'ओल्ड इज़ गोल्ड' के दोस्तों, नमस्कार! 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ानें' - 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के इस साप्ताहिक विशेषांक में आज दूसरी बार हमारी और आपकी मुलाक़ात हो रही है। आज की कड़ी के लिए हमने चुना है हमारी अतिपरिचित और प्यारी दोस्त इंदु पुरी गोस्वामी जी की फ़रमाइश का एक गीत। जी हाँ, वो ही इंदु जी जिनकी बातें हमारे होठों पर हमेशा मुस्कुराहट ले आती है। क्या ख़ूब तरीका है उनका 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के पहेलियों का पहेली के ही रूप में जवाब देने का! लेकिन आज वो ईमेल के बहाने जो गीत हमें सुनवा रही हैं और इस गीत से जुड़ी जो यादें हमारे साथ बांट रही हैं, वो थोड़ा सा संजीदा भी है और ग़मज़दा भी। दरअसल बात ऐसी थी कि बहुत दिनों से ही इंदु जी ने हमसे इस गीत को सुनवाने का अनुरोध एकाधिक बार किया था। लेकिन किसी ना किसी वजह से हम इसे सुनवा नहीं सके। कोई ऐसी शृंखला भी नहीं हुई जिसमें यह गीत फ़िट बैठता। और शायद इसलिए भी क्योंकि अब तक हमें यह नहीं मालूम था कि इंदु जी को यह गीत पसंद किसलिए है। अगर पता होता तो शायद अब तक हम इसे बजा चुके होते। ख़ैर, देर से ही सही, हम तो अब जान गए इस गीत को इतना ज़्यादा पसंद करने के पीछे क्या राज़ छुपा है, आप भी थोड़ी देर में जान जाएँगे। तो लीजिए, अब आगे की बातें पढ़िए इंदु जी के शब्दों में जो उन्होंने हमें लिख भेजा है हमारे ईमेल पते oig@hindyugm.com पर।
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प्रिय सुजोय जी,
नमस्ते!
कोई गाना हमे क्यों अच्छा लगने लगता है कई बार उसके पीछे कोई और कई कारण होते हैं, कई बार कोई भी कारण नही होता। बस अच्छे लगते हैं अपने खूबसूरत शब्दों के कारण, अपने मधुर संगीत के कारण। यह जो गाना है "युंही दिल ने चाहा था रोना रुलाना", इस गाने में ये दोनों चीजें तो है ही, दो कारण और भी हैं -
१. मेरा एक भतीजा था अविनाश- अविनाश पुरी गोस्वामी- २६ साल का। सुन्दर, स्मार्ट, कोंफ़िडेंट। प्यारा सा एक बच्चा भी है उसके, उस समय डेढ़-दो साल का ही था बच्चा। अविनाश को पुराने गानों में से ये गाना बहुत पसंद था। अविनाश अचानक चल बसा। इकलौता बेटा था...... जब भी ये गाना सुनती हूँ, जैसे वो पास आ बैठता है। लगता है यहीं कहीं है और मुझसे बोलेगा 'एक बार और लगाओ ना यही गाना बुआ!'
२. मैं समाजसेवी नही हूँ। किन्तु, कुछ करती रहती हूँ। ऐसा कुछ जो मुझे सुकून दे। अक्सर कहती भी रहती हूँ ना बहुत स्वार्थी औरत हूँ मैं। बस .....इसी कारण.....जिन बच्चों की किसी को जरूरत नही, जिन्हें मरने के लिए फेंक दिया जाता है, उन्हें लोगो को मोटिवेट कर के परिवार, माता-पिता मिल जाये ऐसा कुछ करती रहती हूँ। इन बच्चों को हॉस्पिटल से ही परिवार तक पहुँचाने में परिवार और प्रशासन के बीच जो भी रोल प्ले करना होता है करती हूँ। पिछले दिनों एक बच्चे को परिस्थितिवश घर लाना पड़ गया। 'वे' उसे मार देते या फेंक देते। चार महीने 'वो' नन्हा एंजिल मेरे पास रहा। मेरे पेट पर सोता, करवट लेने पर कमर पर लटका कर सुलाने की आदत डाल दी उसकी। इन सब की उससे ज्यादा मेरी आदत पड़ गई। पहचानने लगा था मुझे। हम सब उसे बहुत प्यार करने लगे थे। किन्तु..... उसके जवान होने और पैरों पर खड़े होने तक मुझे कम से कम जिन्दगी के बाईस पच्चीस साल चाहिए। परिवार की ख़ुशी के लिए भी कई बार...... और वो चला गया, एक बहुत अच्छे घर में जहाँ उसे सब पागलपन की हद तक कर प्यार करते हैं। किन्तु इसी जन्म में मुझे राधे, मीरा और यशोदा का जीवन दे गया। सुजॊय! ये सब तुम्हे मेरा पागलपन लगे किन्तु......