंग के रागों की स्वर-वर्षा जारी है। अब तक आपने मेघ मल्हार और मियाँ की मल्हार का आनन्द प्राप्त किया है। अगले अंक से हम मल्हार का एक और प्रकार लेकर आपकी महफिल में उपस्थित होंगे। रविवार को प्रातः ९-३० बजे आप और हम ‘स्वरगोष्ठी’ के अगले अंक में पुनः मिलेंगे। तब तक के लिए हमें विराम लेने की अनुमति दीजिए।
कृष्णमोहन मिश्र
Comments
aabhaar
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Paheli Answer :
1- Raag Goud Malhar
2- Pandita Malini Rajurkar
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