हर बार कृष्ण ऩे मुझे और मेरी गोद को ही क्यों चुना या चुनते हैं और छोड़ कर चले जाते हैं कभी वापस ना लौटने के लिए? उसे याद करके रो भी नही सकती। मेरा ये सब काम करना बंद करवा देंगे सब मिल कर। इसलिए ये गाना एक बहाना बन जाता है मेरे लिए उसे याद करने का या फूट फूट कर रोने का। क्या कहूँ? नही मालूम ईश्वर क्या चाहता है मुझसे पर सोचती हूँ कैसे जी होगी यशोदा या राधा अपने कृष्ण के जाने के बाद? मैं तो जी रही हूँ....कि फिर ईश्वर किसी कृष्ण को मेरी गोद में भेजेगा और रोने के लिए यही गीत फिर एक बहाना बन जायेगा मेरे लिए कि "यूँही दिल ऩे चाहा था रोना रुलाना, तेरी याद तो बन गई एक बहाना"।
चाहो तो मेरी पसंद के ये कारण बता देना और चाहो तो एडिट कर कोई खूबसूरत बहाना बना देना, पर..........सच तो यही है.
प्यार,
तुम्हारी दोस्त,
इंदु
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इंदु जी, मेरे पास कोई शब्द नहीं है, मेरी उंगलियाँ की-बोर्ड पर नहीं चल पा रहे हैं। शायद ही कोई होगा जिसकी आँखें इस वक़्त आपकी इन बातों को पढ़कर नम नहीं हुई होंगी! हम आपके जिस इमेज से वाक़ीफ़ हैं, आपकी शख़्सीयत का यह दूसरा पहलू जानकर जितन आश्चर्य हुआ, उससे कई गुणा ज़्यादा हमारे दिल में आपकी इज़्ज़त और बढ़ गई। क्या कहूँ, यह गीत मुझे भी बेहद बेहद बेहद पसंद है (मैंने आपसे पहले भी ज़िक्र किया था इस बारे में), और हर बार इस गीत को सुनते हुए मेरी आँखें नम हो जाती रही हैं। लेकिन आज तो गीत सुने बग़ैर ही आँखें छलक रही हैं। अब तो इस गीत के साथ आपका नाम भी इस तरह से जुड़ गया है कि अब आगे से जब भी इस गीत को सुनूँगा, आपका ख़याल ज़रूर आएगा। आपके इन अनमोल बच्चों के लिए कुछ करने के प्रयास में अगर मैं आपकी कोई सहायता हर सकूँ तो मुझे अत्यन्त ख़ुशी होगी। लीजिए आप भी सुनिए और हमारे सभी श्रोताओं, आप सब भी सुनिए इंदु जी की पसंद पर फ़िल्म 'दिल ही तो है' से सुमन कल्याणपुर का गाया साहिर की रचना, संगीत रोशन का है। हम सभी की तरफ़ से अविनाश को स्मृति-सुमन और उस "नन्हे एंजिल" को एक उज्ज्वल भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनाएँ। और हाँ इंदु जी, एक और बात, आप जैसे लोग ही इस दुनिया में रहने के क़ाबिल भी हैं और हक़दार भी, यकीन मानिए.....
गीत - युंही दिल ने चाहा था रोना रुलाना
तो ये था आज का 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने'। हमारे पास इंदु जी को शुक्रिया अदा करने के लिए शब्द नहीं है जिन्होंने अपने जीवन की ये महत्वपूर्ण अनुभव हम सभी के साथ बांटी।
दोस्तों, इंदु जी की तरह अगर आपके जीवन में भी इस तरह के ख़ास अनुभव है, जिन्हें अब तक आपने अपने दिल में ही छुपाए रखा, शायद अब वक़्त आ गया है कि आप पूरी दुनिया के साथ उन्हें बांटे और अपना जी हल्का करें। तो देर किस बात की, जल्द से जल्द हमें लिख भेजिए अपने जीवन के यादगार अनुभव, खट्टे-मीठे अनुभव, जो कभी आपको हँसाते भी हैं और कभी वो यादें आपको रुला भी जाती हैं। ज़िंदगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मुक़ाम, वो फिर नहीं आते, लेकिन उनकी यादें तो हमेशा हमेशा के लिए हमारे साथ रह जाती हैं जिन्हे हम बार बार याद करके उन पलों को, उन लम्हों को, उन अनुभवों को जीते हैं। और इन्ही यादों के ख़ज़ाने को ईमेल के बहाने समृद्ध करने के लिए हमारा यह एक छोटा सा प्रयास है आपके मनपसंद स्तंभ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के टीम की तरफ़ से। हमें ईमेल कीजिए oig@hindyugm.com के पते पर। और याद रहे, हम आपके ईमेल का बेसबरी से इंतेज़ार कर रहे हैं। अब आज के लिए इजाज़त दीजिए, कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नियमीत अंक के साथ पुन: हाज़िर होंगे, नमस्कार!
प्रस्तुति: सुजॊय चटर्जी
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प्रिय सुजोय जी,
नमस्ते!
कोई गाना हमे क्यों अच्छा लगने लगता है कई बार उसके पीछे कोई और कई कारण होते हैं, कई बार कोई भी कारण नही होता। बस अच्छे लगते हैं अपने खूबसूरत शब्दों के कारण, अपने मधुर संगीत के कारण। यह जो गाना है "युंही दिल ने चाहा था रोना रुलाना", इस गाने में ये दोनों चीजें तो है ही, दो कारण और भी हैं -
१. मेरा एक भतीजा था अविनाश- अविनाश पुरी गोस्वामी- २६ साल का। सुन्दर, स्मार्ट, कोंफ़िडेंट। प्यारा सा एक बच्चा भी है उसके, उस समय डेढ़-दो साल का ही था बच्चा। अविनाश को पुराने गानों में से ये गाना बहुत पसंद था। अविनाश अचानक चल बसा। इकलौता बेटा था...... जब भी ये गाना सुनती हूँ, जैसे वो पास आ बैठता है। लगता है यहीं कहीं है और मुझसे बोलेगा 'एक बार और लगाओ ना यही गाना बुआ!'
२. मैं समाजसेवी नही हूँ। किन्तु, कुछ करती रहती हूँ। ऐसा कुछ जो मुझे सुकून दे। अक्सर कहती भी रहती हूँ ना बहुत स्वार्थी औरत हूँ मैं। बस .....इसी कारण.....जिन बच्चों की किसी को जरूरत नही, जिन्हें मरने के लिए फेंक दिया जाता है, उन्हें लोगो को मोटिवेट कर के परिवार, माता-पिता मिल जाये ऐसा कुछ करती रहती हूँ। इन बच्चों को हॉस्पिटल से ही परिवार तक पहुँचाने में परिवार और प्रशासन के बीच जो भी रोल प्ले करना होता है करती हूँ। पिछले दिनों एक बच्चे को परिस्थितिवश घर लाना पड़ गया। 'वे' उसे मार देते या फेंक देते। चार महीने 'वो' नन्हा एंजिल मेरे पास रहा। मेरे पेट पर सोता, करवट लेने पर कमर पर लटका कर सुलाने की आदत डाल दी उसकी। इन सब की उससे ज्यादा मेरी आदत पड़ गई। पहचानने लगा था मुझे। हम सब उसे बहुत प्यार करने लगे थे। किन्तु..... उसके जवान होने और पैरों पर खड़े होने तक मुझे कम से कम जिन्दगी के बाईस पच्चीस साल चाहिए। परिवार की ख़ुशी के लिए भी कई बार...... और वो चला गया, एक बहुत अच्छे घर में जहाँ उसे सब पागलपन की हद तक कर प्यार करते हैं। किन्तु इसी जन्म में मुझे राधे, मीरा और यशोदा का जीवन दे गया। सुजॊय! ये सब तुम्हे मेरा पागलपन लगे किन्तु......हर बार कृष्ण ऩे मुझे और मेरी गोद को ही क्यों चुना या चुनते हैं और छोड़ कर चले जाते हैं कभी वापस ना लौटने के लिए? उसे याद करके रो भी नही सकती। मेरा ये सब काम करना बंद करवा देंगे सब मिल कर। इसलिए ये गाना एक बहाना बन जाता है मेरे लिए उसे याद करने का या फूट फूट कर रोने का। क्या कहूँ? नही मालूम ईश्वर क्या चाहता है मुझसे पर सोचती हूँ कैसे जी होगी यशोदा या राधा अपने कृष्ण के जाने के बाद? मैं तो जी रही हूँ....कि फिर ईश्वर किसी कृष्ण को मेरी गोद में भेजेगा और रोने के लिए यही गीत फिर एक बहाना बन जायेगा मेरे लिए कि "यूँही दिल ऩे चाहा था रोना रुलाना, तेरी याद तो बन गई एक बहाना"।
चाहो तो मेरी पसंद के ये कारण बता देना और चाहो तो एडिट कर कोई खूबसूरत बहाना बना देना, पर..........सच तो यही है.
प्यार,
तुम्हारी दोस्त,
इंदु
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इंदु जी, मेरे पास कोई शब्द नहीं है, मेरी उंगलियाँ की-बोर्ड पर नहीं चल पा रहे हैं। शायद ही कोई होगा जिसकी आँखें इस वक़्त आपकी इन बातों को पढ़कर नम नहीं हुई होंगी! हम आपके जिस इमेज से वाक़ीफ़ हैं, आपकी शख़्सीयत का यह दूसरा पहलू जानकर जितन आश्चर्य हुआ, उससे कई गुणा ज़्यादा हमारे दिल में आपकी इज़्ज़त और बढ़ गई। क्या कहूँ, यह गीत मुझे भी बेहद बेहद बेहद पसंद है (मैंने आपसे पहले भी ज़िक्र किया था इस बारे में), और हर बार इस गीत को सुनते हुए मेरी आँखें नम हो जाती रही हैं। लेकिन आज तो गीत सुने बग़ैर ही आँखें छलक रही हैं। अब तो इस गीत के साथ आपका नाम भी इस तरह से जुड़ गया है कि अब आगे से जब भी इस गीत को सुनूँगा, आपका ख़याल ज़रूर आएगा। आपके इन अनमोल बच्चों के लिए कुछ करने के प्रयास में अगर मैं आपकी कोई सहायता हर सकूँ तो मुझे अत्यन्त ख़ुशी होगी। लीजिए आप भी सुनिए और हमारे सभी श्रोताओं, आप सब भी सुनिए इंदु जी की पसंद पर फ़िल्म 'दिल ही तो है' से सुमन कल्याणपुर का गाया साहिर की रचना, संगीत रोशन का है। हम सभी की तरफ़ से अविनाश को स्मृति-सुमन और उस "नन्हे एंजिल" को एक उज्ज्वल भविष्य के लिए ढेरों शुभकामनाएँ। और हाँ इंदु जी, एक और बात, आप जैसे लोग ही इस दुनिया में रहने के क़ाबिल भी हैं और हक़दार भी, यकीन मानिए.....
गीत - युंही दिल ने चाहा था रोना रुलाना
तो ये था आज का 'ईमेल के बहाने यादों के ख़ज़ाने'। हमारे पास इंदु जी को शुक्रिया अदा करने के लिए शब्द नहीं है जिन्होंने अपने जीवन की ये महत्वपूर्ण अनुभव हम सभी के साथ बांटी।
दोस्तों, इंदु जी की तरह अगर आपके जीवन में भी इस तरह के ख़ास अनुभव है, जिन्हें अब तक आपने अपने दिल में ही छुपाए रखा, शायद अब वक़्त आ गया है कि आप पूरी दुनिया के साथ उन्हें बांटे और अपना जी हल्का करें। तो देर किस बात की, जल्द से जल्द हमें लिख भेजिए अपने जीवन के यादगार अनुभव, खट्टे-मीठे अनुभव, जो कभी आपको हँसाते भी हैं और कभी वो यादें आपको रुला भी जाती हैं। ज़िंदगी के सफ़र में गुज़र जाते हैं जो मुक़ाम, वो फिर नहीं आते, लेकिन उनकी यादें तो हमेशा हमेशा के लिए हमारे साथ रह जाती हैं जिन्हे हम बार बार याद करके उन पलों को, उन लम्हों को, उन अनुभवों को जीते हैं। और इन्ही यादों के ख़ज़ाने को ईमेल के बहाने समृद्ध करने के लिए हमारा यह एक छोटा सा प्रयास है आपके मनपसंद स्तंभ 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के टीम की तरफ़ से। हमें ईमेल कीजिए oig@hindyugm.com के पते पर। और याद रहे, हम आपके ईमेल का बेसबरी से इंतेज़ार कर रहे हैं। अब आज के लिए इजाज़त दीजिए, कल 'ओल्ड इज़ गोल्ड' के नियमीत अंक के साथ पुन: हाज़िर होंगे, नमस्कार!
प्रस्तुति: सुजॊय चटर्जी
Comments
:)
कोई ख़ास वजह नहीं थी शायद....
कुछ वजह हो भी तो हम नहीं जानते...
आभार..
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क्या कहूँ????? क्या लिखूं?????
बहुत ही कर्ण प्रिय गीत है और ये कहा जाये कि बहुत ही हृदय प्रिय गीत है तो कोई अतिशयोक्ति नहीं होगी
इंदु जी तो है ही अद्वितीय...